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रविवार, 13 नवंबर 2022

धर्मग्रंथ रोज सुबह नहा धो कर सिर्फ पुण्य कमाने के उद्देश्य से पढ़ने के लिए ही नहीं होते ..

एक गहरी सोच वाली पोस्ट है। 

अपने धर्मग्रंथों को पढ़िए , ये सारे राक्षसों के वध से भरे पड़े हैं. 

राक्षस भी ऐसे-२ वरदानों से प्रोटेक्टेड थे कि दिमाग घूम जाए...















एक को वरदान प्राप्त था कि वो न दिन में मरे, न रात में, न आदमी से मर , न जानवर से, न घर में मरे, न बाहर, न आकाश में मरे, न धरती पर...

तो दूसरे को वरदान था कि वे भगवान भोलेनाथ और विष्णु के संयोग से उत्पन्न पुत्र से ही मरे.

तो, किसी को वरदान था कि... उसके शरीर से खून की जितनी बूंदे जमीन पर गिरें ,उसके उतने प्रतिरूप पैदा हो जाएं.

तो, कोई अपने नाभि में अमृत कलश छुपाए बैठा था.

लेकिन... हर राक्षस का वध हुआ.

हालाँकि... सभी राक्षसों का वध अलग अलग देवताओं ने अलग अलग कालखंड एवं भिन्न भिन्न जगह किया...

लेकिन... सभी वध में एक  बात कॉमन रही और वो यह कि... किसी भी राक्षस का वध उसका वरदान विशेष  निरस्त कर अर्थात उसके वरदान को कैंसिल कर के नहीं किया गया...
ये नहीं किया गया कि, तुम इतना उत्पात मचा रहे हो इसीलिए तुम्हारा वरदान कैंसिल कर रहे हैं..
और फिर उसका वध कर दिया.

बल्कि... हुआ ये कि... देवताओं को उन राक्षसों को निपटाने के लिए उसी वरदान में से रास्ता निकालना पड़ा कि इस वरदान के मौजूद रहते हम इनको कैसे निपटा सकते हैं.

और अंततः कोशिश करने पर वो रास्ता निकला भी... 
 सब राक्षस निपटाए भी गए.

तात्पर्य यह है कि... परिस्थिति कभी भी अनुकूल होती नहीं है,   अनुकूल बनाई जाती हैं.

आप किसी भी एक राक्षस के बारे में सिर्फ कल्पना कर के देखें कि अगर उसके संदर्भ में अनुकूल परिस्थिति का इंतजार किया जाता तो क्या वो अनुकूल परिस्थिति कभी आती ??

उदाहरण के लिए चर्चित राक्षस रावण को ही ले लेते हैं.

रावण के बारे में ये विवशता   कही जा सकती थी कि... 
भला रावण को कैसे मार पाएंगे?
 पचासों तीर मारे और बीसों भुजाओं व दसों सिर भी काट दिए..
लेकिन, उसकी भुजाएँ व सिर फिर जुड़ जाते हैं तो इसमें हम क्या करें ???

इसके बाद अपनी असफलता का सारा ठीकरा ऐसा वरदान देने वाले ब्रह्मा पर फोड़ दिया जाता कि... उन्होंने ही रावण को ऐसा वरदान दे रखा है कि अब उसे मारना असंभव हो चुका है.

और फिर.. ब्रह्मा पर ये भी आरोप डाल दिया जाता कि जब स्वयं ब्रह्मा रावण को ऐसा अमरत्व का वरदान देकर धरती पर राक्षस-राज लाने में लगे हैं तो भला हम कर भी क्या सकते हैं? 

लेकिन... ऐसा हुआ नहीं ... 
बल्कि, भगवान राम ने उन वरदानों के मौजूद रहते हुए ही रावण का वध किया.

*क्योंकि, यही "सिस्टम" है.*

तो... पुरातन काल में हम जिसे वरदान कहते हैं... आधुनिक काल में हम उसे संविधान द्वारा प्रदत्त स्पेशल स्टेटस कह सकते हैं...
जैसे कि... अल्पसंख्यक स्टेटस, पर्सनल बोर्ड आदि आदि.

इसीलिए... आज भी हमें राक्षसों को इन वरदानों (स्पेशल स्टेटस) के मौजूद रहते ही निपटाना होगा.. 
जिसके लिए इन्हीं स्पेशल स्टेटस में से लूपहोल खोजकर रास्ता निकालना होगा.

और, आपको क्या लगता है कि... इनके वरदानों (स्पेशल स्टेटस) को हटाया जाएगा...

क्योंकि, हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों में ऐसा एक भी साक्ष्य नहीं मिलता कि किसी राक्षस के स्पेशल स्टेटस (वरदान) को हटा कर पहले परिस्थिति अनुकूल की गई हो तदुपरांत उसका वध किया गया हो.

और, जो हजारों लाखों साल के इतिहास में कभी नहीं हुआ... अब उसके हो जाने में संदेह लगता है.

*परंतु... हर युग में एक चीज अवश्य हुई है...*
*और, वो है राक्षसों का विनाश.*
*एवं, सनातन धर्म की पुनर्स्थापना*.

इसीलिए... इस बारे में जरा भी भ्रमित न हों कि ऐसा नहीं हो पायेगा.

लेकिन, घूम फिर कर बात वहीं आकर खड़ी हो जाती है कि.... भले ही त्रेतायुग के भगवान राम हों अथवा द्वापर के भगवान श्रीकृष्ण..

राक्षसों के विनाश के लिए हर किसी को जनसहयोग की आवश्यकता पड़ी थी.

और, जहाँ तक धर्मग्रंथों के सार की बात है
तो वो भी यही है कि हर युग में राक्षसों के विनाश में सिर्फ जनसहयोग की आवश्यकता   पड़ती है..

ये इसीलिए भी पड़ती है ताकि... राक्षसों के विनाश के बाद जो एक नई दुनिया बनेगी... 
उस नई दुनिया को उनके बाद के लोग संभाल सके, संचालित कर सकें.

नहीं तो इतिहास गवाह है कि.... बनाने वालों ने तो भारत में आकाश छूती इमारतें और स्वर्ग को भी मात देते हुए मंदिर बनवाए थे... 

लेकिन, उसका हश्र क्या हुआ ये हम सब जानते हैं.

इसीलिए... राक्षसों का विनाश जितना जरूरी है...
उतना ही जरूरी उसके बाद उस धरोहर को संभाल के रखने का भी है.

और... अभी शायद उसी की तैयारी हो रही है.

*अर्थात... सभी समाज को गले लगाया जा रहा है.. और, माता शबरी को उचित सम्मान दिया जा रहा है.*

वरना, सोचने वाली बात है कि जो रावण ... पंचवटी में लक्ष्मण के तीर से खींची हुई एक रेखा तक को पार नहीं कर पाया था...भला उसे पंचवटी से ही एक तीर मारकर निपटा देना क्या मुश्किल था? 

अथवा... जिस महाभारत को श्रीकृष्ण सुदर्शन चक्र के प्रयोग से महज 5 मिनट में निपटा सकते थे भला उसके लिए 18 दिन तक युद्ध लड़ने की क्या जरूरत थी? 

लेकिन... रणनीति में हर चीज का एक महत्व होता है... जिसके काफी दूरगामी परिणाम होते हैं.

इसीलिए...  कभी भी उतावलापन नहीं होना चाहिए.
और फिर वैसे भी कहा जाता है कि *जल्दी का काम शैतान का*

क्योंकि,  ये बात अच्छी तरह मालूम है कि.... रावण, कंस, दुर्योधन, रक्तबीज और हिरणकश्यपु आदि का विनाश तो निश्चित है तथा यही उनकी नियति है..!!
*लंका जल रही है,*
*अयोध्या सज रही है और शबरी राष्ट्रपति बन गई है इतिहास से सीख लेकर कार्य जारी है!*

जय महाकाल, जय सनातन जय मौलिक भारत...!!!

*नोट : धर्मग्रंथ रोज सुबह नहा धो कर सिर्फ पुण्य कमाने के उद्देश्य से पढ़ने के लिए ही नहीं होते ..*
*बल्कि, हमारे धर्मग्रंथों के रूप में हमारे पूर्वज/देवताओं ने अपने अनुभव हमें ये बताने के लिए लिपिबद्ध किया ताकि आगामी पीढ़ी ये जान सके कि अगर फिर कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो तो उससे कैसे निपटा जाए.
🙏🙏🙏🌷
नमः अस्ते 🕉️🙏🙏🕉️

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