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राजस्थान के नाथद्वारा में भगवान शिव की 351 फीट की मूर्ति बनाई जा रही है. इस मूर्ति का कार्य लगभग अंतिम चरण में है. यह दुनिया की अब तक की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा होगी.
पिछले करीब 4 सालों से मूर्ति के निर्माण का कार्य चल रहा है. अब तक लगभग 90 प्रतिशत काम पूरा किया जा चुका है. भगवान शिव की ध्यान करती मूर्ति पर लाइटिंग का कार्य किया जा रहा है. लिहाजा मूर्ति को 20 किमी दूर से ही देखा जा सकेगा.
प्रतिमास्थल का नाम तत्पदम् उपवन रखा गया है. जिसके 44 हजार स्क्वायर फीट में गार्डन बन कर तैयार हो गए हैं. 52 हजार स्क्वायर फीट में तीन हर्बल गार्डन होंगे. जिनमें विभिन प्रकार की जड़ी-बूटियों के पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं.
मिराज ग्रुप की ओर से नगर के गणेश टेकरी पर बनने वाली शिव प्रतिमा के लिए 110 फीट ऊंचा आधार बनाया गया है. जिस पर कैलाश पर्वत व पर्वत मालाओ जैसा 3D कलर किया गया है. मूर्ति की कुल लंबाई 351 फीट होगी.
शिव प्रतिमा के काम में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. पिछले दिनों ही पूर्व क्रिकेटर कपिल देव ने प्रतिमा का अवलोकन किया था. कपिल देव की कंपनी की ओर से ही मूर्ति पर लाइटिंग का कार्य किया जा रहा है.
प्रतिमा के निर्माण के लिए सरकार से 25 बीघा जमीन 99 वर्ष की लीज पर ली गई है. प्रतिमा स्थल पर उपवन में आध्यात्म, मनोरंजन, प्रकृति, पर्यटन आदि का ध्यान रखा है. हाइवे की ओर से रहे मुख्य गेट पर 7 मीटर ऊंची शिवलिंग की प्रतिमा लगाई गई है.
गेट के एक तरफ टिकट कक्ष बनाया गया है. मेन गेट से अंदर जाने पर ग्लास हाऊस, नर्सरी, कैफेटेरिया, कॉटेज, ओपन थियेटर, म्यूजिकल लाइटिंग फाउंटेन, रिसेप्शन प्लाजा बन कर लगभग तैयार हो चुके हैं.बरसात धूप से बचाने के लिए इस पर जिंक की कोटिंग कर कॉपर कलर किया गया है. जो 20 साल तक फीका नहीं पड़ेगा.
मूर्ति के अंदर बारह तल बनाये गए है, जिनपर विभिन प्रकार के वर्चुअल शो और प्रदर्शनी लगाई जाएंगी. मूर्ति के अंदर 4 लिफ्ट लगाई गई है. जिनमें से 2 लिफ्ट में एक बार में 29-29 श्रद्धालु 110 फीट तक और दूसरी लिफ्ट में 13-13 श्रद्धालु 280 फीट तक एक साथ आ जा सकेंगे.
यहां श्रद्धालुओं के लिए चार लिफ्ट लगाई गई है. इसके अलावा तीन सीढ़ियां हैं, ताकि हर रोज हजारों लोग इसके दर्शन कर सके. इसके अलावा अंदर पानी के 55 हजार लीटर के दो वाटरफॉल बनाए हैं. जिसमें एक वाटरफॉल से शिवजी का अभिषेक होगा. दूसरा पानी आग बुझाने के लिए इस्तेमाल होगा.
ऊंचाई पर होने के कारण हवा के वेग और भूकम्प के अधिकतम दबाव को ध्यान में रख कर निर्माण किया गया है. 250 किमी रफ्तार में हवा चलने के दौरान भी प्रतिमा पर कोई दबाव नहीं पड़ेगा. भूकंप हवा के वेग सहित सुरक्षा का ध्यान रखा गया है.
20 किमी दूर से दिखेगी झलक
पर्यटक 280 फीट की ऊंचाई तक जाकर यहां का नजारा देख सकेंगे. निर्माण स्थल से करीब 20 किमी की दूरी पर स्थित कांकरोली फ्लाईओवर से भी यह दिखाई देती है. इसमें रोशनी का विशेष प्रबंध किया गए है. जसके कारण रात को भी दूर से ही इसकी झलक दिखाई देगी. इसके लिए कपिल देव की कंपनी की ओर से अमेरिका से भी सामान मंगवाया गया है.
पहाड़ी क्षेत्र पर निर्माण से पूर्व इस स्थान की गहन जांच की गई थी. इसके लिए ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी के विशेषज्ञों की मदद ली गई थी. उन्होंने यहां हवाओं की गति और तमाम भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन किया और उसके बाद निर्माण प्रारंभ हुआ था. अब लोगों को इसका निर्माण कार्य पूरा होने का इंतजार है.
यह है मूर्ति की खासियत
3000 टन स्टील,30 हजार टन प्रतिमा का वजन,315 फीट होगी त्रिशूल की लंबाई,16 फीट ऊंचा होगा जूड़ा,60 फीट लंबा होगा महादेव का चेहरा,275 फीट की ऊंचाई पर गर्दन,160 फीट की ऊंचाई पर कंधा,175 फीट की ऊंचाई पर महादेव का कमरबंद,150 फीट पंजे से घुटने तक की ऊंचाई,65 फीट लंबा पंजा .
प्रतिमा को स्टील रॉड के मॉड्यूल की सहायता से बनाया गया है. स्टील से हर एक फीट पर सरिए की मदद से ढांचा तैयार कर इसमें कंक्रीट भरी गई. इस पर तांबा चढ़ाया गया. पूर्व में सिडनी में विंड टनल में गुणवत्ता की जांच की गई थी. प्रतिमा की सुरक्षा गुणवत्ता की जांच सिडनी में की गई. इसके लिए एक मीटर का मॉडल बना कर उसे विंग टनल में टेस्टिंग किया गया था. ऊंचाई पर होने के कारण हवा के वेग और भूकंप के अधिकतम दबाव को ध्यान में रखते हुए 250 साल में आने वाले भूकंप की अधिकतम क्षमता, हवा के वेग सहित सुरक्षा को ध्यान में रखकर निर्माण किया गया है.
वाह-वाह.. क्या बात है ? ऐसा लग रहा है न तो
अब इसका दूसरा भाग पढ़िए.
आपके लिए विशेष रूप से
हिन्दुओं को धर्म शिक्षण न देने का परिणाम स्पष्ट दिख रहा है ! श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठ के वर्तमान १४५ वें श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज ने कहा है कि शास्त्रों के अनुसार, कलयुग में भगवान की मूर्ति मनुष्याकार ही होनी चाहिए ! बड़ी मूर्ति शास्त्र विरुद्ध है । यदि बड़ी मूर्ति बनाई तो प्राणप्रतिष्ठा भी करनी होगी और प्राणप्रतिष्ठा के बाद उस मूर्ति में प्राण आएंगे तो उसे भोग भी उस प्रमाण में ही लगाना होगा । यदि नहीं लगाया तो अनिष्ट भले न हो, कल्याण तो नहीं होगा । (उन्होंने तो ये कहा है कि मूर्ति स्थापित करने वालों को ही खा जाएगी) बात सच है या झूठ ? इसका निर्णय कुछ वर्षों में हो जाएगा...अभी किसी भी टिप्पणी का उत्तर देने को बाध्य नहीं हूँ... यदि कोई ज्ञानी हिन्दू यह कहता है कि यह प्रतिमा (मूर्ति नहीं) केवल सजावट के लिए लगाई है तो उन्हें बता दें कि हमारे भगवान सजावट की वस्तु नहीं हैं, जो उन्हें कथित महात्माओं की तरह चौराहों पर खड़ा कर दें ! वे पूजनीय हैं, उनका मन्दिर होना चाहिए, जिसका गर्भगृह हो और उसपर शिखर और ध्वज भी हो ! और उनका नित्य षोडशोपचार अथवा न्यूनतम पंचोपचार पूजन तो होना ही चाहिए । अब आप ही निर्णय करें कि कौनसा मत सही है🙏🙏