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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

गंगा विशेष पवित्र नदी क्यों?

गंगा विशेष पवित्र नदी क्यों?

गंगा प्राचीन काल से ही भारतीय जनमानस में अत्यंत पूज्य रही है, इसका धार्मिक महत्त्व जितना है, विश्व में शयद ही किसी नदी का होगा.. यह विश्व कि एकमात्र नदी है, जिसे श्रद्धा से माता कहकर पुकारा जाता है
महाभारत में कहा गया है.. "जैसे अग्नि ईधन को जला देती है, उसी प्रकार सैंकड़ो निषिद्ध कर्म करके भी यदि गंगा स्नान किया जाये , तो उसका जल उन सब पापों को भस्म कर देता है, सत्ययुग में सभी तीर्थ पुण्यदायक होते थे.. त्रेता में पुष्कर और द्वापर में कुरुक्षेत्र तथा कलियुग में गंगा कि सबसे अधिक महिमा बताई गई है. नाम लेने मात्र से गंगा पापी को पवित्र कर देती है. देखने से सौभाग्य तथा स्नान या जल ग्रेहण करने से सात पीढियों तक कुल पवित्र हो जाता है (महाभारत/वनपर्व 85 /89 -90 -93 "

गंगाजल पर किये शोध कार्यो से स्पष्ट है कि यह वर्षो तक रखने पर भी खराब नहीं होता .. स्वास्थवर्धक तत्वों का बाहुल्य होने के कारण गंगा का जल अमृत के तुल्य, सर्व रोगनाशक, पाचक, मीठा, उत्तम, ह्रदय के लिए हितकर, पथ्य, आयु बढ़ाने वाला तथा त्रिदोष नाशक है, इसका जल अधिक संतृप्त माना गया है, इसमें पर्याप्त लवण जैसे कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम आदि पाए जाते है और 45 प्रतिशत क्लोरिन होता है , जो जल में कीटाणुओं को पनपने से रोकता है. इसी कि उपस्थिति के कारण पानी सड़ता नहीं और ना ही इसमें कीटाणु पैदा होते है, इसकी अम्लीयता एवं क्षारीयता लगभग समान होती है, गंगाजल में अत्यधिक शक्तिशाली कीटाणु-निरोधक तत्व क्लोराइड पाया जाता है. डा. कोहिमान के मात में जब किसी व्याक्ति कि जीवनी शक्ति जवाब देने लगे , उस समय यदि उसे गंगाजल पिला दिया जाये, तो आश्चर्यजनक ढंग से उसकी जीवनी शक्ति बढती है और रोगी को ऐसा लगता है कि उसके भीतर किसी सात्विक आनंद का स्त्रोत फुट रहा है शास्त्रों के अनुसार इसी वजह से अंतिम समय में मृत्यु के निकट आये व्यक्ति के मुंह में गंगा जल डाला जाता है .

गंगा स्नान से पुण्य प्राप्ति के लिए श्रद्धा आवश्यक है. इस सम्बन्ध में एक कथा है. एक बार पार्वती जी ने शंकर भगवान से पूछा -"गंगा में स्नान करने वाले प्राणी पापो से छुट जाते है?" इस पर भगवान शंकर बोले -"जो भावनापूर्वक स्नान करता है, उसी को सदगति मिलती है, अधिकाँश लोग तो मेला देखने जाते है" पार्वती जी को इस जवाब से संतोष नहीं मिला. शंकर जी ने फिर कहा - "चलो तुम्हे इसका प्रत्यक्ष दर्शन कराते है" गंगा के निकट शंकर जी कोढ़ी का रूप धारण कर रस्ते में बैठ गये और साथ में पार्वती जी सुंदर स्त्री का रूप धारण कर बैठ गई. मेले के कारण भीड़ थी.. जो भी पुरष कोढ़ी के साथ सुंदर स्त्री को देखता , वह सुंदर स्त्री की और ही आकर्षित होता.. कुछ ने तो उस स्त्री को अपने साथ चलने का भी प्रस्ताव दिया. अंत में एक ऐसा व्यक्ति भी आया, जिसने स्त्री के पातिव्रत्य धर्म की सराहना की और कोढ़ी को गंगा स्नान कराने में मदद दी. शंकर भगवान प्रकट हुए और बोले. 'प्रिय! यही श्रद्धालु सदगति का सच्चा अधिकारी है...."
अब बोलिए जय गंगा मैया. हर हर महादेव. जय शिव भोला भंडारी... जय मेरी माँ कालका... जय मेरी माँ दुर्गे.. जय माँ राजरानी...
जय हो. जय जय माँ
जय गंगा मैया

क्यों निषिद्ध है प्याज और लहसुन...

क्यों निषिद्ध है प्याज और लहसुन...


प्याज खाने पर पुन: एक बार व्रतबंध किया जाना चाहिए, ऎसा शास्त्र कहता है। वैसे तो जमीन के नीचे पैदा होने वाली सभी कंद पूर्णत: निषिद्ध है परंतु हिंदू धर्म में विशेषकर प्याज एवं लहसुन त्याज्य माने गए है। फलों में 20-25 प्रतिशत निषिद्ध होते है। हविष्य पदार्थ उससे अधिक यानी 30-35 प्रतिशत निषिद्ध होते है। नित्य उपयोग में लाए जाने वाले शाकाहारी पदार्थ 40-45 प्रतिशत निषि
द्ध माने जाते है। अंडे, लहसुन और प्याज 90 प्रतिशत निषिद्ध होते है। मांस, मछली एवं मद्य पदार्थ 100 प्रतिशत निषिद्ध होते है। लेकिन कतिपय आचार प्रधान संप्रदायों में पूर्ण प्रतिबंधित कंद पदार्थो का सेवन करने की भी इजा्जत हैं। हिंदू धर्म में 80 प्रतिशत तक निषिद्ध चीजों का सेवन करने की अनुमति दी गई है, इसलिए प्याज-लहसुन वज्र्य माने गए है। प्याज के शास्त्रीय एवं मानस शास्त्रीय प्रयोग हो चुके है। प्याज के छिलके निकालते समय अंदर की गंध मन को विचलित कर देती है। आंखों से पानी आना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
प्याज के सेवन का असर रक्त में रहने तक मन में काम वासनात्मक विकार मंडराते रहते। शरीर का अस्तित्व न माने वाले अवधूत व्यक्ति ऎसे पदार्थो का निषेध नहीं करते। शरीर की अवस्था में संचार करने वाले कुछ महान संत प्याज की तरह के पदार्थो का निषेध नहीं मानते इसका कारण यह है कि इनका पंचमहाभौतिक शरीर उच्च स्तरीय विविध कोशों में रहता है। इसी कारण उनके द्वारा सेवन किए गए किसी भी वस्तु का प्रभाव उनकी बुद्धि एवं मन पर नहीं होता। परंतु सामान्य व्यक्ति निषिद्ध पदार्थो के सेवन से उत्पन्न होने वाले प्रभावों के अलिप्त नहीं रह सकते। प्याज चबाने के कुछ समय पश्चात् वीर्य की सघनता कम होती है और गतिमानता बढ जाती है। परिमाम स्वरूप विष्ाय-वासना में वृद्धि होती है। बरसात के दिनों में प्याज खाने से अपच एवं अजीर्ण आदि उदर विकार उत्पन्न हो जाते है।
फिर भी कुछ गुणों के कारण आयुर्वेद ने प्याज और लहसुन का समावेश औषधि में किया है। लहसुन ह्रदय रोग के लिए उपयुक्त होता है। शरीर में ज्वराधिक्य होने पर प्याज को घिसकर पेट एवं मस्तक पर लगाया जाता है तथा प्याज रस का सेवन किया जाता है। परंतु यदि इन पदार्थो का उपयोग निरंतर किया जाए तो वे संस्कार एवं विचार की दृष्टि से हानिकारण सिद्ध होते है। पवित्र परमात्मका के नैवेद्य में पूर्णत: निषिद्ध हैं। धार्मिक अनुष्ठान एवं व्रत वैकल्य आदि अवसरों पर भोजन में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता। ये सभी बातें औषधि उपयोग के अतिरिक्त निषेधात्मक संकेत देने वाली है।

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