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धन के लोभी कीड़ों ने -२ मानवता से मुख मोड़ लिया
चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया
एक पिता अपनी पुत्री का जब भी ब्याह रचाता है
अपनी हस्ती से बढ़ चढ़कर दौलत खूब लुटाता है
सुखी रहेगी मेरी लाडली सपने खूब सजाता है
अपने चमन की कली तोड़कर तेरे हवाले छोड़ दिया
चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया
सपने सजाये लाखों दिल में दुल्हन घर में आती है
भूल के अपने मात पिता को पति पे जान लुटाती है
असली चेहरा हुआ उजागर मन में वो घबराती है
अपने जीवन की नैया को भाग्य भरोसे छोड़ दिया
चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया
पिया भेष में जब भी कसाई अपनी मांग सुनाता है
जुल्म अनेको लगा ढहाने रोटी को तरसाता है
मांग में लाली भरने वाला उसका खून बहाता है
अपने हाथो उसे उठाकर जलती चिता में छोड़ दिया
चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया
जागो ऐ भारत की बहनों जुल्म तुमको सहना है
कसम है तुमको उस राखी की निर्भय होकर रहना है
झाँसी वाली रानी बनकर इनसे लोहा लेना है
कलम उठा कर 'अक्षय' ने इनका भांडा फोड़ दिया