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शनिवार, 8 जून 2024

जानबूझकर यह नैरेटिव सेट किया जा रहा* है कि बीजेपी ने अयोध्या खो दी है. *फैजाबाद नाम का उपयोग नहीं किया गया है और अयोध्या का उपयोग किया गया है।*

*🙏🏻एक बार जरूर ध्यान से पढ़े🙏🏻*

*नेरेटीव कैसे सेट किया जाता है इसका सटीक विश्लेषण*:✍️
 *" बीजेपी अयोध्या नही,बल्कि फैजाबाद (फैजाबाद में पांच विधानसभा है जिस में अयोध्या केवल एक है!!🙄)की सीट हारी है!लेकिन लोग अयोध्या न जाए इसलिए यह भ्रम जानबूझकर फैला रहे है।*"😳


२) *अयोध्या के( राम लहर के कारण ही) वजह से ही पूरे भारत में तीसरी बार बीजेपी सरकार बनाने जा रही है।भगवान श्रीराम  और अयोध्या के वजह से ही बीजेपी आज भी  तीसरी बार सरकार बना रही है।यह भी दुरुस्त करे*.....!!👆👆👆👆🙏

३)  बीजेपी अयोध्या हारी है ,यह खबर इतनी वायरल की गई कि *किसी को एक पल के लिए भी नहीं लगा कि अयोध्या नाम की कोई सीट है ही नहीं. इस सीट का नाम फैजाबाद है*। 😳
४) यहां तक कि अधिकांश आरडब्ल्यू भी इस कथा के झांसे में आ जाते हैं। 
बीजेपी ने अयोध्या की सीट नहीं हारी है, *फैजाबाद की सीट हारी है.*
५) अयोध्या फैजाबाद संसदीय क्षेत्र का छोटा सा हिस्सा है. फ़ैज़ाबाद के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र हैं। अयोध्या 5 में से एक है. अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी को बढ़त मिली है जबकि बाकी 4 सीटों पर बीजेपी को एसपी से कम वोट मिले हैं.

५) *इसलिए बीजेपी ने अयोध्या नहीं खोई है. यह जीत गया है.*

६) *लेकिन जानबूझकर यह नैरेटिव सेट किया जा रहा* है कि बीजेपी ने अयोध्या खो दी है. *फैजाबाद नाम का उपयोग नहीं किया गया है और अयोध्या का उपयोग किया गया है।* 
७) *यूपी में बीजेपी की भारी हार हुई तो यह स्वाभाविक है कि पूरे भारत में बीजेपी समर्थक नाखुश और नाराज होंगे।लेकिन बीजेपी यूपी में 44 सीटें हार गई(वह भी इसलिए की क्षेत्रीय समस्या को नजरंदाज किया गया,ऐसे उम्मीदवार खड़े किए जिसे लोग जानते ही नहीं थे।), *केवल एक सीट को हाइलाइट किया गया और दिखाया गया कि हिंदुओं ने "अयोध्या" खो दी।*
८) *और ये सब उन लोगों ने किया है जिन्होंने आखिरी दिन तक राम मंदिर का विरोध किया. वे दर्शन के लिए भी नहीं गए*।
श्री राम के अस्तित्व पर संदेह करने वालों द्वारा ऐसी कहानी गढ़ी जाती है, मानो बाबर फिर से आ गया हो। 

९) *अब इस पर ध्यान दें - जब हम कहते हैं कि बीजेपी फ़ैज़ाबाद में हार गई, तो यह उसी तरह है जैसे बीजेपी ग़ाज़ीपुर, बारामूला, हैदराबाद, मुर्शिदाबाद (नाम पर भी गौर करें)आदि में हार गई। क्या आप समझते हैं?*

१०) लेकिन जब यह कहा जाता है कि बीजेपी ने अयोध्या खो दी तो संदेश अलग अर्थ लेकर जाता है. अयोध्या का संबंध श्री राम से है. यह हिंदू जागृति से जुड़ा है। अयोध्या शब्द सुनते ही हमारे मन में कई भावनाएँ उभर आती हैं। 

११) *दूसरी बात यह है कि हम आरडब्ल्यू किसी ऐसी चीज पर प्रतिबंध लगाने या उसका बहिष्कार करने में माहिर हैं जो हमें पसंद नहीं है। हम बिना किसी हिचकिचाहट के चीजों/व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाते हैं, उनका बहिष्कार करते हैं।*

शत्रु खेमे (आई.एन.डी.आई.) ने इस मानसिकता का बेहतरीन इस्तेमाल किया🤦🏻‍♀️

१२) *उन्होंने ऐसे पोस्ट/संदेश बनाए -  - हम अयोध्या नहीं जाएंगे यानी अयोध्या पर प्रतिबंध लगाओ'' कुछ बेवकूफों ने तो अपने टिकट भी कैंसिल कर दिए हैं*।

- अगर हम अयोध्या जाएंगे भी तो वहां रुकेंगे नहीं, वहां खाना नहीं खाएंगे, वहां शॉपिंग नहीं करेंगे वगैरह-वगैरह।

आरडब्ल्यू ने इसे उठाया और वायरल कर दिया। 

१३) *अरे जरा सोचो. आप अयोध्या में नहीं रहेंगे तो कहां रहेंगे? जाहिर तौर पर नजदीकी शहर फैजाबाद में जहां जिहादी मानसिकता वाले  संख्या में अधिक हैं, इसलिए वे हमारा पैसा कमाएंगे।*
१४) *इसका मतलब है कि पहले हिंदुओं को अयोध्या न आने के लिए उकसाएं, और अगर कोई जाए तो उन्हें अयोध्या में पैसा खर्च न करने के लिए उकसाएं, जहां हिंदू व्यापार करते हैं। परिणाम - स्थानीय हिंदुओं और आगंतुक हिंदुओं के बीच अविश्वास पैदा करना।*

१५) *बस एक प्रश्न - दक्षिण गोवा में भी भाजपा हार गई। आपमें से कितने लोग दक्षिण गोवा जाना बंद कर देंगे*?🤔 

१६) *नेरेटीव  को समझो और बहकावे में मत आओ*🙏

१७) *"भगवान श्रीराम और अयोध्या  के वजह से ही आज भारत में एक हिंदू शासक अपनी तीसरी बहुमत वाली मजबूत सरकार बनाने जा रहे हैं।*

*इसलिए भगवान श्रीराम और अयोध्या के साथ डट के खड़े रहे, नेरेटिव के झांसे में न आए।अयोध्या जाए ,भगवान श्रीराम जी का दर्शन करे।*🚩🚩🚩

*जय श्री राम* 🚩🚩🚩🚩🚩

शनिवार को भाग्योन्नति का उपाय

शनिवार को भाग्योन्नति का उपाय
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शनि देव सभी नवग्रहों में कुछ विशेष स्थान रखते हैं इसलिए हर जातक इनसे डरता है क्योंकि इन्हें इस संसार में न्यायाधिश होने का पद प्राप्त है। शनिदेव ही व्यक्ति के सभी अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती और ढैय्या के काल में शनि राशि विशेष के लोगों को उनके कर्मों का फल देते हैं। यदि किसी व्यक्ति ने जाने-अनजाने कोई दुष्कर्म किया है तो शनिदेव उस व्यक्ति को उसके दुष्कर्मों की निश्चित सजा देते हैं। इसी कारण ज्योतिषशास्त्र में शनिदेव को क्रूर ग्रह भी माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य पुत्र शनि ग्रह सबसे खतरनाक है। शास्त्रों ने इनका बखान हानिकर और एक सख़्त शिक्षक के रूप में किया है जो की धैर्य, प्रयास और धीरज का प्रतिनिधित्व करते हैं। शनि का कुंडली में बिगाड़ना जीवन में दुर्भाग्य लाता है। शनि ऐसा ग्रह है जिसके प्रति सभी का डर सदैव बना रहता है। शनि के कारण पूरे जीवन की दिशा, सुख-दुख आदि बातें निर्धारित होती हैं। शनि को कष्टप्रदाता भी माना जाता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ताला और चाबी क्रमश: शनि और शुक्र की कारक वस्तुएं होती है। शास्त्रों में शनि को ताला अौर शुक्र को उस ताले की चाबी कहा गया है। ताले का कार्य है चीजों को सुरक्षा प्रदान करना परंतु ताले को अवरोध की संज्ञा भी दी गई है। अगर आप से चाबी बार-बार कहीं खो जाती है। तो आपको सावधान हो जाना चाहिए। शुक्र और शनि के प्रभाव से आपकी गोपनियता को खतरा हो सकता है। ये संकेत है कि आने वाले दिनों में आपको उधार दिए गए पैसों से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं आपका पैसा डूब सकता है। शुक्र-शनि का ये संकेत धन संबंधित रूकावटें और परेशानियों की तरफ इशारा करता है। चाबी के बार-बार खो जाने से आपके जीवन के गातिमान विषयों में रूकावटें आने लगती है। अगर आपके दैनिक जीवन में ताले और चाबी से संबंधित समस्या हो तो समझ लेना चाहिए कि गोचर में यानि वर्तमान में शुक्र और शनि की स्थिति आपके अनुकूल नहीं है।

अगर कभी-कभी आपसे चाबी खो जाती है तो ये साधारण बात है लेकिन अक्सर आपके साथ ऐसा होता है तो ये र्सिफ भूलने की बीमारी या आदत नहीं है। चाबी के गुम हो जाने में भविष्य में होने वाली घटना का संकेत छुपा होता है। चाबी का खोना स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं की तरफ भी इशारा करता है। शुक्र और शनि के प्रभाव से आपको पेट और शरीर के गुप्त स्थानों से संबंधित रोग होने की संभावना रहती है। अगर आपके जीवन में शनि या शुक्र से संबंधित कुछ परेशानी आ रही है जिसके कारण नौकरी, करियर या कारोबार में अनियमितता आ रही है तो इस के लिए आपको एक आसान उपाय बताने दे रहे हैं। 

👉उपाय: 👇
सबसे पहले आप ताले की दुकान पर जाकर लोहे का ताला खरीद लें परंतु ध्यान रखें ताला बंद होना चाहिए खुला ताला नहीं। ताला खरीदते समय उसे न दुकानदार को खोलने दें और न आप खुद खोलें। ताला सही है या नहीं यह जांचने के लिए भी न खोलें। बस बंद ताले को खरीदकर ले आएं। उसे ताले को एक डिब्बे में रखें और शुक्रवार की रात को ही अपने सोने वाले कमरे में बिस्तर के पास रख लें। शनिवार सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर ताले को बिना खोले किसी मंदिर या देवस्थान पर रख दें। ताले को रखकर बिना कुछ बोले, बिना पलटें वापिस अपने घर आ जाए।
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जिसके माथे पर तिलक ना दिखे, उसका सर धड़ से अलग कर दो ------ पुष्यमित्र शुंग

जिसके माथे पर तिलक ना दिखे, उसका सर धड़ से अलग कर दो ------ पुष्यमित्र शुंग
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एक महान क्रांतिकारी हिन्दू राजा -------- 

यह बात आज से 2100 साल पहले की है। एक किसान ब्राह्मण के घर एक पुत्र ने जन्म लिया, नाम रखा गया पुष्यमित्र...........

पूरा नाम पुष्यमित्र शुंग...........

और वो बना एक महान हिन्दू सम्राट जिसने भारत को बुद्ध देश बनने से बचाया। अगर ऐसा कोई राजा कम्बोडिया, मलेशिया या इंडोनेशिया में जन्म लेता तो आज भी यह देश हिन्दू होते।
जब सिकन्दर ब्राह्मण राजा पोरस से मार खाकर अपना विश्व विजय का सपना तोड़ कर उत्तर भारत से शर्मिंदा होकर मगध की और गया था उसके साथ आये बहुत से यवन वहां बस गए। अशोक सम्राट के बुद्ध धर्म अपना लेने के बाद उनके वंशजों ने भारत में बुद्ध धर्म लागू करवा दिया। ब्राह्मणों के द्वारा इस बात का सबसे अधिक विरोध होने पर उनका सबसे अधिक कत्लेआम हुआ। हज़ारों मन्दिर गिरा दिए गए। इसी दौरान पुष्यमित्र के माता पिता को धर्म परिवर्तन से मना करने के कारण उनके पुत्र की आँखों के सामने काट दिया गया। बालक चिल्लाता रहा मेरे माता पिता को छोड़ दो। पर किसी ने नही सुनी। माँ बाप को मरा देखकर पुष्यमित्र की आँखों में रक्त उतर आया। उसे गाँव वालों की संवेदना से नफरत हो गयी। उसने कसम खाई की वो इसका बदला बौद्धों से जरूर लेगा और जंगल की तरफ भाग गया।

एक दिन मौर्य नरेश बृहद्रथ जंगल में घूमने को निकला। अचानक वहां उसके सामने शेर आ गया। शेर सम्राट की तरफ झपटा। शेर सम्राट तक पहुंचने ही वाला था की अचानक एक लम्बा चौड़ा बलशाली भीमसेन जैसा बलवान युवा शेर के सामने आ गया। उसने अपनी मजबूत भुजाओं में उस मौत को जकड़ लिया। शेर को बीच में से फाड़ दिया और सम्राट को कहा की अब आप सुरक्षित हैं। अशोक के बाद मगध साम्राज्य कायर हो चुका था। यवन लगातार मगध पर आक्रमण कर रहे थे। सम्राट ने ऐसा बहादुर जीवन में ना देखा था। सम्राट ने पूछा 

” कौन हो तुम”। 

जवाब आया ” ब्राह्मण हूँ महाराज”। 

सम्राट ने कहा “सेनापति बनोगे”?

 पुष्यमित्र ने आकाश की तरफ देखा, माथे पर रक्त तिलक करते हुए बोला “मातृभूमि को जीवन समर्पित है”। उसी वक्त सम्राट ने उसे मगध का उपसेनापति घोषित कर दिया।

जल्दी ही अपने शौर्य और बहादुरी के बल पर वो सेनापति बन गया। शांति का पाठ अधिक पढ़ने के कारण मगध साम्राज्य कायर ही चूका था। पुष्यमित्र के अंदर की ज्वाला अभी भी जल रही थी। वो रक्त से स्नान करने और तलवार से बात करने में यकीन रखता था। पुष्यमित्र एक निष्ठावान हिन्दू था और भारत को फिर से हिन्दू देश बनाना उसका स्वपन था।

आखिर वो दिन भी आ गया। यवनों की लाखों की फ़ौज ने मगध पर आक्रमण कर दिया। पुष्यमित्र समझ गया की अब मगध विदेशी गुलाम बनने जा रहा है। बौद्ध राजा युद्ध के पक्ष में नही था। पर पुष्यमित्र ने बिना सम्राट की आज्ञा लिए सेना को जंग के लिए तैयारी करने का आदेश दिया। उसने कहा की इससे पहले दुश्मन के पाँव हमारी मातृभूमि पर पड़ें हम उसका शीश उड़ा देंगे। यह नीति तत्कालीन मौर्य साम्राज्य के धार्मिक विचारों के खिलाफ थी। सम्राट पुष्यमित्र के पास गया। गुस्से से बोला ” यह किसके आदेश से सेना को तैयार कर रहे हो”। पुष्यमित्र का पारा चढ़ गया। उसका हाथ उसके तलवार की मुठ पर था। तलवार निकालते ही बिजली की गति से सम्राट बृहद्रथ का सर धड़ से अलग कर दिया और बोला ” 

"ब्राह्मण किसी की आज्ञा नही लेता”।

हज़ारों की सेना सब देख रही थी। 

पुष्यमित्र ने लाल आँखों से सम्राट के रक्त से तिलक किया और सेना की तरफ देखा और बोला 

“ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण था, ना पुष्यमित्र, महत्वपूर्ण है तो मगध, महत्वपूर्ण है तो मातृभूमि, क्या तुम रक्त बहाने को तैयार हो??”...........

उसकी शेर सी गरजती आवाज़ से सेना जोश में आ गयी। सेनानायक आगे बढ़ कर बोला “हाँ सम्राट पुष्यमित्र । हम तैयार हैं”। पुष्यमित्र ने कहा” आज मैं सेनापति ही हूँ।चलो काट दो यवनों को।”।

जो यवन मगध पर अपनी पताका फहराने का सपना पाले थे वो युद्ध में गाजर मूली की तरह काट दिए गए। एक सेना जो कल तक दबी रहती थी आज युद्ध में जय महाकाल के नारों से दुश्मन को थर्रा रही है। मगध तो दूर यवनों ने अपना राज्य भी खो दिया। पुष्यमित्र ने हर यवन को कह दिया की अब तुम्हे भारत भूमि से वफादारी करनी होगी नही तो काट दिए जाओगे।

इसके बाद पुष्यमित्र का राज्यभिषेक हुआ। उसने सम्राट बनने के बाद घोषणा की अब कोई मगध में बुद्ध धर्म को नही मानेगा। हिन्दू ही राज धर्म होगा। उसने साथ ही कहा 

“जिसके माथे पर तिलक ना दिखा वो सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा”। 

उसके बाद पुष्यमित्र ने वो किया जिससे आज भारत कम्बोडिया नही है। उसने लाखों बौद्धों को मरवा दिया। बुद्ध मन्दिर जो हिन्दू मन्दिर गिरा कर बनाये गए थे उन्हें ध्वस्त कर दिया। बुद्ध मठों को तबाह कर दिया। चाणक्य काल की वापसी की घोषणा हुई और तक्षिला विश्विद्यालय का सनातन शौर्य फिर से बहाल हुआ।

शुंग वंशवली ने कई सदियों तक भारत पर हुकूमत की। पुष्यमित्र ने उनका साम्राज्य पंजाब तक फैला लिया।
इनके पुत्र सम्राट अग्निमित्र शुंग ने अपना साम्राज्य तिब्बत तक फैला लिया और तिब्बत भारत का अंग बन गया। वो बौद्धों को भगाता चीन तक ले गया। वहां चीन के सम्राट ने अपनी बेटी की शादी अग्निमित्र से करके सन्धि की। उनके वंशज आज भी चीन में “शुंग” उपनाम ही लिखते हैं।

पंजाब- अफ़ग़ानिस्तान-सिंध की शाही ब्राह्मण वंशवली के बाद शुंग शायद सबसे बेहतरीन ब्राह्मण साम्राज्य था। शायद पेशवा से भी महान।

गर्व करे अपने पूर्वजों पर जिन्होंने अपने बलिदान कर हमे आज सर उठा कर जीने का अधिकार दिलाया।
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पाप-पुण्य के बुरे और अच्छे फल भुगतने की धारणा क्यों ?

पाप-पुण्य के बुरे और अच्छे फल भुगतने की धारणा क्यों ?
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शास्त्र में कहा है-'पापकर्मेति दशधा।' अर्थात् पाप कर्म दस प्रकार के होते हैं। हिंसा (हत्या), स्तेय (चोरी), व्यभिचार-ये शरीर से किए जाने वाले पाप हैं। झूठ बोलना (अनृत), कठोर वचन कहना ( परुष) और चुगली करना-ये वाणी के पाप हैं। परपीड़न और हिंसा आदि का संकल्प करना, दूसरों के गुणों में भी अवगुणों को देखना और निर्दोष जनों के प्रति दुर्भावनापूर्ण दृष्टि (कुदृष्टि) रखना, ये मानस पापकर्म कहलाते हैं। इन कर्मों को करने से अपने को और दूसरे को कष्ट ही होता है। अतः ये कर्म हर हालत में दुखदायी ही हैं।

स्कंदपुराण में कहा गया है कि

अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥ -स्कंदपुराण केदारखंड ।

अर्थात अठारह पुराणों में व्यासजी की दो ही बातें प्रधान हैं-परोपकार पुण्य है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाना पाप है। यही पुराणों का सार है। प्रत्येक व्यक्ति को इसका मर्म समझकर आचरण करना चाहिए। परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई। कहकर तुलसीदास ने इसी तथ्य को सरलता से समझाया है।

मार्कण्डेयपुराण (कर्मफल) 14/25 में कहा गया है कि पैर में कांटा लगने पर तो एक जगह पीड़ा होती है, पर पाप-कर्मों के फल से तो शरीर और मन में निरंतर शूल उत्पन्न होते रहते हैं।

पाराशरस्मृति में कहा गया है कि पाप कर्म बन पड़ने पर छिपाना नहीं चाहिए। छिपाने से वह बहुत बढ़ता है। यहां तक कि मनुष्य सात जन्मों तक कोढ़ी, दुखी, नपुंसक होता है पाप छोटा हो या बड़ा, उसे किसी धर्मज्ञ से प्रकट अवश्य कर देना चाहिए। इस प्रकार उसे प्रकट कर देने से पाप उसी तरह नष्ट हो जाते हैं, जैसे चिकित्सा करा लेने पर रोग नष्ट हो जाते हैं।

महाभारत वनपर्व 207/51 में कहा गया है कि जो मनुष्य पाप कर्म बन जाने पर सच्चे हृदय से पश्चाताप करता है, वह उस पाप से छूट जाता है तथा 'फिर कभी ऐसा नहीं करूंगा ऐसा दृढ़ निश्चय कर लेने पर वह भविष्य में होने वाले दूसरे पाप से भी बच जाता है।

शिवपुराण 1/3/5 में कहा गया है कि पश्चाताप ही पापों की परम निष्कृति है। विद्वानों ने पश्चाताप से सब प्रकार के पापों की शुद्धि होना बताया है। पश्चाताप करने से जिसके पापों का शोधन न हो, उसके लिए प्रायश्चित्त करना चाहिए।

पापों का प्रायश्चित्त न करने वाले मनुष्य नरक तो जाते ही हैं, अगले जन्मों में उनके शरीरों में उन पापों के लक्षण आदि भी प्रकट होते हैं। अतः पाप का निवारण करने को प्रायश्चित्त अवश्य कर लेना चाहिए। स्वर्ग के द्वार पर भीड़ लगी थी। धर्मराज को छंटनी करनी थी कि किसे प्रवेश दें और किसे न दें। परीक्षा के लिए उन्होंने सभी को दो कागज दिए और एक में अपने पाप और दूसरे में पुण्य लिखने को कहा। अधिकांश लोगों ने अपने पुण्य तो बढ़ा-चढ़ा कर लिखे, पर पाप छिपा लिए। कुछ आत्माएं ऐसी थीं,

जिन्होंने अपने पापों को विस्तार से लिखा और प्रायश्चित्त पूछा । धर्मराज ने अंतःकरणों की क्षुद्रता और महानता
जांची और पाप लिखने वालों को स्वर्ग में प्रवेश दे दिया।

पुण्य के अच्छे फल की मान्यता क्यों ?
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जिन कर्मों से व्यक्ति और समाज की उन्नति होती है, उन्हें पुण्य कर्म कहते हैं। सभी शास्त्रों और गोस्वामी तुलसीदास ने परोपकार को सबसे बड़े धर्म के रूप में माना है-परहित सरिस धर्म नहिं भाई। अर्थात् परोपकार के समान महान् धर्म कोई अन्य नहीं है।

द्रौपदी जमुना में स्नान कर रही थी। उसने एक साधु को स्नान करते देखा। हवा में उसकी पुरानी लंगोटी उड़कर पानी में बह गई। ऐसे में वह बाहर निकलकर घर कैसे जाए, सो झाड़ी में छिप गया। द्रौपदी स्थिति को समझ गई और उसने झाड़ी के पास जाकर अपनी साड़ी का एक तिहाई टुकड़ा फाड़कर लंगोट

बनाने के लिए साधु को दे दिया। साधु ने कृतज्ञतापूर्वक अनुदान स्वीकार किया। दुर्योधन की सभा में जब द्रौपदी की लाज उतारी जा रही थी। तब उसने भगवान् को पुकारा। भगवान् ने देखा कि द्रौपदी के हिस्से में एक पुण्य जमा है। साधु की लंगोटी वाला कपड़ा व्याज समेत अनेक गुना हो गया है भगवान् ने उसी को द्रौपदी तक पहुंचाकर उसकी लाज बचाई।
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