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सोमवार, 23 सितंबर 2024

कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है

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कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है 

सोना :- 
सोना एक गर्म धातु है  सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है 

चाँदी :- 
चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है ! शरीर को शांत रखती है इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है 

कांसा :- 
काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है ! लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है ! कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं 

तांबा :- 
तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है 

पीतल :- 
पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती ! पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं 

लोहा :-
लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है ! लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है ! लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है 

स्टील :- 
स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता 

एलुमिनियम :- 
एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है ! इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है ! यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए ! इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है ! उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है ! एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं 

मिट्टी :- 
मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे ! इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं ! आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए ! भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है ! दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैमिट्टी के बर्तन ! मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे 100 प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं ! और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है!

मैं आपका गाना सुनते सुनते मरना चाहता हूं..(लेखक- पं. हृदयनाथ मंगेशकर.)

*मैं आपका गाना सुनते सुनते मरना चाहता हूं...*
  *(लेखक- पं. हृदयनाथ मंगेशकर.)*
 *लता मंगेशकर* ने बांग्लादेश युद्ध में,  वास्तविक युद्ध के मैदान में लड़ रहे सैनिकों के लिए बड़े उत्साह के साथ एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इन कार्यक्रमों में उनका सहयोग उनके भाई *पंडित हृदयनाथ मंगेशकर* ने किया। वह बहुत ही रोमांचकारी और हृदय- द्रावक अनुभव था। पंडितजी ने विशेष रूप से *'सप्तरंग'* के पाठकों के लिए शब्दबद्ध किया है...

 " सभी सन्माननीय!  मुझे आपको निर्देश देने का काम सौंपा गया है.....
...इस विमान में सीटें नहीं हैं, केवल लोहे की सलाखें हैं... हमें उन पर बैठना है... सहारे के लिए एक लोहे की चेन है... उसे कसकर पकड़कर रखें... खिड़कियाँ खुली हैं... बाहर मत झाँकना... यात्रा केवल आधे घंटे की है... अंदर कोका-कोला मिलेगा...''
 इतना कहकर वह सिपाही एक तरफ चला गया। एक्टर प्लेन में चढ़ने लगे.  *सुनील दत्त, नरगिस, माला सिन्हा, दीपक शोधन, दीदी, मैं, नारायण नायडू* हर अभिनेता उस लोहे की पट्टी पर बैठा।  मैंने सामने लटकी जंजीर को कस कर पकड़ते हुए एक जवान से पूछा *''ये खिड़कियाँ खुलीं क्यों है ?''*
 *''गोलिंयां दागने के लिए।''*

 *''क्या यहां ठंडी लगती नहीं ?''*
 *''जान बचाने के लिए ठंडी लगती नहीं है,''* निर्विकार ज़वाब आया। 
      मैं चुप था।
 विमान एक खेत में उतरा। एक छोटा-सा मंच...कोई स्क्रीन नहीं। सामने पांच-सात हजार सैनिक। एक कर्कश माइक। बस्स इतना ही। 
  'कार्यक्रम शुरू करो'...

   ......कार्यक्रम शुरू हुआ.... सुनील दत्त ने निवेदन किया। नरगिस ने जवानों का शुक्रिया अदा किया। माला सिन्हा ने जवानों को बधाई दी। आगे क्या ? मनोरंजन कार्यक्रम में नायक-नायिकाओं का मंच पर आना, सैनिकों को सलाम करना, उन्हें शुभकामनाएं देना... बस इतना ही ?? ...... 
ऐसा मनोरंजन कार्यक्रम नहीं हो सकता !! जवानों के बीच हंसी-मजाक शुरू होने से पहले ही सुनील दत्त ने दीदी के नाम का ऐलान कर दिया। दीदी मंच पर आईं, देखा और छा गई.... सबका दिल जीत लिया। सैनिकों में एक नया उत्साह आया।

 *'भारत माता की जय...' 'लतादीदी जिंदाबाद...'*
 *और तालियाँ की बौछार...*

 *कोई सिख, कोई जाट-मराठा*
 *कोई गुरखा, कोई मद्रासी*
    अलग-अलग जाति-प्रांत-भाषा के वे जवान अपनी-अपनी भाषा में दीदी की जय-जयकार करने लगे।  कोई दीदी के पैरों में गिर रहा था...कोई रो रहा था...कोई फर्माइश कर रहा था...कोई गुहार लगा रहा था...संगीत की जबरदस्त ताकत का एहसास हो रहा था।  यह स्पष्ट था कि रसिक दीदी से कितना निःस्वार्थ प्रेम करता है। कोई देश, कोई शौक, कोई परिस्थिति; लेकिन संगीत के बिना कोई कार्यक्रम नहीं हो सकता। क्योंकि संगीत एक प्रत्यक्ष अनुभूति है।!! दीदी ने गाना शुरू कर दिया....
 एक बार उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दी। नायडू को चिन्हित किया और उन्होंने गाना शुरू कर दिया.  युद्ध के मैदान में यातनाओं, चीखों और गोलियों की आवाज के बजाय उस हिंसक भूमि पर एक ईश्वरीय स्वर गूंजने लगे।

 *'बरखा ऋतु'* तृषार्त भूमि पर रिमझिम मधुर सुर संगीत की बारिश होने लगी।  जिसपर  सैनिकों से वह रणभूमि पवित्र हो गयी थीं।  दीदी पूरे तन मन से हर रस के गीत गा रही थीं। बिना थके, बिना रुके। और आखिरी गाना जो उसने शुरू किया...

 *ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी*
 *जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी*
 *जब देश में थी दिवाली वो खेल रहेगी होली*
 *जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे ते गोली*
 *थे धन्य जवान वो अपने थी धन्य वो उन की जवानी*
 *जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी...*

 कार्यक्रम ख़त्म हो गया। हम मेस में आये। अगले दिन भी कार्यक्रम था। हर कोई थक गया था। आराम कर रहा था।  वही एक अधिकारी दीदी से मिलने आये।  उन्होंने दीदी को बहुत धन्यवाद दिया और अंत में कहा: “यहाँ बहुत सारे मराठी जवान हैं। उनके लिए कम से कम एक मराठी गाना गाएं...''
 दीदी ने कहा: "बहुत ख़ुशी से... मैं कल के कार्यक्रम का समापन एक मराठी गीत के साथ करूंगी।"
 अधिकारियों ने ख़ुशी से दीदी को धन्यवाद दिया।

 अगले दिन कार्यक्रम की शुरुआत एक मैदान में बने मंच से हुई।  जो कल हुआ था वो आज भी हो रहा था।
    मैंने बीच में ही दीदी से कहा, "कल आपने कहा था कि आप कार्यक्रम का समापन मराठी गीत से करेंगी";  लेकिन पसायदान जैसी प्रार्थना के साथ समापन न करें।  यह समरभूमि है.
 "मुझे यह सिखाने की ज़रूरत नहीं है।  बाबा ने (पिताजी ने) मुझे सिखाया है कि, कहां क्या गाना हैं।  सुनो, मैं क्या गाती हूँ!'' दीदी ने कहा।
 कार्यक्रम के अंत में दीदी ने जवानों से कहा, 'मैं आज का कार्यक्रम *'ऐ मेरे वतन के लोगो...'* गीत के साथ समाप्त नहीं करूंगी.  *'ऐ मेरे वतन के लोगो...'* बहुत लोकप्रिय है।  यह बहुत हृद्य और सुंदर है...लेकिन यह हार के बाद एक सांत्वना देने वाला गीत है।
जिस गीत से मैं अपनी बात समाप्त करने जा रही हूँ, वह आपने नहीं सुना होगा।  तुम्हें इसका पता भी नहीं चलेगा;  लेकिन आप उस गाने से जय ध्वनि सुन सकते हैं। पराजय का दाग मिटाकर आप उसमें जय की छवि देखेंगे.... विजय की जयघोष सुनाई देगी...''
 सभी सैनिक, अभिनेता और अधिकारी शांत हो गये।  सबके मन में एक पाल लहरा रहा था... *'ऐ मेरे वतन के लोगो...* लतादीदी एक कर्णप्रिय गीत को छोड़कर यह अनाम गीत क्यों गा रही है...सभी उत्सुकता से सुन रहे थे।  दीदी ने स्वातंत्र्य वीर सावरकर लिखीत गीत गाना शुरू कर दिया .....

    *हे हिंदुशक्तिसंभूत दिप्तितम तेजा*
*हे हिंदुतपस्यापूत ईश्वरी ओजा*
*हे हिंदुश्रीसौभाग्यभूतीच्या साजा*
*हे हिंदुनृसिहा प्रभो शिवाजी राजा*
*प्रभो शिवाजी राजा...*
 (स्वातंत्र्य वीर सावरकर) 

 कविता का एक भी शब्द किसी को समझ नहीं आया.  मैं केवल इतना जानता हूं कि यह शिवस्तुति है।  *'प्रभो शिवाजी राजा'* शब्द आया और दर्शक चिल्ला उठे *'छत्रपति'* और पूरा माहौल शिवमय हो गया।  *हिन्दुपदपदशाही...शिवाजी महाराज छत्रपति...से पूरा वातावरण भगवामय हो गया।  गर्जनापूर्ण जयकार क्रांति...गर्जनाकारी जयकारा...*

 छत्रपति शिवाजी महाराज, राणा प्रताप, भगत सिंह, मदनलाल ढींगरा, सुखदेव, सावरकर के पूरे माहौल को जयकारों से भर दिया।  "बहन!  आपको कौन सा गाना मिला!  पूरा माहौल बदल गया है। ......  कौन जानता है क्यों;  लेकिन मैं खुद को नेमस्त की तुलना में क्रांतिकारियों के अधिक करीब महसूस कर रहा हूं..."
 ...दीदी! हम मुंबई में आपका भव्य स्वागत करेंगे। आपने बांग्लादेश में जवानों के लिए बीस दिनों में बाईस कार्यक्रम किये।  हम सैनिकों की ओर से आपको धन्यवाद देते हैं।'  अनुरोध है, 'सभी घायल जवान यहां 'अश्विनी अस्पताल' में हैं। इनमें जाधव नाम के एक जवान की हालत बेहद गंभीर है। वह तुम्हें लगातार याद करता है।  आपसे मिलने के लिए उसकी जान अटकीं है। मैं आपसे 'अश्विनी अस्पताल' आने की विनंती करता हूं।

   अगले दिन दीदी हॉस्पिटल गयी। वह बहुत उदास दुःखी थी। डर गयी थी।
 *''बाळ, अगर वह युवक मेरे सामने मर जाए तो क्या होगा?  मेरे दिल को बहुत बूरा लगेगा...''*
 हर घायल जवान से बात करतीं, सांत्वना देतीं, कभी हिम्मत देतीं, दीदी जाधव नाम के उस जवान के पास पहुंचीं।  वह युवक सचमुच जवान था. उनका शरीर सफेद कपड़े से ढका हुआ था.  वह दीदी की ओर देखकर मन ही मन मुस्कुराया।
 *''दीदी, मैं अब बचुंगा नहीं, मेरी एक ही अंतिम इच्छा है कि, मैं आपका गाना सुनते-सुनते मर जाऊं...!* क्या आप मेरे लिए गा सकती हैं?''
 मैंने सोचा, दीदी अब तनाव से गिर जायेगी; लेकिन दीदी ने स्थितप्रज्ञा की तरह कहा: "तुम कौन सा गाना सुनना चाहते हो...?"

 वह मुस्कुराया *आ जा..रेऽऽपरदेशी ऽऽ*
 दीदी ने गाना शुरू कर दिया.  वह इतनी सहजता से गा रही थी कि यह रिहर्सल जैसा लग रहा था।

 *मैं तो कब से खड़ी उस पार*
 *के अखियाँ थक गई पंथ निहार*
 *आ जा ... रे ऽऽ परदेशी ऽऽ*

 और आश्चर्य...दीदी और सभी श्रोता इस अवसर को भूलकर गीत के साथ एकाकार हो गये। तभी डॉक्टर ने दीदी को रोक लिया.

 *सब कुछ ख़त्म हो गया था. घायल जवान सभी यातनाओं से मुक्त होकर 'उस पार' चला गया था। दीदी चुप और बहुत भावुक थी और वह मेरा हाथ पकड़कर चल रही थी...* ...
🇮🇳 जय हिन्द। वंदे मातरम् 🙏🇮🇳

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