सकल पदारथ एहि जग मांही, कर्महीन नर पावत नाही।
विधाता से विधान,विधान से विधि
तुलसीदास जी ने कहा है कि "सकल पदारथ है जग माहीं,करमहीन नर पावत नाहीं",लेकिन कर्म को करवाने के लिये जो शक्ति साथ चलती है उसके बारे में भी कहा है,-"बिनु पग चलै सुनै बिनु काना,कर बिनु करम करै विधि नाना",जब सभी कर्म वह शक्ति करवाती है तो शक्ति को समझने के लिये भी लिखा है,-"उमा दारु ज्योतिष की नाईं,सबहि नचावत राम गुसांई".
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा।
यह चौपाई रामचरितमानस के कौन से काण्ड मे है
जवाब देंहटाएंयह चौपाई रामचरितमानस के कौन से काण्ड मे है
जवाब देंहटाएंसकल पदारथ है जग माही कर्म हीन नर पावत नाही यह चौपाई किस अध्याय में कौन से दोहा में है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय श्री राधे जय श्री राधे जी आप बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंतो होइहि सोई जो राम रची राखा का क्या मतलब है , मतलब राम के रचे हुए को कर्म से काटा जा सकता है ?
जवाब देंहटाएंइसे तुलसीदास जी ने कब और कहाँ कहा है कृपया संदर्भ ग्रंथ देने की कृपा करें
जवाब देंहटाएं