एक बार जब इंद्र ने गोकुल में बहुत वर्षा की तो मेरे गोविन्द ने गिरिराज रूप में उनकी
रक्षा की तो इंद्र ने सोचा की इतना पानी गया कहा तो देखा की एक तरफ सुदर्शन चक्र पानी सुख रहा है और दूसरी और अगस्त्य ऋषि जी पानी पि रहे है तो यहा १ कथा आती है रामजी लंका जितने के बाद अयोध्या आये तो सीताजी ब्राह्मणों को भोजन करा रही थी सभी थोडा थोडा भोजन कर जाने लगे तो माँ राम जी बोली प्रभु केसे ब्राह्मण बुलाते है जो भोजन ही नहीं करते है तो रामजी ने कहा की सीता जी आपने अभी ब्राह्मण देखे कहा है! अब रामजी योग से अगस्त्य ऋषि के ध्यान में गये उन्हे बुलवाया ऋषि आ गए तो रामजी ने कहा की भोजन कर लेवे, तो अगस्त्य ऋषि ने कहा की नहीं अभी भूख जरा सी है फिर भी खा लेते है तो सीता जी बोलो ये तो दुबले पतले है में तो हाथ से बना कर खिला दूंगी तो
अगस्त्य ऋषि को भोजन पर बैठाया तो राम जी को अगस्त्य ऋषि ने इशारा किया शुरू करु प्रभु तो रामजी ने कहा आज जरा भोजन अच्छे से करे ,अब माताजी भोजन बनाने लगि तो सुबह से शाम हो गई अगस्त्य ऋषि भोजन ही कर रहे है सीता जी थक गई तो उन्होंने रिध्दी सिध्दी का आव्हान किया कहा की अगस्त्य ऋषि भोजन कर रहे है कोई कमी ना हो अगला दिन हो गया माँ ने श्री गणेश जी को बुलाया अब गणेश जी रसोइया बन गये पर ऋषि भोजन ही कर रहे है तो सीता जी परेशान हो गई १/२/५/१०/११/१३/१५ दिन हो गये कहा की महाराज जी आधा भोजन हो जाये तो पानी पि लीजिये तो अगस्त्य ऋषि बोले माँ अभी तो शुरू किया है आधा होगा तो पि लेंगे अब १६ /१७ दिन माँ राम जी से बोली प्रभु ये केसे ऋषि है जो १७ दिन से खाए जा रहे है और कहते है आधा भी नहीं खाया , प्रभु श्रद्धा की भी टांग तोड़ दी तो रामजी ने कहा देवी आप ही तो कहती थी की अच्छे ब्राह्मण बुलाया करो तो राम जी ने धीरे से इशारा किया तो अगस्त्य ऋषि ने डकार ली कहा पानी लाओ तो माताजी राम जी को बोली पानी नहीं है १ मटका तो पियेंगे नहीं इतना पानी नहीं है हमारे पास भोजन इतना किया तो पानी कितना पियेंगे तो राम जी ने अगस्त्य ऋषि को कहा की प्रभु अभी पानी की इतनी व्यवस्था नहीं है तो आप पानी बाद में पि लेना इस युग में भोजन अगले युग में पानी पि लेना अगस्त्य ऋषि बोले ठीक है मेरी तो एक समाधी में युग बदल जायेगा तो राम जी अगले जन्म में कान्हा का अवतार लिया और गोकुल के गाव वालो को वर्षा से बचाने हेतु अगस्त्य ऋषि का आव्हान किया आप जहा भी हो आये
और पानी ग्रहण करे!
इसी है मेरे कान्हा की लीला .......................