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बुधवार, 30 नवंबर 2011

दहेज की होली by Aditya Mandowara

.लाखों घर बरबाद हो गये इस दहेज की होली में,
अर्थी चढ़ी हज़ारों कन्या बैठ ना पाई डोली में।।
कितनो ने अपनी कन्या के पीले हाथ करने थे,
कहाँ कहाँ मस्तक टेके आती है शर्म बताने में
जिस पर बीती वही जनता शब्द नही ये कहने के,
कितनो ने बेच दिए मकान अब तक अपने रहने के
गहने,कपड़े,दुकान सभी लूट गये माँग की इस बोली में।।
क्या यही हमारा मनुष्य धर्म है यही हमारी अहिंसा प्यारी है,
लड़की वालों की गर्दन पर रखी क्यों कटारी है।
सुन लो अब ये लड़के वालों कन्या की शादी में ,
नही बढ़ेंगे हाथ तुम्हारे आगे इस बर्बादी में,mnb
आग लगे इस दानवता की बुरी प्रथा की होली में।।
लड़का कोई चीज़ नही जिसका दम लगते हो,
किसी विवश का धन हथियाकर अपनी शान बढ़ते हो,
वधू रूप में लक्ष्मी मिलती फिर धन का लालच कैसा,
संबंधों का प्रेम भाव कुलषित करता ऐसा पैसा,
कहना मेरा बुरा ना मानो,रहे ना ऐसा पैसा झोली में।।
लाखों घर बरबाद हो गये इस दहेज की होली में,
अर्थी चढ़ी हज़ारों कन्या बैठ ना पाई डोली में।।
 
by Aditya Mandowara
 
 


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