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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

ऐसे जैविक अस्त्र भविष्य में भी देखने को मिलेंगे। इसके लिए सभी देशों को तैयारियां कर लेनी चाहिए।

विगत कुछ दिनों में कोरोना की कृपा से विश्वपरिद्रृश्य में अपने सामाजिक परिवेश के अन्वेषण का समय मिला। 
विन्दूवार प्रस्तुत है;

👉चीनी कम्युनिस्ट पंथ (वामपंथ) बेहद निर्दयी और निर्मम रहा है। क्योंकि यह लोग अपनी सफलता के लिए कुछ भी करने से पीछे नहीं हटते है। चाहे इसके कुछ भी करना पड़े। तभी तो माओ ने अपनी सत्ता और ताकत के लिए चीन में 1966 से 1976 तक कल्चर रेवोल्यूशन चलाया था। जिसमें लाखों लोगों का कत्लेआम हुआ। माओ ने अपने सामने खड़े होने वाले हर शख्स को हटवा दिया। सड़कें लाल रंग से नहा गई थी। चीन ने ऐसे कत्लेआम कदम तब उठाए है जब उनका शासक संकट से घिरा हो। ताकत कम होने का ख़तरा बना हो।

👉पिछले कुछ सालों से चीन अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर में उलझा हुआ था। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने  चीन की उलझनें काफ़ी बढा दी थी। इधर, हांगकांग में बड़ा आजादी आंदोलन शेप ले रहा था। जिसे अंतराष्ट्रीय पटल पर खूब कवरेज दी जा रही थी। 

चीन को समझ नहीं आ रहा था। कि आख़िर ऐसा क्या किया जाए। जिससे हांगकांग वाला मुद्दा दब जाए और सभी देशों का ध्यान डाइवर्ट हो जाए। हालांकि हांगकांग का आंदोलन 2013-14 से अस्तित्व में आया था। लेकिन इसका पीक टाइम 2019 सितम्बर-अक्टूबर रहा। दुनिया के देशों की नजर हांगकांग पर थी। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में हांगकांग सुर्ख़ियों का केंद्र बन चुका था।

👉यूके भी हांगकांग को पुनः अपना उपनिवेशक बनाने को उतारू नजर आ रहा था। कि चीन के वुहान शहर ने तेजी से अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान और रुख बदला। उनके दिमाग में हांगकांग को निकालकर 'कोविड-19' वायरस को डाल दिया। धीरे-धीरे इस वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। ऐसा कोई देश नहीं बचा, जहाँ चीनी वायरस ने दस्तक न दी हो। इसके खौफनाक कहर से दुनिया के सबसे सम्पन्न और सामर्थ्यवान देशों के हेल्थ सिस्टम धराशाई हो चले। इन देशों के राष्ट्राध्यक्ष बेबस नजर आए। 

चारों तरह सिर्फ़ और सिर्फ़ कोविड-19 ही रहा और अभी बदस्तूर जारी है। चीन ने दुनिया भर में अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए पूरी दुनिया में मौतों का सिलसिला शुरू कर दिया। क्योंकि चीनी शासक अपनी कामयाबी और मकसद के लिए लाशें बिछाने में कोई परहेज नहीं करते है। इन लोगों ने इसकी शुरुआत अपने देश से की। आज पूरी दुनिया इनकी सनक का शिकार है। 

👉कोविड-19 के तहत चीन ने दुनिया में जैविक वॉर छेड़ दी है। ऐसा पहली बार नहीं है जब चीन ने पहला जैविक अस्त्र चलाया है। इससे पहले 2002-2004 में सार्स आउटब्रेक सामने आया था। हालांकि इसका दायरा ईस्ट एशिया रहा। कुछ केसेज अन्य देशों में भी देखने को मिले। सार्स ने कुल 30 टेरेट्रीज में दस्तक दी थी। चीन ने सार्स को शुंड फोर्शन शहर ग्वांगडोंग से लॉन्च आई मीन लीक किया था। इस वायरस की चपेट में आठ हजार से ज्यादा केसेज  आए। जबकि आठ सौ से ज्यादा मौतें हुई थी।

👉कोविड-19 से चीन ने हांगकांग और अमेरिका से ट्रेड वॉर को काबू कर लिया है। डोनाल्ड ट्रम्प को सत्ता से बेदखल कर करवा दिया। 
👉👉भारत में कोविड-19 की दूसरी वेब, जो इन दिनों जबर कहर बरपा रही है। इसके पीछे चीनी साजिश है। चीन ऐसे ही गुरिल्ला द्वंद्व से अपने दुश्मनों पर काबू पाता आया है। 

कुछ रोज़ पहले एक रिपोर्ट पढ़ी थी। जिसे नामी पत्रकार और लेखक ने अपनी किताब में साझा किया था। कि चीनी नागरिक अपने देश की रक्षा और सुरक्षा के लिए दूसरे देशों की जासूसी करते है। वहाँ से खुफिया जानकारियां इक्कठा करते है। यह जासूस टूरिस्ट बनकर देशों के भ्रमण पर निकलते है और अपना हित साधते है। चीन ने अमेरिका के डिफेंस वेपन्स की चोरी करके, अपने वेपन्स डिजाइन किए है। इन डिजाइन्स को चुराने में चीनी नागरिकों ने महत्वपूर्ण सहयोग दिया है।

जब भारत ने फ्रांस के साथ राफेल डील फाइनल की थी। उसके बाद देश में राफेल को लेकर खूब बवाल हुआ था। इसका कारण था। कि चीन को चिंता सता रही थी कि आखिर भारत ने राफेल का कौनसा मॉडल खरीदा है। चीन को यह जानकारी हर हाल में चाहिए थी। लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली और भारत में बैठे उसके सारे जासूस धराशाई हो गए। 

👉कोविड-19 ने दुनियाभर में इतनी तबाही मचाई है मौत का तांडव किया है। लेकिन कोई भी देश चीन से कुछ कहने की हालत में नहीं है। सिर्फ़ डोनाल्ड ट्रंप ने ही सार्वजनिक मंच से कोविड-19 को चीनी वायरस कहने की हिम्मत दिखाई थी। और इस महामारी के लिए सीधा चीन को ज़िम्मेदार ठहराया था।

ट्रम्प के अलावे किसी और ने एक शब्द चीन से न कहा। बल्कि डब्ल्यू एच ओ भी चीन का भागीदार बना रहा। वुहान में जांच करने की हिम्मत न जुटा पाया है।
::: अमेरिका से सीख लेने की आवश्यकता है राष्ट्रवादी खेमे को  .... 
डोनाल्ड ट्रम्प का नाम अमेरिका के सर्वकालिक उत्तम में से एक और ऐतिहासिक राष्ट्रपति का हो सकता था  ... अमेरिका - उत्तर कोरिया - दक्षिण कोरिया सन्धि करने की बात चीत  ...  इजराइल - अरब अमीरात - बहरीन सम्बन्ध जिसमें जल्द ही सऊदी तक सम्मिलित होने के कगार पर था ... कंपनीयाँ जो अमरीका से माइग्रेट होकर कभी कनाडा - मैक्सिको - चीन आदि चली गयी थीं उनमे से तीन हज़ार के ऊपर ट्रम्प के कार्यकाल में वापस अमेरिका आ गयी थी  .... Trump ने किसी भी देश पर कभी हमला नहीं किया उल्टा इराक - अफगानिस्तान से अपने सैनिक वापस बुलाने पर काम किया .... 
लेकिन गलती ट्रम्प से हुई कि अपने बोल के कारण इतने काम के बाद भी वो Politically correct नहीं रहे  ... अपने हाव भाव, बोल बचन और communist मीडिया से सीधे भिड़ जाने की शैली ने उनको Politically Incorrect बनाकर ऐसे प्रस्तुत कर दिया जैसे वो नल्ले नकारा हों  ... अमेरीका में ट्रम्प विरोधी से बात कीजिए - उनमे से अधिकतर वो सिर्फ ट्रम्प के बोल बचन के कारण विरोधी दिखेगा, जब उनको ऊपर वाले बात बताइये तो वो मानेगा लेकिन फिर वही बोल बचन  ...  पोलिटिकल करेक्ट होने के कारण बराक हुसैन ओबामा लीबिया को मटियामेट करने और दुनिया भर में २८००० से ऊपर बम मारने के बाद भी नोबेल शांति पुरस्कार ले जाते हैं और आज तक प्रत्येक वर्ग के दुलारे हैं, उनका इस हर काम में हमराही Biden चुनाव जीत जाता है  .... जबकि इतने काम के बाद भी Political Incorrect बोल बचन के कारण ट्रम्प हार जाते हैं  .... 
अतः अपने बोल बचन से Political correct रहना आवश्यक है - न सिर्फ नेता को बल्कि समर्थक को भी ... This is the value of being politically correct.    
 . 
भारत में मोदी विरोधी कम्युनिस्ट मीडिया को देखिये कि उन्होंने कितने जतन न किये मोदी को परास्त करने के .... मोदी जी ने कभी भी politically Incorrect prove होने का साजो सामान कम्युनिस्ट गैंग के हाथ न लगने दिया .... वैसे तो comparision बेकार है लेकिन भारत में महाराष्ट्र के ऊधो का  हरकत देखिए, आज अर्नब गोस्वामी में लोग राष्ट्रीय नायक देखने लगे हैं  ...  जबकि कभी मीडिया में कम्युनिस्टों के आँख के तारे रहे अजित अंजुम, अभिसार, पुण्यप्रसून अपने एक एजेण्डा से सटे हुए इतने repetitive हो गए कि नौकरी गयी और frustrate होकर Youtuber बन गए लेकिन मोदी जी ने एक शब्द न खर्च किये इन पर जबकि इन लोगों ने कितनी अति न पार कर दी, बाकी राजदीप, बर्खा, रवीश जैसी अन्य अपने विश्वसनीयता के zero बिन्दु पर खड़े हैं ... ये अंतर है political correct और incorrect रहने का  ... 
एक कड़ी बात कहना चाहूंगा - अगर आप यह सोच कर सोश्यल मीडिया पर लगे रहते हैं, कि इधर विपक्ष के किसी गिरोह ने आप पर पलटवार किया और उधर पीएम मोदी दक्षिण भारतीय फिल्मों के हीरो की तरह लूंगी बांधे अपना सारा काम काज छोड़ कर आपको छुड़ाने पुलिस थाने में पहुंच जायेंगे, थानेदार को अइयो रास्कला ... कहते हुए, तो भगवान के लिए अपने काम धंधे में ही समय दीजिये. राष्ट्र का कार्य आपके और मेरे बिना भी कमोवेश चलता रहा था, चलता रहेगा भी.
It is important to be politically correct  .....  इस बात को ट्रम्प नहीं जानते थे लेकिन मोदी जी को इस पर कोई संदेह नहीं .... एक अर्नब के जेल जाने से कभी भी भाजपा को वोट न देने का कसम, मोदी को नपुन्सक, लाशों की राजनीती करने वाला, अर्नब की लाश सूट करती है आदि और न जाने क्या क्या बोलने वाले लोग एक  politically incorrect कदम होने पर ego के चरम पर ले जाकर अपने ही पैर पे कुल्हाड़ी मार लेंगे ये पता है मोदी को  .... अभी भी राष्ट्रवादी खेमा इतना mature नहीं हुआ - ये बात मोदी को बहुत अच्छे से पता है  और उससे अधिक विरोधी और लेफ्ट लिबरल तथा कम्युनिस्ट गैंग को भी पता है ...

👉ऐसे जैविक अस्त्र भविष्य में भी देखने को मिलेंगे। इसके लिए सभी देशों को तैयारियां कर लेनी चाहिए।

👉शी जिन पेंग ने शायद सितंबर-अक्टूबर में कहा था,"ये तो सिर्फ शुरूआत है, कोरोना की दूसरी लहर प्रलयंकारी होगी।" 
वो किसे धमकी दे रहा था?

क्या यह मात्र एक संयोग है कि अमेरिका और भारत ही कोविड से सबसे ज्यादा जूझ रहे हैं जबकि भारत तो प्रथम स्ट्रेन से कुछ आर्थिक हानि उठाकर उबर ही चुका था।

जबकि अभी भी चीनी स्वयं मौज कर रहे हैं। 

वैसे वायरस या अन्य में प्राकृतिक म्यूटेशन इतनी शीघ्रता से भी नहीं ही होता है जितना यह नया स्ट्रेन प्रदर्शित कर रहा है।

तो क्या यह भारत के विरुद्ध एक अघोषित जैविक आक्रमण नहीं है?
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इस महामारी काल में, देश के दुश्मन जो बाहर हैं ओर जो अंदर बैठे हैं, वह हर तरिका अपना रहे हैं हमें कमजोर ओर लाचार बनाने के लिए. कथित तौर पर आज वामपंथी माओवादी नक्सलियों ने झारखंड में हावड़ा से मुंबई जाने वाले "ऑक्सीजन एक्सप्रेस" के रेलवे ट्रैक के हिस्से को विस्फोट से उड़ा दिया है, ताकि ऑक्सीजन की संकट देश में बना रहे, लोग मरते रहें ओर इससे केन्द्र सरकार बदनाम हो सके. चीन के गुलामों, तुम ओर तुम्हारे मालिक जितने भी प्रयास कर लो, भारत की बिकास की पटरी को तुम रोक नहीं सकते...

👉वैक्सीन के खिलाफ साजिश का पर्दाफाश उसी दिन हो गया था जब भारतीय वैक्सीन पर राहुल गांधी और शशि थरूर ने संदेह किया था, अखिलेश यादव ने इसे BJP वैक्सीन डिक्लेअर कर दिया था, केरल के मुख्यमंत्री ने वैक्सीन के खेप को लेने से भी मना कर दिया था !! यहां तक की छत्तीसगढ़ ने अपने राज्य में कोवैक्सन की एंट्री पर ही बैन लगा दिया था !! - नतीजा - लाशों की ढेर लगी है ।इन सभी ने मिलकर लोगों को टीका लगवाने के लिए हतोत्साहित किया !! ओर आज 90% जो लोग मरे हैं, वह सब बिना टीका वाले थे. इन सबका एक ही मकसद था !! मोदी को कैसे बदनाम किया जाए...

हमारे वैज्ञानिको ने एक बार फिर से प्रमाण कर दिया है कि, क्यूं विश्वभर में उनकी डंका बजती रहती है !? I'm sorry to say :- जो लोग COVAXIN को भाजपा की वैक्सीन करार देकर हमारे वैज्ञानिको की मोराल डाउन करके इस पर अपनी घटिया राजनीति करते थे !! अब अमेरिकी वैज्ञानिको ने उनके मुंह पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया है. अब अमेरिका ने Covaxin को Satisfied certificate दिया है. परिक्षण के दौरान Covaxin  COVID-19 के 617 वेरिएंट को बेअसर करते हुए पाया गया है. लेकिन जरा कल्पना कीजिए कि भारत के सारे विपक्ष और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ओर अखिलेश यादव जैसे राजनेता लोगों को टीका लगाने से मना कर रहे थे !! इस बात पर हमें अपने राजनीतिक वर्ग को जवाबदेह रखना चाहिए और उन तथाकथित लुटियंस पत्रकारों और वामपंथी नक्सली टिप्पणीकारों की जांच करनी चाहिए जिन्होंने कोवाक्सिन को नीचा दिखाने के लिए भरपूर कोशिश की थी...
✍🏻 निष्कर्ष;
काश हर राष्ट्रवादी उपरोक्त बातें समझ पाता और सामाजिक चेतना जगती।🙏
अफशोष है कि अभी भी हम राजनीतिज्ञों, चाईनीज दलालों ए्वं चंगेजों द्वारा ४०वें दशक में उलझाकर रखें गए हैं। ताकि हमारे आंखों पर से वर्णवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद एवं ऊंच-नीच का चश्मा(राजनीतिज्ञों द्वारा लादा हुआ) न उतरे।
जिस दिन भारतीय जन-मानस इस यथार्थ को आत्मसात कर लेगी, भारत में सामाजिक क्रान्ति एवं द्रुत विकास को कोई रोक नहीं सकेगा। 
👉 सामाजिक क्रान्ति का दायित्व राजा का नहीं, वल्कि जनसमुदाय का है। जन-मानस विह्वल है धनात्मक परिवर्तन के लिए। 
👉 अभी सही वक्त है मित्रों जागो और नौजवानों को जगाओ ताकि चाइना के इस छद्मयुद्ध के विरुद्ध सामाजिक चेतना जगे एवं राष्टृवाद की क्रांति हो।
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2014 के बाद देश पूरी तरह बर्बाद हो गया है

बात वर्ष 2014 से पहले की है।

  एक दिन मामूली बुखार महसूस हुआ। उस समय  आम आदमी के स्वास्थ्य की देखभाल *राज्य सरकार* नहीं, सीधे *केंद्र सरकार* करती थी और गली गली में केंद्र सरकार के अस्पताल थे।

 मैंने सरकारी अस्पताल फोन कर दिया और तुरंत सरकारी अस्पताल की गाड़ी मुझे लेने आ गई। जब मैं अस्पताल पहुंचा तो बाहर डॉक्टरों की टीम मेरा इंतजार कर रही थी। 
   यह टीम मुझे एक कमरे में ले गई जो फाइव स्टार होटल जैसा था। डॉक्टरों की राय यह थी कि मुझे ऑक्सीजन की जरूरत नहीं है फिर भी चूंकि ऑक्सीजन का बाहुल्य था, इसलिए उन्होंने ऑक्सीजन चढ़ा दी। 

   खाने के लिए उन्होंने मुझे एक मैन्यू कार्ड दिया, जिसमें शाही पनीर से लेकर हैदराबादी कबाब भी शामिल था। हालांकि मैं मेडिक्लेम होने के कारण मेदांता जैसे प्राइवेट अस्पताल में जा सकता था लेकिन सरकारी अस्पताल की शानदार व्यवस्थाओं के मद्देनजर मैंने यहां रुकना उचित समझा वैसे भी मुझे इस सरकारी अस्पताल की हैदराबादी बिरयानी बहुत पसंद थी। 

एक दिन बाद ही मेरा बुखार उतर गया लेकिन डॉक्टरों और नर्सों की मनुहार के चलते मैं 15 -20 दिन अस्पताल में रहा। जिस दिन मुझे डिस्चार्ज किया गया, उस दिन सभी डॉक्टरों और नर्सों की आंखों में आंसू थे।

सन 2014 में नरेंद्र मोदी के कार्य ग्रहण के बाद से हमारे सरकारी अस्पतालों का हाल यह है कि अस्पतालों में बेड नहीं है, ऑक्सीजन नहीं है और खाना इतना खराब है कि किसी की बीवी ऐसा बनाएं तो तलाक हो जाए।

और तो और केंद्र सरकार ने मनमोहन सिंह जी के समय गली-गली में खोले अस्पताल भी बंद कर दिए।
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वर्ष 2014 से पहले एक बार मुझे वैक्सीन लगवाने सरकारी अस्पताल में जाना पड़ा। जाते ही डॉक्टरों ने प्यार भरा उलाहना दिया कि आप क्यों आए हो..? हम 'मनमोहन सिंह टीकाकरण योजना' के अंतर्गत आपका फोन पाते ही खुद आपके घर आकर टीका लगा देते! साथ ही आपको 1500 ₹ की नगद प्रोत्साहन राशि भी वहीं पहुंचा देते!
 
2014 के बाद से रवीश कुमार की रिपोर्टिंग देख देख कर मेरा मन इतना आशंकित हो गया कि मैं केंद्र सरकार द्वारा संचालित पीजीआई अस्पताल में टीकाकरण करवाने के लिए जाने में झिझक रहा था। जैसे-तैसे अस्पताल पहुंचा। वहां सारा काम यूँ तो व्यवस्थित था और वैक्सीन सुचारू रूप से लग गया लेकिन टीका लगने के बाद मुझे अपेक्षा थी कि 2014 से पहले की तरह मुझे अस्पताल की ओर से दूध-जलेबी या पावभाजी या जूस ऑफर की जाएगी लेकिन उन्होंने आधा घंटे रोकने और सब कुछ सामान्य पाने के बाद मुझे चलता कर दिया।

 मुझे यह सब निराशाजनक लगा क्योंकि 2014 से पहले तो सरकारी अस्पताल में 'मनमोहन सिंह टीकाकरण योजना' के अंतर्गत वैक्सीन के बाद शानदार भोजन मिलता था तथा भोजन के साथ-साथ चाट पकौड़ी और दूध जलेबी के स्टॉल भी होते थे। मनपसंद भोजन करते-करते अस्पताल के अधीक्षक महोदय 1500 ₹ की प्रोत्साहन राशि का चेक लेकर आ जाते थे ।
अब नरेंद्र मोदी जी के टाइम में सब कुछ सूखा सूखा ही है।
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2014 में सत्ता में आने के बाद से नरेंद्र मोदी ने सिर्फ 15-20 नए एम्स अस्पताल बनाए हैं जबकि उनका दायित्व था कि पहले की सरकारों की तरह हर गली और हर मोहल्ले में शानदार अस्पताल खोलते।
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 मोदी सरकार के आने से पहले मुकेश अंबानी ढाबा चलाते थे और अडानी सड़क पर पंक्चर बनाया करते थे लेकिन मोदी जी ने अपने इन दोनों लंगोटिया मित्रों को खरबपति बना दिया। यदि मोदी जी सत्ता में नहीं आते तो यह दोनों आज मनरेगा के अंतर्गत  120 रुपए रोज में मजदूरी कर रहे होते ।
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आजकल नरेंद्र मोदी जी अपना सारा ध्यान पश्चिमी बंगाल पर दे रहे हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि इस राज्य की जनता अपने अराजक राज्य की सत्ता भाजपा को सौंप कर इन्हें दंडित करेगी । इस राज्य में सरकार चलाना किसी दंड भोगने जैसा ही होगा।
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 2014 के बाद देश पूरी तरह बर्बाद हो गया है और यह अब रहने लायक नहीं है सुना है, अब हमारी जीडीपी बांग्लादेश से भी कम है। मैं सभी मोदी विरोधी भाइयों और बहनों से अपील करता हूं कि वह बांग्लादेश में स्थाई रूप से बसने के लिए माइग्रेशन आवेदन कर दें या बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों की तरह वे भी बांग्लादेश में अवैध रूप से जाकर बस जाएं ताकि भारत सरकार की न सही अपने परिवार की जी डी पी तो बढ़ जाये। लेकिन हां, जनसंख्या का बोझ कम होने से भारत की भी जीडीपी बढ़ेगी ही।

मुझे तो बस बार-बार मनमोहन सिंह जी के समय के वे स्वर्णिम दिन याद आते हैं, जब हिंदुस्तान सोने की चिड़िया था। सरकारी अस्पताल, मेदांता से अच्छे थे। मेरे शहर का सरकारी स्कूल मोइनिया इस्लामिया  दून स्कूल से बेहतर था । रेलवे के शटल शताब्दी से बेहतर सुविधाएं देते थे। लोग अजमेर से केकड़ी और अजमेर से भिनाय भी हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर से नाम मात्र के किराए में अप-डाउन किया करते थे। चारों ओर दूध-दही की नदियां बहती थी। हर आदमी के पास वाइट कॉलर जॉब, कार और बंगला था। हमारे विधायक, सांसद और अफसर-जज आम आदमी की तरह रहते थे। सब रजिस्ट्रार और परिवहन कार्यालय में घूसखोरी के बजाय वहां के कर्मचारी चाय-पानी भी अपने पैसों से करवाते थे। यहां तक कि अजमेर के रेवेन्यू बोर्ड में भी सारे फैसले निष्पक्ष होते थे ।
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अब मैं इंतजार कर रहा हूं कि अगली बार राहुल भैया, मनमोहन सिंह, प्रियंका दीदी, तेजस्वी यादव, वाड्रा जी या ममता दीदी में से कोई प्रधानमंत्री बने और अच्छे दिन फिर से लौटें।
तथास्तु।
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