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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

कभी सोचा है कि धर्म भी अब ‘पैकेज’ में मिलने लगा है

*धर्म बिकाऊ है* 


कभी सोचा है कि धर्म भी अब ‘पैकेज’ में मिलने लगा है?
 • ₹11,000 दीजिए — सामने बैठकर पूजन कीजिए।
 • ₹51,000 दीजिए — स्वर्ण कलश पर आपका नाम।
 • ₹1,00,000 दीजिए — साधुजी आपके घर पधारेंगे।
 • ₹5,00,000 दीजिए — आशीर्वाद के साथ आपकी प्रशंसा मंच से।

धर्म अब मोक्ष का मार्ग नहीं रहा, अब ये एक रेट कार्ड है।
और ये कोई मज़ाक नहीं है।
ये वो कड़वा सच है जिसे हमने देखना छोड़ दिया है।
या कहें — देख कर भी अनदेखा कर दिया है।
1. संयम का चोला, लेकिन भीतर राजसी ठाठ
एक दौर था जब साधु संत निर्वस्त्र होते थे — लेकिन फिर भी पूरे समाज को लज्जा सिखा जाते थे।
आज?
 • चरण रक्षक गाड़ी से चलते हैं।
 • हर दो कदम पर स्वागत मंडप लगता है।
 • उनके साथ मीडिया टीम होती है जो वीडियो बनाती है।
 • और अगर प्रवचन में भीड़ न हो, तो नाराज़गी दिखती है।
किससे पूछें — ये कौन-सा त्याग है?
क्या अब संयम का मूल्य भी ‘डेकोरेशन’ से तय होगा?
2. ट्रस्टियों की राजनीति — धर्म के नाम पर निजी एजेंडा
मंदिर कभी समुदाय के आत्मिक विकास के केंद्र थे।
अब वे कुछ खास लोगों के ‘क्लब’ बन गए हैं।
 • ट्रस्टी कौन बनेगा, इसका फैसला अब सेवा से नहीं — गुटबाज़ी और चापलूसी से होता है।
 • मंदिर की नीतियाँ ‘धार्मिक’ नहीं, ‘राजनीतिक’ हो गई हैं।
 • मूर्ति प्रतिष्ठा हो या चातुर्मास — किसे बुलाया जाए, ये फैसला आम आदमी नहीं, कुछ गिने-चुने लोग करते हैं — वो भी “कमीशन” देखकर।
और अगर कोई सजग व्यक्ति सवाल पूछे, तो उसे समाज-विरोधी करार दे दिया जाता है।
क्या यही है हमारी धर्मरक्षा?
3. आयोजन या कारोबार?
अब हर धार्मिक आयोजन ‘इवेंट’ है।
 • साउंड सिस्टम किसका होगा?
 • फूल कौन देगा?
 • प्रसाद किसकी केटरिंग से आएगा?
 • भजन मंडली किस गायक की होगी?
इन सब में भी ‘डीलिंग’ होती है।
कई जगह तो यही देखा गया है कि मंच पर बैठने के लिए भी ‘चढ़ावे’ की सीमा तय है।
साधुजी की ‘आशंका’ पर कौन बोले?

जिस आयोजन का मकसद आत्मशुद्धि था, अब वह पूरा एक वाणिज्यिक शो बन चुका है।
4. साधुजी आएंगे — लेकिन रेट के साथ
आजकल यह भी चर्चा का विषय होता है कि किस साधुजी कहां रुकेंगे।
और ये निर्णय किस आधार पर होता है?
 • कहाँ ज्यादा भव्य स्वागत मिलेगा।
 • कहाँ ज्यादा दानदाताओं की भीड़ है।
 • किस तीर्थ की कमेटी ज़्यादा खर्च कर सकती है।
 • और किस जगह ‘राजनीतिक पकड़’ ज्यादा है।
त्याग की जगह अब “आकर्षण” ने ले ली है।
भक्ति की जगह अब “प्रायोजक” आ गए हैं।
और धर्म की जगह अब “डीलिंग” चल रही है।
5. समाज मौन क्यों है?
सब कुछ सामने है —
लेकिन हम सब मौन हैं।
क्यों?
 • डरते हैं कि “संघ-विरोधी” कहे जाएंगे।
 • सोचते हैं — “हम कौन होते हैं बोलने वाले?”
 • कुछ तो इसलिए चुप हैं कि कहीं उनकी दुकान न बंद हो जाए।
पर क्या हम नहीं जानते कि —
चुप रहना भी एक प्रकार की सहमति है।

और हमारी यही चुप्पी इन “धर्म के दलालों” को और ताकत देती है।
अब भी समय है — चेत जाओ!
अब वक्त आ गया है:
 • साधुओं से स्पष्ट सवाल पूछिए — तपस्या है या तमाशा?
 • ट्रस्टियों से हिसाब मांगिए — मंदिर का पैसा कहां गया?
 • समाज को जगाइए — धर्म रक्षा सिर्फ माला जपने से नहीं, हिम्मत दिखाने से होती है।
हमारे पूर्वजों ने धर्म को सिर्फ पूजा-पाठ में नहीं, आचरण में जिया था।
और हमने? उसे “इवेंट” बना डाला।
निष्कर्ष — धर्म बचाना है, तो खरीदी बंद करनी होगी
याद रखिए —
धर्म बिकने की चीज़ नहीं है।
अगर आप देख रहे हैं कि धर्म बिक रहा है — और आप फिर भी चुप हैं —
तो आप केवल दर्शक नहीं, भागीदार हैं।

आप मंदिर में जाएं, लेकिन आंखें खोलकर।
आप साधु के पास जाएं, लेकिन विवेक के साथ।
आप आयोजन करें, लेकिन बिना दिखावे के।
धर्म हमारी आत्मा की आवाज़ है —
उसे ध्वनि सिस्टम और बजट से मत दबाइए।

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गोवर्धन पूजा पर श्री स्वामीनारायण अक्षरधाम, काली बेरी जोधपुर में भव्य अन्नकूट महोत्सव का आयोजन।

*- गोवर्धन पूजा पर श्री स्वामीनारायण अक्षरधाम, काली बेरी जोधपुर में भव्य अन्नकूट महोत्सव का आयोजन।*


 गोवर्धन पूजा के पावन अवसर पर आज श्री स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर, काली बेरी में भव्य अन्नकूट महोत्सव का आयोजन अत्यंत श्रद्धा एवं उल्लास के साथ किया गया। इस अवसर पर भगवान श्री स्वामीनारायण को 701 विविध व्यंजन का अन्नभोग अर्पित किया गया।

महोत्सव की शुरुआत पूज्य योगीप्रेम स्वामी द्वारा गाए गए ‘थाल गीत’ से हुई, जिसके साथ ही भक्तों ने भक्ति एवं आनंद के भाव से अन्नकूट दर्शन किए। विविध व्यंजनों से सजे भव्य थाल के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी रही। अन्नकूट के उपरांत संध्या में आयोजित लाइट एंड साउंड शो ने भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। भगवान श्री स्वामीनारायण की दिव्य लीलाओं और आध्यात्मिक संदेशों पर आधारित यह कार्यक्रम आज के उत्सव का मुख्य आकर्षण रहा।

आश्चर्यजनक रूप से इस वर्ष के अन्नकूट महोत्सव में 20,000 से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया, जिससे पूरा परिसर भक्तिमय वातावरण से गूंज उठा। भारी संख्या में भक्तों के आगमन के कारण मंदिर परिसर से लेकर नमस्ते सर्किल तक लगभग 2 किलोमीटर लंबी कतारें लग गईं। इस विशाल भीड़ व्यवस्था को स्वयंसेवकों (स्वयंसवेकों) और पुलिस प्रशासन ने अत्यंत अनुशासित एवं सुव्यवस्थित ढंग से संभाला, जिससे सभी श्रद्धालुओं को शांतिपूर्वक दर्शन का लाभ प्राप्त हुआ।

इस अवसर पर जोधपुर पुलिस आयुक्त एवं उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और दर्शन लाभ प्राप्त किया।

🪔 अन्नकूट का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व
अन्नकूट महोत्सव का आयोजन गोवर्धन पूजा के अगले दिन किया जाता है। यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा एवं इंद्र के अभिमान के दमन की स्मृति में मनाया जाता है। ‘अन्नकूट’ का अर्थ है – अन्न का पर्वत। इस दिन भगवान को सैकड़ों प्रकार के व्यंजन अर्पित कर ‘अन्नकूट दर्शन’ किए जाते हैं। इसका भावार्थ यह है कि सम्पूर्ण सृष्टि में भगवान ही पालक हैं और अन्न के रूप में वही हमें जीवन प्रदान करते हैं।

स्वामीनारायण परंपरा में अन्नकूट केवल भोजन अर्पण का नहीं, बल्कि कृतज्ञता, भक्ति और एकता का प्रतीक माना जाता है। भक्तजन इस दिन अपने श्रम, प्रेम और भक्ति से भगवान को अर्पण करते हैं, जिससे समाज में सेवा, त्याग और समर्पण की भावना का विस्तार होता है।

इस भव्य आयोजन ने न केवल जोधपुरवासियों को एक दिव्य अनुभव प्रदान किया, बल्कि सांस्कृतिक रूप से यह आयोजन जोधपुर शहर के आध्यात्मिक जीवन का एक अविस्मरणीय अध्याय बन गया।

🪔 जय स्वामीनारायण

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