यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 13 सितंबर 2020

हिन्दुओं, एकता और बढ़ाओ -आज से ही शुरू कीजिये.... Because tomorrow never comes

 समाज में होते जबरदस्त बदलाव कि बानगी  देखिए:


जिसको लेकर मुस्लिम समाज भी अचंभित और सदमे में है! 


1. भारत में जितनी भी दरगाहें हैं, वहां का 70%  खर्चा हिन्दुओं से चलता है! FaceBook और WhatsApp की वजह से हिंदुओं मे  एकता औऱ जागरुकता आने लगी है !


जिसकी वजह से अजमेर दरगाह पर जाने वाले हिंदुओं की संख्या 30% तक कम हो गई है! इस बात  को लेकर वहां के खादिम लोग बहुत परेशान हैं!


सोर्सेज: टॉप फाइव इंडिया लीडिंग ट्रेवल एजेंसीज!


2. अब हिंदू भाई- बहन इतने जागरुक हो गए हैं, कि कोई भी सामान सिर्फ हिंदू भाई की ही दुकान से खरीद रहे हैं, क्यों कि उन्हें यह एहसास हो गया है, कि उनके द्वारा शांति दूतों के दुकान से की गई खरीदारी कहीं ना कहीं उनके अपनों के पलायन का कारण बनेगी! इस बात को लेकर सभी बड़े मस्जिदों में मंथन का दौर चल रहा है!


3. अभी तक किसी भी उपद्रव होने पर शांत रहने वाले हिंदू भाई पलट कर मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं, इसको लेकर भी शांति दूतों की फटी पड़ी है!


4. सभी इलाकों से मिली जानकारी के अनुसार इस बार ईद पर जबरदस्त तरीके से मुसलमानों के घरों का सेवइयों का बाँयकाट किया गया है! मस्जिदों में नमाज के बाद अधिक से अविक हिंदुओं से दोस्ती करने को, औऱ उनको अपने में घर बुलाकर खाना खिलाने का, जोर दिया जा रहा है!


5.  मुस्लिम एक्टर्स और देश विरोधी बयान देने वाली हीरोइनों कि फिल्मों  के इनकम में भी जबरदस्त डाउन फाल आया है!


6. यह पॉइंट तो जबर्दस्त है, और बिलकुल शत प्रतिशत सही है, कि 2015 तक मुस्लिम बनने की होड़ 2020  तक हिन्दू बनने की होड़ में तब्दील हो गई!


पांच सालों में कितना बदल गया मेरा भारत!  यह मुमकिन हुआ है कि कोई भी सेकुलर नेता जालीदार टोपी नहीं पहना पूरे चुनाव में!


सोशल मीडिया से जबरदस्त फायदा  हुआ है हिन्दू समाज को!


 मोबाइल नहीं, यह महासमर का यंत्र सुत्र है! यह सब तेजी से फेलाना चाहिए कि आप सबके मिलकर काम करने का नतीजा है, कि पूरे चुनाव में हर पार्टी के नेता सिर्फ मंदिर की चौखट पर माथा रगड़ा है! दिग्विजय सिंह जैसा हरामखोर धर्म विरोधी नेता भी हिन्दू धर्म के विरुद्ध हिम्मत नहीं जुटा पाया! इसी तरह आप की एकता बनीं रही तो बो दिन दूर नहीं जब हर राजनैतिक पार्टी आप से पूंछ कर टिकट तय करेंगी!


ये सही लिखा किसी ने:


 जिस भाजपा ने:


कांग्रेस-सीपीआई एक कर दी;


यूपी मे बसपा-सपाई एक कर दी;


पाकिस्तान की तबियत से धुलाई एक कर दी;


भिन्न-भिन्न टैक्स की भराई, GST एक कर दी;


 मुस्लिम और ईसाई की दुहाई एक कर दी;


अब्दुल की चार थी, लुगाई एक कर दी;


*उस  भाजपा  सम्प्रदायिक कहा जाता  है उसने ये बदलाव किया है


यह बदलाव अच्छा है! बदलते भारत की बदलती तस्वीर!!


काँग्रेस होती तो यह सब होने नहीं देती, सामाजिक सद्भावना रूपी जहर के नाम पर!


आत्मरक्षा के लिए भी सब जल्दी से जल्दी आत्मनिर्भर हो जाएं!


 हिन्दुओं, एकता और बढ़ाओ, सन्डे वाले दिन एक निश्चित समय पर मन्दिर जाना शुरू कीजिये, अपने बच्चों पर ध्यान रखिए, मुस्लिम लव जिहाद से लड़कियों को बचाईए, मुस्लिम चाहे कितना ही पढ़ा लिखा, साफ सुथरा, ईमानदार दिखे- बिल्कुल भरोसा मत कीजिए (प्रोफेसर,इंजीनियर, डा. ही आतंकवादी व प्रखर हिन्दू नाश करने वाले नाम सामने आएं हैं) इन्हें अपने परिवार,व्यापार से दूर रखिए।


आज से ही शुरू कीजिये.... Because tomorrow never comes...


सहमत हैं तो शेयर कीजिये!

हिन्दू जनजागरण अभियान

स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा | Full Movie | हिंदी | उन्ही के शब्दों में |...

1% भी हिन्दू दीवाने हो गए तो 15 मिनट की बात नही करोगे। pushpendra kulshr...

रोम की भाषा बोलने वाले राम राम करने लगे, योगी ने सदन में मचाया हाहाकार। ...

Latest news : कैलाश पर्वत श्रृंखला पर भारत ने कब्ज़ा किया !! Kailash Mans...

गज़वा ए हिन्द लाने वालो की CAA ने हालत बिगाड़ दी। Pushpendra kulshrestha l...

मोदी जो कर रहा है इस तेजी से किसी देश का प्रधानमंत्री नही कर सकता। Pushp...

उस ख़तरे से मोदी सरकार भी नही बचा सकती Pushpendra Kulshrestha पुष्पेंद्र...

बने आप भी आत्मनिर्भर लगाये खुद का CNG पंप सरकार दे रही अवसर

 बने आप भी आत्मनिर्भर लगाये खुद का cng पंप सरकार दे रही अवसर करें ऐसे आवेदन


बढ़ते प्रदूषण और तेल की ज्यादा कीमतों की वजह से देश में CNG गैस से चलने वाली गाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. जहां एक और सरकार का क्लीन एनर्जी पर फोकस बढ़ा है, वहीं दूसरी तरफ ऑटो कंपनियां भी क्लीन फ्यूल से चलने वाले वाहनों की ओर शिफ्ट कर रही हैं. ऐसे में अपना CNG पंप शुरू करना बड़े मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है. अगर आप भी CNG पंप खोलना चाहते हैं तो आपके पास सुनहरा मौका है. सरकार अगले कुछ सालों में देशभर में CNG पंप के लिए करीब 10 हजार नए लाइसेंस देने जा रही है. आईए आपको बताते हैं इसका पूरा प्रोसेस...


दो तरीके से होती है कमाई


सीएनजी पंप लगाने के लिए सबसे पहले कंपनियां जमीन की डिमांड करती है. कंपनियां जमीन लीज पर लेती हैं. ऐसे में आपके पास कमाई का पहला मौका जमीन को लीज पर देकर मिलेगा. दूसरा तरीका आप जमीन पर खुद भी डीलरशिप ले सकते हैं. इसके लिए कंपनियां पार्टनरशिप करती हैं, जिसे वे लैंडलिंक सीएनजी स्टेशन पॉलिसी कहती हैं. सभी कंपनियां अपनी जरूरत के अनुसार स्टेशन के लिए टेंडर निकालती हैं, जिसमें लोकेशन सहित दूसरी रिक्वॉयरमेंट दी जाती है. इसके आधार पर आप आवेदन कर सकते हैं. टेंडर के लिए इन कंपनियों की वेबसाइट पर जानकारी ली जा सकती है.

 

इन लोगों को मिलेगी छूट


पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हाल में कहा है कि छोटे स्टार्ट-अप बड़ी ऑइल एंड मार्केटिंग कंपनियों के साथ टाई-अप करके रिलेक्सेशन पॉलिसी के तहत छूट भी पा सकते हैं. साथ ही कोई भी विदेशी कंपनी अगर निवेश करना चाहते हैं तो वो निवेश कर सकते हैं.


अगर अपनी जमीन न हो तो

अगर जमीन खुद की नहीं है तो आपको जमीन मालिक से NOC यानी नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना होगा. आप अपने परिवार के किसी सदस्‍य की जमीन को लेकर भी CNG पंप के लिए अप्‍लाई कर सकते हैं. इसके लिए भी आपको एक NOC और एफिडेविट बनवाना होगा.


एरिया और खर्च


CNG पंप खोलने का खर्च एरिया और अलग-अलग कंपनियों पर निर्भर करता है. यह इस बात पर निर्भर है कि आप पंप शहर में, हाईवे पर या कहां खोलना चाहते हैं. फिलहाल अगर अपना लैंड है तो इसमें 50 लाख रुपये तक खर्च आ सकता है. हल्के वाहन के लिए 700 वर्गमीटर की जमीन होनी चाहिए, जिसमें आगे की ओर 25 मीटर होना चाहिए. इसी तरह भारी कमर्शियल वाहनों के लिए सीएनजी पंप खोलना चाहते हैं तो आपके पास 1500-1600 वर्गमीटर का प्‍लॉट होना चाहिए, जिसमें आगे की ओर 50-60 मीटर होना जरूरी है.


CNG पंप की डीलरशिप देने वाली कंपनियां


1.इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (IGL)

2. गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया (GAIL)

3.हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन (HPCL)

4.महानगर गैस लिमिटेड(MGL)

5.महानगर नेचुरल गैस लिमिटेड(MNGL)

6. महाराष्ट्र नेचुरल गैस लिमिटेड(MNGL)

7. गुजरात स्टेट पेट्रोलियम प्राइवेट लिमिटेड(GSP)


ऐसे करें आवेदन


आप CNG पंप के लिए डीलरशिप देने वाली किसी कंपनी की वेबसाइट पर जाकर वहां इस बारे में दिए गए लिंक पर क्लिक कर आवेदन कर सकते हैं. लेकिन आवेदन करने के लिए आवेदक के पास मिनिमम 10वीं की डिग्री होनी जरूरी है. वैसे इस बारे में कंपनियां खुद समय समय पर विज्ञापन देती रहती हैं. आवेदन के लिए आपको नाम, मोबाइल नंबर, पता, जहां प्लॉट है उस जगह का पता, प्लॉट का साइज, जमीन के डॉयूमेंट, प्लॉट पर बिजली या पानी का इंतजाम है कि नहीं, जमीन पर कितने पेड़ हैं.


एग्रोफोरेस्ट्री: पैसे वाकई पेड़ पर उगते हैं !

 पेड़ों पर आधारित खेती की पूरी जानकारी - क्या, क्यों और कैसे? 


कृषि वानिकी, किसानों के लिये नई संभावनाओं के दरवाजे खोल देती है। इसमें किसान ज्यादा पैसा कमाने के साथ साथ पर्यावरण को सुधारने और ख़राब होने से बचाने में भी मदद कर सकता है। जानते हैं कि कृषि वानिकी कैसे किसानों की आमदनी को बढ़ा सकती है, और कैसे इसके सकारात्मक प्रभाव से हर किसी को फायदा मिल सकता है।  


कृषि वानिकी क्या है ?

कृषि वानिकी यानि पेड़ों पर आधारित खेती, एक ऐसी पद्धति है जिसमें खेतों में परंपरागत फसलों के साथ-साथ पेड़ लगाए जाते हैं। किसानों के लिए आमदनी के रूप में फायदेमंद होने के साथ-साथ इसके और भी बहुत से फायदे हैं। यह खेतों में पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में, मिट्टी के कटाव और पानी के बहाव को रोकने में, किसानों को आय का वैकल्पिक स्रोत देने के साथ-साथ मौसम को चरम (गर्मी में अधिक गर्मी सर्दी में अधिक सर्दी) तक जाने से रोकने का काम करती है।

जहां भी इसे सही तरीके से अमल में लाया गया है, वहां इसका परिणाम बहुत ही प्रभावशाली है। ऐसे किसानों का मिलना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, जिनको इन योजनाओं का लाभ मिला है और जिन्होंने अपने पूरे खेत को एग्रोफॉरेस्ट में बदल दिया है। ऐसे खेत प्रायः कई स्तर की फसलों के मिश्रण होते हैं, इसमें ऊंचे ऊंचे पेड़, टेढ़ी-मेढ़ी लताएं, मध्यम स्तर की झाड़ियां और जमीन पर जड़ी बूटियां, यह सब साथ-साथ में पाई जाती हैं।


एग्रोफोरेस्ट्री: पैसे वाकई पेड़ पर उगते हैं !

जब खेतों में पेड़ होते हैं तो इससे किसानों को कई तरह के लाभ मिलते हैं जिसमें से एक लाभ यह है कि वह अधिक पैसे कमा सकता है। परंपरागत खेती करने के तरीके से किसान अक्सर कर्ज में डूब जाते हैं। उदाहरण के लिए किसान ने बीज, खाद और कीटनाशक के लिए कर्ज लिया लेकिन मानसून नहीं आया और सूखा पड़ गया या बाढ़ ने फसल खराब कर दी। तो ऐसी परिस्थिति में उसके पास ना तो कुछ खाने को बचेगा और न ही कर्ज़ अदा करने को। कभी-कभी अच्छी फसल होने के बाद भी ऐसा होता है कि बाजार में भरमार हो जाती है, जिसकी वजह से दाम गिर जाते हैं और फिर किसान को परेशान होना पड़ता है।

भारत के गांव में रहने वाली 70% आबादी खेतों में काम करती है। उन्हें ऐसी परिस्थितियों का सामना आये दिन करना पड़ता है। तो इन हालातों में ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पिछले 20 सालों में 3,00,000 किसानों ने आत्महत्या कर ली।

लेकिन एग्रोफोरेस्ट्री (पेड़ों पर आधारित खेती) आर्थिक रूप से किसानों के लिए बहुत मददगार है। इसका कारण भारत और विदेशों में लकड़ी की मांग है। लकड़ी का इस्तेमाल ईंधन, फर्नीचर, मचान, लुगदी, पेपर, केबिन, वाद्ययंत्र, फर्श का सामान, खेल के सामान आदि सब जगह होता है।

लेकिन भारत में लकड़ी का उत्पादन पर्याप्त नहीं है और 2020 तक इसमें भारी गिरावट की संभावना है। इस वजह से देश और विदेश में लकड़ी का एक बहुत बड़ा मार्केट तैयार हो गया है। भारत में बढ़ते जीवन स्तर की वजह से लकड़ी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। कुछ किसान लकड़ी की इस बढ़ती मांग का पहले से ही लाभ ले रहे हैं।

तमिलनाडु के गोबीचेट्टिपलयम के एक किसान सेंथिलकुमार ऐसे ही एक एग्रोफोरेस्ट्री के अग्रदूत हैं। “मैंने अपने खेत की परिधि पर मालाबार किनो लगाया है। जब मुझे कुछ धन की आवश्यकता होती है तो मैं 10 पेड़ काट देता हूं और उनसे मुझे 50,000 रुपये मिल जाते हैं। वे बताते हैं कि “अब मुझे बैंकरों के चक्कर लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है और न ही सरकारी माफी की उम्मीद के साथ मुझे लोन लेने की जरुरत पड़ती है।” आज से कुछ समय बाद, मान लिजिये 15 साल बाद, अपने बेटे की शिक्षा के लिये, मैं दस चंदन के पेड़ बेच कर 30,00,000 रूपए इकट्ठा कर सकता हूँ।


एग्रोफोरेस्ट्री : एक सफल माडल

खेती की आय को स्थिर और साल भर लगभग एकसमान रखने के लिए, दीर्घकालिक(ज्यादा समय लेने वाले) और अल्पकालिक(कम समय लेने वाले) पेड़ साथ साथ एक वैकल्पिक पैटर्न में लगाए जाते हैं। मालाबार किनो, मेलिया दुबिया जैसे लघु अवधि के पेड़ों को पांच वर्षों में काटा जाता है। जब कि दीर्घ कालिक पेड़ों की कटाई दसवें वर्ष से शुरू की जा सकती है। इनमें चंदन, महोगनी जैसे मूल्यवान पेड़ शामिल हैं। इन लंबी अवधि के पेड़ों को बीमा पॉलिसी के रूप में या सेवानिवृत्ति योजना (भुगतान करने के लिए प्रीमियम के बिना) के रूप में देखा जा सकता है।

तमिलनाडु के तंजावुर में एक किसान, कनकराज बताते हैं कि उनकी बेटी के लिए उनके पेड़ कैसे बीमा की तरह हैं। “मेरी बेटी अब पाँच साल की है। बीस साल में उसकी शादी हो जाएगी। तो उस समय तक मेरे पेड़ भी परिपक्व और बीस साल के हो जायेंगे। फिर मैं शादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पेड़ों को बेच सकता हूं। मुझे किसी से पैसे मांगने की ज़रूरत नहीं है। मैं एग्रोफोरेस्ट्री की वजह से स्वतंत्र हूँ।”

ये दीर्घकालिक पेड़ साथ साथ ही लता की खेती के जरिये अप्रत्यक्ष रूप से भी बहुत अधिक आय उत्पन्न कर सकते हैं। काली मिर्च की बेल एक ऐसी प्रजाति है। एक बार जब पेड़ कम से कम तीन साल पुराने हो जाते हैं, तो उनके आसपास काली मिर्च की बेलें उगाई जा सकती हैं। ये बेलें दो साल बाद फसल योग्य होती हैं। बेल की परिपक्वता बढ़ने के साथ साथ आय भी बढ़ती रहती है। शुरुआत के दिनों में, जब पेड़ फसल के लिए बहुत छोटे होते हैं, तो केले, पपीता आदि जैसे साल भर की फसलों या काले चने और मूंगफली जैसी मौसमी फसलों का इस्तेमाल करते हुए फसलें बदलकर आमदनी अर्जित की जा सकती है।


विशेषज्ञता के साथ साथ अनुभव भी

एग्रोफोरेस्ट्री में इस तरह के अनुभव और विशेषज्ञता के साथ, विभिन्न क्षेत्रों में इसके होने की सम्भावना और सफलता के बारे में एक विस्तृत अध्ययन किया गया है। इस व्यापक अध्ययन में पेड़ों की प्रजातियां, जिसमें अल्पकालिक और दीर्घकालिक रूप से लगाये जाने वाले पेड़, वर्तमान और भविष्य में उनकी अनुमानित कीमतें, पेड़ों के बीच पैदा होने वाली फसलें, पेड़ों के साथ लगायी जा सकने वाले लताएं आदि शामिल हैं। विभिन्न एग्रोफोरेस्ट्री मॉडल (विभिन्न प्रजातियों के समूहों के साथ) विभिन्न मिट्टी के प्रकारों, जलवायु परिस्थितियों और पानी की उपलब्धता के आधार पर मौजूद हैं।


बीस वर्षों में अनुमानित कीमतों, लागत और जीवन यापन की दरों के अनुमान के साथ, एक अध्ययन में निष्कर्ष निकला है कि किसान पांच से सात वर्षों में अपनी आय 300 से 800 प्रतिशत के बीच में, बढ़ा सकते हैं। यह अनुमान शुरुआती किसानों के अनुभव से मेल खाता है, जिन्होंने अपनी खेती को एग्रोफोरेस्ट्री में परिवर्तित कर लिया है। किसानों को एग्रोफोरेस्ट्री के वैज्ञानिक तरीकों में मुफ्त शिक्षा, पौधे उपलब्ध कराना, सलाह देना और उनके फार्म का दौरा करना, इन सब रूपों में विशेषज्ञों द्वारा दी जाने वाली मदद से, यह सपना कई किसानों के लिए आज वास्तविकता बन गया है।


बाढ़, सूखे और किसान संकट को अलविदा

देश के कई हिस्सों में एक आम समस्या है कि गर्मी के दौरान सूखा पड़ता है और कुछ महीनों बाद मानसून के दौरान बाढ़ आ जाती है। उदाहरण के लिए, मई 2016 में, उत्तर प्रदेश के प्रयाग में गंगा इतनी सूखी थी कि लोग नदी के तलहटी में घूम रहे थे। ठीक तीन महीने बाद, बिहार और उत्तर प्रदेश में मानसून के दौरान नदी ने बाढ़ के रिकॉर्ड स्तर को छू लिया, जिससे 4 मिलियन लोग प्रभावित हुए और 650,000 लोगों को अपने घरों से जाना पड़ा। 2015 में, तमिलनाडु ने दिसंबर में सबसे खतरनाक बाढ़ का सामना किया। पांच सौ लोगों ने अपनी जान गंवाई। क्षति का अनुमान INR 20,000-160,000 करोड़ से लगाया गया। एक साल बाद 2017 की गर्मियों में, तमिलनाडु ने सूखे का सामना किया, जो 140 वर्षों में वहाँ का सबसे खराब सूखा था।

शायद कोई ऐसा सोच सकता है कि ऐसा ही होता है - बारिश के दिनों में बाढ़ और गर्मी के दिनों में सुखा। पर ये सच नहीं है। ये मौसमी बाढ़ और मौसमी सूखे का कारण यह है कि ज्यादातर नदी घाटियों से पेड़ काट दिए गए हैं। उदाहरण के लिए, कावेरी घाटी में 87% पेड़ काट दिए गए हैं।

नदी के जलग्रहण क्षेत्र में मौजूद पेड़ नदी के बहाव को कम करते हैं और मौसमी बाढ़ को रोकतें हैं। वे मिट्टी को वर्षा के जल को सोखने करने में मदद करते हैं जिससे कि भूजल का स्तर फिर से बढ़ने लगता है। यही जल, फिर साल भर धीरे-धीरे मिट्टी से नदियों में जाता है। यह बाढ़ और गर्मी के दिनों में पानी की कमी को रोकने के साथ साथ नदियों को पुनर्जीवित करने में भी मदद करता है। इस तरह से मानसून में बाढ़ से खेत तबाह नहीं होते और गर्मी के दिनों में पानी भी उपलब्ध होता है, जिससे किसान की पानी की समस्या कम हो जाती है।

जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का तरीका


मिट्टी सिर्फ धूल नहीं है। उपजाऊ मिट्टी एक जटिल जीवित, संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र (पर्यावरण) है जिसे हजारों वर्षों में बनाया गया है। वास्तव में, विज्ञान मिट्टी के बारे में बहुत कम जानता है। सदियों पहले, लियोनार्डो दा विंची ने कहा था: "हम मिट्टी की तुलना में आकाशीय पिंडों की गति के बारे में अधिक जानते हैं।" यह आज भी उतना ही सही है। एक चम्मच मिट्टी से कम में 10,000 से 50,000 प्रजातियां हो सकती हैं। उसी मिट्टी के एक चम्मच में, पृथ्वी पर जितने लोग मौजूद हैं उससे ज्यादा माइक्रोब्स (सूक्ष्म जीव) होते हैं। मुट्ठी भर स्वस्थ मिट्टी में, सिर्फ बैक्टीरिया समुदाय में जैव विविधता उस विविधता से अधिक है, जो कि पूरे अमेज़ॅन घाटी के सभी जानवरों में पाई जाती है।


पेड़ से गिरी हुई पत्तियां, तने, छाल, फूल आदि के रूप में जैविक पदार्थ और जानवरों से प्राप्त गोबर, दोनों मिट्टी का पोषण करते हैं। जब बहुत सारे पेड़ होते हैं, तो मिट्टी में जैविक सामग्री बढ़ जाती है, जो जमीन की नमी बनाए रखने की क्षमता को बढ़ाती है, और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करती है जिससे फसल की बेहतर पैदावार होती है।


जलवायु परिवर्तन

स्थानीय और तात्कालिक लाभों की लंबी सूची के साथ-साथ, एग्रोफोरेस्ट्री का प्रभाव वैश्विक स्तर तक है। ग्रीन कवर (हरियाली) बढ़ने से ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में मदद मिलती है। इससे ग्लोबल वार्मिंग और समुद्र के स्तर में वृद्धि को रोकने में भी मदद मिलती है। यह कार्बन डाइऑक्साइड और प्रदूषकों को सोखकर हवा को शुद्ध करता है। इससे सदियों,हजार सालों के दौरान ज़मीन के नीचे बहुत गहराई तक पानी पहुंचता है। एग्रोफोरेस्ट्री के साथ, किसान संगीत की तरह ही प्रकृति के साथ पूर्ण रूप से ताल मेल में रहता है।


"एग्रोफॉरेस्टर" कैसे बनें?

आत्मनिर्भर भारत अभियान की राष्ट्रीय टीम के महत्वपूर्ण स्तम्भ सुनील जी टावरी, तुलसी राम जी पाटील जो की वर्तमान में महाराष्ट्र में किसानो के बीच वृहद स्तर पर 300 गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने पर कार्य कर रहे है, कृषि उत्पादों के बड़े व्यवसायी भी है, हमारे आत्मनिर्भर मेवाड़ संकल्प से जुड़कर राजस्थान में चन्दन और महोगनी और अन्य औषधीय वृक्षों के वृहद स्तर पर व्यावसायिक उत्पादन हेतु वृक्षारोपण के लिए कंधे से कन्धा मिलाकर कार्य करने पर सहमत हुवे है | 

एक बार जब कोई किसान अपने खेत के एक हिस्से को एग्रोफोरेस्ट्री में बदलने का फैसला करता है तो हमारी टीम का एक फील्ड वालंटियर (स्वयंसेवक) उसकी जमीन पे जाकर मिट्टी और पानी का परीक्षण करता है। और फिर यह निर्णय लेता है कि उसकी जमीन के मुताबिक कौन सी प्रजाति अच्छी है। जमीन के नक़्शे के अनुसार प्लांटेशन की प्लानिंग करता है और नियमित रूप से आवश्यक मार्गदर्शन करता है |

यह सुनिश्चित करने के लिए कि एग्रोफोरेस्ट्री में किसान का रूपांतरण सफल हो, नियमित रूप से जमीन का दौरा किया जाता है। नष्ट हो गये पौधों को नि: शुल्क बदल दिया जाता है।

चूँकि एग्रोफोरेस्ट्री में कुछ वर्षों के बाद ही लकड़ी की पैदावार होगी इसलिये किसानों को एग्रोफोरेस्ट्री में शिफ्टिंग की शुरुआती अवधि के दौरान कुछ अन्य नियमित आय की भी आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रारंभिक वर्षो में ऐसे ही आत्मनिर्भर और कम अवधि के प्लांट जैसे सीताफल, जामुन, ड्रैगन फ्रूट आदि को बीच में लगा कर उनसे अच्छी  आय प्राप्त की जा सकती है |

function disabled

Old Post from Sanwariya