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रविवार, 28 मार्च 2021

होली – क्या, क्यों, कैसे?

होली – क्या, क्यों, कैसे? – 
 आजकल असभ्यता का त्योहार माना जाने लगा है। यहाँ तक कि सभ्य एवं शिष्ट व्यक्ति इससे बचने लगे हैं। ऐसा इस कारण हुआ, क्योंकि इसका रूप विकृत हो गया है, अन्यथा यह भी चार प्रमुख त्योहारों में से एक है। अन्य तीन त्योहार हैं- रक्षाबन्धन, विजयदशमी एवं दीपावली। वास्तव में होली आरोग्य, सौहार्द एवं उल्लास का उत्सव है। यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और आर्यों के वर्ष का अन्तिम त्योहार है। यह नई ऋतु एवं नई फसल का उत्सव है। इसका प्रह्लाद एवं उसकी बुआ होलिका से कोई सम्बन्ध नहीं है। होलिका की कथा प्रसिद्ध अवश्य है, किन्तु वह कथा इस उत्सव का कारण नहीं है। यह उत्सव तो प्रह्लाद एवं होलिका के पहले से मनाया जा रहा है। होली क्या है? होली नवसस्येष्टि है (नव= नई, सस्य= फसल, इष्टि= यज्ञ) अर्थात् नई फसल के आगमन पर किया जाने वाला यज्ञ है। इस समय आषाढ़ी की फसल में गेहूँ, जौ, चना आदि का आगमन होता है। इनके अधभुने दाने को संस्कृत में ‘होलक’ और हिन्दी में ‘होला’ कहते हैं। शब्दकल्पद्रुमकोश के अनुसार- तृणाग्निभ्रष्टार्द्धपक्वशमीधान्यं होलकः। होला इति हिन्दी भाषा। भावप्रकाश के अनुसार- अर्द्धपक्वशमीधान्यैस्तृणभ्रष्टैश्च होलकः होलकोऽल्पानिलो मेदकफदोषश्रमापहः। अर्थात् तिनकों की अग्नि में भुने हुए अधपके शमीधान्य (फली वाले अन्न) को होलक या होला कहते हैं। होला अल्पवात है और चर्बी, कफ एवं थकान के दोषों का शमन करता है। ‘होली’ और ‘होलक’ से ‘होलिकोत्सव’ शब्द तो अवश्य बनता है, किन्तु यह नामकरण वैदिक उत्सव का वाचक नहीं है। होली नई ऋतु का भी उत्सव है। इसके पन्द्रह दिन पश्चात् नववर्ष, चैत्र मास एवं वसन्त ऋतु प्रारम्भ होती है। कुछ विद्वानों के अनुसार नववर्ष का प्रथम दिवस वसन्त ऋतु का मध्य-बिन्दु है। दोनों ही अर्थों में होली का समय स्वाभाविक हर्षोल्लास का है। इस समय ऊनी वस्त्रों का स्थान सूती एवं रेशमी वस्त्र ले लेते हैं। शीत के कारण जो व्यक्ति बाहर निकलने में संकोच करते हैं, वे निःसंकोच बाहर घूमने लगते हैं। वृक्षों पर नये पत्ते उगते हैं। पशुओं की रोमावलि नई होने लगती है। पक्षियों के नये ‘पर’ निकलते हैं। कोयल की कूक एवं मलय पर्वत की वायु इस नवीनता को आनन्द से भर देती है। इतनी नवीनताओं के साथ आने वाला नया वर्ष ही तो वास्तविक नव वर्ष है, जो होली के दो सप्ताह बाद आता है। इस प्रकार होलकोत्सव या होली नई फसल, नई ऋतु एवं नव वर्षागमन का उत्सव है। होली के नाम पर लकड़ी के ढेर जलाना, कीचड़ या रंग फेंकना, गुलाल मलना, स्वाँग रचाना, हुल्लड़ मचाना, शराब पीना, भाँग खाना आदि विकृत बातें हैं। सामूहिक रूप से नवसव्येष्टि अर्थात् नई फसल के अन्न से बृहद् यज्ञ करना पूर्णतः वैज्ञानिक था। इसी का विकृत रूप लकड़ी के ढेर जलाना है। गुलाब जल अथवा इत्र का आदान-प्रदान करना मधुर सामाजिकता का परिचायक था। इसी का विकृत रूप गुलाल मलना है। ऋतु-परिवर्तन पर रोगों एवं मौसमी बुखार से बचने के लिए टेसू के फूलों का जल छिड़कना औषधिरूप था। इसी का विकृत रूप रंग फेंकना है। प्रसन्न होकर आलिंगन करना एवं संगीत-सम्मेलन करना प्रेम एवं मनोरंजन के लिए था। इसी का विकृत रूप हुल्लड़ करना एवं स्वाँग भरना है। कीचड़ फेंकना, वस्त्र फाड़ना, मद्य एवं भाँग का सेवन करना तो असभ्यता के स्पष्ट लक्षण हैं। इस महत्त्वपूर्ण उत्सव को इसके वास्तविक अर्थ में ही देखना एवं मनाना श्रेयस्कर है। विकृतियों से बचना एवं इनका निराकरण करना भी भद्रपुरुषों एवं विद्वानों का आवश्यक कर्त्तव्य है। होली क्यों मनायें? भारत एक कृषि-प्रधान देश है, इसलिए आषाढ़ी की नई फसल के आगमन पर मुदित मन एवं उल्लास से उत्सव मनाना उचित है। अन्य देशों में भी महत्त्वपूर्ण फसलों के आगमन पर उत्सव का समान औचित्य है। नव वर्ष के आगमन पर एक पखवाड़े पूर्व से ही बधाई एवं शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करना स्वस्थ मानसिकता एवं सामाजिक समरसता के लिए हितकारी है। साथ-साथ रहने पर मनोमालिन्य होना सम्भव है, जिसे मिटाने के  लिए वर्ष में एक बार क्षमा याचना एवं प्रेम-निवेदन करना स्वस्थ सामाजिकता का साधन है। नई ऋतु के आगमन पर रोगों से बचने के लिए बृहद् होम करना वैज्ञानिक आवश्यकता है, इसलिए इस उत्सव को अवश्य एवं सोत्साह मनाना चाहिए। होली कैसे मनायें? होली भी दीपावली की भाँति नई फसल एवं नई ऋतु का उत्सव है, अतः इसे भी स्वच्छता एवं सौम्यतापूर्वक मनाना चाहिए। फाल्गुन सुदी चतुर्दशी तक सुविधानुसार घर की सफाई-पुताई कर लें। फाल्गुन पूर्णिमा को प्रातःकाल बृहद् यज्ञ करें। रात्रि को होली न जलायें। अपराह्न में प्रीति-सम्मेलन करें। घर-घर जाकर मनोमालिन्य दूर करें। संगीत -कला के आयोजन भी करें। रंग, गुलाल, कीचड़, स्वाँग, भाँग आदि का प्रयोग न करें। इनकी कुप्रथा प्रचलित हो गई है, जिसे दूर करना आवश्यक है। स्वस्थ विधिपूर्वक उत्सव मनाने पर मानसिकता, सामाजिकता एवं वैदिक परम्परा स्वस्थ रहती है। ऐसा ही करना एवं कराना सभ्य, शिष्ट एवं श्रेष्ठ व्यक्तियों का कर्त्तव्य है।
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होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

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