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शनिवार, 4 सितंबर 2021

इस साल परीक्षा का विषय था मेरी पारिवारिक भूमिका


*इससे अच्छी पोस्ट मैंने अपनी ज़िंदगी में आज तक नही पढ़ी, आप भी जरूर पढियेगा । इस पोस्ट को अपना कीमती समय देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।*🙏🆚🌹🌹🌹
🙏🙏!!

"बेटा! थोड़ा खाना खाकर जा ..!! दो दिन से तुने कुछ खाया नहीं है।" लाचार माता के शब्द है अपने बेटे को समझाने के लिये।

"देख मम्मी! मैंने मेरी बारहवीं बोर्ड की परीक्षा के बाद वेकेशन में सेकेंड हैंड बाइक मांगी थी, और पापा ने प्रोमिस किया था। आज मेरे आखरी पेपर के बाद दीदी को कह देना कि जैसे ही मैं परीक्षा कक्ष से बाहर आऊंगा तब पैसा लेकर बाहर खडी रहे। मेरे दोस्त की पुरानी बाइक आज ही मुझे लेनी है। और हाँ, यदि दीदी वहाँ पैसे लेकर नहीं आयी तो मैं घर वापस नहीं आऊंगा।"

एक गरीब घर में बेटे मोहन की जिद्द और माता की लाचारी आमने सामने टकरा रही थी।

"बेटा! तेरे पापा तुझे बाइक लेकर देने ही वाले थे, लेकिन पिछले महीने हुए एक्सिडेंट ..

मम्मी कुछ बोले उसके पहले मोहन बोला "मैं कुछ नहीं जानता .. मुझे तो बाइक चाहिये ही चाहिये ..!!"

ऐसा बोलकर मोहन अपनी मम्मी को गरीबी एवं लाचारी की मझधार में छोड़ कर घर से बाहर निकल गया।

12वीं बोर्ड की परीक्षा के बाद 'भागवत सर' एक अनोखी परीक्षा का आयोजन करते थे।
हालांकि भागवत सर का विषय गणित था, किन्तु विद्यार्थियों को जीवन का गणित भी समझाते थे और उनके सभी विद्यार्थी विविधतासभर ये परीक्षा अचूक देने जाते थे। 


इस साल परीक्षा का विषय था *मेरी पारिवारिक भूमिका*


मोहन परीक्षा कक्ष में आकर बैठ गया।
उसने मन में गांठ बांध ली थी कि यदि मुझे बाइक लेकर देंगे तो मैं घर नहीं जाऊंगा।

भागवत सर के क्लास में सभी को पेपर वितरित हो गया। पेपर में 10 प्रश्न थे। उत्तर देने के लिये एक घंटे का समय दिया गया था।

मोहन ने पहला प्रश्न पढा और जवाब लिखने की शुरुआत की।

प्रश्न नंबर १ :-  आपके घर में आपके पिताजी, माताजी, बहन, भाई और आप कितने घंटे काम करते हो? सविस्तार बताइये?

मोहन ने तुरंत से जवाब लिखना शुरू कर दिया।

जवाबः


पापा सुबह छह बजे टिफिन के साथ अपनी ओटोरिक्शा लेकर निकल जाते हैं। और रात को नौ बजे वापस आते हैं। ऐसे में लगभग पंद्रह घंटे।



मम्मी सुबह चार बजे उठकर पापा का टिफिन तैयार कर, बाद में घर का सारा काम करती हैं। दोपहर को सिलाई का काम करती है। और सभी लोगों के सो 
जाने के बाद वह सोती हैं। लगभग रोज के सोलह घंटे।

दीदी सुबह कालेज जाती हैं, शाम को 4 से 8 पार्ट टाइम जोब करती हैं। और रात्रि को मम्मी को काम में मदद करती हैं। लगभग बारह से तेरह घंटे।

मैं, सुबह छह बजे उठता हूँ, और दोपहर स्कूल से आकर खाना खाकर सो जाता हूँ। शाम को अपने दोस्तों के साथ टहलता हूँ। रात्रि को ग्यारह बजे तक पढता हूँ। लगभग दस घंटे।

(इससे मोहन को मन ही मन लगा, कि उनका कामकाज में औसत सबसे कम है।)

पहले सवाल के जवाब के बाद मोहन ने दूसरा प्रश्न पढा ..

प्रश्न नंबर २ :-  आपके घर की मासिक कुल आमदनी कितनी है?

जवाबः
पापा की आमदनी लगभग दस हजार हैं। मम्मी एवं दीदी मिलकर पांंच हजार
जोडते हैं। कुल आमदनी पंद्रह हजार।

प्रश्न नंबर ३ :-  मोबाइल रिचार्ज प्लान, आपकी मनपसंद टीवी पर आ रही तीन सीरियल के नाम, शहर के एक सिनेमा होल का पता और अभी वहां चल रही मूवी का नाम बताइये?

सभी प्रश्नों के जवाब आसान होने से फटाफट दो मिनट में लिख दिये ..

प्रश्न नंबर ४ :-  एक किलो आलू और भिन्डी के अभी हाल की कीमत क्या है? एक किलो गेहूं, चावल और तेल की कीमत बताइये? और जहाँ पर घर का गेहूं पिसाने जाते हो उस आटा चक्की का पता  दीजिये।

मोहनभाई को इस सवाल का जवाब नहीं आया। उसे समझ में आया कि हमारी दैनिक आवश्यक जरुरतों की चीजों के बारे में तो उसे लेशमात्र भी ज्ञान नहीं है। मम्मी जब भी कोई काम बताती थी तो मना कर देता था। आज उसे ज्ञान हुआ कि अनावश्यक चीजें मोबाइल रिचार्ज, मुवी का ज्ञान इतना उपयोगी नहीं है। अपने घर के काम की
जवाबदेही लेने से या तो हाथ बटोर कर साथ देने से हम कतराते रहे हैं।

प्रश्न नंबर ५ :- आप अपने घर में भोजन को लेकर कभी तकरार या गुस्सा करते हो?

जवाबः हां, मुझे आलू के सिवा कोई भी सब्जी पसंद नहीं है। यदि मम्मी और कोई सब्जी बनायें तो, मेरे घर में झगड़ा होता है। कभी मैं बगैर खाना खायें उठ खडा हो जाता हूँ। 
(इतना लिखते ही मोहन को याद आया कि आलू की सब्जी से मम्मी को गैस की तकलीफ होती हैं। पेट में दर्द होता है, अपनी सब्जी में एक बडी चम्मच वो अजवाइन डालकर खाती हैं। एक दिन मैंने गलती से मम्मी की सब्जी खा ली, और फिर मैंने थूक दिया था। और फिर पूछा कि मम्मी तुम ऐसा क्यों खाती हो? तब दीदी ने बताया था कि हमारे घर की स्थिति ऐसी अच्छी नहीं है कि हम दो सब्जी बनाकर खायें। तुम्हारी जिद के कारण मम्मी बेचारी क्या करें?)
मोहन ने अपनी यादों से बाहर आकर
अगले प्रश्न को पढा

प्रश्न नंबर ६ :- आपने अपने घर में की हुई आखरी जिद के बारे में लिखिये ..

मोहन ने जवाब लिखना शुरू किया। मेरी बोर्ड की परीक्षा पूर्ण होने के बाद दूसरे ही दिन बाइक के लिये जीद्द की थी। पापा ने कोई जवाब नहीं दिया था, मम्मी ने समझाया कि घर में पैसे नहीं है। लेकिन मैं नहीं माना! मैंने दो दिन से घर में खाना खाना भी छोड़ दिया है। जबतक बाइक नहीं लेकर दोगे मैं खाना नहीं खाऊंगा। और आज तो मैं वापस घर नहीं जाऊंगा कहके निकला
हूँ।
अपनी जिद का प्रामाणिकता से मोहन ने जवाब लिखा।

प्रश्न नंबर ७ :- आपको अपने घर से मिल रही पोकेट मनी का आप क्या करते हो? आपके भाई-बहन कैसे खर्च करते हैं?

जवाब: हर महीने पापा मुझे सौ रुपये देते हैं। उसमें से मैं, मनपसंद पर्फ्यूम, गोगल्स लेता हूं, या अपने दोस्तों की छोटीमोटी पार्टियों में खर्च करता हूँ।

मेरी दीदी को भी पापा सौ रुपये देते हैं। वो खुद कमाती हैं और पगार के पैसे से मम्मी को आर्थिक मदद करती हैं। हां,  उसको दिये गये पोकेटमनी को वो गल्ले में डालकर बचत करती हैं। उसे कोई मौजशौख नहीं है, क्योंकि वो कंजूस भी हैं।

प्रश्न नंबर ८ :- आप अपनी खुद की पारिवारिक भूमिका को समझते हो?
 

प्रश्न अटपटा और जटिल होने के बाद भी मोहन ने जवाब लिखा।
परिवार के साथ जुड़े रहना, एकदूसरे के प्रति समझदारी से व्यवहार करना एवं मददरूप होना चाहिये और ऐसे अपनी जवाबदेही निभानी चाहिये। 
 
यह लिखते लिखते ही अंतरात्मा से आवाज आयी कि अरे मोहन! तुम खुद अपनी पारिवारिक भूमिका को योग्य रूप से निभा रहे हो? और अंतरात्मा से जवाब आया कि ना बिल्कुल नहीं ..!!

प्रश्न नंबर ९ :- आपके परिणाम से 
आपके माता-पिता खुश हैं? क्या वह अच्छे परिणाम के लिये आपसे जिद करते हैं? आपको डांटते रहते हैं?

(इस प्रश्न का जवाब लिखने से पहले हुए मोहन की आंखें भर आयी। अब वह परिवार के प्रति अपनी भूमिका बराबर समझ चुका था।)
लिखने की शुरुआत की ..

वैसे तो मैं कभी भी मेरे माता-पिता को आजतक संतोषजनक परिणाम नहीं दे पाया हूँ। लेकिन इसके लिये उन्होंने कभी भी जिद नहीं की है। मैंने बहुत बार अच्छे रिजल्ट के प्रोमिस तोडे हैं।
 फिर भी हल्की सी डांट के बाद वही प्रेम और वात्सल्य बना रहता था।

प्रश्न नंबर १० :- पारिवारिक जीवन में असरकारक भूमिका निभाने के लिये इस वेकेशन में आप कैसे परिवार को मददरूप होंगें?

जवाब में मोहन की कलम चले इससे पहले उनकी आंखों से आंसू बहने लगे, और जवाब लिखने से पहले ही कलम रुक गई .. बेंच के निचे मुंह रखकर रोने लगा। फिर से कलम उठायी तब भी वो कुछ भी न लिख पाया। अनुत्तर दसवां प्रश्न छोड़कर पेपर सबमिट कर दिया।

स्कूल के दरवाजे पर दीदी को देखकर उसकी ओर दौड़ पडा।

"भैया! ये ले आठ हजार रुपये, मम्मी ने कहा है कि बाइक लेकर ही घर आना।"
दीदी ने मोहन के सामने पैसे धर दिये।

"कहाँ से लायी ये पैसे?" मोहन ने पूछा।

दीदी ने बताया
"मैंने मेरी ओफिस से एक महीने की सेलेरी एडवांस मांग ली। मम्मी भी जहां काम करती हैं वहीं से उधार ले लिया, और मेरी पोकेटमनी की बचत से निकाल लिये। ऐसा करके तुम्हारी बाइक के पैसे की व्यवस्था हो गई हैं।

मोहन की दृष्टि पैसे पर स्थिर हो गई।

दीदी फिर बोली " भाई, तुम मम्मी को बोलकर निकले थे कि पैसे नहीं दोगे तो, मैं घर पर नहीं आऊंगा! अब तुम्हें समझना चाहिये कि तुम्हारी भी घर के प्रति जिम्मेदारी है। मुझे भी बहुत से शौक हैं, लेकिन अपने शौख से अपने परिवार को मैं सबसे ज्यादा महत्व देती हूं। तुम हमारे परिवार के सबसे लाडले हो, पापा को पैर की तकलीफ हैं फिर भी तेरी बाइक के लिये पैसे कमाने और तुम्हें दिये प्रोमिस को पूरा करने अपने फ्रेक्चर वाले पैर होने के बावजूद काम किये जा रहे हैं। तेरी बाइक के लिये। यदि तुम समझ सको तो अच्छा है, कल रात को अपने प्रोमिस को पूरा नहीं कर सकने के कारण बहुत दुःखी थे। और इसके पीछे उनकी मजबूरी है।
बाकी तुमने तो अनेकों बार अपने प्रोमिस तोडे ही है न?  
मेरे हाथ में पैसे थमाकर दीदी घर की ओर चल निकली।

उसी समय उनका दोस्त वहां अपनी बाइक लेकर आ गया, अच्छे से चमका कर ले आया था।
"ले .. मोहन आज से ये बाइक तुम्हारी, सब बारह हजार में मांग रहे हैं, मगर ये तुम्हारे लिये आठ हजार ।"

मोहन बाइक की ओर टगर टगर देख रहा था। और थोड़ी देर के बाद बोला
"दोस्त तुम अपनी बाइक उस बारह हजार वाले को ही दे देना! मेरे पास पैसे की व्यवस्था नहीं हो पायी हैं और होने की हाल संभावना भी नहीं है।"

और वो सीधा भागवत सर की केबिन में जा पहूंचा।

"अरे मोहन! कैसा लिखा है पेपर में?
भागवत सर ने मोहन की ओर देख कर पूछा।

"सर ..!!, यह कोई पेपर नहीं था, ये तो मेरे जीवन के लिये दिशानिर्देश था। मैंने एक प्रश्न का जवाब छोड़ दिया है। किन्तु ये जवाब लिखकर नहीं अपने जीवन की जवाबदेही निभाकर दूंगा और भागवत सर को चरणस्पर्श कर अपने घर की ओर निकल पडा।

घर पहुंचते ही, मम्मी पापा दीदी सब उसकी राह देखकर खडे थे।
"बेटा! बाइक कहाँ हैं?" मम्मी ने पूछा। मोहन ने दीदी के हाथों में पैसे थमा दिये और कहा कि सोरी! मुझे बाइक नहीं चाहिये। और पापा मुझे ओटो की चाभी दो, आज से मैं पूरे वेकेशन तक ओटो चलाऊंगा और आप थोड़े दिन आराम करेंगे, और मम्मी आज मैं मेरी पहली कमाई शुरू होगी। इसलिये तुम अपनी पसंद की मैथी की भाजी और बैगन ले आना, रात को हम सब साथ मिलकर के खाना खायेंगे।
 
मोहन के स्वभाव में आये परिवर्तन को देखकर मम्मी उसको गले लगा लिया और कहा कि "बेटा! सुबह जो कहकर तुम गये थे वो बात मैंने तुम्हारे पापा को बतायी थी, और इसलिये वो दुःखी हो गये, काम छोड़ कर वापस घर आ गये। भले ही मुझे पेट में दर्द होता हो लेकिन आज तो मैं तेरी पसंद की ही सब्जी बनाऊंगी।" मोहन ने कहा 
"नहीं मम्मी! अब मेरी समझ गया हूँ कि मेरे घरपरिवार में मेरी भूमिका क्या है? मैं रात को बैंगन मैथी की सब्जी ही खाऊंगा, परीक्षा में मैंने आखरी जवाब नहीं लिखा हैं, वह प्रेक्टिकल करके ही दिखाना है। और हाँ मम्मी हम गेहूं को पिसाने कहां जाते हैं, उस आटा चक्की का नाम और पता भी मुझे दे दो"और उसी समय भागवत सर ने घर में प्रवेश किया। और बोले "वाह! मोहन जो जवाब तुमनें लिखकर नहीं दिये वे प्रेक्टिकल जीवन जीकर कर दोगे 

"सर! आप और यहाँ?" मोहन भागवत सर को देख कर आश्चर्य चकित हो गया।

"मुझे मिलकर तुम चले गये, उसके बाद मैंने तुम्हारा पेपर पढा इसलिये तुम्हारे घर की ओर निकल पडा। मैं बहुत देर से तुम्हारे अंदर आये परिवर्तन को सुन रहा था। मेरी अनोखी परीक्षा सफल रही 
और इस परीक्षा में तुमने पहला नंबर पाया है।" 
ऐसा बोलकर भागवत सर ने मोहन के सर पर हाथ रखा।

मोहन ने तुरंत ही भागवत सर के पैर छुएँ और ऑटो रिक्शा चलाने के लिये निकल पडा....
       मेरा सभी सम्माननीय अभिभावकों से आग्रह है कि आप इस पोस्ट को आप भी जरूर पढ़िएगा और अपने बच्चों को भी पढ़ने का अवसर दें इससे अच्छी पोस्ट मैंने अपनी जिंदगी में आज तक नहीं पढ़ी प्रैक्टिकल जीवन में तो मैंने अनुभव किया है लेकिन सभी लोगों को किस प्रकार से अनुभव कराया जाए इसके लिए मेरा आपसे आग्रह है कि आप स्वयं और अपने बच्चों को इस पोस्ट को जरूर पढ़ने का अवसर प्रदान करें l🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

केरल के कोट्टायम जिले में श्रीकृष्ण मंदिर तिरुवरप्पु


#श्रीकृष्ण_मंदिर_तिरुवरप्पु
यह दुनिया का सबसे असामान्य मंदिर है। 
यह मंदिर 23.58 x 7 खुला रहता है। 
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण 
हमेशा ही विराजमान रहते हैं।
डेढ़ हजार वर्ष पुराना यह मंदिर 
केरल के कोट्टायम जिले में तिरुवरप्पु में स्थित है। 
मान्यता है कि,
यंहा भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिष्ठित विग्रह 
हमेशा भूख में रहते हैं 
इसलिए यह मंदिर 23.58 घंटे, 365 दिन खुला रखा जाता है। 
इस मंदिर की एक और ख़ासियत यह है कि,
पुजारी को दरवाज़ा खोलने के लिए चाबी दी जाती है 
तो साथ में एक कुल्हाड़ी भी दी जाती है। लोगों का मानना ​​है कि कृष्ण भूख बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं और इसलिए यदि चाबी के साथ केवल दो मिनट में दरवाजा खोलने में कोई देरी होती है, तो पुजारी को कुल्हाड़ी से दरवाजा तोड़ने की अनुमति है।
मंदिर केवल 2 मिनट के लिए बंद रहता है। सुबह 11.58 बजे से 12.00 बजे तक। लोक मान्यता ​​है कि मंदिर में भगवान कृष्ण की जो मूर्ति स्थापित है वह कंस का वध करने के बाद बहुत थक चुके श्रीकृष्ण की है।

इसलिए, अभिषेकम समाप्त होने के बाद, स्वामी का सिर पहले सूख जाता है और जब नैवेद्यम उन्हें चढ़ाया जाता है तब तक उसका शरीर सूख जाता है। यंहा 10 बार नैवेद्य पूजा होती है।

इस मंदिर की एक और ख़ासियत यह है कि ग्रहण के समय भी मंदिर बंद नहीं होता है। लोगों का मानना ​​है कि यह भगवान कृष्ण भूखे रह जाएंगे। कभी एक बार मंदिर को ग्रहण के दौरान बंद कर दिया गया था। जब पुजारी ने दरवाजा खोला तो उन्होंने पाया कि स्वामी की कमर की पट्टी नीचे खिसक गई है। उस समय मंदिर आए श्री आदि शंकराचार्य जी ने बताया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भगवान कृष्ण बहुत भूखे रह गए थे। तब से, उन्होंने ग्रहण काल ​​के दौरान भी मंदिर बंद करने की परंपरा समाप्त कर दी।

भगवान कृष्ण के सोने का समय केवल दो मिनट दैनिक 11.58 बजे से 12.00 बजे है। मंदिर खुलने का समय दोपहर 12.00 बजे से 11.58 बजे तक है। मंदिर का पता है, तिरुवरप्पु कृष्णा मंदिर, तिरुवरप्पु -686020
प्रसादम का सेवन किए बिना किसी भी भक्त को जाने की अनुमति नहीं है। हर दिन 11.57 बजे मंदिर को बंद करने से पहले पुजारी जी जोर से पुकारते है.....

क्या कोई भी यहाँ है ? "

यह प्रसादम में सभी भक्तों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए है।

एक और महत्वपूर्ण चीज है एक बार जब आप प्रसादम का स्वाद लेते हैं, तो आप जीवनपर्यंत भूखे नहीं रहेंगे और जीवन भर आपको भोजन प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं होगी। जो श्रद्धालु यहां प्रार्थना करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं भगवान कृष्ण उन सभी भक्तों की सतत देखभाल करते रहते हैं।

जब गोगाजी ने छुड़ाए थे गजनवी के छक्के


जब गोगाजी ने छुड़ाए थे गजनवी के छक्के

  
*गोगाजी और महमूद गजनवी के बीच 1024 ईसवी में युद्ध हुआ।*  उस समय गजनवी सोमनाथ पर आखिरी आक्रमण के लिए जा रहा था।


*जब गोगाजी ने छुड़ाए थे गजनवी के छक्के*
गोगाजी और महमूद गजनवी के बीच 1024 ईसवी में युद्ध हुआ। उस समय गजनवी सोमनाथ पर आखिरी आक्रमण के लिए जा रहा था।

हनुमानगढ़. लोकदेवता के रूप में प्रतिष्ठित ददरेवा के चौहानवंशी शासक गोगाजी  प्रजा वत्सल, गोरक्षक और सांपों के देवता के रूप में तो प्रतिष्ठित एवं पूजित  हैं ही। इसके अलावा शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ की रक्षा के लिए उनका महमूद गजनवी जैसे क्रूर और दुर्दांत आक्रांता की विशाल सेना से मुट्ठी भर परिजनों और सैनिकों के साथ लोहा लेकर *वीर गति पाना* इतिहास की ऐसी घटना है, जिस पर भविष्य में भी गर्व होगा।

लेकिन हरामी सेकुलर लेखकों ने गोगा वीर को गोगा पीर प्रचारित किया ताकि  गजनी से लोहा लेने की हकीकत दबाई जा सके...गोगा जी को सेकुलर साबित करने के लिये उनके पास किसी पीर की कब्र बना दी....

*आज भी मारवाड़ में गोगा नवमी को रक्षा बंधन मनाया जाता है इसका मूलकारण है कि मारवाड़ की बहने अपने भाई को गोगा वीर के समान मानती है कि जिस प्रकार गोगा वीर ने सनातन धर्म व बहन बेटियों की रक्षा के लिये अपना पूरा परिवान   न्योछावर कर दिया, वह प्रेरणा भाई को मिलती रहे....*

गुरु गोरखनाथ की कृपा से उत्पन्न गोगाजी के इष्ट देव सोमनाथ ही थे। गोगा बाबा ने सोमनाथ से शिव लिंग लाकर गोगा गढ़ में उसकी प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी।

 *महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर सत्रह बार आक्रमण किया और वहां से अकूत धन संपदा लूटकर गजनी ले गया।*

गोगाजी और महमूद गजनवी के बीच 1024 ईसवी में युद्ध हुआ। उस समय गजनवी सोमनाथ पर आखिरी आक्रमण के लिए जा रहा था।  पूर्व में मरुस्थली के मस्तक पर उसका रास्ता गोगाजी ने ही रोका। *उस समय गोगाजी ददरेवा के शासक थे। उम्र थी 78 साल। सोमनाथ पर गजनवी के आखिरी आक्रमण के बारे में जिन इतिहासकारों ने लिखा है, उन्होंने गोगाजी और गजनवी के बीच हुए युद्ध का उल्लेख जरूर किया है। गोगाजी और उनकी सेना के लिए यह युद्ध आत्महत्या करने जैसा था। एक तरफ गजनवी की विशाल सेना तो दूसरी तरफ मु_ी भर सैनिक। लेकिन सवाल गोगा बाबा के इष्ट देव के मंदिर को लूटने जा रहे लुटेरे को रोकने का था सो संख्या बल गौण हो गया। वर्तमान में जहां गोगामेड़ी है, वहीं पर *भीषण युद्ध हुआ। इसमें गोगा बाबा सहित उनके 82 पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र और दौहित्र तथा ग्यारह सौ सैनिक वीर गति को प्राप्त हुए।*

जौहर की ज्वाला
गोगाजी के वीर गति पाने के बाद उनके गढ़ की स्थिति का वर्णन भी इतिहासकारों ने किया है। गढ़ का नाम गोगा गढ़ और घोघा गढ़ बताया गया है। *गोगा बाबा के परिवार सहित वीर गति पाने का समाचार गढ़ में पहुंचते ही वहां मौजूद स्त्रियां, युवतियां और किशोरियां जौहर की ज्वाला में समा जाती है। इसी दौरान गजनी की सेना लूटमार के लिए गढ़ में प्रवेश करती है। जौहर की ज्वाला में जीवित मूर्तियों को जलते देख गजनी की सेना भयभीत होकर गढ़ से बाहर भाग जाती है।*

*गोगादेव को विदाई*
 
गजनी के साथ युद्ध में गोगा बाबा वीर गति को प्राप्त होते हैं। गजनी की सेना सोमनाथ पर आक्रमण के लिए मरुस्थली में आगे बढ़ जाती है। गोगा गढ़ में जीवित बचे किसान रणभूमि में आते हैं। चारों तरफ शवों के ढेर पड़े हैं। गिद्ध और गीदड़ शवों को नोच रहे होते हैं। शवों के ढेर में से नंदिदत अपने प्रिय गोगा राणा का शव ढूंढ़ निकालते हैं। उसे पीठ पर लादकर शुद्ध स्थान पर ले जाते हैं और वहीं अंतिम संस्कार कर देते हैं। शेष शवों का अंतिम संस्कार मरुस्थली की रेत डाल कर किया जाता है। कई *इतिहासकार गोगाजी का अंतिम संस्कार किसानों की ओर से किए जाने का उल्लेख करते हैं।* 
*मरुस्थली के वीर किसानों ने लिया गजनी के लुटेरे से लोहा*

द दरेवा से आए किसानों ने गोगाजी का अंतिम संस्कार गोगामेड़ी में उसी जगह किया जहां समाधि बनी हुई है। 

इस जगह पर मंदिर निर्माण की सही तिथि तो ज्ञात नहीं। लोक मान्यता है कि भादरा के पास थेहड़ों से ईंटें लाकर गोगा मेड़ी में मंदिर निर्माण किया गया था। 
विक्रम संवत् 1911 में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगासिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया तथा सभी जातियों के जल कुण्डों को निर्माण करवाने के लिए भूमि आवंटित की।



कल्याण सिंह नहीं होते तो आज भूमिपूजन भी नहीं होता


जहर पिया कल्याण ने अमृत पिया बीजेपी ने
जब ढांचा टूट रहा था तब कल्याण सिंह 5 कालिदास मार्ग... मुख्यमंत्री आवास की छत पर आराम से जाड़े की धूप सेंक रहे थे... अगर तब कल्याण सिंह नहीं होते तो आज भूमिपूजन भी नहीं होता 

- एक छोटे कद का आदमी... जो दिखने में बहुत सुंदर नहीं था... काला रंग...चेहरे पर दाग... लेकिन संघर्षों में तपा हुआ व्यक्तित्व... ऐसी पर्सनेलिटी की जहां वो पहुंच जाए वहां बड़े से बड़े नेता का कद छोटा हो जाए । व्यक्तित्व की धमक ऐसी बड़े बड़े किरदार बौने दिखने लगें... ऐसे थे कल्याण सिंह 

- कल्याण सिंह ऐसे इसलिए थे क्योंकि उनकी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं था... उनके दिल और दिमाग में कोई अंतर नहीं था... उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा उसूल था... भगवान राम की भक्ति... भगवान राम के प्रति के समर्पण को लेकर उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया 

- 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए जनसमर्थन इकट्ठा करने का लक्ष्य लेकर राम रथयात्रा निकाली । बिहार में तब लालू यादव मुख्यमंत्री थे और उन्होंने आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया । जिसके बाद राम राथ यात्रा को भारी मात्रा में जनसमर्थन मिल गया और उत्तर प्रदेश में पहली बार बीजेपी की सरकार चुन ली गई जिसके मुख्यमंत्री कल्याण सिंह चुने गए 

- जून 1991 में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने और इसके बाद राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे विश्व हिंदू परिषद में उत्साह की लहर दौड़ गई और उसने ये घोषणा कर दी कि 6 दिसंबर 1992 को राम मंदिर का निर्माण आरंभ किया जाएगा

- वीएचपी की घोषणा के वक्त मुख्यमंत्री के पद पर कल्याण सिंह थे और प्रदेश की कानून व्यवस्था को संभालने का पूरा जिम्मा कल्याण सिंह पर था । वीएचपी की घोषणा के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के कान खड़े हो गए और उन्होंने बातचीत के लिए कल्याण सिंह को दिल्ली बुलाया

- कल्याण सिंह से पी वी नरसिम्हा राव ने कहा कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दीजिए लेकिन कल्याण सिंह ने साफ जवाब दिया कि विवाद का एक ही हल है और वो ये कि बाबरी मस्जिद की जमीन हिंदुओं को सौंप दी जाए । इस तरह बात नहीं बनी और केंद्र - राज्य के बीच टकराव तय हो गया

-नरसिम्हा राव ने ऐहतियात बरतते हुए पहले ही केंद्रीय सुरक्षा बल अयोध्या रवाना कर दिए... केंद्रीय सुरक्षा बल अयोध्या के चारों तरफ फैला दिए गए

- 6 दिसंबर तक अयोध्या में राम जन्मभूमि के आस पास 3 लाख कारसेवक इकट्ठे हो गए थे... ऐसे में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन के पास पूरी ताकत थी कि वो कारसेवकों पर गोली चला सकती थी... इससे पहले भी जब मुलायम सिंह यादव की सरकार थी तब मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलवाई थी

- कल्याण सिंह को इस बात का अंदेशा लग गया था कि 6 दिसंबर को कारसेवकों को कंट्रोल करने के लिए उनपर फायरिंग का आदेश कोई भी अधिकारी दे सकता है । इसलिए कल्याण सिंह ने 5 दिसंबर की शाम को ही समस्त अधिकारियों को एक लिखित आदेश जारी किया था और वो ये था कि कोई भी कारसेवकों पर गोली नहीं चलाएगा ।   

- ये फैसला लेना... संवैधानिक पद पर बैठे हुए किसी व्यक्ति के लिए आसान नहीं था । कल्याण सिंह इस बात को जानते थे कि जब वो ये फैसला ले रहे हैं तो अगर अयोध्या में कुछ हो जाता है तो इससे उनकी कुर्सी चली जाएगी... सारी दुनिया उन पर आरोप लगाएगी... ये कहा जाएगा कि कल्याण सिंह एक अराजक मुख्यमंत्री हैं... ये आरोप ही मंदिर आंदोलन का वो विष था... जिसे कल्याण सिंह ने अमृत मानकर पी लिया । 

-आखिर वही हुआ 6 दिसंबर 1992 को दोपहर साढ़े 11 बजे कारसेवक ढांचे को तोड़ने लगे... कल्याण सिंह को पल पल की खबर मिल रही थी.... लेकिन वो आराम से अपने मुख्यमंत्री आवास पर जाड़े की धूप सेंक रहे थे... दिल्ली से फोन घनघना रहे थे लेकिन कल्याण सिंह ने राम भक्ति को प्राथमिकता दी और किसी की कोई बात नहीं सुनी

- केंद्र से गृहमंत्री चव्हाण का फोन आया और उन्होंने कहा कि कल्याण जी मैंने ये सुना है कि कारसेवक ढांचे पर चढ गए हैं तब कल्याण सिंह ने जवाब दिया कि मेरे पास आगे की खबर है और वो ये है कि कारसेवकों ने ढांचा तोड़ना शुरू भी कर दिया है लेकिन ये जान लो कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा गोली नहीं चलाऊंगा गोली नहीं चलाऊंगा

- कल्याण सिंह के पूरे व्यक्तित्व और महानता का दर्शन सिर्फ इसी एक लाइन से हो जाता है... कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा... मैं गोली नहीं चलाऊँगा... मैं गोली नहीं चलाऊंगा । ढांचा टूट रहा था और केंद्रीय सुरक्षा बल विवादित स्थल पर आने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कल्याण सिंह ने ऐसी व्यवस्था करवा दी कि केंद्रीय सुरक्षा बल भी ढांचे तक नहीं पहुंच सके और आखिरकार ढांचा टूट गया... वो कलंक... वो छाती का शूल... वो बलात्कार अनाचार का दुर्दम्य प्रतीक भारत मां की छाती से हटा दिया गया... चारों तरफ हर्ष फैल गया... जन्मभूमि मुक्त हो गई

- नरसिम्हा राव अब कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त करने का फैसला लेने जा रहे थे लेकिन उससे पहले ही शाम साढे 5 बजे कल्याण सिंह राजभवन गए राज्यपाल से मिले और अपना इस्तीफा सौंप दिया... यानी कुर्सी छोड़ दी लेकिन गोली नहीं चलाई... सिंहासन को लात मार दिया और श्री राम की गोद में बैठ गए... श्रीराम के प्यारे भक्त बन गए । ऐसे थे हमारे कल्याण सिंह



- अगर कल्याण सिंह नहीं होते तो शायद किसी और मुख्यमंत्री में ये फैसला लेने की ताकत नहीं होती । कल्याण सिंह ने इसलिए भी गोली ना चलाने का लिखित आदेश दिया ताकि कल को कोई अफसरों को जिम्मेदार नहीं ठहराए । कल्याण सिंह ने कहा कि सारी जिम्मेदारी मेरी है जो करना है वो मेरे साथ करो । सजा  मुझे दो । 

- अगर कल्याण सिंह नहीं होते तो बाबरी नहीं गिरती... अगर बाबरी की दीवारें नहीं गिरतीं तो पुरातत्विक सर्वेक्षण नहीं होता... बाबरी की दीवार के नीचे मौजूद मंदिर की दीवार नहीं मिलती... कोर्ट में ये साबित नहीं हो पाता कि यही रामजन्मभूमि है ।

- उस कलंक के मिटने का जो शुभ कार्य हुआ.... उसका श्रेय स्वर्गीय कल्याण सिंह जी को है... 6 दिसंबर कल्याण सिंह के पॉलिटिकल करियर को कालसर्प की तरह डस गया लेकिन कल्याण सिंह का यश दिग दिगंत में फैल गया । 

- सबसे जरूरी बात अगर कल्याण सिंह ने गोली चलवा दी होती तो बीजेपी और एसपी में कोई फर्क नहीं रह जाता और आज मोदी प्रधानमंत्री भी नहीं होते इसीलिए ये सत्य है कि जहर पिया कल्याण ने अमृत पिया बीजेपी ने ।

मैं उस पुण्य आत्मा को अपने हृदय और आत्मा में मौजूद समस्त ऊर्जा के साथ नमन करता हूं... प्रणाम करता हूं... ईश्वर आपको मोक्ष दे 
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जय श्री राम।

बच्छ-बारस पर थोड़ा-सा आत्म-मन्थन



(बच्छ-बारस पर थोड़ा-सा आत्म-मन्थन)
"नन्दिनी! आज तो बड़ी चमक रही हो! पीली साड़ी में सज-धज कर कहाँ से आ रही हो? और वो भी इतनी सुबह-सुबह!" पास में रहने वाली सुरभी सजी-धजी नन्दिनी को देख कर पूछ बैठी।
"अरे हाँ! आज हमारे यहाँ बच्छ-बारस की पूजा होती है। तो मैं भी सुबह जल्दी ही तैयार हो कर शहर की गोशाला गई थी, बछड़े और गाय की पूजा करने।"
"हो गई पूजा अच्छे से!"
"नहीं" चिढ़े हुए स्वर में नन्दिनी बोली।
"क्यूँ? क्या गोशाला में भी गाय-बछड़े नहीं मिले?" सुरभी को आश्चर्य हुआ।
"नहीं सुरभी! गायें तो वहाँ पर बहुत थी, पर‐‐‐‐"
"पर क्या नन्दिनी! तुम्हारा तो नाम भी कामधेनु की बेटी के नाम पर ही रखा हुआ है। तुम्हारी ही कामना अधूरी रह गई, ऐसा कैसे!" सुरभी ने चुटकी ली।
"अब क्या बताऊँ तुम्हें सुरभी!" हताशा भरे स्वर में नन्दिनी बोली।
"अरे, वही बता जो हुआ है। मुझे बहुत अचरज हो रहा है कि गायें होने पर भी तुम पूजा कर के क्यों नहीं आई।"
पूरी बात बताने के लिए नन्दिनी सुरभी के घर की सीढ़ियों पर थाली रख कर बैठ गई और लम्बी साँस छोड़ते हुए बोलने लगी। 
"आज सुबह तो मैं बड़ी जल्दी उठी। सुबह से क्या कल रात से ही शादी के बाद की पहली बच्छ-बारस की तैयारी कर रही हूँ। रात में ही बाजरे का आटा ले कर आई, तैयार भीगे हुए मूंग-मोठ भी लाई, साड़ी-गहने सभी रख कर सोई ताकि जल्दी से पूजा कर पाऊँ। गोशाला भी समय पर पहुँच गई। वहाँ और भी कई परिवार आए हुए थे पूजा के लिए। पर वहाँ पहुँच कर पता चला कि गोशाला प्रबन्धक कुछ लोगों को तो पूजा के लिए द्वार खोल कर आगे भेज रहा था और कुछ को लौट जाने को कह रहा था। जब हमारी बारी आई तो पता चला कि जिन लोगों ने भी चमड़े का बना कोई भी सामान पहना था, उनसे कहा जा रहा था कि चमड़ा त्याग कर प्रतिज्ञा करें कि भविष्य में कोई भी चमड़े की वस्तु नहीं खरीदेंगे।"
"अरे! ये क्या बात हुई? चमड़े के सामान का पूजा से क्या सम्बन्ध?" जिज्ञासा भरी सुरभी पूछ बैठी।
"ये ही मैंने भी पूछा उन अंकल से, तो उन्होंने लम्बा-सा भाषण ही दे दिया।"
"बेटा जी! ये चमड़ा इसी गो और उसके अजन्मे बच्चे को 200 डिग्री के गर्म पानी के फव्वारे के नीचे रख, आधा गला छुरी से काट कर अर्द्ध-मृत स्थिति में ही उसकी खाल उधेड़ कर प्राप्त किया जाता है। उसी से ये सब बनता है। बालों को बान्धने का बैण्ड, कलाई घड़ी का बेल्ट, जैकेट, जूते, पर्स वगैरह।"
नन्दिनी आगे बोली "मैंने तो तपाक से कह दिया - क्या अंकल! आप भी बिना सिर-पैर की बातें कर रहे हो। ना तो ऐसा कहीं कुछ होता है और ना ही हम ऐसा कुछ करने के लिए किसी को कहते हैं। अगर ऐसा होता भी हो तो हम क्या कर सकते हैं! लेकिन वो अंकल भी कहाँ मानने वाले थे। फिर शुरू हो गए।" 
"बेटा, आप पूरी बात बताने पर भी समझे नहीं हो तो मैं जो कह रहा हूँ उस विषय में इन्टरनेट पर पढ़ सकते हो। बिजली के खुले तार पर हाथ चाहे जान-बूझकर रखो या भूल से, झटका तो लगेगा ही। आप ने तो नहीं कहा, लेकिन जब आप खरीदने जाते हो और बिक्री बढ़ती है तो बेचने वाला भी बार-बार इन मूक गायों को अधिक से अधिक वध करने लगता है। माँग और पूर्ति का नियम तो समझते हो ना! जितना खरीदोगे उतना ही बिकेगा और तुम भी उस पाप के भागीदार बनोगे।"
नन्दिनी झुंझला कर बोली "मेरे तो कान ही पक गए उनकी बातें सुन-सुन कर। मैंने भी कह दिया क्या बात करते हैं अंकल! हम कहाँ से पाप से भागीदार हो गए? पर अंकल तो मानने को ही तैयार नहीं।"
"इन सब से बचने के लिए किसी एक को तो आगे आना ही होगा। आप बच्छ-बारस का त्यौहार मनाते हो, किन्तु इसकी गहराई समझे बिना। ये त्यौहार इसलिए मनाया जाता है ताकि गो सम्वर्द्धन हो सके। बछड़े हृष्ट-पुष्ट हो सके। धरती की धुरी, धर्म की आत्मा, कान्हा की आस्था, शिव का वाहन, स्वर्ग की समृद्धि का आधार कामधेनु, राजा राम के पूर्वजों को वंशज देने वाली पूजित कामधेनु पुत्री नन्दिनी-सुरभी आदि गोमाता को सनातन धर्म में इसीलिए इतना महत्व दिया गया है। दुर्भाग्य से ये सब हम ने हमारे बच्चों से साझा ही नहीं किया और ये ज्ञान आगे नहीं पहुँचा। इसीलिए आज बच्छ-बारस के इस शुभ अवसर पर मैंने सोचा कि ये जन-जागृति लाऊँ और गो-सम्वर्द्धन की लम्बी-मजबूत जंजीर के लिए एक कड़ी बनूँ।"
सुरभी चकित सुन ही रही थी कि नन्दिनी फिर से भनभनाती हुई बोली "अब तो मैंने हाथ जोड़ दिया। मैं बोली रूकिये अंकल, बहुत हो गया आपका प्रवचन। ये सब बातें मेरी समझ के बाहर हैं। आप तो यूँ कह रहे हो जैसे काई महाराज कथा-वाचन कर रहे हो। ये सब चीज़ें फेंकना या भविष्य में न खरीदना तो सम्भव नहीं है। आप तो ये बताओ कि हम पूजा कर सकते हैं या नहीं। पर अंकल तो अंकल हैं। जाते-जाते और ज्ञान ढोल गए।"
"यहाँ तो नहीं कर सकते हो मैडम। हाँ, शहर में एक जगह गोवध होता है, वहीं चले जाओ। पूजा भी कर लेना और लौटते हुए कुछ चमड़े की वस्तुएँ भी खरीद लेना।"
ठण्डी आँह भरते हुए नन्दिनी बोली "मैं भी वहाँ से आ गई। और रास्ते में मैंने मम्मी से बात कर ली। मम्मी ने भी कहा कि कोई सनकी बूढ़ा होगा। मम्मी ने मुझे सही युक्ति सुझाते हुए कहा कि तू तो घर पर ही मेरी दी हुई चाँदी की गाय की पूजा कर के व्रत पूरा कर लेना। अब मैं जाती हूँ, बहुत भूख लगी है।"
हतप्रभ सुरभी नन्दिनी को जाते हुए देखती रह गई।

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