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रविवार, 9 दिसंबर 2012

एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति होती है कि उससे संसार की सारी मोटरों का संचालन किया जा सकता है।

एक लड़का सदा अपनी मेज़ पर 'पी' लिख कर रखता था। वह अपनी किताबों और कॉपियों पर भी सदा 'पी' लिख दिया करता था। घर पर भी उसने जगह- जगह पर 'पी' लिख छोड़ा था। लोग हैरान होते थे, पर वह किसी को कुछ नहीं बताता था। धीरे-धीरे लोगों ने पूछना छोड़ दिया। हाई स्कूल केबाद वह कॉलेज में दाखिल हुआ। वहांभी 'पी' लिखने का उसका वह क्रम चालू रहा। कुछ दिनों तक लड़के आपस में चर्चा भी करते रहे, पर कोई उसके रहस्य को नहीं समझ सका। आखिर में सहपाठियों ने मज़ाक में उसका नाम ही 'पी साहब' रख दिया। पर वह क़तई परेशान नहीं हुआ। पढ़ाई में वह खूब मन लगाता था, अत: एमए में फर्स्ट डिविज़न पास हुआ, और उसे अपने ही स्कूल में प्रिंसिपल की नौकरी मिल गई। प्रिंसिपल बनकर जब वह पहले दिन स्कूल में आया तो छात्रों को अपने'पी' लिखने का रहस्य बताया, बचपन से ही मेरी कामना थी कि अपने स्कूल का प्रिंसिपल बनूं। इसी को याद रखने के लिए सदा अपने सामने 'पी' लिखा हुआ रखता था। आज मेरा वह सपना पूरा हो गया।

क्या आपने कोलंबस का नाम सुना है? कैसे वह अपने छोटे से जहाज़ 'पिल्टा' कोलेकर अथाह सागर में नई दुनिया की खोज में निकल पड़ा था? उसका संकल्प बहुत प्रबल था। जब उसका जहाज़ महासागर की लहरों से टक्कर ले रहा था, ऊपर आकाश और नीचे अनंत जलराशि थी -ऐसे विकट समय में जहाज़ का एक मस्तूल खराब हो गया। पर कोलंबस को कौन विचलित कर सकता था? उसने नाविकों को धन का प्रलोभन दिया। नाविक आगेचले, पर केनरीज़ द्वीप के दो सौ मील पश्चिम में उसके कुतुबनुमा की सुई खराब हो गई। अब तो मल्लाहों का रहा-सहा साहस भी टूट गया। इस प्रकार समुद्र में अज्ञात दिशा की ओर बढ़ना मृत्यु से खेलना था। पर कोलंबस अपने निश्चय पर अड़ा रहा। अंतत: उसके संकल्प की विजय हुई और नाविक आगे चलने को तैयार हो गए। और  12 अक्टूबर, 1492 को उनका जहाज़ नई दुनिया- अमेरिका के तट पर जाकर लग गया। यदि कोलंबस अपने निश्चय पर दृढ़ नहीं रहता और बाधाओं से घबराकर अपना निश्चय बदल देता, तो वह कभी इस नई दुनिया की खोज नहीं कर पाता। हर व्यक्ति में उतनी ही शक्ति छिपी हुई है, जितनी कोलंबस में थी। पर कोई बिरला ही उसे समझ कर उसका उपयोग करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति होती है कि उससे
संसारकी सारी मोटरों का संचालन किया जासकता है। परंतु वह बिखरी हुई
अवस्था में है। केवल उस शक्ति को इंजन के पिस्टन रॉड पर केंद्रित करने
की आवश्यकता है। इसी तरह से ऐसे हज़ारों व्यक्ति हैं जो ज्ञानी हैं, जिनमें
शक्ति भरी पड़ी है, परंतु वे उसे इकट्ठा करके किसी निश्चित स्थान पर लाने में असमर्थ हैं। इसी कारण उन्हें विफल होना पड़ता है। शक्ति को बिखेर देने
से उसका अपव्यय ही नहीं होता, बल्कि काम करने का उत्साह भी नष्ट
हो जाता है। भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने देश को एक
नारा दिया था, 'करो या मरो।' इसके पीछे आशय यही था कि हमें यदि आज़ादी प्राप्त करनी है तो उसके लिए दृढ़ता से जुटना होगा। सारा देश दृढ़ता से उनकी बात पर अड़ गया। इसी का परिणाम था कि भारत बिना किसी रक्तपात के विदेशी शासन से मुक्त हो गया। इसीलिए सभी धर्मों में प्रतिज्ञा और संकल्प का बहुत महत्व है। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को मन से दृढ़ बनाना है। जब हम एक क्षेत्र में अपनी संकल्पशक्ति को विकसित कर लेते हैं, तो दूसरे क्षेत्रों में भी हम उसी प्रकार से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

हजारो तथ्य चीख-चीख कर कहते है कि हिंदू शब्द हजारों-हजारों वर्ष पुराना है

























मेरे बहुत सारे जागरूक और विद्वान मित्र मेरे"हिन्दू"शब्द के उपयोग करने पर अपनी आपत्ति दर्ज कराते हैं और कहते हैं कि"हिन्दू"एक विदेशी नाम है... परन्तु मैं उनके इस बात से कभी भी सहमत नहीं होता हूँ... क्योंकि..... ....
हिंदू शब्द भारतीय विद्वानों केअनुसार कम से कम 4000 वर्ष पुराना है। शब्द कल्पद्रुम : जो कि लगभग दूसरी शताब्दी में रचित है , में एक मन्त्र आता है.............
"हीनं दुष्यति इतिहिंदू जाती विशेष:"
अर्थात........ हीन कर्म का त्याग करने वाले को हिंदू कहते है।
इसी प्रकार अदभुत कोष में भी एक मन्त्र आता है.........................
"हिंदू: हिन्दुश्च प्रसिद्धौ दुशतानाम च विघर्षने"।
अर्थात.......... हिंदू और हिंदु दोनों शब्द दुष्टों को नष्ट करने वाले अर्थ में प्रसिद्द है।
इतना ही नहीं...... वृद्ध स्म्रति (छठी शताब्दी) में भी मन्त्र है,............­...............
हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्पर:। वेद्.........हिंदु मुख शब्द भाक्।"
अर्थात........ जो सदाचारी वैदिक मार्ग पर चलने वाला, हिंसा से दुख मानने वाला है, वह हिंदु है।
ब्रहस्पति आगम (समय ज्ञात नही) में श्लोक है,................................
"हिमालय समारभ्य यवाद इंदु सरोवं। तं देव निर्वितं देशम हिंदुस्थानम प्रच्क्षेत ।
अर्थात....... हिमालय पर्वत से लेकर इंदु (हिंद) महासागर तक देवपुरुषों द्बारा निर्मित इस क्षेत्र को हिन्दुस्थान कहते है।
और तो और.... पारसी समाज के एक अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थ में भी लिखा है कि,
"अक्नुम बिरह्मने व्यास नाम आज हिंद आमद बस दाना कि काल चुना नस्त"।
अर्थात...... व्यास नामक एक ब्राह्मण हिंद से आया जिसके बराबर कोई अक्लमंद नही था।
इस्लाम के पिगम्बर मुहम्मद से भी १७०० वर्ष पुर्व लबि बिन अख्ताब बिना तुर्फा नाम के एक कवि अरब में पैदा हुए। उन्होंने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है,............................
"अया मुबार्केल अरज यू शैये नोहा मिलन हिन्दे। व अरादाक्ल्लाह मन्योंज्जेल जिकर्तुं॥
अर्थात............ हे हिंद की पुन्य भूमि ! तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझेचुना है।
१० वीं शताब्दी के महाकवि वेन लिखते हैं .....अटल नगर अजमेर,अटल हिंदव अस्थानं ।
महाकवि चन्द्र बरदाई ने भी लिखा है ....................
जब हिंदू दल जोर छुए छूती मेरे धार भ्रम ।
सिर्फ इतना ही नहीं...... इन जैसे हजारो तथ्य चीख-चीख कर कहते है कि हिंदू शब्द हजारों-हजारों वर्ष पुराना है
इसलिये कहता हूँ गर्व से कहो हम हिन्दू हैँ।
Sabhar
डा. सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"

चीनी, कैँडी और च्युइँगगम का प्रयोग बंद करो और यदि मीठा खाना ही है तो गुड़ खाओ!

दिखावे पर मत जाओ अपनी अकल लगाओ!
चीनी, कैँडी और च्युइँगगम का प्रयोग बंद करो और यदि मीठा खाना ही है तो गुड़ खाओ!
जानिए चीनी का प्रयोग कैसे हानिकारक है और गुड़ किस प्रकार लाभदायक है! पढ़िए और SHARE करे!
1- चीनी मिलें हमेशा घाटे में रहती हैं। चीनी बनाना एक मँहगी प्रक्रिया है और हजारों करोड़ की सब्सिडी और चीनी के ऊँचे दामों के बावजूद किसानों को छह छह महीनों तक उनके उत्पादन का मूल्य नहीं मिलता है!
2-चीनी के उत्पादन से रोजगार कम होता है वहीं गुड़ के उत्पादन से भारत के तीन लाख से कहीं अधिक गाँवों में करोड़ों लोगों को रोजगार मिल सकता है।
3- चीनी के प्रयोग से डायबिटीज, हाइपोग्लाइसेमिया जैसे घातक रोग होते हैं!
4-चीनी चूँकि कार्बोहाइड्रेट होता है इसलिए यह सीधे रक्त में मिलकर उच्च रक्तचाप जैसी अनेक बीमारियों को जन्म देता है जिससे हर्ट अटेक का खतरा बढ़ जाता है!
5-चीनी का प्रयोग आपको मानसिक रूप से भी बीमार बनाता है। यहाँ पढ़ें www.macrobiotics.co.uk/sugar.htm
6-गुड़ में फाइबर और अन्य पौष्टिक तत्व बहुत अधिक होते हैं जो शरीर के बहुत ही लाभदायक है!
7-गुड़ में लौह तत्व और अन्य खनिज तत्व भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं!
8- गुड़ भोजन के पाचन में अति सहायक है। खाने के बाद कम से कम बीस ग्राम गुड़ अवश्य खाएँ। आपको कभी बीमारी नहीं होगी!
9-च्युइँगगम और कैँडी खाने से दाँत खराब होते हैं!
10-गुड़ के निर्माण की प्रक्रिया आसान है और सस्ती है जिससे देश को हजारों करोड़ रुपए का लाभ होगा और किसान सशक्त बनेगा!
जय हिंद! जय भारतवर्ष!! =

पाप का गुरु कौन होता है

"पाप का गुरु कौन होता है"...............
एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद अपने गांव लौटे। गांव के एक किसान ने उनसे पूछा, पंडित जी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है? प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए, क्योंकि भौतिक व आध्यात्मिक गुरु तो होते हैं, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और अध्ययन के बाहर था। पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा है, इसलिए वे फिर काशी लौटे। फिर अनेक गुरुओं से मिले। मगर उन्हें किसान के सवाल का जवाब नहीं मिला।अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक वेश्या से हो गई। उसने पंडित जी से उनकी परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी। वेश्या बोली, पंडित जी! इसका उत्तर है तो बहुत ही आसान, लेकिन इसके लिए कुछ दिन आपको मेरे पड़ोस में रहना होगा। पंडित जी के हां कहने पर उसने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। पंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे, नियम-आचार और धर्म के कट्टर अनुयायी थे। इसलिए अपने हाथ से खाना बनाते और खाते। इस प्रकार से कुछ दिन बड़े आराम से बीते, लेकिन
सवाल का जवाब अभी नहीं मिला। एक दिन वेश्या बोली, पंडित जी! आपको बहुत तकलीफ होती है खाना बनाने में। और तीन-चार घंटे बीत जाते हैं। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो मैं नहा-धोकर आपके लिए कुछ भोजन तैयार कर दिया करूं। आप मुझे यह सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन दूंगी।
स्वर्ण मुद्रा का नाम सुन कर पंडित जी को लोभ आ गया। साथ में पका-पकाया भोजन। अर्थात दोनों हाथों में लड्डू। इस लोभ में पंडित जी अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए। पंडित जी ने हामी भर दी और वेश्या से बोले, ठीक है, तुम्हारी जैसी इच्छा। लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि कोई देखे नहीं तुम्हें मेरी कोठी में आते-जाते हुए। वेश्या ने पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर पंडित जी के सामने परोस दिया। पर ज्यों ही पंडित जी खाने को तत्पर हुए, त्यों ही वेश्या ने उनके सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है? वेश्या ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है। यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का पानी भी नहीं पीते थे, मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया। यह लोभ ही पाप का गुरु है। कोई लोभ न करे, तो वह पाप भी नहीं करेगा।
आज हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं कि बड़े-बड़े राजनेता करोड़ों के घोटालों में फंसे हुए हैं, जबकि उनके पास अकूत संपत्ति है और भौतिक साधनों की भरमार है। मात्र लोभ के पाश में इतने जकड़ जाते हैं कि उन्हें अपने मान-सम्मान की मर्यादा का भी ख्याल नहीं रहता। लोभ अच्छे से अच्छे विवेकी या बुद्धिमान को अंधा बना देता है। बड़े-बड़े नौकरशाह भी मोटी रकम रिश्वत में लेकर बहुत बड़ा अनर्थ कर रहे हैं और जब केस में पकड़े जाते हैं तो जिंदगी भर पछताते हैं। अच्छे- बुरे लोग हर युग में रहे हैं। विवेकी लोग कभी लोभ के वशीभूत नहीं हुए और नासमझ लोभ में फंस कर तबाह हुए। लोभ के कारण अभिमान भी आ जाता है। और ये दोनों मिलकर ऐसा जाल बुन देते हैं कि इससे बचना मुश्किल हो जाता है। मनुष्य पहले खुद ही गड्ढा खोदता है और उसमें गिरता है। फिर कहता है, हे भगवान! मुझे बचाओ।

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