दुनिया के सबसे खूबसूरत कीटों में से एक होता है इंद्रगोप कीड़ा। चमकीले गहरे सुर्ख रंग का मखमली आवरण वाले इस कीड़े को सबसे खूबसूरत कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी। ये किसानों के मित्र हैं क्योंकि ये जमीन की उर्वरता को बढ़ाते हैं तथा कृषि कर्म में हानिकारक कीटों के अंडों और की इल्लियों को खाते हैं। लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इनके औषधीय उपयोग के कारण इनकी प्रजाति संकटमय हो चली है।
"यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि प्राणियों के उनके प्राकृतिक आवासों में शिकार के खिलाफ़ हूं फिर चाहे उपयोग खाने के लिए हो या औषधि के लिए। मेरा मानना है कि प्रकृति में हमारे लिए दूसरे और बेहतर विकल्प खुले रहते हैं।"
पहली बरसात के बाद जब मोर बोल रहे हों, बादल गरज रहे हों और मेंढकों की टर्र-टर्र चारों तरफ गूंज रही होती है तब बीर बहूटी जमीन पर इधर उधर रेंगती दिखाई देती है। संस्कृत शास्त्रों में इंद्रगोप या इन्द्रवधू के नाम से उल्लिखित यह बरसती कीड़ा अराक्नीडा अथवा अष्टपाद प्रजाति से सम्बन्धित है जिसमें मकड़ी, जूं/किलनी, बिच्छू आदि जीव वर्गीकृत हैं। इस कीड़े को हिन्दी, अवधी और फारसी भाषा में बीर बहूटी और अंग्रेजी में रेड वेल्वेट माइट (Red Velvet Mite) के नाम से जाना जाता है। लोक भाषाओं में कहीं इसे राजा बिलइया तो कहीं इसे राम की डुकरिया भी बुलाते हैं। जितनी जगहें उतने नाम होंगे इसके। आप बताइए आपके यहां क्या कहते हैं इस बेहद खूबसूरत कीड़े को!
"लोभ, ईर्ष्या, स्वार्थ और लापरवाही के स्नेहन (ग्रीस/चिकनाई) पर विकसित होती (फिसलती) मानव सभ्यता में अक्सर उपयोगी होना अभिशाप हो जाता है। यही कहानी बीर बहूटी की भी है।" आगे पढ़िए…
बीर बहूटी को पारम्परिक और लोक चिकित्साओं में अनेक स्वास्थ्य लाभों के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- आयुर्वेद औषधि उद्योग में बीर बहूटी का प्रयोग गठिया और लकवा के लिए औषधि निर्माण में किया जाता है।
- होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में इसे ट्रॉमबिडियम (Trombidium) के नाम से जाना जाता है। होम्योपैथी मेटेरिया मेडिका के अनुसार यह दर्द निवारक और दाह शामक है, खासकर पेट के दर्द व घुटनों और कमर के जोड़ों के दर्द में। यह सिर, आंख, कान, पेट, गले और मुंह के अनेक विकारों में कार्य करती है और विभिन्न प्रकार की सूजन और दस्त में इसका उपयोग किया जाता है।
- यूनानी चिकित्सा में स्तम्भन दोष और शीघ्र पतन के इलाज हेतु इसका प्रयोग किया जाता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग 50 से अधिक औषधियों को बनाने में किया जाता है।
- लोक चिकित्साओं में खास कर मध्य भारत और दक्कन में इसका प्रयोग 40 से अधिक बीमारियों के इलाज़ में किया जाता है जिनमें गठिया, दस्त, लकवा, मधुमेह आदि कुछ नाम हैं।
- विशेष: इनमें से कोई भी दावा वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित नहीं है। ध्यान रहे कि पूरा का पूरा आयुर्वेद या कोई अन्य पारम्परिक अथवा लोक चिकित्सा व मान्यताएं सम्पूर्ण रूप से कभी सही नहीं होती हैं। उन्हें प्रमाणित किए जाने की आवश्यकता होती है। बीर बहूटी के मामले में ऐसा कोई दावा प्रमाणित नहीं है।
इन्हीं कारणों से इस नन्हे से नाजुक और दुर्लभ जीव की मांग घरेलू बाजारों से लेकर देसी औषधि उद्योग और विदेशी बाजारों तक है इसलिए यह काफी महंगा बिकता है। गांवों में गरीब इसे इकट्ठा कर बिचौलियों को बेचते हैं जो आगे इसे मंहगे दामों पर औषधि निर्माताओं को बेच देते हैं। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि राजा बिलाइया की प्रजाति अब खतरे में है।
तो मित्रों इससे ज्यादा क्या ही लिखूं? बस इतना कहूंगा कि किसी लालच में न आएं क्योंकि दूसरे बेहतर और पुख्ता विकल्प मौजूद हैं इसलिए इस अनमोल जीव से बने उत्पादों का प्रयोग न करें और जहां कहीं दिखे तो थोड़ा प्यार से देखें क्योंकि यह इतना कोमल होता है की सख़्त नजरों से भी घायल हो सकता है।
आज बस इतना ही। इति!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.