बात वर्ष 2014 से पहले की है।
एक दिन मामूली बुखार महसूस हुआ। उस समय आम आदमी के स्वास्थ्य की देखभाल *राज्य सरकार* नहीं, सीधे *केंद्र सरकार* करती थी और गली गली में केंद्र सरकार के अस्पताल थे।
मैंने सरकारी अस्पताल फोन कर दिया और तुरंत सरकारी अस्पताल की गाड़ी मुझे लेने आ गई। जब मैं अस्पताल पहुंचा तो बाहर डॉक्टरों की टीम मेरा इंतजार कर रही थी।
यह टीम मुझे एक कमरे में ले गई जो फाइव स्टार होटल जैसा था। डॉक्टरों की राय यह थी कि मुझे ऑक्सीजन की जरूरत नहीं है फिर भी चूंकि ऑक्सीजन का बाहुल्य था, इसलिए उन्होंने ऑक्सीजन चढ़ा दी।
खाने के लिए उन्होंने मुझे एक मैन्यू कार्ड दिया, जिसमें शाही पनीर से लेकर हैदराबादी कबाब भी शामिल था। हालांकि मैं मेडिक्लेम होने के कारण मेदांता जैसे प्राइवेट अस्पताल में जा सकता था लेकिन सरकारी अस्पताल की शानदार व्यवस्थाओं के मद्देनजर मैंने यहां रुकना उचित समझा वैसे भी मुझे इस सरकारी अस्पताल की हैदराबादी बिरयानी बहुत पसंद थी।
एक दिन बाद ही मेरा बुखार उतर गया लेकिन डॉक्टरों और नर्सों की मनुहार के चलते मैं 15 -20 दिन अस्पताल में रहा। जिस दिन मुझे डिस्चार्ज किया गया, उस दिन सभी डॉक्टरों और नर्सों की आंखों में आंसू थे।
सन 2014 में नरेंद्र मोदी के कार्य ग्रहण के बाद से हमारे सरकारी अस्पतालों का हाल यह है कि अस्पतालों में बेड नहीं है, ऑक्सीजन नहीं है और खाना इतना खराब है कि किसी की बीवी ऐसा बनाएं तो तलाक हो जाए।
और तो और केंद्र सरकार ने मनमोहन सिंह जी के समय गली-गली में खोले अस्पताल भी बंद कर दिए।
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वर्ष 2014 से पहले एक बार मुझे वैक्सीन लगवाने सरकारी अस्पताल में जाना पड़ा। जाते ही डॉक्टरों ने प्यार भरा उलाहना दिया कि आप क्यों आए हो..? हम 'मनमोहन सिंह टीकाकरण योजना' के अंतर्गत आपका फोन पाते ही खुद आपके घर आकर टीका लगा देते! साथ ही आपको 1500 ₹ की नगद प्रोत्साहन राशि भी वहीं पहुंचा देते!
2014 के बाद से रवीश कुमार की रिपोर्टिंग देख देख कर मेरा मन इतना आशंकित हो गया कि मैं केंद्र सरकार द्वारा संचालित पीजीआई अस्पताल में टीकाकरण करवाने के लिए जाने में झिझक रहा था। जैसे-तैसे अस्पताल पहुंचा। वहां सारा काम यूँ तो व्यवस्थित था और वैक्सीन सुचारू रूप से लग गया लेकिन टीका लगने के बाद मुझे अपेक्षा थी कि 2014 से पहले की तरह मुझे अस्पताल की ओर से दूध-जलेबी या पावभाजी या जूस ऑफर की जाएगी लेकिन उन्होंने आधा घंटे रोकने और सब कुछ सामान्य पाने के बाद मुझे चलता कर दिया।
मुझे यह सब निराशाजनक लगा क्योंकि 2014 से पहले तो सरकारी अस्पताल में 'मनमोहन सिंह टीकाकरण योजना' के अंतर्गत वैक्सीन के बाद शानदार भोजन मिलता था तथा भोजन के साथ-साथ चाट पकौड़ी और दूध जलेबी के स्टॉल भी होते थे। मनपसंद भोजन करते-करते अस्पताल के अधीक्षक महोदय 1500 ₹ की प्रोत्साहन राशि का चेक लेकर आ जाते थे ।
अब नरेंद्र मोदी जी के टाइम में सब कुछ सूखा सूखा ही है।
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2014 में सत्ता में आने के बाद से नरेंद्र मोदी ने सिर्फ 15-20 नए एम्स अस्पताल बनाए हैं जबकि उनका दायित्व था कि पहले की सरकारों की तरह हर गली और हर मोहल्ले में शानदार अस्पताल खोलते।
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मोदी सरकार के आने से पहले मुकेश अंबानी ढाबा चलाते थे और अडानी सड़क पर पंक्चर बनाया करते थे लेकिन मोदी जी ने अपने इन दोनों लंगोटिया मित्रों को खरबपति बना दिया। यदि मोदी जी सत्ता में नहीं आते तो यह दोनों आज मनरेगा के अंतर्गत 120 रुपए रोज में मजदूरी कर रहे होते ।
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आजकल नरेंद्र मोदी जी अपना सारा ध्यान पश्चिमी बंगाल पर दे रहे हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि इस राज्य की जनता अपने अराजक राज्य की सत्ता भाजपा को सौंप कर इन्हें दंडित करेगी । इस राज्य में सरकार चलाना किसी दंड भोगने जैसा ही होगा।
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2014 के बाद देश पूरी तरह बर्बाद हो गया है और यह अब रहने लायक नहीं है सुना है, अब हमारी जीडीपी बांग्लादेश से भी कम है। मैं सभी मोदी विरोधी भाइयों और बहनों से अपील करता हूं कि वह बांग्लादेश में स्थाई रूप से बसने के लिए माइग्रेशन आवेदन कर दें या बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों की तरह वे भी बांग्लादेश में अवैध रूप से जाकर बस जाएं ताकि भारत सरकार की न सही अपने परिवार की जी डी पी तो बढ़ जाये। लेकिन हां, जनसंख्या का बोझ कम होने से भारत की भी जीडीपी बढ़ेगी ही।
मुझे तो बस बार-बार मनमोहन सिंह जी के समय के वे स्वर्णिम दिन याद आते हैं, जब हिंदुस्तान सोने की चिड़िया था। सरकारी अस्पताल, मेदांता से अच्छे थे। मेरे शहर का सरकारी स्कूल मोइनिया इस्लामिया दून स्कूल से बेहतर था । रेलवे के शटल शताब्दी से बेहतर सुविधाएं देते थे। लोग अजमेर से केकड़ी और अजमेर से भिनाय भी हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर से नाम मात्र के किराए में अप-डाउन किया करते थे। चारों ओर दूध-दही की नदियां बहती थी। हर आदमी के पास वाइट कॉलर जॉब, कार और बंगला था। हमारे विधायक, सांसद और अफसर-जज आम आदमी की तरह रहते थे। सब रजिस्ट्रार और परिवहन कार्यालय में घूसखोरी के बजाय वहां के कर्मचारी चाय-पानी भी अपने पैसों से करवाते थे। यहां तक कि अजमेर के रेवेन्यू बोर्ड में भी सारे फैसले निष्पक्ष होते थे ।
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अब मैं इंतजार कर रहा हूं कि अगली बार राहुल भैया, मनमोहन सिंह, प्रियंका दीदी, तेजस्वी यादव, वाड्रा जी या ममता दीदी में से कोई प्रधानमंत्री बने और अच्छे दिन फिर से लौटें।
तथास्तु।
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