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शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

द्रौपदी के ऐसे कौनसे राज हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं?


द्रौपदी के ऐसे कौनसे राज हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं?

कितना अविश्वसनीय लगता है सीता,द्रौपदी,मकरध्वज आदि लोगों के जन्म की प्रक्रिया प्राकृतिक न होकर क्रमशः धरती,अग्नि और मछली के माध्यम से हुई थी,जो बिल्कुल भी वैज्ञानिक और वास्तविक नहीं प्रतीत होता।

द्रौपदी तो एक युवा कन्या के रूप में आग्निवेदी से प्रकट हुई थी,जो अति विचित्र जान पड़ता है।


कहा जाता है कि द्रुपद ने द्रौपदी को कुरु वंश के नाश के लिए उत्पन्न करवाया था।राजा द्रुपद द्रोणाचार्य को आश्रय देने वाले कुरु वंश से बदला लेना चाहते थे।

जब पांडव और कौरवों ने अपनी शिक्षा पूरी की थी तो द्रोणाचार्य ने उनसे एक गुरुदक्षिणा मांगी।द्रोणाचार्य ने वर्षो पूर्व द्रुपद से हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए पांडवो और कौरवों से कहा कि पांचाल नरेश द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे समक्ष लाओ।[1]


पहले कौरवों ने आक्रमण किया परन्तु वो हारने लगे।यह देख पांडवो ने आक्रमण किया और द्रुपद को बंदी बना लिया।द्रोणाचार्य ने द्रुपद का आधा राज्य ले लिया और आधा उन्हें वापस करके छोड़ दिया।द्रुपद ने इस अपमान और राज्य के विभाजन का बदला लेने के लिए ही वह अद्भुत यज्ञ करवाया,जिससे द्रौपदी और धृष्टद्युम्न पैदा हुए थे।[2]

द्रौपदी के कौमार्य का राजः
संस्कृत का श्लोक है :

अहिल्या,द्रौपदी,सीता,तारा,मंदोदरी तथा
पंचेतानि स्मरेनित्यम्,महापातक् नाशनम्।

इस श्लोक का अर्थ है:अहल्या,द्रौपदी,सीता,तारा,मंदोदरी इन पञ्चकन्या के गुण और जीवन नित्य स्मरण और जाप करने से महापापों का नाश होता है।द्रौपदी को पंचकन्या में एक माना जाता है।पंचकन्या यानि ऐसी पांच स्त्रियाँ जिन्हें कन्या अर्थात कुंवारी होने का आशीर्वाद प्राप्त था।पंचकन्या अपनी इच्छा से कौमार्य पुनः प्राप्त कर सकती थीं.द्रौपदी को यह आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ ?।[3]

ये सभी को पता है कि द्रौपदी के 5 पति थे,लेकिन वह अधिकतम 14 पतियों की पत्नी भी बन सकती थी।द्रौपदी के 5 पति होना नियति ने काफी समयपूर्व ही निर्धारित कर दिया था।इसका कारण द्रौपदी के पूर्वजन्म में छिपा था,जिसे भगवान कृष्ण ने सबको बताया था।

पूर्वजन्म में द्रौपदी राजा नल और उनकी पत्नी दमयंती की पुत्री थीं।उस जन्म में द्रौपदी का नाम नलयनी था।नलयनी ने भगवान शिव से आशीर्वाद पाने के लिए कड़ी तपस्या की।भगवान शिव जब प्रसन्न होकर प्रकट हुए तो नलयनी ने उनसे आशीर्वाद माँगा कि अगले जन्म में उसे 14 इच्छित गुणों वाला पति मिले।[4]

यद्यपि भगवान शिव नलयनी की तपस्या से प्रसन्न थे,परन्तु उन्होंने उसे समझाया कि इन 14 गुणों का एक व्यक्ति में होना असंभव है।किन्तु जब नलयनी अपनी जिद पर अड़ी रही तो भगवान शिव ने उसकी इच्छा पूर्ण होने का आशीर्वाद दे दिया। इस अनूठे आशीर्वाद में अधिकतम 14 पति होना और प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद पुनः कुंवारी होना भी शामिल था।इस प्रकार द्रौपदी भी पंचकन्या में एक बन गयीं।

नलयनी का पुनर्जन्म द्रौपदी के रूप में हुआ।द्रौपदी के इच्छित 14 गुण पांचो पांडवों में थे।युधिष्ठिर धर्म के ज्ञानी थे।
भीम 1000 हाथियों की शक्ति से पूर्ण थे।
अर्जुन अद्भुत योद्धा और वीर पुरुष थे।
सहदेव उत्कृष्ट ज्ञानी थे।
नकुल कामदेव के समान सुन्दर थे।

द्रौपदी के पुत्रों के नाम

पांचो पांडवों से द्रौपदी के 5 पुत्र हुए थे।युधिष्ठिर से हुए पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य,भीम से सुतसोम,अर्जुन से श्रुतकर्म,नकुल से शतनिक,सहदेव से श्रुतसेन नामक पुत्र हुए।ये सभी पुत्र अश्वत्थामा के हाथों सोते समय मारे गए. द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न तथा शिखंडी का वध भी अश्वत्थामा ने ही किया था.

द्रौपदी की पूजा

दक्षिण भारत के कुछ राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक में द्रौपदी की पूजा होती है और 400 से अधिक द्रौपदी के मंदिर भी हैं।इसके अतिरिक्त श्रीलंका, मलेशिया, मॉरिशस, साउथ अफ्रीका में भी द्रौपदी के भक्त हैं।ये लोग द्रौपदी को माँ काली का अवतार मानते हैं और उन्हें द्रौपदी अम्मन कहते हैं


द्रौपदी अम्मन की ग्राम देवी के रूप में पूजा होती है. इनसे जुडी कई मान्यताएं और कहानियाँ हैं।मुख्यतः वन्नियार जाति के लोग द्रौपदी अम्मन पूजक होते हैं।चित्तूर जिले के दुर्गासमुद्रम गाँव में द्रौपदी अम्मन का सालाना त्यौहार मनाया जाता है,जोकि काफी प्रसिद्ध है।

द्रौपदी से सबसे अधिक प्रेम कौन करता था

पांचों पांडवों में द्रौपदी सबसे अधिक प्रेम अर्जुन से करती थीं।अर्जुन ही द्रौपदी को स्वयंवर में जीत कर लाये थे,परन्तु द्रौपदी से पांडवों में सर्वाधिक प्रेम करने वाले महाबली भीम थे।अर्जुन जोकि द्रौपदी को जीत कर लाये थे,इस बात से बहुत प्रसन्न नहीं थे कि द्रौपदी पांचो भाइयों को मिले।अपनी अन्य पत्नी सुभद्रा पर एकाधिकार से अर्जुन को शांति मिलती थी।

इस बात से द्रौपदी को कष्ट होता था कि अर्जुन अपनी अन्य पत्नियों सुभद्रा,उलूपी,चित्रांगदा से प्रेमव्यवहार में व्यस्त रहते थे। युधिष्ठिर और द्रौपदी का सम्बन्ध धर्म से था।नकुल सहदेव सबसे छोटे थे,अतः उन्हें बाकी भाइयों का अनुसरण करना होता था।इन सबके बीच भीम ऐसे व्यक्ति थे,जो कि द्रौपदी से बहुत प्रेम करते थे,जिसे उन्होंने कई प्रकार से प्रदर्शित भी किया।

द्रौपदी चीर हरण के समय दो कौरव ऐसे भी थे,जिन्होंने इसका विरोध किया था।युयुत्सु और विकर्ण नामक दो कौरव भाइयों ने सभा में द्रौपदी की प्रार्थना का समर्थन किया था।युयुत्सु सबसे बुद्धिमान कौरव माने जाते थे।वे मन ही मन पांडवों और द्रौपदी से प्रभावित थे।बाद में महाभारत युद्ध के समय उन्होंने कौरवों का साथ छोड़कर पांडवों की तरफ से युद्ध किया था।[5]


कितनी अजीब बात है कि उस युग में एक दूसरे से प्रतिशोध लेने के लोग कठिन तपस्या और यज्ञ करते थे किन्तु देवी देवताओं से यह नहीं माँगते थे……
..कि वे उनको तंग करने वाले विकार काम,क्रोध,लोभ,मोह और अहंकार ही नाश कर दें कि "न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी।"
इतने सारे लोगों का अपनत्व पाकर,पंचकन्या बनकर पूजित होने पर भी द्रौपदी चीरहरण जैसे अपमान का शिकार हुई।
काश,इसके बजाय उसको अपनी रक्षा स्वयं करने की शक्ति प्राप्त हुई होती..,तो वह वह नारीशक्ति की प्रेरणा के रूप में सबके हृदयों में स्थापित हो गई होती।
महाभारत के बहुत से पात्रों के विचित्र राज थे जिनमें द्रौपदी सबसे रहस्यमयी थी।

शकुनि के पासे तो निर्जीव थे,द्रौपदी महाभारत का जीवंत पासा थी,जिसका जन्म ही कुरू वंश के नाश के लिए दाँव पर लगने के लिए हुआ था।अधर्म के नाश के लिए बहुत से लोगों को अपनी बलि देनी पडती है।द्रौपदी भी उन में से एक थी।

यही विधि का विधान था!

चित्र स्त्रोतः

YouTube

आंशिक स्त्रोतः

द्रौपदी के 5 अद्भुत रहस्य | Draupadi story in hindi | ShabdBeej

फुटनोट
[1]
http://कहा जाता है कि द्रुपद ने द्रौपदी को कुरु वंश के नाश के लिए उत्पन्न करवाया था।राजा द्रुपद द्रोणाचार्य को आश्रय देने वाले कुरु वंश से बदला लेना चाहते थे। जब पांडव और कौरवों ने अपनी शिक्षा पूरी की थी तो द्रोणाचार्य ने उनसे एक गुरुदक्षिणा मांगी।द्रोणाचार्य ने वर्षो पूर्व द्रुपद से हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए पांडवो और कौरवों से कहा कि पांचाल नरेश द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे समक्ष लाओ। .
[2]
http://.पहले कौरवों ने आक्रमण किया परन्तु वो हारने लगे।यह देख पांडवो ने आक्रमण किया और द्रुपद को बंदी बना लिया।द्रोणाचार्य ने द्रुपद का आधा राज्य ले लिया और आधा उन्हें वापस करके छोड़ दिया।द्रुपद ने इस अपमान और राज्य के विभाजन का बदला लेने के लिए ही वह अद्भुत यज्ञ करवाया,जिससे द्रौपदी और धृष्टद्युम्न पैदा हुए थे।
[3]
http://.द्रौपदी के कौमार्य का राजः संस्कृत का श्लोक है : अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा। पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥ इस श्लोक का अर्थ है:अहल्या,द्रौपदी,सीता,तारा,मंदोदरी इन पञ्चकन्या के गुण और जीवन नित्य स्मरण और जाप करने से महापापों का नाश होता है। द्रौपदी को पंचकन्या में एक माना जाता है।पंचकन्या यानि ऐसी पांच स्त्रियाँ जिन्हें कन्या अर्थात कुंवारी होने का आशीर्वाद प्राप्त था।पंचकन्या अपनी इच्छा से कौमार्य पुनः प्राप्त कर सकती थीं.द्रौपदी को यह आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ ?
[4]
http://.द्रौपदी के कौमार्य का राजः संस्कृत का श्लोक है : अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा। पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥ इस श्लोक का अर्थ है:अहल्या,द्रौपदी,सीता,तारा,मंदोदरी इन पञ्चकन्या के गुण और जीवन नित्य स्मरण और जाप करने से महापापों का नाश होता है। द्रौपदी को पंचकन्या में एक माना जाता है।पंचकन्या यानि ऐसी पांच स्त्रियाँ जिन्हें कन्या अर्थात कुंवारी होने का आशीर्वाद प्राप्त था।पंचकन्या अपनी इच्छा से कौमार्य पुनः प्राप्त कर सकती थीं.द्रौपदी को यह आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ ?
[5]
http://.यद्यपि भगवान शिव नलयनी की तपस्या से प्रसन्न थे,परन्तु उन्होंने उसे समझाया कि इन 14 गुणों का एक व्यक्ति में होना असंभव है।किन्तु जब नलयनी अपनी जिद पर अड़ी रही तो भगवान शिव ने उसकी इच्छा पूर्ण होने का आशीर्वाद दे दिया। इस अनूठे आशीर्वाद में अधिकतम 14 पति होना और प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद पुनः कुंवारी होना भी शामिल था।इस प्रकार द्रौपदी भी पंचकन्या में एक बन गयीं। नलयनी का पुनर्जन्म द्रौपदी के रूप में हुआ।द्रौपदी के इच्छित 14 गुण पांचो पांडवों में थे। युधिष्ठिर धर्म के ज्ञानी थे। भीम 1000 हाथियों की शक्ति से पूर्ण थे। अर्जुन अद्भुत योद्धा और वीर पुरुष थे। सहदेव उत्कृष्ट ज्ञानी थे। नकुल कामदेव के समान सुन्दर थे। द्रौपदी के पुत्रों के नाम पांचो पांडवों से द्रौपदी के 5 पुत्र हुए थे।युधिष्ठिर से हुए पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य,भीम से सुतसोम,अर्जुन से श्रुतकर्म,नकुल से शतनिक,सहदेव से श्रुतसेन नामक पुत्र हुए।ये सभी पुत्र अश्वत्थामा के हाथों सोते समय मारे गए. द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न का वध भी अश्वत्थामा ने ही किया था. द्रौपदी की पूजा दक्षिण भारत के कुछ राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक में द्रौपदी की पूजा होती है और 400 से अधिक द्रौपदी के मंदिर भी हैं।इसके अतिरिक्त श्रीलंका, मलेशिया, मॉरिशस, साउथ अफ्रीका में भी द्रौपदी के भक्त हैं।ये लोग द्रौपदी को माँ काली का अवतार मानते हैं और उन्हें द्रौपदी अम्मन कहते हैं  द्रौपदी अम्मन की ग्राम देवी के रूप में पूजा होती है. इनसे जुडी कई मान्यताएं और कहानियाँ हैं।मुख्यतः वन्नियार जाति के लोग द्रौपदी अम्मन पूजक होते हैं।चित्तूर जिले के दुर्गासमुद्रम गाँव में द्रौपदी अम्मन का सालाना त्यौहार मनाया जाता है,जोकि काफी प्रसिद्ध है। द्रौपदी से सबसे अधिक प्रेम कौन करता था पांचों पांडवों में द्रौपदी सबसे अधिक प्रेम अर्जुन से करती थीं।अर्जुन ही द्रौपदी को स्वयंवर में जीत कर लाये थे,परन्तु द्रौपदी से पांडवों में सर्वाधिक प्रेम करने वाले महाबली भीम थे।अर्जुन जोकि द्रौपदी को जीत कर लाये थे,इस बात से बहुत प्रसन्न नहीं थे कि द्रौपदी पांचो भाइयों को मिले।अपनी अन्य पत्नी सुभद्रा पर एकाधिकार से अर्जुन को शांति मिलती थी। इस बात से द्रौपदी को कष्ट होता था कि अर्जुन अपनी अन्य पत्नियों सुभद्रा,उलूपी,चित्रांगदा से प्रेमव्यवहार में व्यस्त रहते थे। युधिष्ठिर और द्रौपदी का सम्बन्ध धर्म से था।नकुल सहदेव सबसे छोटे थे,अतः उन्हें बाकी भाइयों का अनुसरण करना होता था।इन सबके बीच भीम ऐसे व्यक्ति थे,जो कि द्रौपदी से बहुत प्रेम करते थे,जिसे उन्होंने कई प्रकार से प्रदर्शित भी किया। महाभारत युद्ध के 14वें दिन भीम ने ही चीरहरण करने वाले दुःशासन का वध कर उसके सीने का रक्त द्रौपदी को केश धोने के लिए दिया।इसके बाद ही द्रौपदी ने पुनः अपने केश बांधे। द्रौपदी चीर हरण के समय दो कौरव ऐसे भी थे,जिन्होंने इसका विरोध किया था।युयुत्सु और विकर्ण नामक दो कौरव भाइयों ने सभा में द्रौपदी की प्रार्थना का समर्थन किया था।युयुत्सु सबसे बुद्धिमान कौरव माने जाते थे।वे मन ही मन पांडवों और द्रौपदी से प्रभावित थे।बाद में महाभारत युद्ध के समय उन्होंने कौरवों का साथ छोड़कर पांडवों की तरफ से युद्ध किया था।

बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री प्रवीण बॉबी की बंद कमरे में दर्दनाक तरीके से हुयी मौत का रहस्य क्या आप जानते हैं?


हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत और बोल्ड ऐक्ट्रेसेस में से एक और टाइम मैगजीन पर फीचर होने वालीं पहली बॉलिवुड ऐक्ट्रेस परवीन बॉबी की जिंदगी के राज इतने दर्दनाक हैं, जो शायद ही आप जानते हों।

प्रवीण बॉबी ने देखते ही देखते ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाली और हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत और बोल्ड ऐक्ट्रेसेस में वो शुमार हो गई। परवीन बॉबी ने करीब दो दशकों तक हिंदी सिनेमा पर राज किया

टाइम मैगजीन पर नजर आने वालीं पहली हिरोइन

बॉलीवूड मे डेब्यू के 2-3 साल के अंदर ही उन्होंने इतनी ख्याति पा ली कि वह टाइम मैगजीन के कवर पर फीचर हुईं। टाइम मैगजीन के कवर पर नजर आने वाली वह बॉलिवुड की पहली स्टार रहीं। परवीन बॉबी का स्टारडम और जादू हर निर्माता-निर्देशक से लेकर हर हीरो के सिर चढ़कर बोल रहा था। अब हर कोई उनके साथ काम करने कि इच्छा रखता था।

हर टॉप हीरो के साथ काम

परवीन एक ऐसी ऐक्ट्रेस रहीं, जिन्होंने अमिताभ के अलावा उस वक्त के सभी लीड हीरो जैसे कि शशि कपूर, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना और ऋषि कपूर और फिरोज खान के साथ काम किया।

बिना बताए गायब हो गईं परवीन बॉबी

80 के दशक तक सबकुछ ठीक चल रहा था। लेकिन 1983 में परवीन को न जाने क्या हुआ कि वह किसी को बताए बिना ही फिल्मों और इंडस्ट्री की चकाचौंध से गायब हो गईं। किसी को भी पता नहीं था कि परवीन आखिर अचानक क्यों और कहां चली गईं? उनकी कई फिल्में उनकी अनुपस्थिति में ही रिलीज की गईं।

अध्यात्म के चक्कर मे छोडी फिल्म इंडस्ट्री

बाद में पता चला कि परवीन बॉबी ने 1983 में ही भारत छोड़ दिया और आध्यात्म की तलाश में अपने दोस्तों के साथ अमेरिका चली गईं। उस वक्त परवीन बॉबी का करियर ऊंचाइयों पर था। इस दौरान उन्होंने कई देशों की यात्रा की। 1984 में जब परवीन को न्यू यॉर्क के एक एयरपोर्ट पर रोका गया तो उस वक्त उनका बर्ताव बदला-बदला सा महसूस हुआ। कुछ पहचान पत्र न दिखा पाने की वजह से परवीन बॉबी को कई दिनों तक मानसिक रूप से बीमार लोगों के साथ एक अस्पताल में रखा गया था।

1989 में मुंबई वापसी और मानसिक भीमारी

1989 में परवीन वापस मुंबई आ गईं। लेकिन तब तक वह पूरी तरह से बदल चुकी थीं। उनका वजन काफी बढ़ गया था और वह पहले के मुकाबले मोटी भी हो गई थीं। ऐसा कहा जाता है कि परवीन को सिजोफ्रेनिया था। अब इस मानसिक रोग की शिकार कब और कैसे हुईं, यह आज तक नहीं मालूम। पर ऐसा कहा जाता है कि दौलत और शोहरत के बावजूद परवीन अंदर से काफी अकेली थीं और शायद यही उनके मानसिक रोग की वजह बनी। हालांकि परवीन ने कभी भी इसे स्वीकार नहीं किया और वह फिल्म इंडस्ट्री पर ही आरोप लगाती रहीं कि उनके साथ इंडस्ट्री से जुड़े लोग षड्यंत्र रचा रहे हैं और उनकी छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।

मानसिक भीमारी बढणे लगी

वक्त के साथ परवीन बॉबी की हालत ऐसी हो गई थी कि अगर कोई पत्रकार या मीडियाकर्मी उनका इंटरव्यू लेने जाता तो वह दूर भागतीं या फिर उनसे अपना खाना और पानी टेस्ट करने के लिए कहतीं। परवीन के मन में यह शक बैठ गया था कि कोई उन्हें जान से मारना चाहता है। उन्हें यह तक शक बैठ गया कि उनके मेकअप में भी जहर है और इससे उनकी स्किन छिल जाएगी, खूबसूरती चली जाएगी। परवीन के अंदर मारे जाने का डर इस कदर बैठ गया था कि अपने आखिरी 4 सालों में परवीन बॉबी लगभग हर फोन कॉल को रेकॉर्ड करने लगी थीं। जो भी उन्हें फोन करता उसे पहले वह बताती हैं कि उसके फोन को सर्विलांस पर रखा गया है।

प्रवीण बॉबी कि मौत

परवीन बॉबी की जिंदगी में अब अकेलापन और भी बढ़ता जा रहा था। फिल्म इंडस्ट्री से उन्होंने खुद को काट लिया था लेकिन 1973 से 1992 के बीच वह अखबारों से लेकर मैगजीन तक के लिए लिखती रहीं। मुंबई के अपने घर में वह अकेली रहती थीं। किसी का कोई आना-जाना नहीं था। जो उनके अपने थे उन्होंने भी परवीन बॉबी से दुरिया बनाना शुरू कर दी। शायद यही वजह थी कि जब 20 जनवरी 2005 को वह अपने फ्लैट में मृत मिलीं तो किसी को कुछ पता ही नहीं चला। जिस सोसाइटी में परवीन रहती थीं वहां के सिक्यॉरिटी गार्ड ने जब देखा कि परवीन ने तीन दिनों से घर के बाहर रखा दूध और अखबार नहीं लिया है, तो उसने पुलिस को खबर दी।

कमरे कि हालत

कमरे में कुछ बिखरे हुए अखबार थे, शराब की कुछ बोतल और सिगरेट के कुछ टुकड़े थे। कहा जाता है कि परवीन बाबी की मौत दो दिन पहले गई थी। लेकिन दो दिन तक किसी को कानों-कान खबर ही नहीं हुई थी। पोस्टमार्टम में भी यही आया था कि उनकी मौत 72 घंटे पहले हो चुकी थी। अपने जुहू स्थित बंगले में उन्होंने खुद को बंद कर लिया था। मौत से 10 दिन पहले तक उनकी किसी पड़ोसी से बात भी नहीं हुई थी। खाना ऑर्डर करके मंगाती थीं और कमरे में बंद रहती थीं। इस दौरान सिगरेट और शराब ही उनके साथी थी।

गरिबो के नाम वसिहत छोड दि

आखिरी वक्त में जब परवीन को अपनी जायदाद का वारिस तलाश करना था तो उन्हें दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आया। हर रिश्ते से चोट खा चुकी परवीन अपनी जायदाद का 80 फीसदी हिस्सा गरीबों के नाम कर गीं। इसका खुलासा परवीन की मौत के 11 साल बाद हुआ। 11 साल तक परवीन बाबी की वसीयत की जांच चलती रही 14 अक्टूबर 2016 को इस बात की पुष्टि हो गई कि ये वसीयत सही है और परवीन ने ही अपनी दौलत गरीबों के नाम कर दी थी।

क्या तालिबान पूरे देश पर कब्जा कर लेगा?

लगता तो कुछ ऐसा ही है. अफगान सरकार, उसकी सेना और पूरा का पूरा एडमिनिस्ट्रेशन चरमरा चुका है. महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग पहले ही देश छोड़कर भाग चुके हैं. सेना का मनोबल इतना गिरा हुआ है कि लड़ना तो छोड़िए, बिना एक गोली चलाए आत्मसमर्पण कर रही है.

ताजा जानकारी के अनुसार करीब 17 जिला मुख्यालयों पर आज सुबह तक कब्ज़ा हो चुका है

इसमे देश का दूसरा (कंधार), तीसरा (हेरात) और चौथा (मजार ए शरीफ) सबसे बड़ा शहर शामिल हैं. ये सिर्फ शहर ही नहीं बल्कि देश का सप्लाई लाइन भी है. अफगानिस्तान को पड़ोसी मुल्कों और दुनिया से जोड़ने वाली सड़के इन्हीं शहरो से होके जाती है.

मतलब कम शब्दों में कहें तो काबुल का पतन तय है. सवाल ये है कि ये आज होगा या कल या परसों…

इसके साथ ही भारत और पश्चिमी देशों द्वारा किए गए विकास के सारे काम पर पानी फिर गया है. पूरी दुनिया सन्न है और सारा ध्यान अपने फंसे हुए नागरिको को जैसे तैसे निकालने मे लगाया है.

खुद ही देखिए, पाक-अफगान सीमा पर तालिबानी अत्याचार से बचकर भागते लोग कैसे गिड़गिड़ा रहे हैं. पाकिस्तान क्या, अब कोई भी इनकी मदद नहीं कर पाएगा.

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अफगानिस्तान एक ब्लैकहोल से कम नहीं. यू ही नहीं इसे ग्रेवयार्ड ऑफ एम्पायर्स कहा जाता है. आप कितनी भी ताकत और पैसे लगा दो, कुछ समय के बाद आपको पीठ दिखाकर भागना ही पड़ेगा.

चलिए झांकते है इतिहास में उन साम्राज्यों पर जिन्होंने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा तो किया पर ज्यादा दिन सम्भाल न सके.

प्रथम ईरानी साम्राज्य :

सिकंदर के सेनापति सेल्युक्स ने अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों को अपने दामाद चंद्रगुप्त मौर्य को दहेज मे दिया था.

इस्लाम के उदय के बाद अरबों ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया और मूलतः बौद्ध देश को इस्लामी बना दिया.

एक और ईरानी साम्राज्य. मौर्य और अब्बासिद को छोड़कर अबतक के सारे कब्ज़े ईरानीयों ने किए है.

महान मंगोल साम्राज्य

तुर्क-मंगोल तैमूर भी अफगानिस्तान के रास्ते ही भारत आया.

आखिरी प्रभावी विदेशी साम्राज्य जिसने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा रखा. फिर उदय हुआ अहमद शाह अब्दाली (वही पानीपत वाला) का जिसे अफगानिस्तान का जनक कहा जाता है.

बाकी सोवियत संघ और अमेरिका का हश्र तो हम अपने आँखों के सामने देख ही रहे हैं.

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