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पढेँ अपने मित्रोँ को टैग व शेयर करेँ। प्रदोष व्रत-
प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशीतिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है.
यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के
बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नामसे जाना जाता है. प्रदेशों
के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक
के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है.
ऎसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वासहो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए.
यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजनकिया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है.शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रतको रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार काएकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा.
उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है.अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है. जैसे
सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है. सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है. जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रतको करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है. व बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है.
गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है. शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये किया जाता है. अत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए. अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है.प्रदोष व्रत करने के लिये उपवसक को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए. नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें. इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है. पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किये जाते है.
ईशान कोण की दिशा में किसी एकान्तस्थल को पूजा करने के लिये प्रयोगकरना विशेष शुभ रहता है. पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर सेलीपकर, मंडप तैयार किया जाता है. अब इस मंडप में पद्म पुष्प की आकृ्ति पांच रंगों का उपयोग करते हुए बनाई जाती है.
प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिये कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार पूजन क्रिया की तैयारियां कर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए. पूजन में भगवान शिव के मंत्र "ऊँ नम: शिवाय" इस मंत्र का जाप करते हुए शिव को जल का अर्ध्य देना चाहिएइस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापनके नाम से भी जाना जाता है
ऎसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वासहो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए.
यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजनकिया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है.शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रतको रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार काएकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा.
उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है.अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है. जैसे
सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है. सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है. जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रतको करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है. व बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है.
गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है. शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये किया जाता है. अत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए. अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है.प्रदोष व्रत करने के लिये उपवसक को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए. नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें. इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है. पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किये जाते है.
ईशान कोण की दिशा में किसी एकान्तस्थल को पूजा करने के लिये प्रयोगकरना विशेष शुभ रहता है. पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर सेलीपकर, मंडप तैयार किया जाता है. अब इस मंडप में पद्म पुष्प की आकृ्ति पांच रंगों का उपयोग करते हुए बनाई जाती है.
प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिये कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार पूजन क्रिया की तैयारियां कर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए. पूजन में भगवान शिव के मंत्र "ऊँ नम: शिवाय" इस मंत्र का जाप करते हुए शिव को जल का अर्ध्य देना चाहिएइस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापनके नाम से भी जाना जाता है
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