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रविवार, 25 नवंबर 2018

रामलला हम आएँगे, मन्दिर वहीं बनाएँगे

देशज भाषा में एक कविता —

रामलला हम आएँगे, मन्दिर वहीं बनाएँगे
जे सरवा सिरि राम न बोली, पकड़-पकड़ लतियाएँगे
रामलला हम आएँगे

पढ़े बदे इस्कूल ना रहै, घर चौका औ चूल्ह ना रहै
रोटी औ रोजगार ना रहै, कउनो कारोबार ना रहे
अपने खूब मलाई काटें, लम्बा-लम्बा भाषण छाँटैं
गाय-भईंस के नाम पे हरदम, जनता को लड्वाएँगे
रामलला हम आएँगे

अस्पताल, गोदाम अनाज के, एक्को नाही काम-काज के
सरकारी स्कूल औ कॉलेज, उफरि परै सब नालेज-वालेज
दाल, तेल औ नून के कीमत, कोचिंग, टयूसन फीस के आफत
पइसा वालेन के का दिक्कत प्राइबेट में जाएँगे
रामलला हम आएँगे

खाली हौवा ? झण्डा लेला, हाथ में मोट के डण्डा लेला
रोजगार के बात मत करा, सरऊ देसदरोही हउआ ?
आटा ना हौ, डाटा हौ नै, रोटी डाउनलोड कई लेहा
टच मोबाइल, टीबी, किरकेट, घर-घर में पहुचाएँगे
रामलला हम आएँगे

गाँव गली में मन्दिर होइहैं, चार ठे मोट पुजारी होइहैं
दुई ठे दिन भर रूपया गिनिहैं, औ दुई ठे रेचकारी बिनिहैं
ओही भब्य मन्दिर के बहरे पच्चिस-तीस भिखारी होइहैं
तोहर कमाई खाइके बाबा तोहईं के गरियाएँगे
रामलला हम आएँगे

पैदा चाहे कुछ ना करिहैं, नटई तक ले ठूँस के खइहें
जवन बची ऊ घर ले जईहैं, बेटवा अमरीका में पढ़इहैं
थोड़का दान औ पुन्न देखाई, बाकी पार्टी फण्ड में जाई
वो ही से हथियार खरीद के दंगा-मार कराएँगे.
रामलला हम आएँगे

गंगा माई, देंय दोहाई, कइसे होई साफ़-सफाई
चार ठे नाला और गिरी तब नेता दीहैं बजट बढ़ाई
पण्डन के गजबै लीला हौ, हमरे नाम पे करैं कमाई
लाखों टन लकड़ी रोज फूँकिहैं, मुर्दा वहीँ जलाएँगे
रामलला हम आएँगे

कोका-कोला, पेप्सी माज़ा, जवन मिलै बस गटक जा राजा
पोखरी कूँआ, ताल-तलैया, सुखति हवे तो सुखे दा भइया
काहें हाहाकार ? बिकत बा, पानी खाली बीस रुपैया
हवा त अबहीं बकिये बाटे, उसको भी बेचवाएँगे
रामलला हम आएँगे

जनरल डिब्बा में ठुँस-ठुँस के, आड़े तिरछे कइसौ घुस के
दिल्ली-बम्मई भाग के जइहैं, पूरी जिनगी बेचि के अइहें
ई बिकास के कइसन सीढ़ी, भै बरबाद पचीसन पीढ़ी
तोहरे खून पसीना से ऊ आपन महल बनाएँगे
रामलला हम आएँगे

रोटी-बेटी, नात-हीत में जतिये एक कसौटी होलै
दुनिया में इनसान, इहाँ पे चमरौटी बभनौटी होलै
पाँड़े बोलैं ठाकुरसाहब ! तोहँऊ हिन्दू हमहू हिन्दू
देखिहा अब थोडके दिन में हम बिस्वगुरु बन जाएँगे
रामलला हम आएँगे

छोटजतिया सब पढ़ि लिख जइहैं, धरम करम के आँख देखइहें
बड़जातियन के खेत फैक्टरी फिर कब्भौं ना झाँकें जइहैं
अपने काम क छाँट के रक्खा, बाकी सबके बाँट के रक्खा
एनके बस मजदूर बनावा, नहीं त सब बढ़ जाएँगे.
रामलला हम आएँगे

एही देस में लाख-करोड़ों आधे पेट ले खाना खालैं
एही मुलुक में रोज हजारन टीबी कैंसर से मरि जालैं
मछरी माँस पे फाँसी होई, दुनियाँ भर में हाँसी होई
बीड़ी, सिगरेट, गुटखा दारू बन्द नहीं करवाएँगे
रामलला हम आएँगे।

वरिष्ठ कांग्रेसी सदस्य, सांसद, पूर्व मंत्री कमलनाथ को "सच" पता है.

वरिष्ठ कांग्रेसी सदस्य, सांसद, पूर्व  मंत्री कमलनाथ को "सच" पता है.

***

मैं कमलनाथ जी का हृदय से आभारी हू. उनके हाल ही में लीक हुए कुछ वीडियो से उन्होंने मेरी अवधारणा को सही सिद्ध कर दिया  है

कि 1989 से लेकर अब तक कांग्रेस एक समुदाय विशेष के सामूहिक वोटों के खातिर चुनाव जीतती आई है.

चूंकि यह समुदाय अन्य लोगो की तुलना में अधिक से अधिक संख्या में आकर वोट करता है, अतः कुल पड़े वोटों में इनका प्रभाव समस्त मतदाताओं के अनुपात में विषम रूप में अधिक हो जाता है.

नहीं तो ऐसा हो ही नहीं सकता था कि बहुसंख्यक जनता में 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद भारी नाराजगी के बाद भी 2009 के चुनाव में कांग्रेस चुनाव जीत जाती.

इन विशेष वोटो को अपनी "जेब" में रखने के बाद कांग्रेस को हर चुनाव क्षेत्र में किसी अन्य दबंग जाति के वोटो को प्रलोभन, शिकायत, डर, पहचान के मुद्दे पे अपनी और खींचना था; और सत्ता उनके "हाथ" में.

स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1989 तक हर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 39-40% से अधिक वोट प्राप्त किया.

सिर्फ 1977 में कांग्रेस का वोट शेयर 35% से कम रह गया था.

फिर 1996 से लेकर 2009 के चुनाव तक कांग्रेस का वोट शेयर 25 से 29% के बीच में रहा.

2008 में मुंबई आतंकवादी हमले के बाद भी 2009 के चुनाव में इस पार्टी को 28.55% वोट मिला.

चूंकि सत्ता का चुनावी गणित बैठा लिया था, अतः स्वतंत्रता के बाद से ही एक ही परिवार के लोगो ने सत्ता पे कब्ज़ा कर लिया. परिवार के बाहर जो लोग प्रधानमंत्री बने - चाहे वे किसी भी पार्टी के हो, उदहारण के लिए गुलजारीलाल नंदा, शास्त्री जी, मोरार जी देसाई, चरण सिंह, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, नरसिम्हा राओ, देवे गौड़ा, गुजराल, मनमोहन को ले लीजिये,

वे सब के सब किसी दुर्घटना या मृत्यु (गुलजारीलाल नंदा, शास्त्री) जोड़-तोड़ (वी पी सिंह, चंद्रशेखर), परिवार के सदस्य का सत्ता के लिए रेडी ना होना (शास्त्री, नरसिम्हा राओ, मनमोहन),

प्रधानमंत्री पद के लिए गठबंधन में एकमत नहीं होने (मोरार जी, चरण सिंह, देवे गौड़ा, गुजराल) के कारण सरकार प्रमुख बन पाए.

वाजपेयी जी प्रधानमंत्री अवश्य बने, लेकिन अन्य पार्टियों के समर्थन से.

नहीं तो ऐसा हो ही नहीं सकता था कि बहुसंख्यक जनता में 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद भारी नाराजगी के बाद भी 2009 के चुनाव में कांग्रेस चुनाव जीत जाती.

इस चुनाव में लगभग 71 करोड़ मतदाता थे, जिनमे से लगभग 10 करोड़ अल्पसंख्यक थे.

लगभग 60% या 42.6 करोड़ लोगो ने वोट डाला, जिसमे से कांग्रेस को लगभग 12 करोड़ वोट मिले.

अगर इन 10 करोड़ में से 90  प्रतिशत भी मतदान कर दे, यानी कि 9 करोड़ वोट, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अधिकतम वोट किस पार्टी को गए होंगे.

बचे 4-5 करोड़ वोट शाही परिवार और खानदानी कैंडिडेट किसी अन्य समूह से खींच ले जाएंगे.

2014 के चुनाव में 55 करोड़ लोगो ने मतदान किया जिसमे कांग्रेस को लगभग 19 प्रतिशत वोट मिले, यानी कि 10.45 करोड़ मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट दिया जो मोटे तौर पे एक समुदाय द्वारा डाले गए वोटो से मिलता जुलता नंबर है.

उस समय के टीवी और समाचारपत्रों में छपे चुनाव विश्लेषण की सत्यनिष्ठा पे मुझे संदेह होता है कि फलाने समुदाय ने इतने प्रतिशत वोट ढीकानी पार्टी को दिया.

यह सारे के सारे पत्रकार और बुद्धिजीवी चुनाव पश्चात वोटरों की बुद्धिमता की प्रशंसा करके बहुसंख्यक मतदाताओं के हाथ में झुनझुना पकड़ा देते थे. अब यह स्पष्ट होने लगा है कि इनके सोर्स और आंकड़े संदिग्ध और पक्षपाती है और यह मनगढ़ंत कहानी लिखते है.

वरिष्ठ कांग्रेसी सदस्य, सांसद, पूर्व  मंत्री कमलनाथ को "सच" पता है.

भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है कि शाही परिवार के बाहर के किसी व्यक्ति का नाम चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित कर दिया गया हो और वह व्यक्ति - अति पिछड़े वर्ग के निर्धन परिवार का सदस्य - अपने बल बूते पे चुनाव जीत के प्रधानमंत्री बना हो.

तभी कांग्रेस तथा अन्य परिवादवादी दल उस व्यक्ति - नरेंद्र मोदी - को हराने के लिए जी जान से गठबंधन बना रहे है. क्योकि अगर प्रधानमंत्री मोदी पुनः चुनाव जीत गए तो यह अन्य दलों के व्यक्तिगत कैंडिडेट की हार नहीं होगी.

बल्कि, उन परिवारों की निजी संपत्ति - उनकी अपनी प्राइवेट लिमिटेड पार्टी - दिवालिया हो जायेगी.

तभी कमलनाथ समुदाय विशेष से 90% प्रतिशत मतदान चाहते है.

अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री थे तब उनके राज में फायदे भी बहुत थे

जब अशोक गहलोत साहब राजस्थान के मुख्यमंत्री थे तब उनके राज में फायदे भी बहुत थे, उन्होंने प्रदेश की जनता की भलाई के लिए अनेक काम किये जिसे प्रदेश के लोग समझ नहीं पाए थे।

📌 सड़कों की हालत ज़रूर बेहद खराब थी लेकिन उसके कारण वाहन धीमी रफ़्तार से चलते थे, जिसके कारण एक्सीडेंट कम होते थे।

📌 गाड़ियों के टयूब टायर जल्दी फूट जाते थे, ख़राब हो जाते थे, पंक्चर हो जाते थे जिसके कारण टायर ट्यूब इंडस्ट्री खूब फल फूल रही थी, कांग्रेस के प्रिय विशेष वर्ग को भी पंक्चर बनाने, टायर टयूब बेचने, बदलने का भरपूर रोज़गार मिला हुआ था।

📌 चाहे जब बिजली चली जाती थी जिसके कारण बिजली के बिल भी कम आते थे। सुबह 8 से 12 तो समय तय ही था जिसके कारण घर के सभी लोग सुबह जल्दी उठकर नहा लेते थे, पूजापाठ करते थे, काम पर जल्दी निकल जाते थे। ऑफिस, दुकान, फैक्ट्री पर जाने में भी समय लगता था क्योंकि सड़कें ख़राब थी, सो दूरदर्शी मुख्यमंत्री ने 8 से 12 बिजली गायब करने की व्यवस्था रखी थी।

📌 शाम को भी अक्सर बिजली चली जाती थी जिसके कारण लोग दिन में ही खरीदारी कर लिया करते थे और अंधेरा होने से पहले ही घर लौट आते थे जिसके कारण शाम की दिया बत्ती भी समय से हो जाया करती थी।

📌 बिजली नहीं होने से परिवार के लोग एकसाथ बैठकर भोजन किया करते थे आपस में बातचीत किया करते थे क्योंकि बिजली बंद होने से टीवी भी बंद रहते थे, मोबाईल चार्ज नहीं हो पाते थे।

📌 पति पत्नी अक्सर खाना खाकर चाँदनी रात में घर की छत पर या बालकनी में बैठकर गपशप किया करते थे जिसके कारण उनमें आपसी प्रेम और समझ बहुत बढ़ गया था।

📌 जहाँ एक तरफ टॉर्च, मोमबत्ती, चिमनी, कंदील बनाने वाले छोटे उद्योगों को फायदा पहुँचता था तो वहीं दूसरी ओर जनरेटर, यूपीएस बनाने वाली कम्पनियों को भी ज़बरदस्त मुनाफा होता था।

📌 घर के लोग देर तक जागते थे, तो चोरियाँ भी कम होती थीं। चोरों के लिए ही शाम को बिजली ग़ायब की जाती थी जिसके कारण वो भी जल्दी अपना काम निपटाकर अपने घर वालों के साथ भोजन करते, गपशप मारते, दारू पीते थे।

📌 कैंडल लाइट डिनर जितने गहलोत साहेब के राज में हुए उतने तो आजतक किसी बड़े से बड़े होटल में भी नहीं हुए हैं।

📌 सड़कें धूल से सराबोर रहतीं थीं, जिसके कारण कपड़े गंदे हो जाते थे सो एक शर्ट पेंट अगले दिन या दुबारा नहीं पहना जा सकता था, उनको धोना पड़ता था, इसके कारण साबुन, सिर्फ खूब बिकता था, कपड़े जल्दी ख़राब होते थे तो लोग जल्दी जल्दी नए कपड़े खरीदकर लाते थे। इसके कारण इस व्यापार से जुड़े लोगों को बहुत फायदा होता था।

📌 सड़कों पर अपार धूल, गंदगी हुआ करती थी जिसके कारण लोग बीमार बहुत पड़ते थे, इसी कारण डॉक्टरों, अस्पतालों, मेडिकल स्टोर्स, दवा कम्पनियों की खूब चांदी रहती थी। हर छोटा बड़ा अस्पताल, नर्सिंग होम मरीज़ों से गुलज़ार रहता था।

📌 दूसरे देशों, प्रदेशों से लोग केवल ये देखने राजस्थान आते थे कि ऐसे हालातों में राजस्थान के लोग कैसे जीवन यापन करते हैं। कई लोग तो केवल गड्ढों में सड़क ढूँढने, इन गड्डमड्ड सड़कों पर लोगों को कुशलता से वाहन चलाते देखने और धूल फाँकने ही आया करते थे और ये सब देखकर दाँतों तले उंगलियां दबा लिया करते थे।

📌 किसान तो कर्ज़माफी की बात ही नहीं करते थे क्योंकि एक तो बिजली ही बहुत कम आती थी, जितनी आती थी उसमें कितनी ज़्यादा से ज़्यादा सिंचाई कर सकें बेचारे उसी में ही दिमाग़ खपाया करते थे।

📌 घर, दुकान, दफ्तरों, कारखानों में बिजली आते से ही हर किसी के चेहरे पर मुस्कान दौड़ जाती थी लोग खुशी के मारे पूरे जोश के साथ काम निपटाने में लग जाते थे। बिजली आने पर वो खुशी, वो चमक देखते ही बनती थी।

📌 गाँवों में तो बिजली आना मतलब हेलीकॉप्टर आने जैसा होता था लोग तुरंत आटा चक्कियों की ओर दौड़ लगाते थे। आटा चक्की वाले की दुकान पर लोग पहले से ही नम्बर लगाकर लगते थे। आटा चक्की वाले भाव भी खूब खाते थे। लोग उनकी मिन्नतें करते थे, उनको महसूस होता था कि वो बहुत बड़े बिज़नेसमैन हैं।

📌 बहुत से लोग प्रदेश छोड़कर दूसरे देशों, प्रदेशों में जाकर बस गए जिससे राजस्थान पर जनसंख्या का दबाव भी कम हुआ था।

ऐसे अनेकानेक फायदे माननीय अशोक गहलोतजी के राज में होते थे लेकिन उनकी दूरदर्शिता को प्रदेश की जनता ने समझा नहीं, ऊपर से पिछले 5 वर्षों में वसुंधरा राजे ने पूरे प्रदेश में सड़कों का जाल बिछा दिया, चौबीसों घंटे बिजली दे दी, प्रदेश के हर शहर, कस्बे, गाँव को स्वच्छ भारत मिशन के तहत साफ सुथरा करके चमका दिया है। जिसके कारण हम राजस्थानवासी उस मुस्कान, खुशी, चमक को भुला बैठे हैं..

इसलिए इस बार इस विकास करने वाली भाजपा सरकार  को हटाकर बंटाधार करके लोगों के चेहरों पर चमक लाने वाली, हिंदुओं को उनकी दो कौड़ी की औक़ात में रखकर सिर्फ मुसलमानों को सिर पर बिठाने वाली कांग्रेस सरकार लानी है।

माफ़ करें महाराज, महान था अशोक राज !!

😆😆

पति पत्नी में प्यार और तकरार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं

पति ने पत्नी को किसी बात पर तीन थप्पड़ जड़ दिए, पत्नी ने इसके जवाब में अपना सैंडिल पति की तरफ़ फेंका, सैंडिल का एक सिरा पति के सिर को छूता हुआ निकल गया।
मामला रफा-दफा हो भी जाता, लेकिन पति ने इसे अपनी तौहीन समझी, रिश्तेदारों ने मामला और पेचीदा बना दिया, न सिर्फ़ पेचीदा बल्कि संगीन, सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा, यह भी कहा कि पति को सैडिल मारने वाली औरत न वफादार होती है न पतिव्रता।
लड़के ने लड़की के बारे में और लड़की ने लड़के के बारे में कई असुविधाजनक बातें कही।
मुकदमा दर्ज कराया गया। पति ने पत्नी की चरित्रहीनता का तो पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया। छह साल तक शादीशुदा जीवन बीताने और एक बच्ची के माता-पिता होने के बाद आज दोनों में तलाक हो गया।
पति-पत्नी के हाथ में तलाक के काग़ज़ों की प्रति थी।
दोनों चुप थे, दोनों शांत, दोनों निर्विकार।
मुकदमा दो साल तक चला था।
अंत में वही हुआ जो सब चाहते थे यानी तलाक ................
यह महज़ इत्तेफाक ही था कि दोनों पक्षों के रिश्तेदार एक ही टी-स्टॉल पर बैठे , कोल्ड ड्रिंक्स लिया।
यह भी महज़ इत्तेफाक ही था कि तलाकशुदा पति-पत्नी एक ही मेज़ के आमने-सामने जा बैठे।
लकड़ी की बेंच और वो दोनों .......
''कांग्रेच्यूलेशन .... आप जो चाहते थे वही हुआ ....'' स्त्री ने कहा।
''तुम्हें भी बधाई ..... तुमने भी तो तलाक दे कर जीत हासिल की ....'' पुरुष बोला।
''तलाक क्या जीत का प्रतीक होता है????'' स्त्री ने पूछा।
''तुम बताओ?''
पुरुष के पूछने पर स्त्री ने जवाब नहीं दिया, वो चुपचाप बैठी रही, फिर बोली, ''तुमने मुझे चरित्रहीन कहा था....
अच्छा हुआ.... अब तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पीछा छूटा।''
''वो मेरी गलती थी, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था'' पुरुष बोला।
''मैंने बहुत मानसिक तनाव झेली है'', स्त्री की आवाज़ सपाट थी न दुःख, न गुस्सा।
''जानता हूँ पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो स्त्री के मन और आत्मा को लहू-लुहान कर देता है... तुम बहुत उज्ज्वल हो। मुझे तुम्हारे बारे में ऐसी गंदी बात नहीं करनी चाहिए थी। मुझे बेहद अफ़सोस है, '' पुरुष ने कहा।
स्त्री चुप रही, उसने एक बार पुरुष को देखा।
कुछ पल चुप रहने के बाद पुरुष ने गहरी साँस ली और कहा, ''तुमने भी तो मुझे दहेज का लोभी कहा था।''
''गलत कहा था''.... पुरुष की ओऱ देखती हुई स्त्री बोली।
कुछ देर चुप रही फिर बोली, ''मैं कोई और आरोप लगाती लेकिन मैं नहीं...''
प्लास्टिक के कप में चाय आ गई।
स्त्री ने चाय उठाई, चाय ज़रा-सी छलकी। गर्म चाय स्त्री के हाथ पर गिरी।
स्सी... की आवाज़ निकली।
पुरुष के गले में उसी क्षण 'ओह' की आवाज़ निकली। स्त्री ने पुरुष को देखा। पुरुष स्त्री को देखे जा रहा था।
''तुम्हारा कमर दर्द कैसा है?''
''ऐसा ही है कभी वोवरॉन तो कभी काम्बीफ्लेम,'' स्त्री ने बात खत्म करनी चाही।
''तुम एक्सरसाइज भी तो नहीं करती।'' पुरुष ने कहा तो स्त्री फीकी हँसी हँस दी।
''तुम्हारे अस्थमा की क्या कंडीशन है... फिर अटैक तो नहीं पड़े????'' स्त्री ने पूछा।
''अस्थमा।डॉक्टर सूरी ने स्ट्रेन... मेंटल स्ट्रेस कम करने को कहा है, '' पुरुष ने जानकारी दी।
स्त्री ने पुरुष को देखा, देखती रही एकटक। जैसे पुरुष के चेहरे पर छपे तनाव को पढ़ रही हो।
''इनहेलर तो लेते रहते हो न?'' स्त्री ने पुरुष के चेहरे से नज़रें हटाईं और पूछा।
''हाँ, लेता रहता हूँ। आज लाना याद नहीं रहा, '' पुरुष ने कहा।
''तभी आज तुम्हारी साँस उखड़ी-उखड़ी-सी है, '' स्त्री ने हमदर्द लहजे में कहा।
''हाँ, कुछ इस वजह से और कुछ...'' पुरुष कहते-कहते रुक गया।
''कुछ... कुछ तनाव के कारण,'' स्त्री ने बात पूरी की।
पुरुष कुछ सोचता रहा, फिर बोला, ''तुम्हें चार लाख रुपए देने हैं और छह हज़ार रुपए महीना भी।''
''हाँ... फिर?'' स्त्री ने पूछा।
''वसुंधरा में फ्लैट है... तुम्हें तो पता है। मैं उसे तुम्हारे नाम कर देता हूँ। चार लाख रुपए फिलहाल मेरे पास नहीं है।'' पुरुष ने अपने मन की बात कही।
''वसुंधरा वाले फ्लैट की कीमत तो बीस लाख रुपए होगी??? मुझे सिर्फ चार लाख रुपए चाहिए....'' स्त्री ने स्पष्ट किया।
''बिटिया बड़ी होगी... सौ खर्च होते हैं....'' पुरुष ने कहा।
''वो तो तुम छह हज़ार रुपए महीना मुझे देते रहोगे,'' स्त्री बोली।
''हाँ, ज़रूर दूँगा।''
''चार लाख अगर तुम्हारे पास नहीं है तो मुझे मत देना,'' स्त्री ने कहा।
उसके स्वर में पुराने संबंधों की गर्द थी।
पुरुष उसका चेहरा देखता रहा....
कितनी सह्रदय और कितनी सुंदर लग रही थी सामने बैठी स्त्री जो कभी उसकी पत्नी हुआ करती थी।
स्त्री पुरुष को देख रही थी और सोच रही थी, ''कितना सरल स्वभाव का है यह पुरुष, जो कभी उसका पति हुआ करता था। कितना प्यार करता था उससे...
एक बार हरिद्वार में जब वह गंगा में स्नान कर रही थी तो उसके हाथ से जंजीर छूट गई। फिर पागलों की तरह वह बचाने चला आया था उसे। खुद तैरना नहीं आता था लाट साहब को और मुझे बचाने की कोशिशें करता रहा था... कितना अच्छा है... मैं ही खोट निकालती रही...''
पुरुष एकटक स्त्री को देख रहा था और सोच रहा था, ''कितना ध्यान रखती थी, स्टीम के लिए पानी उबाल कर जग में डाल देती। उसके लिए हमेशा इनहेलर खरीद कर लाती, सेरेटाइड आक्यूहेलर बहुत महँगा था। हर महीने कंजूसी करती, पैसे बचाती, और आक्यूहेलर खरीद लाती। दूसरों की बीमारी की कौन परवाह करता है? ये करती थी परवाह! कभी जाहिर भी नहीं होने देती थी। कितनी संवेदना थी इसमें। मैं अपनी मर्दानगी के नशे में रहा। काश, जो मैं इसके जज़्बे को समझ पाता।''
दोनों चुप थे, बेहद चुप।
दुनिया भर की आवाज़ों से मुक्त हो कर, खामोश।
दोनों भीगी आँखों से एक दूसरे को देखते रहे....
''मुझे एक बात कहनी है, '' उसकी आवाज़ में झिझक थी।
''कहो, '' स्त्री ने सजल आँखों से उसे देखा।
''डरता हूँ,'' पुरुष ने कहा।
''डरो मत। हो सकता है तुम्हारी बात मेरे मन की बात हो,'' स्त्री ने कहा।
''तुम बहुत याद आती रही,'' पुरुष बोला।
''तुम भी,'' स्त्री ने कहा।
''मैं तुम्हें अब भी प्रेम करता हूँ।''
''मैं भी.'' स्त्री ने कहा।
दोनों की आँखें कुछ ज़्यादा ही सजल हो गई थीं।
दोनों की आवाज़ जज़्बाती और चेहरे मासूम।
''क्या हम दोनों जीवन को नया मोड़ नहीं दे सकते?'' पुरुष ने पूछा।
''कौन-सा मोड़?''
''हम फिर से साथ-साथ रहने लगें... एक साथ... पति-पत्नी बन कर... बहुत अच्छे दोस्त बन कर।''
''ये पेपर?'' स्त्री ने पूछा।
''फाड़ देते हैं।'' पुरुष ने कहा औऱ अपने हाथ से तलाक के काग़ज़ात फाड़ दिए। फिर स्त्री ने भी वही किया। दोनों उठ खड़े हुए। एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर मुस्कराए। दोनों पक्षों के रिश्तेदार हैरान-परेशान थे। दोनों पति-पत्नी हाथ में हाथ डाले घर की तरफ चले गए। घर जो सिर्फ और सिर्फ पति-पत्नी का था ।।
पति पत्नी में प्यार और तकरार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जरा सी बात पर कोई ऐसा फैसला न लें कि आपको जिंदगी भर अफसोस हो ।।

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