सर्पदोष जिसे काल सर्प योग आज कल कहा जाता है
जव राहु ओर केतु के वीच सभ गृह हो तव यह योग वनता है
कालसर्प बारह प्रकार का होता है
कालसर्प योग के प्रकार
मूलरूप से कालसर्प योग के बारह प्रकार होते हैं |
इन्हें यदि 12 लग्नों में विभाजित कर दें तो
12 x 12 =144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं |
परन्तु 144 प्रकार के कालसर्प योग तब संभव हैं जब शेष 7 ग्रह राहु से केतु के मध्य स्थित होँ |
यदि शेष 7 ग्रह केतु से राहु के मध्य स्थित होँ, तो 12 x 12 = 144
प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं |
इसी प्रकार से कुल 144 + 144 = 288 प्रकार के कालसर्प योग स्थापित हो सकते हैं |
यह सभी प्रकार के कालसर्प योगों का प्रतिफल एकदूसरे से भिन्न होता है |
मूलरूप से कालसर्प योग 12 प्रकार ●
[1] अनंत कालसर्प योग
[2] कुलिक कालसर्प योग
[3] वासुकि कालसर्प योग
[4] शंखपाल कालसर्प योग
[5] पदम कालसर्प योग
[6] महापदम कालसर्प योग
[7] तक्षक कालसर्प योग
[8] कारकोटक कालसर्प योग
[9] शंखचूड़ कालसर्प योग
[10] घातक कालसर्प योग
[11] विषधर कालसर्प योग
[12] शेषनाग कालसर्प योग
कालसर्प दोष और कष्ट
[1] अनंत कालसर्प यो
यदि लग्न में राहु एवं सप्तम् में केतु हो, तो यह योग बनता है | जातक कभी शांत नहीं रहता झूठ बोलना एवं षड़यंत्रों में फंस कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता रहता है ||
[2] कुलिक कालसर्प योग
यदि राहु धन भाव में एवं केतु अष्टम हो, तो यह योग बनता है | इस योग में पुत्र एवं जीवन साथी सुख, गुर्दे की बीमारी, पिता सुख का अभाव एवं कदम कदम पर अपमान सहना पड़ सकता है ||
[3] वासुकी कालसर्प योग
यदि कुंडली के तृतीय भाव में राहु एवं नवम भाव में केतु हो एवं इसके मध्य सारे ग्रह हों, तो यह योग बनता है | इस योग में भाई-बहन को कष्ट, पराक्रम में कमी, भाग्योदय में बाधा, नौकरी में कष्ट, विदेश प्रवास में कष्ट उठाने पड़ते हैं ||
[4] शंखपाल कालसर्प योग
यदि राहु नवम् में एवं केतु तृतीय में हो, तो यह योग बनता है | जातक भाग्यहीन हो अपमानित होता है, पिता का सुख नहीं मिलता एवं नौकरी में बार-बार निलंबित होता है ||
[5] पद्म कालसर्प योग
अगर पंचम भाव में राहु एवं एकादश में केतु हो तो यह योग बनता है | इस योग में संतान सुख का अभाव एवं वृद्धा अवस्था में दुखद होता है शत्रु बहुत होते हैं, सट्टे में भारी हानि होती है ||
[6] महापद्म कालसर्प यो
यदि राहु छठें भाव में एवं केतु व्यय भाव में हो, तो यह योग बनता है | इसमें पत्नी विरह, आय में कमी, चरित्र हनन का कष्ट भोगना पड़ता है ||
[7] तक्षक कालसर्प योग
यदि राहु सप्तम् में एवं केतु लग्न में हो तो यह योग बनता है | ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति नष्ट होती है, पत्नी सुख नहीं मिलता, बार-बार जेल यात्र करनी पड़ती है ||
[8] कर्कोटक कालसर्प योग
यदि राहु अष्टम में एवं केतु धन भाव में हो, तो यह योग बनता है | इस योग में भाग्य को लेकर परेशानी होगी नौकरी की संभावनाएं कम रहती है, व्यापार नहीं चलता, पैतृक संपत्ति नहीं मिलती और नाना प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं ||
[9] शंखचूड़ कालसर्प योग
यदि राहु सुख भाव में एवं केतु कर्म भाव में हो, तो यह योग बनता है | ऐसे जातक के व्यवसाय में उतार-चढ़ाव एवं स्वास्थ्य खराब रहता है ||
[10] घातक कालसर्प योग
यदि राहु दशम् एवं केतु सुख भाव में हो तो यह योग बनता है | ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं, माता या पिता का वियोग होता है ||
[11] विषधर कालसर्प योग
यदि राहु लाभ में एवं केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है | ऐसा जातक घर से दूर रहता है, भाईयों से विवाद रहता है, हृदय रोग होता है एवं शरीर जर्जर हो जाता है ||
[12] शेषनाग कालसर्प योग
यदि राहु व्यय में एवं केतु रोग में हो, तो यह योग बनता है | ऐसे जातक शत्रुओं से पीड़ित हो शरीर सुखित नहीं रहेगा, आंख खराब होगा एवं न्यायालय का चक्कर लगाता रहेगा ||
कालसर्प बारह प्रकार का होता है
कालसर्प योग के प्रकार
मूलरूप से कालसर्प योग के बारह प्रकार होते हैं |
इन्हें यदि 12 लग्नों में विभाजित कर दें तो
12 x 12 =144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं |
परन्तु 144 प्रकार के कालसर्प योग तब संभव हैं जब शेष 7 ग्रह राहु से केतु के मध्य स्थित होँ |
यदि शेष 7 ग्रह केतु से राहु के मध्य स्थित होँ, तो 12 x 12 = 144
प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं |
इसी प्रकार से कुल 144 + 144 = 288 प्रकार के कालसर्प योग स्थापित हो सकते हैं |
यह सभी प्रकार के कालसर्प योगों का प्रतिफल एकदूसरे से भिन्न होता है |
मूलरूप से कालसर्प योग 12 प्रकार ●
[1] अनंत कालसर्प योग
[2] कुलिक कालसर्प योग
[3] वासुकि कालसर्प योग
[4] शंखपाल कालसर्प योग
[5] पदम कालसर्प योग
[6] महापदम कालसर्प योग
[7] तक्षक कालसर्प योग
[8] कारकोटक कालसर्प योग
[9] शंखचूड़ कालसर्प योग
[10] घातक कालसर्प योग
[11] विषधर कालसर्प योग
[12] शेषनाग कालसर्प योग
कालसर्प दोष और कष्ट
[1] अनंत कालसर्प यो
यदि लग्न में राहु एवं सप्तम् में केतु हो, तो यह योग बनता है | जातक कभी शांत नहीं रहता झूठ बोलना एवं षड़यंत्रों में फंस कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता रहता है ||
[2] कुलिक कालसर्प योग
यदि राहु धन भाव में एवं केतु अष्टम हो, तो यह योग बनता है | इस योग में पुत्र एवं जीवन साथी सुख, गुर्दे की बीमारी, पिता सुख का अभाव एवं कदम कदम पर अपमान सहना पड़ सकता है ||
[3] वासुकी कालसर्प योग
यदि कुंडली के तृतीय भाव में राहु एवं नवम भाव में केतु हो एवं इसके मध्य सारे ग्रह हों, तो यह योग बनता है | इस योग में भाई-बहन को कष्ट, पराक्रम में कमी, भाग्योदय में बाधा, नौकरी में कष्ट, विदेश प्रवास में कष्ट उठाने पड़ते हैं ||
[4] शंखपाल कालसर्प योग
यदि राहु नवम् में एवं केतु तृतीय में हो, तो यह योग बनता है | जातक भाग्यहीन हो अपमानित होता है, पिता का सुख नहीं मिलता एवं नौकरी में बार-बार निलंबित होता है ||
[5] पद्म कालसर्प योग
अगर पंचम भाव में राहु एवं एकादश में केतु हो तो यह योग बनता है | इस योग में संतान सुख का अभाव एवं वृद्धा अवस्था में दुखद होता है शत्रु बहुत होते हैं, सट्टे में भारी हानि होती है ||
[6] महापद्म कालसर्प यो
यदि राहु छठें भाव में एवं केतु व्यय भाव में हो, तो यह योग बनता है | इसमें पत्नी विरह, आय में कमी, चरित्र हनन का कष्ट भोगना पड़ता है ||
[7] तक्षक कालसर्प योग
यदि राहु सप्तम् में एवं केतु लग्न में हो तो यह योग बनता है | ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति नष्ट होती है, पत्नी सुख नहीं मिलता, बार-बार जेल यात्र करनी पड़ती है ||
[8] कर्कोटक कालसर्प योग
यदि राहु अष्टम में एवं केतु धन भाव में हो, तो यह योग बनता है | इस योग में भाग्य को लेकर परेशानी होगी नौकरी की संभावनाएं कम रहती है, व्यापार नहीं चलता, पैतृक संपत्ति नहीं मिलती और नाना प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं ||
[9] शंखचूड़ कालसर्प योग
यदि राहु सुख भाव में एवं केतु कर्म भाव में हो, तो यह योग बनता है | ऐसे जातक के व्यवसाय में उतार-चढ़ाव एवं स्वास्थ्य खराब रहता है ||
[10] घातक कालसर्प योग
यदि राहु दशम् एवं केतु सुख भाव में हो तो यह योग बनता है | ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं, माता या पिता का वियोग होता है ||
[11] विषधर कालसर्प योग
यदि राहु लाभ में एवं केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है | ऐसा जातक घर से दूर रहता है, भाईयों से विवाद रहता है, हृदय रोग होता है एवं शरीर जर्जर हो जाता है ||
[12] शेषनाग कालसर्प योग
यदि राहु व्यय में एवं केतु रोग में हो, तो यह योग बनता है | ऐसे जातक शत्रुओं से पीड़ित हो शरीर सुखित नहीं रहेगा, आंख खराब होगा एवं न्यायालय का चक्कर लगाता रहेगा ||