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बुधवार, 2 अप्रैल 2025

राजस्थान का ऐतिहासिक घुड़ला पर्व: सत्य जो अनजान है!

राजस्थान का ऐतिहासिक घुड़ला पर्व: सत्य जो अनजान है!
राजस्थान की भूमि वीरता, परंपरा और सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मारवाड़ में मनाया जाने वाला घुड़ला पर्व वास्तव में किस ऐतिहासिक घटना से जुड़ा है? यह सिर्फ एक पारंपरिक लोक उत्सव नहीं, बल्कि एक बलिदान और साहस की गाथा भी समेटे हुए है।

घुड़ला पर्व का पारंपरिक स्वरूप

हर साल होली के बाद, राजस्थान में कुंवारी कन्याएँ सिर पर मटका रखकर उसके अंदर दीप जलाकर गांव-गांव घूमती हैं और पारंपरिक गीत गाती हैं। यह पर्व विशेष रूप से गणगौर पूजा से जुड़ा हुआ माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि "घुड़ला" नाम कैसे पड़ा?

घुड़ला पर्व से जुड़ी ऐतिहासिक घटना

इतिहास के पन्नों में दबी एक कहानी यह बताती है कि "घुड़ला" वास्तव में कोई पर्व नहीं, बल्कि एक क्रूर मुगल सरदार घुड़ला खान से जुड़ा है। यह घटना जोधपुर के पीपाड़ क्षेत्र के पास बसे कोसाणा गांव की है।

गांव की 200 से अधिक कुंवारी कन्याएँ गणगौर पूजा करने तालाब पर गई थीं। तभी वहां से मुगल सरदार घुड़ला खान अपनी सेना के साथ गुजरा। उसकी गंदी नज़र उन कन्याओं पर पड़ी और उसने बलपूर्वक उनका अपहरण कर लिया। जिसने भी विरोध किया, उसे मौत के घाट उतार दिया।

जब यह खबर राव सातल सिंह राठौड़ को मिली, तो उन्होंने तुरंत अपनी सेना के साथ घुड़ला खान का पीछा किया और उसका सामना किया। युद्ध में राजपूतों की तलवारों ने मुगलों को पराजित कर दिया, और अंततः राव सातल सिंह ने घुड़ला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन इस संघर्ष में वीर राव सातल सिंह भी वीरगति को प्राप्त हुए।

घुड़ला पर्व का वास्तविक अर्थ

गांव वालों ने कन्याओं को घुड़ला खान का सिर सौंप दिया। उन्होंने उस सिर को एक घड़े (मटके) में रखा और उसमें उतने छेद किए, जितने घाव घुड़ला खान के शरीर पर थे। फिर पूरे गांव में इसे घुमाया गया और प्रत्येक घर में दीप जलाकर न्याय और विजय का संदेश दिया गया। यही परंपरा धीरे-धीरे घुड़ला पर्व के रूप में स्थापित हो गई।

इतिहास से सबक लें!

समय के साथ इस घटना का वास्तविक अर्थ धुंधला होता गया और लोग अनजाने में इस पर्व को एक साधारण परंपरा के रूप में मनाने लगे। यह आवश्यक है कि हम अपने इतिहास को समझें और अपने वीरों को याद रखें। राव सातल सिंह जी का बलिदान भुलाया नहीं जाना चाहिए।

हमारी जिम्मेदारी

हमें अपने इतिहास को जानना और दूसरों तक पहुँचाना चाहिए ताकि कोई भी झूठी कथा हमारे वीरों के बलिदान को ढक न सके। आइए, इस बार घुड़ला पर्व पर इसके वास्तविक नायक को याद करें और दूसरों को भी इस ऐतिहासिक सत्य से अवगत कराएं।

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