चौंकाने वाला खुलासा: मेडिकल सिस्टम की पोल खुली






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चौंकाने वाला खुलासा: मेडिकल सिस्टम की पोल खुली
"सुनिए साहब, घर बनाना है तो पैसा सोच-समझकर लगाइए!"
देखिए, मैं ठेकेदारी करता हूँ, लेकिन ईमानदारी से काम करता हूँ। आपका पैसा मेरी जिम्मेदारी है, और मैं चाहता हूँ कि हर रुपया सही जगह लगे। कई लोग घर बनवाने में ऐसी गलतियाँ कर बैठते हैं, जिनसे लाखों का नुकसान हो जाता है। मैं आपको वो बातें बताने वाला हूँ, जो आमतौर पर ठेकेदार आपको नहीं बताते।
घर का डिजाइन जितना सीधा-सपाट होगा, उतना सस्ता पड़ेगा। ज्यादा कोने, ज्यादा घुमाव-फिराव, या बेवजह की डिजाइनिंग से मटेरियल और मजदूरी दोनों बढ़ती हैं। एक सिंपल चौकोर या आयताकार घर सबसे किफायती होता है। बेवजह के एक्स्ट्रा कमरे बनाने से बचिए, जैसे स्टोर रूम, पूजा रूम, अलग से ड्रॉइंग रूम – ये बाद में कम ही काम आते हैं, लेकिन खर्चा बहुत करवा देते हैं।
अब नींव की बात करें तो लोग सोचते हैं कि "नींव जितनी गहरी, घर उतना मजबूत।" लेकिन ऐसा हमेशा सही नहीं होता। सबसे पहले मिट्टी की जांच करवाइए। अगर मिट्टी अच्छी है, तो बेवजह 10-12 फीट खुदाई करवाने का कोई मतलब नहीं। ज्यादा खुदाई मतलब ज्यादा सीमेंट, ज्यादा ईंट और ज्यादा पैसा।
ईंटों में ब्रांड मत देखिए, मजबूती देखिए। लोकल ईंटें भी कई बार ब्रांडेड से बेहतर होती हैं। एक ईंट को ज़मीन पर गिराकर देखिए – अगर वो नहीं टूटती, तो वही सही है। फ्लाई ऐश ब्रिक्स और कंक्रीट ब्लॉक भी एक बेहतरीन ऑप्शन हैं – ये सस्ते भी पड़ते हैं और गर्मी भी कम करते हैं।
सीमेंट और सरिया खरीदने में सबसे ज्यादा ठगी होती है। ठेकेदार कहेगा कि "सिर्फ 53 ग्रेड का सीमेंट ही लेना है" – लेकिन हर जगह इसकी जरूरत नहीं होती। ईंट जोड़ने और प्लास्टर के लिए 43 ग्रेड सीमेंट भी बढ़िया काम करता है और सस्ता पड़ता है। सरिया भी लोकल ब्रांड का बढ़िया मिलता है, बस भरोसेमंद दुकान से लीजिए।
छत की मोटाई उतनी ही रखिए, जितनी जरूरी हो। कई लोग कहते हैं कि "छत भारी होगी तो घर मजबूत बनेगा", लेकिन बेवजह मोटा कंक्रीट डालकर खर्चा मत बढ़ाइए। अगर घर ठंडा रखना है, तो छत पर सफेद टाइल्स लगवा सकते हैं – इससे गर्मी अंदर नहीं आएगी और AC-कूलर का खर्च भी कम होगा।
दरवाजे और खिड़कियों में लकड़ी की बजाय UPVC या WPC लगवाइए। ये सस्ते भी पड़ते हैं, टिकाऊ भी होते हैं और दीमक-बरसात से खराब नहीं होते। लकड़ी महंगी भी आती है और मेंटेनेंस भी ज्यादा मांगती है।
प्लास्टर और पेंटिंग में भी बहुत पैसा फिजूल चला जाता है। महंगा POP और फॉल्स सीलिंग करवाने से बचिए – ये देखने में अच्छा लगता है, लेकिन साल-दो साल में धूल जमा होने लगती है और सफाई का झंझट बढ़ जाता है। अगर बजट कंट्रोल करना है, तो सिंपल पेंट और अच्छे क्वालिटी की टाइल्स पर फोकस करें।
अब सबसे बड़ी बात – मजदूरी और ठेकेदारी। डेली मजदूरी में ठेकेदार अक्सर काम धीरे करवाएगा ताकि पैसे ज्यादा निकलवाए जा सकें। हमेशा फिक्स ठेका लीजिए – इससे काम जल्दी और सही तरीके से होगा। और हाँ, अगर आप थोड़ी मेहनत खुद कर सकते हैं, तो बहुत पैसा बच सकता है। पेंटिंग, तराई,हल्का फुल्का काम, दरवाजों की पॉलिशिंग – ये सब खुद करने से हजारों रुपये बच सकते हैं।
सरकारी स्कीमों का भी फायदा उठाइए। अगर आप प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी किसी स्कीम के पात्र हैं, तो लोन सस्ता मिल सकता है। मटेरियल हमेशा होलसेल में खरीदिए – वहाँ बड़ा डिस्काउंट मिलता है। और अगर कंस्ट्रक्शन ठंड या बारिश के मौसम में करवाएँगे, तो मजदूरी भी सस्ती मिलेगी और मटेरियल भी कम दाम में मिल सकता है।
घर बनाना जिंदगी का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट होता है, और अगर थोड़ी समझदारी से काम लेंगे, तो लाखों रुपये बच सकते हैं। मेरा तो काम ठेकेदारी करना है, लेकिन मुझे खुशी होगी अगर आपका घर मजबूत भी बने और बेवजह पैसे की बर्बादी भी न हो।
लड़का होगा या लड़की, जानने के लिए 3500 साल पहले अपनाया जाता था ये तरीका..जानिए..,.
आजकल तो अल्ट्रासाउंड जैसी आधुनिक तकनीकों से बच्चे के लिंग का पता लगाया जा सकता है (हालाँकि कई देशों में यह गैरकानूनी है, जैसे भारत में)। लेकिन 3500 साल पहले जब विज्ञान इतना विकसित नहीं था, तब लोग पारंपरिक और ज्योतिषीय तरीकों से यह अनुमान लगाने की कोशिश करते थे कि गर्भ में लड़का है या लड़की।
3500 साल पुराने एक तरीके के बारे में कहा जाता है कि:
मिस्र और बेबीलोन सभ्यताओं में एक तरीका प्रचलित था—गेहूं और जौ का अंकुरण परीक्षण (Wheat and Barley Test)। इसका तरीका कुछ इस प्रकार था:
गर्भवती महिला का मूत्र गेहूं और जौ के बीजों पर डाला जाता था।
यदि गेहूं पहले अंकुरित होता, तो माना जाता था कि लड़की होगी।
यदि जौ पहले अंकुरित होता, तो माना जाता था कि लड़का होगा।
यदि कोई अंकुरण न हो, तो गर्भवती न होने की संभावना मानी जाती थी।
रोचक बात यह है कि 20वीं सदी में कुछ वैज्ञानिकों ने इस परीक्षण को दोहराया और पाया कि इसमें कुछ हद तक सटीकता हो सकती है क्योंकि मूत्र में मौजूद हार्मोन बीजों की वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं।
हालाँकि, आज के विज्ञान के अनुसार यह तरीका पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है। यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दिलचस्प ज़रूर है, लेकिन बच्चे का लिंग जानने के लिए आधुनिक चिकित्सा ही सही और सुरक्षित रास्ता है—वो भी तब, जब कानूनी रूप से अनुमति हो।
अगर चाहो तो और भी पुराने या अनोखे तरीकों के बारे में बता सकता हूँ।
जब द्रौपदी के पांचों लड़के महाभारत के युद्ध में मार दिए गए, तब उनको समझ में आया कि युद्ध क्या होता है। उसके पहले वह युद्ध के लिए सबसे अधिक लालायित थीं, सबसे अधिक युद्ध के लिए पांडवों को ललकारती थीं- कृष्ण के युद्ध रोकने के हर प्रयास का सबसे अधिक विरोध द्रौपदी करती थीं।
महाभारत युद्ध को हर कीमत पर रोकने के लिए कृष्ण सभी तरह का प्रयास कर रहे थे, जो लोग कृष्ण के युद्ध रोकने के प्रयासों का सबसे अधिक विरोध कर रहे थे, उसमें द्रौपदी पहले नंबर थीं।
जब युद्ध रोकने या समझौते की कोई बात शुरू होती, वह कहती कि मेरे इन खुले बालों का क्या होगा? जो दुशासन के रक्त के प्यासे हैं, वह कहती भीम की उस प्रतिज्ञा का क्या होगा, जो उन्होंने दुर्योधन की जंघा तोड़ने के लिए लिया है। उस कर्ण को मैं जीवित कैसे देख सकती हूं, जिसने मुझे वेश्या कहा।
कृष्ण हर बार उन्हें डांटते हुए कहते कि तुम्हारे खुले बालों , तुम्हारे बदले की भावना , दुशासन के रक्त, तुम्हारे मन की शांति के लिए दुर्योधन की टूटी जंघा और कर्ण की हत्या तक युद्ध सीमित नहीं है।
अगर यह युद्ध हुआ, तो लाखों निर्दोष लोग मारे जाएंगे, लाखों बच्चे अनाथ होंगे, लाखों महिलाएं विधवा और लाखों मांओं की गोद सूनी हो जाएगी।
युद्ध में मारे जाने वाले और अपने को खोने वाले वे लोग होंगे, जिनका कुछ भी इस युद्ध में दांव नहीं लगा है। चाहे वे पांडव की सेना में हों या कौरव की सेना में उनका कोई हित-अहित या लाभ-हानि इस युद्ध से नहीं जुड़ा हुआ है। वे सिर्फ सैनिक के तौर पर अपनी रोजी-रोटी या वफादारी साबित करने के लिए इस या उस पक्ष में युद्ध में शामिल होंगे।
मुझे तुम्हारे निजी बदले की भावना की नहीं, उन लोगों की चिंता है, बिना किसी वजह के इसमें मारे जाएंगे।
कृष्ण के सारे प्रयास असफल हुए और महाभारत का युद्ध हुआ। लाखों लोग मारे गए। युद्ध के अंतिम दौर में द्रौपदी के पांचों लड़के एक साथ मारे गए। सुभद्रा का लड़का अभिमन्यु पहले ही मारा जा चुका था।
जब अपने पांचों बच्चों के मारे जाने पर द्रौपदी विलखने लगीं, हाय-तौबा मचान लगीं तो, कृष्ण ने दो टूक कहा, तुम तो हर हालात में युद्ध चाहती थी, युद्ध रोकने के हर प्रयास का सबसे अधिक विरोध कर रही थी, हर तरह से शांति की किसी भी कोशिश के खिलाफ थी।
अब क्यों विलख रही हो, क्यों हाय तौबा मचा रही हो, तुम क्या सोचती थी कि युद्ध में दूसरों के बेटे मारे जाएंगे और तुम युद्ध का तमाशा देखोगी, तुम्हें नहीं कुछ खोना पड़ेगा। तुम्हारे बच्चे,
तुम्हारे बदले की मानसिकता की बलि चढ़े, इसके बाद भी तुम्हे राज मिलेगा, शासन मिलेगा। तुम पटरानी बनोगी।
उनके बारे में भी तनिक विचार करो, जिन्होंने अपने बेटों, पतियों, भाईयों और पिता को अकारण खो दिया, जिन्हें इस युद्ध से कुछ नहीं मिला। जिनका इस युद्ध से कोई लेना-देना नहीं था ।
युद्ध के लिए ललकारने वालों को तब तक युद्ध की कीमत नहीं पता चलती, जबतक कि इस युद्ध की बलिवेदी पर उनके अपने नहीं चढ़ते हैं, द्रौपदी की तरह।
राष्ट्रवादी युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए और एक सीमित उद्देश्य के लिए होना चाहिए और जब उद्देश्य की प्राप्ति हो जाये तो सम्मानजनक समझौता करके युद्ध से बाहर निकल आना चाहिए।
इसलिए सीज फायर एक सुलझा हुआ निर्णय था।
जो लोग सीज फायर का विरोध कर रहे है उनका कोई बच्चा फौज में लड़ाई में नहीं है।
जय हिंद
साभार...