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रविवार, 1 अक्टूबर 2023

धीमा जहर कैसे घोला जाता है ये बॉलीवुड वाले अच्छे से जानते हैं, - मिशन मंगल, फ़िल्म

आपको पता है अभी कुछ साल पहले 2019 में अक्षय कुमार अभिनीत एक फ़िल्म रिलीज हुई थी, नाम था मिशन मंगल, फ़िल्म ने चारों और वाहवाही बटोरी थी चूंकि फ़िल्म रियल टाइम स्टोरी पर आधारित थी तो सभी को पसंद आई थी। सारे दृश्य पर्दे पर हूबहू उतारे गए थे और फ़िल्म देखते हुए लगता था कि आप भी मंगल मिशन की टीम का हिस्सा बन गए हो।

मुझे भी फ़िल्म बहुत पसंद आई, पर आपको याद होगा फ़िल्म में एक दृश्य दिखाया गया था जिसमें एक महिला साइंटिस्ट जिसका नाम नेहा सिद्दीकी है एक दीनी महिला है और उसे रहने के लिए घर ढूंढने में बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ी थी।

जहाँ भी वह किराये पर घर देखने जाती वही उसका धर्म पता चलते ही मना कर दिया जाता। बड़ा ही इमोशनल हो गया था मैं, की इतनी खूबसूरत और टेलेंटेड वैज्ञानिक को लोगों ने घर देने से मना कर दिया, मैं शॉक्ड था। अगर आपने मूवी देखी है तो आप भी शॉक्ड हो गए होंगे और गुस्सा भी आया होगा, आना भी चाहिए । बताइये एक वैज्ञानिक जो दिन रात देश के लिए खून पसीना एक कर रहे हैं उनके लिए हमारे देश में इतना भेदभाव होता है, कितनी ओछी मानसकिता है यह, है ना?

बस यही सब दिमाग में चल रहा था...खैर घर आ कर इंटरनेट खोला और ISRO के बारे में खोज करना शुरू किया तो पता चला कि इसरो अपने सभी वैज्ञानिकों और इंजीनीयरों को अपार्टमेंट्स देता है, अब ये पता चला तो दिमाग घूमा कि अगर इसरो अपार्टमेंट दे रहा है तो किराये पर घर कोई क्यों लेगा?

तब मैंने नेहा सिद्दीकी को गूगल पर ढूंढा तो कहीं दिखी ही नहीं, इसके बाद मंगल मिशन की पूरी टीम चेक करने लगा कि देखें तो सही कि अपने रियल हीरो वास्तव में दिखते कैसे हैं।

मैंने पूरी टीम के एक एक मेंबर के नाम खंगाल लिए पर मुझे नेहा सिद्दीकी नाम की कोई वैज्ञानिक, या इंजीनियर तो छोड़िए कोई टेक्नीशियन भी नहीं मिली।

शॉक्ड लगा न? मुझे भी यह देखने के बाद 440 वोल्ट का झटका लगा था कि पूरी टीम में एक भी मुस्लिम महिला या पुरुष नहीं था पर बावजूद इसके फ़िल्म के मेकर्स ने अभिव्यक्ति की आजादी या मौलिक स्वतंत्रता के नाम पर यह कहानी प्लॉट की, जिसमें दिखाया गया कि भारत में कैसे एक मुस्लिम महिला को कोई अपना घर किराये पर नहीं देता, चाहे वह महिला इसरो की कोई वैज्ञानिक ही क्यों न हो।

और फ़िल्म के पोस्टर पर वही महिला को दिखा कर लिखा गया कि "Science Has No Religion"

जी हाँ धीमा जहर कैसे घोला जाता है ये बॉलीवुड वाले अच्छे से जानते हैं, मैंने तो यह crosscheck कर लिया पर कितने लोग ऐसा करते होंगे?


सुपर डुपर हिट होने वाले, हकले की इस मूवी के टिकट अब ऑफिसियली फ्री में बांटने की नौबत आ गयी है।

 

अखिल ब्रम्हांड में सुपर डुपर हिट होने वाले, हकले की इस मूवी के टिकट अब ऑफिसियली फ्री में बांटने की नौबत आ गयी है।

आओ हकले के नाजायज पूतों…गालियां बकना शुरू करो…

डिस्क्लेमर; जो भी इस पोस्ट पे गालियां देगा, वो हकले के हु लाला के द्वारा उत्पन्न माना जायेगा

अपना काम जब इस मूर्तिकार की तरह हम करने लगेंगे तब हमें अपने काम का पूरा समाधान मिलेगा।

 

एक मूर्तिकार एक मूर्ति बना रहा था।

इस पत्थरनवीस को सारा शहर लहरी कहता। दिल मे आए तो एक मूर्ति बनाने मे महीनों लगा दे। और दिल करे तो किसी रईस को दो टूक जवाब दे कर चलता कर दे। पर उसकी कलाकारी की तूती बोलती थी पूरे पंचकोसी में।

भगवान की मूर्तियां बनाने मे उसका हाथ कोई नहीं पकड़ सकता था। कृष्ण भगवन तो ऐसे गढ़ता की देख के लगे अभी बोल फूटेंगे बासुरी से। भाव विभोर कृष्णा और उनके गीत सुनती गैया की मूर्ति तो राजा के मन में बस गई थी।

तो एक निहायत ही रईसजादा अपनी अमीरी का रौब झाडने के लिए एक सुन्दर अप्सरा की मूर्ति अपने घर कर बरामदे मे रखना चाहता था। ऐसी सुन्दर हो कि उसकी झुकी पलके उठे और बेसुध अपने ओर रुख कर दे। हल्की हल्की मुस्कान बिखरते उसके होंठ थरथराते हुए अपना नाम ही पुकार ले।

अब इस बला की पेचीदगी भरी मांग को कोई पूरा कर सकता तो वो ये ही मूर्तिकार। तो इस खरीददार ने इसके काम करने की जगह की ओर रुख कर लिया।

खरीददार वहां आया तो उसने देखा जो मूर्ति मूर्तिकार बना रहा था वैसी ही मूर्ति उसको चाहिए थी। एक दीवान पर औंधे मुह सो रही एक अप्सरा। बोझल सी आंखे। ना जाने क्या सपना देख रही है। कपड़ों की बारीकी और एक झिरझिरा सा वस्त्र जिससे उसका आधा मुँह ढका। कपड़ों की सिलवटें ऐसी जीवंत के लगे शरीर का नज़ारा अभी आखों के सामने आ जाये। चूडी की खनखनाहट शायद सुनाई दे जाए और उस बेसुध पडी अप्सरा के मुँह से कहीं अपना ही नाम ना निकल जाए।

उस खरीददार का दिल उस मूर्ति पर आ गया। चाहे जो कीमत हो। "कितने के है ये मूर्ति?" गुरूर भरी आवाज मे उस खरीददार ने मूर्तिकार से पूछा।

उस मूर्तिकार ने उसके ओर हिकारत भरी नजरो से देखा। शायद ऐसा अहमकाना अंदाज उसे पसंद नहीं आया। उसने कुछ भी नहीं कहा और अपने काम मे लग गया। इस फटीचर मूर्तिकार के सामने कुछ पैसे फेंक दु तो इसकी सारी अकड़ निकल जाएगी। परसों बड़े सर सेठ आने वाले है हवेली पर। उनके सामने ये मूर्ति आ जाए तो अपनी शान कई गुना बढ़ जाए।

उस खरीददार ने फिर से पूछा। मूर्तिकार ने कुछ समय जाने के बाद बेमन से कहा, ये बिकाऊ नहीं। इस मूर्ति को सीढियों पर लगवाना है।

पर ये तो मेरे आलिशान हवेली की शोभा बढ़ाएगी, खरीददार ने मन ही मन सोचा। उससे कुछ कहता उससे पहले उस मूर्तिकार ने उसे अंदर जाने को कहा, आपको जल्दी है तो कुछ अंदर से पसंद कर लीजिए।

मन मसोस कर वो खरीददार अंदर गया। चारो तरफ कुछ अपनी पसंद का मिल जाए जो इस मूर्ति से भी सुन्दर हो। अचानक उसकी नजर एक कोने मे गई।

जो मूर्ति उसने बाहर देखी वैसी ही एक मूर्ति अन्दर रखी हुई थी। वैसे ही नाक नक्श, वो ही मादक नजरे और वैसा ही अंदाज।

खरीददार बाहर आया। उसने दोनों मूर्तियों की तुलना फिर से की। रत्ती भर भी फर्क़ नहीं था। उसने अंदाजा लगाया, फिर उससे पूछा, "तुम एक जैसी ही मूर्ति क्यों बना रहे हो?"

मूर्तिकार ने कहा, "उस मूर्ति मे एक दोष रह गया है इसलिए वैसी ही और एक मूर्ति बना रहा हू।"

खरीददार ने उस पहली मूर्ति को ध्यान से देख कर कहा, "मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा।"

मूर्तिकार ने कहा, "उस मूर्ति के कान के पीछे एक कपची उड़ गई है।"

वो खरीददार अंदर गया। उसने उस मूर्ति को ध्यान से देखा, कान के पीछे हाथ लगा कर परीक्षण करने के बाद जरा सा उबड खाबड हिस्सा था तो सही। मूर्ति को सामने से देखने पर वो नजर नहीं आ रहा था।

खरीददार हंसा और उसने कहा, "किसी को भी पता नहीं लगेगा।"

मूर्तिकार ने उसकी ओर देखा और कहा, "मुझे तो पता है ना।"

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अपना काम जब इस मूर्तिकार की तरह हम करने लगेंगे तब हमें अपने काम का पूरा समाधान मिलेगा।

अपने काम को पूरा 100% दे। किसी दूसरे को नहीं, अपने आप को लगना चाहिए हां, अब पूरा हुआ है ये काम। तभी आएगा वो असली हास्य।

जीवन ऐसे जिए बंधू।

यदि किसी दिन आपको उनकी सुबह की शुभकामनाएँ या साझा लेख नहीं मिलते हैं, तो हो सकता है कि वे अस्वस्थ हों या उन्हें कुछ हो गया हो।


🌹🌹 *एक अखबार वितरक का दिल छू लेने वाला किस्सा।* 
🌹🌹
  *जिन घरों में मैंने अखबार वितरित करता था, एक दिन उनमें से एक का मेलबॉक्स (घर के बाहर लगा वह बक्सा जिसमें चिठ्ठी- पत्री और अखबार डाला जाता है) का द्वार अवरुद्ध मिला, अतः मैंने उस घर का दरवाजा खटखटाया।* 
      *"कौन है?" अंदर से एक काँपती और थकी आवाज आई।* 
      *"मैं अखबार वाला" मैंने जोर से कहा।* 
        *अस्थिर और कांपते कदमों वाले एक बुजुर्ग व्यक्ति ने धीरे से दरवाजा खोला। मेरे सामने एक दुर्बल काया धारी, द्विज विहीन, सूनी आँखों वाले, नग्न वक्ष वृद्ध खड़े थे।*


      *मैंने पूछा, "सर, मेलबॉक्स का प्रवेश द्वार क्यों बंद कर रखा है?"* 
      *उन्होंने जवाब दिया, "मैंने जानबूझकर इसे ब्लॉक किया है।"* 
      *वो मुस्कुराये और बोले, "मैं चाहता हूं कि आप हर दिन ही मुझे अखबार दें। परन्तु कृपया दरवाजा खटखटाकर या घंटी बजाकर और मुझे व्यक्तिगत रूप से वह हाथों में दें।"* 
       *मैं हैरान हो गया और जवाब दिया, "अवश्य, लेकिन क्या यह हम दोनों के लिए असुविधा और समय की बर्बादी नहीं लगती? इससे मेरा समय नष्ट होगा।"* 
     *उन्होंने कहा, "यह ठीक है, इसके लिए मैं तुम्हें हर महीने ₹500 अतिरिक्त दूंगा।"* 
       *फ़िर भारी किन्तु विनती भरी अभिव्यक्ति के साथ हाथ जोड़कर उन्होंने कहा, "अगर कभी ऐसा दिन आए जब आप दरवाज़ा खटखटायें और मैं द्वार नहीं खोल सकूँ, तो कृपया पुलिस को तत्काल अवश्य बुलाएँ!"* 
        *मैं चौंक गया और पूछा, "क्यों?"* 
       *उन्होंने उत्तर दिया, "मेरी पत्नी का निधन हो गया, मेरा बेटा विदेश में है, और मैं यहाँ अकेला रहता हूँ, कौन जानता है कि मेरा अंतिम समय कब आ जाए?"* 
       *उस पल, मैंने उस वृद्ध आदमी की धुंधली आँखों में कुछ नमी देखीं। जो शायद जीवन के कठीन संघर्ष के बाद की बेबसी दर्शा रही थी।* 
     *उन्होंने आगे कहा, "मैंने कभी भी अखबार नहीं पढ़ा, मैं तो सिर्फ खटखटाने या दरवाजे की घंटी बजने की आवाज सुनने के लिए ही इसकी सदस्यता लेता हूं। एक परिचित चेहरा देखने और कुछ शब्दों और खुशियों का आदान-प्रदान करने के लिए!"* 
     *फिर उन्होंने काँपते हुए हाथ जोड़कर कहा, "बेटा, कृपया मुझ पर एक एहसान और करो! यह मेरे बेटे का विदेशी फोन नंबर है। यदि किसी दिन तुम दरवाजा खटखटाओ और मैं जवाब न दूँ, तो कृपया मेरे बेटे को फोन करके सूचित कर देना"। इतना कहने के बाद उनके काँपते दोनों हाथ एक साथ उठे और मेरी ओर जुड़ गए, फिर वे धीरे धीरे पलटे और शून्य की ओर देखते हुए भारी कदमों से अपने वर्षों पुराने बिस्तर की ओर चल पड़े।* 
      *मैं उन वृद्ध की उस नंगी पीठ को अपने से दूर जाते हुए एकटक देख रहा था, जो अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर, एक क़ाबिल व्यक्ति बना कर उसके जीवन में खुशियाँ भरने के लिए किये गए संघर्ष के बोझ से झुक गयी थी।* 
      *हो सकता है, इसे पढ़ने के बाद आपकी आँखों में आँसू आ गये हों। परन्तु शहरी जीवन की यही सच्चाई है।* 
       *इसे पढ़ने के बाद, मुझे विश्वास है कि हमारे आस पास, दोस्तों के समूह में बहुत सारे अकेले बुजुर्ग हों। समय समय पर उनकी कुशल क्षेम लेते रहें।* 
       *कभी-कभी, आपको आश्चर्य हो सकता है कि वे बुढ़ापे में भी व्हाट्सएप पर संदेश क्यों भेजते हैं ? जैसे वे अभी भी काम कर रहे हैं।* 
      *वास्तव में, सुबह-शाम के इन अभिवादनों का महत्व दरवाजे पर दस्तक देने या घंटी बजाने के अर्थ के समान ही है; यह एक- दूसरे की सुरक्षा की कामना करने और देखभाल व्यक्त करने का एक तरीका है।*


     *आजकल, व्हाट्सएप बहुत सुविधाजनक है, और हमें अब समाचार पत्रों की सदस्यता लेने की आवश्यकता नहीं है।* 
     *यदि आपके पास समय है तो अपने परिवार, पड़ोस तथा परिचित बुजुर्ग सदस्यों को व्हाट्सएप चलाना अवश्य सिखाएं!* 
        *यदि किसी दिन आपको उनकी सुबह की शुभकामनाएँ या साझा लेख नहीं मिलते हैं, तो हो सकता है कि वे अस्वस्थ हों या उन्हें कुछ हो गया हो।* 
      *मैं एक-दूसरे के लिए हमारे व्हाट्सएप संदेशों के महत्व को गहराई से समझता हूं::* 
    *सबका मंगल हो, आप अपना, अपने परिवार, मित्रों, परिचितों ओर पडोसियों का ध्यान रखें।* 
जय श्री राम
श्री शिवाय नमस्तुभ्यम





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