क्यों निषिद्ध है प्याज और लहसुन...
प्याज खाने पर पुन: एक बार व्रतबंध किया जाना चाहिए, ऎसा शास्त्र कहता है। वैसे तो जमीन के नीचे पैदा होने वाली सभी कंद पूर्णत: निषिद्ध है परंतु हिंदू धर्म में विशेषकर प्याज एवं लहसुन त्याज्य माने गए है। फलों में 20-25 प्रतिशत निषिद्ध होते है। हविष्य पदार्थ उससे अधिक यानी 30-35 प्रतिशत निषिद्ध होते है। नित्य उपयोग में लाए जाने वाले शाकाहारी पदार्थ 40-45 प्रतिशत निषि
प्याज खाने पर पुन: एक बार व्रतबंध किया जाना चाहिए, ऎसा शास्त्र कहता है। वैसे तो जमीन के नीचे पैदा होने वाली सभी कंद पूर्णत: निषिद्ध है परंतु हिंदू धर्म में विशेषकर प्याज एवं लहसुन त्याज्य माने गए है। फलों में 20-25 प्रतिशत निषिद्ध होते है। हविष्य पदार्थ उससे अधिक यानी 30-35 प्रतिशत निषिद्ध होते है। नित्य उपयोग में लाए जाने वाले शाकाहारी पदार्थ 40-45 प्रतिशत निषि
द्ध माने जाते है। अंडे,
लहसुन और प्याज 90 प्रतिशत निषिद्ध होते है। मांस, मछली एवं मद्य पदार्थ
100 प्रतिशत निषिद्ध होते है। लेकिन कतिपय आचार प्रधान संप्रदायों में
पूर्ण प्रतिबंधित कंद पदार्थो का सेवन करने की भी इजा्जत हैं। हिंदू धर्म
में 80 प्रतिशत तक निषिद्ध चीजों का सेवन करने की अनुमति दी गई है, इसलिए
प्याज-लहसुन वज्र्य माने गए है। प्याज के शास्त्रीय एवं मानस शास्त्रीय
प्रयोग हो चुके है। प्याज के छिलके निकालते समय अंदर की गंध मन को विचलित
कर देती है। आंखों से पानी आना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
प्याज के सेवन का असर रक्त में रहने तक मन में काम वासनात्मक विकार मंडराते रहते। शरीर का अस्तित्व न माने वाले अवधूत व्यक्ति ऎसे पदार्थो का निषेध नहीं करते। शरीर की अवस्था में संचार करने वाले कुछ महान संत प्याज की तरह के पदार्थो का निषेध नहीं मानते इसका कारण यह है कि इनका पंचमहाभौतिक शरीर उच्च स्तरीय विविध कोशों में रहता है। इसी कारण उनके द्वारा सेवन किए गए किसी भी वस्तु का प्रभाव उनकी बुद्धि एवं मन पर नहीं होता। परंतु सामान्य व्यक्ति निषिद्ध पदार्थो के सेवन से उत्पन्न होने वाले प्रभावों के अलिप्त नहीं रह सकते। प्याज चबाने के कुछ समय पश्चात् वीर्य की सघनता कम होती है और गतिमानता बढ जाती है। परिमाम स्वरूप विष्ाय-वासना में वृद्धि होती है। बरसात के दिनों में प्याज खाने से अपच एवं अजीर्ण आदि उदर विकार उत्पन्न हो जाते है।
फिर भी कुछ गुणों के कारण आयुर्वेद ने प्याज और लहसुन का समावेश औषधि में किया है। लहसुन ह्रदय रोग के लिए उपयुक्त होता है। शरीर में ज्वराधिक्य होने पर प्याज को घिसकर पेट एवं मस्तक पर लगाया जाता है तथा प्याज रस का सेवन किया जाता है। परंतु यदि इन पदार्थो का उपयोग निरंतर किया जाए तो वे संस्कार एवं विचार की दृष्टि से हानिकारण सिद्ध होते है। पवित्र परमात्मका के नैवेद्य में पूर्णत: निषिद्ध हैं। धार्मिक अनुष्ठान एवं व्रत वैकल्य आदि अवसरों पर भोजन में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता। ये सभी बातें औषधि उपयोग के अतिरिक्त निषेधात्मक संकेत देने वाली है।
प्याज के सेवन का असर रक्त में रहने तक मन में काम वासनात्मक विकार मंडराते रहते। शरीर का अस्तित्व न माने वाले अवधूत व्यक्ति ऎसे पदार्थो का निषेध नहीं करते। शरीर की अवस्था में संचार करने वाले कुछ महान संत प्याज की तरह के पदार्थो का निषेध नहीं मानते इसका कारण यह है कि इनका पंचमहाभौतिक शरीर उच्च स्तरीय विविध कोशों में रहता है। इसी कारण उनके द्वारा सेवन किए गए किसी भी वस्तु का प्रभाव उनकी बुद्धि एवं मन पर नहीं होता। परंतु सामान्य व्यक्ति निषिद्ध पदार्थो के सेवन से उत्पन्न होने वाले प्रभावों के अलिप्त नहीं रह सकते। प्याज चबाने के कुछ समय पश्चात् वीर्य की सघनता कम होती है और गतिमानता बढ जाती है। परिमाम स्वरूप विष्ाय-वासना में वृद्धि होती है। बरसात के दिनों में प्याज खाने से अपच एवं अजीर्ण आदि उदर विकार उत्पन्न हो जाते है।
फिर भी कुछ गुणों के कारण आयुर्वेद ने प्याज और लहसुन का समावेश औषधि में किया है। लहसुन ह्रदय रोग के लिए उपयुक्त होता है। शरीर में ज्वराधिक्य होने पर प्याज को घिसकर पेट एवं मस्तक पर लगाया जाता है तथा प्याज रस का सेवन किया जाता है। परंतु यदि इन पदार्थो का उपयोग निरंतर किया जाए तो वे संस्कार एवं विचार की दृष्टि से हानिकारण सिद्ध होते है। पवित्र परमात्मका के नैवेद्य में पूर्णत: निषिद्ध हैं। धार्मिक अनुष्ठान एवं व्रत वैकल्य आदि अवसरों पर भोजन में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता। ये सभी बातें औषधि उपयोग के अतिरिक्त निषेधात्मक संकेत देने वाली है।
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