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मंगलवार, 22 जनवरी 2019

देवाधिदेव महादेव विशेष

देवाधिदेव महादेव विशेष
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भगवान् भोलेनाथ सदैव उपकारी और हितकारी देव है, शास्त्रों के अनुसार त्रिदेवों में शिवजी को संहार के देवता भी माना गया है, अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवजी की पूजा-अर्चना को अत्यन्त सरल माना गया है, अन्य देवताओं की भाँति शिवजी को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता ही नहीं, शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, धतूरा से ही प्रसन्न हो जाते हैं।

शिवजी को मनोरम वेशभूषा और अलँकारों की आवश्यकता भी नहीं है, वे तो औघड़ बाबा हैं, जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रूद्राक्ष  की माला, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाये एवम् हाथ में त्रिशूल पकड़े हुयें भगवान् भोलेनाथ सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं, इसीलिये शिवजी को नटराज की संज्ञा दी गई है।

भगवान् भोलेनाथ की वेशभूषा से जीवन और मृत्यु का बोध होता है, शीश पर गंगा और चन्द्रमा जीवन एवम् कला के द्योतक हैं, शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है, यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुयें अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है, रामचरितमानस में शिवजी को नाना वाहन नाना भेष वाले गणों के अधिपति कहे गयें है।

भगवान् शिवशंकरजी जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करते हैं, शिवजी नीलकंठ कहलाते हैं, क्योंकि समुद्र मंथन के समय जब देवगण एवम् असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत कर रहे थे तब कालकूट महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, तभी से शिवजी नीलकंठ कहलाये, क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।

ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही शिवमहापुराण की रचना की गई है, सज्जनों! सभी शिव-भक्तो को शिवपुराण अवश्य पढ़नी चाहिये, शिवपुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है, शिवपुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को मुक्ति के लिये शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।

मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म भगवान् शिव-शंकरजी को अर्पित कर देने चाहियें, वेदों और उपनिषदों में प्रणव ओऊम् के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है प्रणव के अतिरिक्त गायत्री-मन्त्र के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है, परन्तु शिव-पुराण में आठ संहिताओं का उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं।

ये संहितायें हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग) इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम शिवपुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है, इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो शिव-पुराण को सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है, यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है।

विद्येश्वर संहिता में शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्त्व, शिवलिंग की पूजा और दान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है, शिवजी की भस्म और रुद्राक्ष का महत्त्व भी बताया गया है, रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है, खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिये।

सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद होता है, सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर सूर्य की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिवजी का ध्यान करना चाहिये, प्रत्येक व्यक्ति को कमाये हुये धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिये, रुद्र-संहिता में शिवजी का जीवन-चरित्र वर्णित है, इसमें नारद मोह की कथा, सती का दक्ष-यज्ञ में देह त्याग, पार्वतीजी से विवाह का विस्तार से वर्णन है।

इस में मदन (काम) दहन, कार्तिकेय और गणेश पुत्रों का जन्म, पृथ्वी परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार की कथा का विस्तार से उल्लेख है, शिव-पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस (पंचामृत) से स्नान कराके बिल्वपत्र, चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ायें, फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें, इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।

इसी संहिता में सृष्टि खण्ड के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण भगवान् शिव-शंकरजी को माना गया हैं, शिवजी से ही आद्यशक्ति माया' का आविर्भाव होता हैं, फिर शिवजी से ही ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति बताई गई है, शतरुद्र संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-हनुमानजी, श्वेत मुख और ऋषभदेवजी का वर्णन है, उन्हें शिवजी का अवतार कहा गया है।

शिवजी की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं, इन आठ मूर्तियों से भूमि, जल, अग्नि, पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य और चन्द्र अधिष्ठित हैं, इस संहिता में शिवजी के सुरम्य मनमोहक अर्द्धनारीश्वर रूप धारण करने की कथा भी बताई गयी है, यह स्वरूप सृष्टि-विकास में मैथुनी क्रिया के योगदान के लिए धरा गया था।

शिवपुराण की शतरुद्र संहिता के द्वितीय अध्याय में भगवान् शिवजी को अष्टमूर्ति कहकर उनके आठ रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है जो शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान एवम् महादेव के नामों से उल्लेख है, शिवजी के इन अष्ट मूर्तियों द्वारा पाँच महाभूत तत्व, ईशान (सूर्य), महादेव (चंद्र), क्षेत्रज्ञ (जीव) अधिष्ठित हैं।

चराचर विश्व को धारण करना (भव), जगत के बाहर भीतर वर्तमान रह स्पन्दित होना (उग्र), आकाशात्मक रूप (भीम), समस्त क्षेत्रों के जीवों का पापनाशक (पशुपति), जगत का प्रकाशक सूर्य (ईशान), धुलोक में भ्रमण कर सबको आह्लाद देना (महादेव) रूप है, इसी संहिता में भगवान् विष्णुजी द्वारा शिवजी के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है।

साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है, भगवान केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद बद्रीनाथ में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है, इसी आशय की महिमा को शिवपुराण के कोटिरुद्र संहिता में भी व्यक्त किया गया है-

तस्यैव रूपं दृष्ट्वा च सर्वपापै: प्रमुच्यते।
जीवन्मक्तो भवेत् सोऽपि यो गतो बदरीबने।।
दृष्ट्वा रूपं नरस्यैव तथा नारायणस्य च।
केदारेश्वरनाम्नश्च मुक्तिभागी न संशय:।।

इस संहिता में मनुष्यों द्वारा भगवान् शिवजी के लिये तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है, यदि निष्काम कर्म से तप किया जाय तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है, अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है, शिवपुराण का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है, इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन-से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है।

पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय आदि भी इसमें बताये गये हैं, उमा संहिता में देवी-पार्वतीजी के अद्भुत चरित्र तथा उनसे संबंधित लीलाओं का उल्लेख किया गया है, चूँकि पार्वतीजी भगवान् शिवजी के आधे भाग से प्रकट हुई हैं और भगवान शिव का आंशिक स्वरूप हैं, इसलिये इस संहिता में उमा-महिमा का वर्णन कर अप्रत्यक्ष रूप से भगवान् शिवजी के ही अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का माहात्म्य प्रस्तुत किया गया है।

कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है, इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है, इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नन्दी श्राद्ध और ब्रह्मज्ञानी की विवेचना भी की गई है, गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाये गये हैं, इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिये शिव-ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है।

भगवान् शिवजी ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं, शिवजी के निर्गुण और सगुण रूप का विवेचन करते हुये कहा गया है कि शिवजी ही हैं जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं, इस कार्य के लिये ही भोलेनाथ सगुण रूप धारण करते हैं, जिस प्रकार अग्नि तत्त्व और जल तत्त्व को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है,उसी प्रकार शिवजी अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं।

शिवजी की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है, भाई-बहनों! समय निकालकर विशेष रूप से आज ही के दिन (सोमवार) शिव-पुराण का पाठ अवश्य करना चाहिये, क्योंकि संसार की सभी वासना-तर्षणायें शिव-पुराण के स्वाध्याय से समाप्त हो जाती है एवम् समस्त मनोकामनायें पूर्ण होकर शिव-लोक की प्राप्ति होती है, आज सोमवार के पावन दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हों।

जय महादेव!
ॐ नमः शिवाय!
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राजस्थान पत्रिका:- भाजपा विरोध से देश विरोध तक

*मेरी पीड़ा जरूर पड़े*

राजस्थान पत्रिका:-

भाजपा विरोध से देश विरोध तक

संपादक महोदय,
(आदरणीय या माननीय कहने का अब मन नहीं करता, और ना ही हम पाठकों के मन में आपके प्रति ऐसा मान रहा)

जब से पढ़ना सीखा है, शायद उससे पहले से आपके अखबार से नाता था। 'हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा - वाल्तेयर' ये पंक्तियां जब पहली बार 8 साल की उम्र से अखबार पढ़ना शुरू किया था, तब समझ नहीं आयी थी, पर जैसे जैसे उम्र बढ़ी, आपके अखबार के इन पंक्तियों को आत्मसात करते देखना, हमारे लिए गर्वोन्नत होने का एक संपूर्ण कारण था। आज भी याद है कि जब पत्रिका को पहली बार एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो हमें लगा जैसे पत्रिका का पाठक होने के नाते उस पुरस्कार पर हमारा भी कोई हक़ है, अधिकार है जैसे।
जिस दिन बारिशों के कारण, हॉकर मौहल्ले में पेपर नहीं डाल पाता था, दिन भर एक बेचैनी रहती थी की आज पत्रिका नहीं पढ़ पाए । ये ही हालत तब भी होती थी जब कोई पड़ोसी अखबार ले जाता और वापस नहीं लाता था।
ख़ैर, आज आप 'राजस्थान पत्रिका' को उस मुकाम पर ले आये हैं, जहां थोड़ी ज्यादा देर अखबार की ओर देख ले तो उबकाई सी आने लगती हैं।

वसुंधरा सरकार ने शायद अपने शासन के पहले ही साल में आपको विज्ञापन देना बंद कर दिया था, जिसके विरोध में आप सुप्रीम कोर्ट में जीत कर आये। और उसके बाद वसुंधरा सरकार के विरुद्ध, भाजपा के विरुद्ध आपका एजेंडा क्रिस्टल क्लियर दिख रहा था। पर कोई बात नहीं। देश की 99% प्रतिशत मीडिया वैसे भी किसी ना किसी के चरणों में दण्डवत है। आप भी कहीं लेट गए हैं तो कोई घोर आश्चर्य नहीं। पर ये भाजपा या वसुंधरा या मोदी के विरोध में होते होते आप कब देश के विरोधी होने लग गए, आपको पता ही नहीं चला। डॉ भार्गव के लिखे अद्भुत वेद-वेदांग के लेखों की जगह कब योगेंद यादव जैसे लोगों ने ले ली, जिनका हर हफ्ते एक आर्टिकल आपके अखबार में होना तय है।
चलिये, ये सब भी कुछ नहीं।

पर आज तो जो हद हुई है, शायद अक्षम्य है। आज के जोधपुर ग्रामीण के बिलाड़ा पीपाड़ संस्करण की एक फोटो संलग्न कर रहा हूँ। जयपुर में कांग्रेस अध्यक्ष की एक रैली हुई जिसकी हैडलाइन 'किसान-युवा अब फ्रंट फुट पर खेलेंगे' आपके पहले पेज पर छाया हुआ है। पहले पेज का 10% रूटीन विज्ञापन को देने के बाद बाकी में से लगभग 60% आपने इस रैली को समर्पित किया है, वो भी ठीक। जयपुर की इस रैली को प्रदेश के हर शहर, हर ग्रामीण संस्करण में आपने पहले पेज पे दिया है। और उतने ही 60% कवरेज के साथ। ये बात और है कि अभी तो कोई चुनाव भी नहीं नजदीक के एक महीने में, और एक बात और ये भी कि आपने सरदार पटेल को समर्पित 'स्टेचू ऑफ यूनिटी' के प्रधानमंत्री द्वारा किये गए उद्घाटन को आपने 14वें पेज पर छापा था। और आज जब, देश का हर एक मीडिया हाउस, हर अखबार 'आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS)' को दिए जाने वाले 10% आरक्षण के लिए पारित हुए 124वें संशोधन को प्राथमिकता देता है, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं कि आपने लगभग हर ग्रामीण संस्करण में इसे दरकिनार कर पीछे की ओर फेक दिया है। और हां, हर शहर में आखिरी पेज पर 'संघ के निर्देश पर सरकार ने खेला सामान्य वर्ग के आरक्षण का दावं' - ये लिखने से आप नहीं चूके। कांग्रेस सरकार द्वारा घोषित कर्जमाफी जो लोगों को बस सरकारी सहायता पे निर्भर बना देती है, उसपर आपके तेवर के लिए तो सब प्रतीक्षा ही करते रह गए। 
(और अगली बार दांव ढंग से लिखियेगा, प्रदेश के सबसे बड़े अखबार है, ऐसी छोटी गलतियां शोभा नहीं देती)
चलिये, ये सब भी कुछ नहीं। ये भी सहन कर लेंगे। बाकी, जानते हम सब हैं कि कांग्रेस की तरफ से राजस्थान, मध्यप्रदेश में फ्रंट फुट पर कौन खेल रहा है। आपके दिसंबर18 के चुनावों में की गई मेहनत कांग्रेस कभी नहीं भुला सकती, जब आप कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से भी ज्यादा ओवरटाइम कर रहे थे कांग्रेस की सरकार तीनों राज्यों में बनाने के लिए। वो प्रधानमंत्री मोदी को 'चैंपियन ऑफ अर्थ' से सम्मानित होने पर झरोखा नामक आपके कार्टून कोने में 'किसमें, जुमलेबाजी में' लिखते हुए ये भूल जाना कि वो सम्मान सिर्फ़ मोदी को ही नहीं, अपितु देश को था। पर इस बात में भी चूंकि 'मोदी' शामिल था, और आपकी राजनैतिक मजबूरियाँ हर बीतते दिन के साथ कांच जैसे साफ होती जा रही हैं, इसे भी हम भूल जाते हैं।

पर आज बिलाड़ा संस्करण में पहले पेज के अंत में आईएएस शाह फैसल के इस्तीफे को प्रमुखता मिली। मिलनी भी थी, क्योंकि मोदी के विरोध में कोई भी हो, आपका साथ उसे मिलना अवश्यम्भावी है। ख़ैर, हैडलाइन पर ही आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा।

'हत्याओं पर केन्द्र के रवैये से खफा आईएएस टॉपर ने छोड़ी नौकरी'।

'हत्याएं..??' जहां देश के सैनिक घर-बार, परिजनों को छोड़ दुर्गम परिस्थितियों में देश की संप्रभुता की रक्षा कर रहे हैं, असंख्य पत्थर खा कर भी संयम रखते हैं, भीड़ की आड़ ले छुपे आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुँचाने में वहां की भीड़ द्वारा फेंके गए पत्थरों की अति होने पर जवाब में भीड़ को तितर बितर करते हैं तो वो 'हत्याएं' हैं..?
कश्मीर के रास्ते से यही सब जो देश भर में मनमर्जियों से धमाके करके जो कोहराम मचाते थे, उन्हें 5 साल से रोका हुआ है। उन धमाकों में जो असंख्य निर्दोष निहत्थे भारतीय मरे थे, उनकी मौत को 'हत्या' कहते हैं। जब 8-10 सैनिकों के दल पर 500-1000 की भीड़, बस आतंकियों को बचाने के लिए बस पत्थरों की बारिश कर देती हैं, उसे 'हत्या' कहते हैं।

आतंकवादियों को ख़त्म करना, नेस्तनाबूद कर देना हत्याएं नहीं होती। उनके समर्थन पर पत्थरबाज़ी करने वालों को रोकना, वो भी पूरी सावधानी के साथ कि जनहानि ना हो, हत्या नहीं होती। अगर इन आतंकियो को ना रोका जाए, और फिर जब ट्रेनों में, सड़को पर, मंदिरों में लोगों के चीथड़े उड़ जाते हैं, उसे किस अलंकार से सुशोभित करेंगी आपकी कलम..?
'हत्याएं' ये ही शब्द पाकिस्तान उपयोग में लेता है, संयुक्त राष्ट्र और दूसरे अंतराष्ट्रीय मंचों पर, कश्मीर मुद्दे पर भारत को घसीटने के लिए।

आपका विरोध वसुंधरा से, मोदी से, भाजपा से, यहां तक कि आज की तारीख में वृहत हिन्दू समुदाय से हैं (जो आपके संस्करण के 16वें एवं 'अंतिम' पेज की खबर, हैडलाइन और कंटेंट से पता चलता है), वो भी सहनीय है। पर एक पार्टी के चरणों मे आज आप देश-विरोध पर आमदा हो गए हैं। और ये आज की खबर किसी देश-द्रोह से कम नहीं।

जिस अखबार से हमारा बचपन, हमारी सुबह की चाय, गांवों की हथाई, चुल्हे चौखट से निपट कर अखबार बांचते सांस लेने वाली गृहिणियों का क्षणिक विश्राम, और ना जाने क्या-क्या जुड़ा था। 60 साल की उस विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा को आपने अपने मौद्रिक और बुद्धजीवी कहलाने के लालच में पिछले 5 सालों में नाली में बहा दिया है। मेरे खुद के परिवार ने 40 सालों के नाता पिछले ही हफ्ते तोड़ा है।

शायद आप अपने इस अखबार को उस मुकाम तक ले आये हैं, जहां से पीछे मुड़ना अब आपके लिए संभव नहीं। वो कहता हैं ना, if you are going through hell, keep going. बाकी अब तो देश के विरोध में खड़े होने का ठान ही लिया है तो उसमें भी लगे रहिये।
हो सकता है, हम आपके विचारों से सहमत न हो पाएं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करेंगे, पर शायद इस राष्ट्र की कीमत पर नहीं। जब जब जरूरी होगा, ऐसे ही याद दिलाता रहूंगा।

शुभकामनाएं सहित,

आपकी गिरती हुई (या बहुत गिर चुकी) पत्रकारिता से निराश,
आपका एक भूतपूर्व पाठक।

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