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शनिवार, 15 अक्तूबर 2022

दुनिया का सबसे अनोखा पेड़ - मंचीनील, जिसका मतलब होता है -'मौत का सेब'।

 

मंचीनील,जिसका मतलब होता है -'मौत का सेब'

मंचीनील दुनिया का सबसे जहरीला पौधा है। इसकी पत्तियां इतनी जहरीली होती हैं कि अगर आप बारिश के दौरान इसके नीचे खड़े होते हैं, तो आपकी त्वचा पर छाले पड़ जाएंगे, क्योंकि बारिश की बूंदें पत्तियों के संपर्क से विषाक्त हो जाती हैं।

स्पेनिश खोजकर्ता और उपनिवेशवादी जुआन पोंस डी लियोन की मौत मंचीनील के जहरीले रस लगे तीर से ही हुई थी। यह रस इतना असरदार है कि यह कार के पेंट को आसानी से गला सकता है। इस पौधे में कई असाधारण विष होते हैं, जिनमें से कुछ की पहचान अभी तक नहीं हो सकी है।

मंचीनील के पेड़ को छूने, और यहां तक कि इसके आसपास सांस लेने तक की इजाजत नहीं दी जाती है।

फ्लोरिडा में ये पेड़ जहां उगते हैं, इस बारे में पेड़ो पर स्पष्ट चेतावनी लिखी होती है।

प्रायः जहरीले फल कड़वे होते हैं, जो कि कुतरने वाले प्राणियों के लिए एक तरह का चेतावनी होती है, जबकि मंचीनील के मामले में ऐसा नहीं है। इसका स्वाद शुरू में मीठा और स्वादिष्ट होता है। उसके बाद यह तीखी मिर्च जैसा स्वाद देने लगता है। तब शरीर मे जलन शुरू हो जाती है और सांस नली बंद होने लगती है। फल खाने से जठरांत्र शोथ हो जाता है और साथ ही आंतों में रक्तस्राव होने लगता है। इसके अलावा नसों की झनझनाहट, बैक्टीरियल सुपरिनफेक्शन, एडिमा आदि हो जाता है, जो श्वसन प्रणाली को पूर्णतः बंद कर देता है।

यह अचरज वाली बात नहीं है कि मंचीनील एक संकटग्रस्त वनस्पति प्रजाति है। आखिर कौन ऐसे पौधे को अपने आसपास उगता देखना चाहेगा?! मंचीनील के पौधे को नष्ट करते समय बस एक बात का ध्यान रखना जरूरी है - इसे जलाने की कोशिश कभी भूल से भी न करें। आपने समझ गए होंगे, इसका धुआं भी जहरीला होता है।

स्रोत: Manchineel - Wikipedia

Do Not Eat, Touch, Or Even Inhale the Air Around the Manchineel Tree

This Tree Is So Toxic, You Can't Stand Under It When It Rains

इंद्रगोप कीड़ा - उपयोग आयुर्वेद में

 

दुनिया के सबसे खूबसूरत कीटों में से एक होता है इंद्रगोप कीड़ा। चमकीले गहरे सुर्ख रंग का मखमली आवरण वाले इस कीड़े को सबसे खूबसूरत कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी। ये किसानों के मित्र हैं क्योंकि ये जमीन की उर्वरता को बढ़ाते हैं तथा कृषि कर्म में हानिकारक कीटों के अंडों और की इल्लियों को खाते हैं। लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इनके औषधीय उपयोग के कारण इनकी प्रजाति संकटमय हो चली है।

"यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि प्राणियों के उनके प्राकृतिक आवासों में शिकार के खिलाफ़ हूं फिर चाहे उपयोग खाने के लिए हो या औषधि के लिए। मेरा मानना है कि प्रकृति में हमारे लिए दूसरे और बेहतर विकल्प खुले रहते हैं।"

पहली बरसात के बाद जब मोर बोल रहे हों, बादल गरज रहे हों और मेंढकों की टर्र-टर्र चारों तरफ गूंज रही होती है तब बीर बहूटी जमीन पर इधर उधर रेंगती दिखाई देती है। संस्कृत शास्त्रों में इंद्रगोप या इन्द्रवधू के नाम से उल्लिखित यह बरसती कीड़ा अराक्नीडा अथवा अष्टपाद प्रजाति से सम्बन्धित है जिसमें मकड़ी, जूं/किलनी, बिच्छू आदि जीव वर्गीकृत हैं। इस कीड़े को हिन्दी, अवधी और फारसी भाषा में बीर बहूटी और अंग्रेजी में रेड वेल्वेट माइट (Red Velvet Mite) के नाम से जाना जाता है। लोक भाषाओं में कहीं इसे राजा बिलइया तो कहीं इसे राम की डुकरिया भी बुलाते हैं। जितनी जगहें उतने नाम होंगे इसके। आप बताइए आपके यहां क्या कहते हैं इस बेहद खूबसूरत कीड़े को!

"लोभ, ईर्ष्या, स्वार्थ और लापरवाही के स्नेहन (ग्रीस/चिकनाई) पर विकसित होती (फिसलती) मानव सभ्यता में अक्सर उपयोगी होना अभिशाप हो जाता है। यही कहानी बीर बहूटी की भी है।" आगे पढ़िए…

बीर बहूटी को पारम्परिक और लोक चिकित्साओं में अनेक स्वास्थ्य लाभों के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

  • आयुर्वेद औषधि उद्योग में बीर बहूटी का प्रयोग गठिया और लकवा के लिए औषधि निर्माण में किया जाता है।
  • होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में इसे ट्रॉमबिडियम (Trombidium) के नाम से जाना जाता है। होम्योपैथी मेटेरिया मेडिका के अनुसार यह दर्द निवारक और दाह शामक है, खासकर पेट के दर्द व घुटनों और कमर के जोड़ों के दर्द में। यह सिर, आंख, कान, पेट, गले और मुंह के अनेक विकारों में कार्य करती है और विभिन्न प्रकार की सूजन और दस्त में इसका उपयोग किया जाता है।
  • यूनानी चिकित्सा में स्तम्भन दोष और शीघ्र पतन के इलाज हेतु इसका प्रयोग किया जाता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग 50 से अधिक औषधियों को बनाने में किया जाता है।
  • लोक चिकित्साओं में खास कर मध्य भारत और दक्कन में इसका प्रयोग 40 से अधिक बीमारियों के इलाज़ में किया जाता है जिनमें गठिया, दस्त, लकवा, मधुमेह आदि कुछ नाम हैं।
    • विशेष: इनमें से कोई भी दावा वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित नहीं है। ध्यान रहे कि पूरा का पूरा आयुर्वेद या कोई अन्य पारम्परिक अथवा लोक चिकित्सा व मान्यताएं सम्पूर्ण रूप से कभी सही नहीं होती हैं। उन्हें प्रमाणित किए जाने की आवश्यकता होती है। बीर बहूटी के मामले में ऐसा कोई दावा प्रमाणित नहीं है।

इन्हीं कारणों से इस नन्हे से नाजुक और दुर्लभ जीव की मांग घरेलू बाजारों से लेकर देसी औषधि उद्योग और विदेशी बाजारों तक है इसलिए यह काफी महंगा बिकता है। गांवों में गरीब इसे इकट्ठा कर बिचौलियों को बेचते हैं जो आगे इसे मंहगे दामों पर औषधि निर्माताओं को बेच देते हैं। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि राजा बिलाइया की प्रजाति अब खतरे में है।

तो मित्रों इससे ज्यादा क्या ही लिखूं? बस इतना कहूंगा कि किसी लालच में न आएं क्योंकि दूसरे बेहतर और पुख्ता विकल्प मौजूद हैं इसलिए इस अनमोल जीव से बने उत्पादों का प्रयोग न करें और जहां कहीं दिखे तो थोड़ा प्यार से देखें क्योंकि यह इतना कोमल होता है की सख़्त नजरों से भी घायल हो सकता है।

आज बस इतना ही। इति!

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