यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 13 सितंबर 2021

ऋषि पंचमी और श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन में एक खास फर्क है

*माहेश्वरीयों की विशिष्ट पहचान*
*"ऋषी पंचमी"* के दिन रक्षाबंधन

*जय महेश*

*सभी स्वजनों को माहेश्वरी रक्षाबंधन पर्व ऋषि पंचम की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं...*

आम तौर पर भारत में रक्षाबंधन का त्योंहार श्रावण पूर्णिमा (नारळी पूर्णिमा) को मनाया जाता है, लेकिन माहेश्वरी समाज (माहेश्वरी गुरुओं के वंशज जिन्हे वर्तमान में छः न्याति समाज के नाम से जाना जाता है अर्थात पारीक, दाधीच, सारस्वत, गौड़, गुर्जर गौड़, शिखवाल आदि एवं डीडू माहेश्वरी, थारी माहेश्वरी, धाटी माहेश्वरी, खंडेलवाल माहेश्वरी आदि माहेश्वरी समाज) में रक्षा-बंधन का त्यौहार ऋषिपंचमी के दिन मनाने की परंपरा है. इस परंपरा का सम्बन्ध माहेश्वरी वंशोत्पत्ति से जुड़ा हुवा है.

विदित रहे की माहेश्वरी समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन (राखी) का त्योंहार मनाने की परंपरा चली आई है. एक मान्यता यह है की जब माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई तब जो माहेश्वरी समाज के गुरु थे जिन्हें ऋषि कहा जाता था उनके द्वारा विशेष रूप से इसी दिन रक्षासूत्र बांधा जाता था इसलिए इसे 'ऋषि पंचमी' कहा जाता है. रक्षासूत्र मौली के पचरंगी धागे से बना होता था और उसमें सात गांठे होती थी. वर्तमान समय में इसी रक्षासूत्र ने राखी का रूप ले लिया है और इसे बहनों द्वारा बांधा जाता है.

प्राचीनकाल में शुभ प्रसंगों में, प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन तथा 'ऋषि पंचमी' के दिन गुरु अपने शिष्यों के हाथ पर, पुजारी और पुरोहित अपने यजमानों के हाथ पर एक सूत्र बांधते थे जिसे रक्षासूत्र कहा जाता था, इसे ही आगे चलकर राखी कहा जाने लगा. वर्तमान समय में भी रक्षासूत्र बांधने की इस परंपरा का पालन हो रहा है.

आम तौर पर यह रक्षा सूत्र बांधते हुए ब्राम्हण "येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।" यह मंत्र कहते है जिसका अर्थ है- "दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं. हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो" लेकिन तत्थ्य बताते है की माहेश्वरी समाज में रक्षासूत्र बांधते समय जो मंत्र कहा जाता था वह है-

*स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु,*
*विद्याविवेककृतिकौशलसिद्धिरस्तु।*

*ऐश्वर्यमस्तु विजयोऽस्तु गुरुभक्ति रस्तु,*
*वंशे सदैव भवतां हि सुदिव्यमस्तु।।*

(अर्थ- आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें. विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें. ऐश्वर्य व सफलता को प्राप्त करें तथा गुरु भक्ति बनी रहे. आपका वंश सदैव दिव्य गुणों को धारण करनेवाला बना रहे. इसका सन्दर्भ भी माहेश्वरी उत्पत्ति कथा से है. माहेश्वरी उत्पत्ति कथा में वर्णित कथानुसार, निष्प्राण पड़े हुए उमरावों में प्राण प्रवाहित करने और उन्हें उपदेश देने के बाद महेश-पार्वती अंतर्ध्यान हो गये. उसके पश्चात ऋषियों ने सभी को "स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु...." मंत्र कहते हुए सर्वप्रथम (पहली बार) रक्षासूत्र बांधा था. माना जाता है की यही से माहेश्वरी समाज में रक्षासूत्र (रक्षाबंधन या राखी) बांधने की शुरुवात हुई. उपरोक्त रक्षामंत्र भी मात्र माहेश्वरी समाज में ही प्रचलित था/है. गुरु परंपरा के ना रहने से तथा माहेश्वरी संस्कृति के प्रति समाज की अनास्था के कारन यह रक्षामंत्र लगभग विस्मृत हो चला है लेकिन माहेश्वरी संस्कृति और पुरातन परंपरा के अनुसार राखी को बांधते समय इसी मंत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए.

कुछ माहेश्वरी समाजबंधु रक्षाबंधन का पर्व माहेश्वरी परंपरा के अनुसार "ऋषि पंचमी" को मनाने के बजाय श्रावण पूर्णिमा को ही मना रहे है तो कुछ समाजबंधु यह पर्व मनाते तो ऋषि पंचमी के हिसाब से ही है लेकिन अपनी सुविधा के अनुसार 2-4 दिन आगे-पीछे रक्षाबंधन कर लेते है जो की उचित नहीं है. शास्त्रों और परम्पराओं के अनुसार कुछ विशेष दिनों का, कुछ विशेष स्थानों का अपना एक महत्व होता है. दीवाली 'दीवाली' के दिन ही मनाई जाती है, किसी दूसरे दिन नहीं. क्या अपनी सुविधा के अनुसार 'गुढी' गुढीपाडवा के बजाय 2-4 दिन आगे-पीछे लगाई (उभारी) जाती है? तो रक्षाबंधन ऋषिपंचमी के दिन के बजाय किसी और दिन कैसे मनाया जा सकता है? यदि माहेश्वरी हैं तो रक्षा बंधन का त्योंहार "ऋषी पंचमी" के दिन ही मनाकर गर्व महसूस करें. यदि माहेश्वरी हैं तो... रक्षाबंधन का त्योंहार "ऋषी पंचमी" के दिन ही मनाये.

*दूसरी एक बात...*

आम तौर पर रक्षाबंधन (राखी) का त्योंहार श्रावणी पूर्णिमा (राखी पूर्णिमा) के दिन मनाया जाता है लेकिन माहेश्वरी समाज में परंपरागत रूपसे रक्षाबंधन का त्योंहार ऋषि पंचमी के दिन मनाया जाता है. "ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन" यह बात दुनियाभर में माहेश्वरी संस्कृति (माहेश्वरीत्व) की, माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान बनी है; यह हम माहेश्वरीयों की सांस्कृतिक धरोहर है, विरासत है. माहेश्वरी रक्षाबंधन के इस त्योंहार को भाई-बहन के गोल्डन रिलेशनशिप के पवित्र धार्मिक त्योंहार के रूपमें परंपरागत विधि-विधान और रीती-रिवाज के साथ मनाया जाता है, मनाया जाना चाहिए लेकिन विगत कुछ वर्षों से, कई बहने राखी बांधने के बाद भाई को श्रीफल (नारियल) के बजाय रुमाल या कोई दूसरी चीज दे रही है. क्या भगवान के मंदिर में नारियल फोड़कर चढाने के बजाय रुमाल फाड़ कर चढ़ाया जा सकता है...? हर चीज का अपनी जगह एक महत्व होता है इस बात के महत्व को समझते हुए श्रीफल की जगह 'श्रीफल' ही दिया जाना चाहिए (हाँ, इसे कुछ विशेष सजावट के साथ या ले जाने में सुविधा हो इस तरह से पैकिंग करके दिया जा सकता है). भाईयों को भी चाहिए की बहन की मंगलकामनाओं और दुवाओं के प्रतिक के रूपमें दिए जानेवाले श्रीफल को अपने साथ अपने घर पर ले जाएं और इसे घर के सभी परिवारजनों के साथ प्रसाद के रूपमें ग्रहण करें.

जिन्हे सगी बहन ना हो वे अपने चचेरी बहन से राखी बांधे लेकिन माहेश्वरी संस्कृति के अनुसार ऋषि पंचमी के दिन केवल माँ-जाई (सगी) बहन से राखी बांधना पर्याप्त है. जीन भाईयोको माँ-जाई बहन और चचेरी बहन ना हो वह, मित्र की बहन से या अपने कुल के पुरोहित से अथवा मंदिर के पुजारी से राखी बंधाए, और यदि कोई बहन को भाई ना हो तो वह भगवान गणेशजी को राखी बांधे.

*ऋषि पंचमी और श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन में एक खास फर्क है :*

श्रावण पूर्णिमा के दिन राखी बांधकर बहन अपने भाई से स्वयं की रक्षा करते रहने की प्रार्थना करती है ।
जबकि ऋषि पंचमी के दिन बहन उपवास कर भाई को राखी बांधकर भगवान से हमेशा अपने भाई की कुशल-मंगल की कामना करती है ।

आजकल राखी का त्यौहार हाईटेक हुआ जा रहा है जबकि यह विशुद्ध परंपरागत पर्व है और रक्षा के सम्बन्धित है।

*संकलन✍️*


*🙏राम राम सा🙏*

घर की छत का करे सदुपयोग, सब्जी उगाकर बढ़ाये धनयोग, सेहत,धन,संतुष्टि के मिलेगा सरकारी सहयोग


 घर की छत का करे सदुपयोग, सब्जी उगाकर बढ़ाये धनयोग, सेहत,धन,संतुष्टि के मिलेगा सरकारी सहयोग

खेती में आजकल नयी तकनीक के साथ ही अब यह आसान हो गया है. अब इसमें पहले की पारंपरिक खेती की तरह मिट्टी, ढेर सारा पानी और जमीन की जरूरत नहीं पड़ती है. कृषि क्षेत्र में नयी तकनीकों के समावेश ने खेती को इतना आसान बना दिया है कि अब आप इसे घर की छत से लेकर अपने छोटे से आंगन में लगा सकते है, इसी तरह की एक तकनीक है हाइड्रोपोनिक्स फार्मिंग. इस खेती में मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती है. इस तकनीक से खेती करके किसान मोटी कमाई कर सकते हैं.

हाइड्रोपोनिक या मिट्टी के बगैर खेती की ये तकनीक आज से नहीं, बल्कि सैकड़ों सालों से अपनाई जाती रही. ग्रीन एंड वाइब्रेट वेबसाइट के मुताबिक 600 ईसा पूर्व भी बेबीलोन में हैंगिंग गार्डन (Hanging Gardens of Babylon) मिलते थे, जिसमें मिट्टी के बिना ही पौधे लगाए जाते थे. 1200 सदी के अंत में मार्को पोलो ने चीन की यात्रा के दौरान वहां पानी में होने वाली खेती देखी, जो इसका बेस्ट उदाहरण हैं. बिना मिट्टी के थोड़ी सी जगह में तेजी से खेती करने का ये एक बढ़िया तरीका है, जिसमें पानी की जरूरत भी तकनीक की मदद लेने पर कम हो जाती है. हालांकि शुरुआत में इसपर खर्च करना पड़ता है ताकि सारे उपकरण लिए जा सकें और साथ ही इसकी ट्रेनिंग भी जरूरी है. एक मुश्किल ये भी है कि जहां पौधे उगाए जा रहे हों, वहां बिजली की कटौती नहीं होनी चाहिए, वरना पानी न मिलने और तापमान ऊपर-नीचे होने के कारण पौधे कुछ ही घंटों में खराब हो सकते हैं.

कैसे काम करती है तकनीक
इस तकनीक में सिर्फ पानी के जरिये ही सब्जियां उगायी जाती है. इसमें पाइप में पोषणयुक्त पानी बहती है, जिसके उपर पौधे लगाये जाते हैं. पौधों की जड़े उससे अपना न्यूट्रिशन लेती है. बाजार में हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक के कई मॉडल उपलब्ध हैं. इस तकनीक से पानी बेहद कम खर्च होता है. इसमें पारालाइट और कोकपिट की जरूरत होती है.

कैसे करते हैं खेती
इस तकनीक में पारालाइट और कोकोपिट को मिलाकर एक छोटे से डिब्बे में रखा जाता है. एक बार डिब्बा में कोकोपिट और पारालाइट का मिश्रण भरने के बाद इसे चार से पांच सालं तक इस्तेमाल किया जा सकता है. इस डिब्बे में पहले बीज की बुवाई की जाती है. फिर जब इसमें पौधे निकल जाते हैं तब इन डिब्बों को पाइप के उपर बने छेद में रख दिया जाता है, जिन पाइप में पोषणयुक्त पानी बहता है. मजेदार बात यह है कि इसमें काम करने में आपके हाथ गंदे नहीं होते हैं. इसमें डिब्बे के नीचे छेद किया जाता है. इस तकनीक में आप अपनी जगह की उपलब्धता है हिसाब से मॉडल तैयार कर सकते हैं.

अब बात करते हैं इस तकनीक के बारे में. इसके लिए एक आसान-सा उदाहरण हैं. आपने कभी अपने घर या कमरे में पानी से भरे ग्लास में या किसी बोतल में किसी पौधे की टहनी रख दी हो तो देखा होगा कि कुछ दिनों के बाद उसमें जड़ें निकल आती हैं और धीरे-धीरे वह पौधा बढ़ने लगता है.

अक्सर हम सोचते हैं कि पेड़-पौधे उगाने और उनके बड़े होने के लिये खाद, मिट्टी, पानी और सूर्य का प्रकाश जरूरी है. लेकिन असलियत यह है कि फसल उत्पादन के लिये सिर्फ तीन चीजों – पानी, पोषक तत्व और की जरूरत है.
देखा गया है कि इस तकनीक से पौधे मिट्टी में लगे पौधों की अपेक्षा 20-30% बेहतर तरीके से बढ़ते हैं. इसकी वजह ये है कि पानी से पौधों को सीधे-सीधे पोषण मिट्टी जाता है और उसे मिट्टी में इसके लिए संघर्ष नहीं करना होता. साथ ही मिट्टी में पैदा होने वाले खतपतवार से भी इसे नुकसान नहीं हो पाता है.

सब्जी की क्वालिटी बेहतर होती है
हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से खेती कर रहे किसान विशाल माने बताते हैं कि इस तकनीक से सब्जी उगाने से सब्जी की गुणवत्ता काफी अच्छी रहती है. साथ ही इनमें पोषण की कमी नहीं होती है क्योंकि इन्हें पोषणयुक्त आहार देकर उगाया जाता है. उनके फार्म में 11 प्रकार की सब्जियां उगायी जाती है. इनमें बैगन की चार वेराइटी है, साथ ही टमाटर भी लगे हुए हैं. इस तकनीक में मिट्टी का इस्तेमाल नहीं होता है कि इसलिए इसमें कीट और बीमारी का प्रकोप ना के बराबर होता है. इसके साथ ही इसकी न्यूट्रिशन वैल्यू भी काफी अच्छी होती है. धनिया का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि जमीन में खेती करने पर किसान साल भर में छह बार धनिया उगा सकते हैं. पर इस तकनीक से साल में 15 से 16 बार धनिया की फसल ले सकते हैं.

कितनी होगी कमाई
अगर कोई अपने घर से इस तकनीक को इस्तेमाल करते हैं औ्र सब्जी उत्पादन करते हैं तो महीने में 30-40 हजार रुपए कमाई होगी. अगर कोई एक एकड़ में इस तकनीक का इस्तेमाल करके खेती करते हैं तो चार से पांच लाख रुपए कमा सकते हैं. बंजर जमीन पर भी इसकी खेती की जा सकती है. इसके लिए न्यूनतम 25 हजार से लाख रुपए की लागत से इसकी शुरूआत की जा सकती है.

शुरू करें व्यापार , कमाए बेशुमार ,नही लगेगी पूंजी खास, जेम जैली का करें आगाज


 शुरू करें व्यापार , कमाए बेशुमार ,नही लगेगी पूंजी खास, जेम जैली का करें आगाज

जानिए इस खास प्रॉडक्ट के बारे में जिसकी Demand बहुत ही बढ़ती जा रही है। जैम और जेली एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जिसको बच्चे बहुत ही बड़े चाव से खाते हैं। साथ ही साथ जवान लोग अपने सुबह के नाश्ते के लिए इसका सेवन करते हैं। सभी मां बच्चों के स्कूल के लंच के लिए Jam and Jelly के साथ रोटी सब्जी पैक करती हैं और बच्चा भी बहुत ही खुशी के साथ अपने लंच को पूरा खत्म कर देता है। हर वर्ग के लोग इसको पसंद करते हैं इसलिए जैम और जेली की Demand Market में बढ़ती ही जा रही है।

इसीलिए भी जाने कि आप कैसे जैम और जेली का व्यापार शुरू कर सकते हैं और महीने के लाखों रुपए कमा सकते हैं।

इस व्यापार को महिलाएं और पुरुष दोनों ही कर सकते हैं। अथवा घर में इस व्यापार को चलाने के लिए दो से 3 सदस्य ही काफ़ी हैं और एक छोटे स्तर के लिए 5 से 8 लोग ही काफी है। अगर आप इसको बड़े लेवल पर करना चाहते हैं तो कम से कम आपको 25 से 30 लोगों की जरूरत पड़ेगी।

इन्वेस्टमेंट
अगर आप जैम और जेली व्यापार को घर पर ही शुरू करना चाहते हैं एक छोटे लेवल के लिए तो इसके लिए आपको कम से कम ₹40000 से लेकर ₹70000 तक का इन्वेस्टमेंट करना ही है और अगर आप इसे छोटे एरिया की डिमांड को पूरा करने के लिए छोटे स्तर पर इस बिजनेस को शुरू करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको कम से कम ₹200000 से लेकर ₹400000 तक का निवेश करना होगा।

और अगर आप जैम और जेली व्यापार को एक बड़े स्तर पर शुरू करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको कम से कम ₹1000000 रुपए तक का इन्वेस्टमेंट करना होगा।

स्थान का चयन
व्यापार के रूप को देखते हुए इसे घर से किसी कमरे से या 200फीट के साफ बंद स्थान से शुरू किया जा सकता है

निर्माण कच्ची सामग्री
जैम और जेली को बनाने के लिए आपको कई प्रकार की सामग्रियों की जरूरत पड़ती है। जिससे आप कई प्रकार के fruits से जैम और जेली बना सकते हैं। साथ ही साथ आपको पेक्टिन पाउडर, साइट्रिक एसिड, शुगर इत्यादि।इन सभी सामग्रियों को आप अपने इलाके या फिर बाजार में जाकर परचून की दुकानों से खरीद सकते हैं और अगर आपको यह चीजें आपके इलाके में नहीं मिलती है, तो आप इन सब चीजों को ऑनलाइन भी मंगा सकते हैं।

मशीनरी
जेम जैली व्यवसाय के लिए  मिक्सर, जूस एक्सट्रैक्टर, स्लाइसर, पल्पर, कैप सीलिंग मशीन और बर्तन धोने वाली मशीन की आवश्यकता पड़ती है। जो नजदीकी बाजार से आसानी से खरीदी जा सकती है

कानूनी प्रकिया और लाइसेंस
दोस्तों आपको इस व्यापार को शुरू करने के लिए अपनी कंपनी का कोई नाम रखना है, ताकि आप उस नाम के द्वारा अपनी कंपनी का रजिस्ट्रेशन करा सकें। इसके साथ ही साथ आपको अपने कंपनी का FSSAI लाइसेंस भी बनवाना है। जो की बहुत ही आसान है।

साथ में आपको gst पंजीकरण भी बनवाना है और यह पंजीकरण आप ऑनलाइन  बनवा सकते हैं। जो की बहुत ही आसान प्रक्रिया है।

गाँव कोई पिछड़े अज्ञानियों के दडबे नही अपितु लाखों करोड़ों वर्षों के शोध का परिणाम थे।


 समाज का शिल्पी:-किसान
छोटा सा सुखी संसार:-गाँव

समझ नही आता कि कहाँ से शुरू करूँ पर निश्चित ही सिद्ध कर दूंगा कि गाँव कोई पिछड़े अज्ञानियों के दडबे नही अपितु लाखों करोड़ों वर्षों के शोध का परिणाम थे।
जिन्हें अपने अपार ज्ञान प्रयोग व दूरदर्शिता के मेल से हमारे ऋषि मुनियों पूर्वजों ने आकार दिया था।

छोटी सी परिधि में न्यूनतम आवश्यकता की सभी वस्तुऐं। उनके उत्पादक। और उत्पादकों को संभालने, सुधारने व पुनर्निर्माण का ठोस सरल ज्ञान।

शायद ऐसी एक भी वस्तु आप न खोज पाओ जो फिर से काम न आ जाती हो। जो गाँव में न बन सकती हो। जिसके कारीगर वहाँ न हो। 36 बिरादरी अर्थात इतने कामों को करने वाले समाज के लोगों का समूह। एक आदर्श गाँव।

खेती बाड़ी, लुहार, चमार, जुलाहा, कुम्हार, नाई,धोबी, बढई, जोगी, पुरोहित, धींवर, भंगी, बनिया, दर्जी, भडभुज्जे, तेली, किसान, मजदूर, पहलवान, दाई, रंगरेज़, वैद्य आदि।

कोई भेद नही कोई ऊँच नीच नही। कोई काम छोटा बड़ा नही। सभी मिलकर, कंधे से कंधा मिलाकर जीवन जीते। एक दूसरे के सुख दुख का हिस्सा होते। न सरकार चाहिए न पुलिस न कानून। न मंदिर मस्जिद का झगड़ा।

बच्चा पैदा होता तो दाई होती। बूढ़ी काकी दादी सब जानती कि क्या खाना क्या परहेज। आठ दस बच्चों को सकुशल जन्म देती माँ। न दवा न काटपीट।

सभी वस्तुए घर की बनी, गाँव की बनी। शुद्ध स्वदेशी।
कपडा खाना घर फर्नीचर बर्तन कृषि यंत्र आदि।

सभी के पशु गाँव के जोहड़ में नहाते, लोग भी नहाते। इतना शुद्ध पानी कि पी भी सकते। बल्कि पीते थे। चमार की भैंस जहाँ नहाती उस पानी को जाट ब्राहमण भी पीता। जातिवाद ढूंढ़कर तो बताओ।

सब सीधे सच्चे पर मूल बात, शिक्षा, सिद्धांत अधिकांश जानते। बड़े बड़े फैसले वही हो जाते। पंचायत में ही। गाँव की बहन बेटी सबकी साझा होती। गाँव तो गाँव ग्वाहंड की भी।

अपार शक्तिशाली पशुओं को वश में करके खेती के काम लेते। सबकी सुध लेते। कुत्ते, कौवे, चिड़िया, गाय सब अपने से दिखते। परिवार का हिस्सा होते। बच्चे भैंसे की नाथ फूटते हुए भी देखता, खुरी ठुकते भी, बधिया होते भी, पैदा होते भी, मरकर गडते भी।

नंगे पाँव खेत में चलता तो केचुंए गिजाई पाँव तले भी आती। हल चलाते समय खरगोश के बच्चों को बचाता भी और  चूहों को फावड़े से फेंकता भी किसान। सर्दी गर्मी बरसात लू शीत लहर तूफान आँधी सब झेलता।

और झेल कर ऐसा हो जाता कि फौजी बेटे की लाश पर गर्व से कहता कि काश और बेटे भी होते तो उन्हें फौजी बनाता। सम्मान को शहीद यदि प्रिय पुत्री भी करती तो हँस कर बलि भी दे देता।

राष्ट्र धर्म की रक्षा का सवाल उठते ही कृषि के औजारों को हथियार तुरंत बना लेता। क्या नही करता था वो अनपढ़ गवाँर किसान मजदूर। पेड लगाता, पानी बचाता, प्रकृति से प्रेम करता। कहता नही करता। वैदिक सिद्धान्तों को जीता। उसके लहू में थी वो बातें जो आज पढे लिखे विकासशील कहे जाने वाले भी नही जानते।

शुद्ध खाता शुद्ध खिलाता, पाप से डरता, भगवान से डरता।
दूसरे के दुख से दुखी और सबके सुख की कामना करता था किसान। कर्ज से डरता था। सच का साथी। सम्मान को चरित्र को सर्वोच्च वरीयता देता। स्वस्थ था किसान।

जब कभी देश पर संकट आया तो अपने हृदय के टुकड़ों को युद्ध की समिधा बना डालता। लड मरता। साहसी सभ्य संस्कारी सादगी का सच्चा उदाहरण किसान।

इतनी खूबियों वाले इस जीव को आजादी के पहले अंग्रेजी हुकूमत ने व आजाद भारत की सरकारों ने सदा निशाना बनाया और आज भीख मांगने पर मजबूर कर दिया है। खेती जो वैदिक कर्म कहा जाता था आज घाटे का सौदा बनाकर खत्म किया जा रहा है। अपनी ही फसल के आधे तिहाई दाम भी समय पर नही मिल पाने के कारण वो शिल्पकार आज भिखारी हुआ जाता है। धन के अभाव में धर्म गौण होकर मृतप्राय हो चला है। फिजूल की सियासत ने मानसिक गुलाम बनाकर कमर तोड दी है। संगठन रहे नही। शक्ति बची नही। संस्कार दारू के ठेके पर झूलते हैं। संबंध कमजोर होकर टूट गये हैं। दर्जनों कर्मखंडो का केन्द्र बिन्दु किसान अधमरा होकर मौत की राह देख रहा है।

गाय जो धुरी थी धरती की। अनाथ होकर तडपती फिरती है। बैल जिसके कंधों पर समाज अर्थशास्त्र टिका था। विलुप्त होने की कगार पर है। सामाजिक ताने-बाने को सस्ती सियासत निगल चुकी है। न बेटियाँ सुरक्षित है न बहुए। टीवी मोबाइल की सहायता से विषबीज मानस पटल पर जहरीले जंगल बनकर भविष्य को निगलने को सज्ज हैं ।

वैदिक परिभाषाओं की हत्या करके धूर्तों ने पाखंडी वातावरण बनाकर असल ज्ञान को विलुप्त सा कर दिया है।

किसान व गाँव चौतरफा साज़िश व षडयंत्रों का शिकार होकर समाप्ति की सीमा पर खड़े हैं।

आओ कुछ विचार करें कुछ प्रयास करे कुछ योजना बनाये कुछ और दिन जीवित रहें ....या तो ये व्यवस्था बदलनी होगी... अब जो करो खुद ही करो...!!!

जलग्रस्त क्षेत्रों में सुगन्धित खस की खेती।


 जलग्रस्त क्षेत्रों में सुगन्धित खस की खेती।



खस का इस्तेमाल सिर्फ ठंडक के लिए ही नही होता, आयुर्वेद जैसी परम्परागत चिकित्सा प्रणालियों में औषधि के रूप में भी होता है। यह जलन को शान्त करने और त्वचा सम्बन्धी विकारों को दूर करने में प्रयोग किया जाता है।

खस या वेटीवर एक भारतीय मूल की बहुवर्षीय घास है, जिसका वानस्पतिक नाम वेटीवेरिया जिजेनऑयडीज है, जो पोएसी परिवार के अन्तर्गत आती है। पौधे के जमीन के अन्दर रहने वाले भाग में हल्के पीले रंग या भूरे से लाल रंग वाली उत्कृष्ट जड़ें होती हैं, जिनसे आसवन पर व्यवसायिक स्तर का खस का तेल प्राप्त होता है। खस की रेशेदार जड़ें नीचे की ओर बढ़ती हुई 2.3 मीटर तक भूमि की गहराई में फैलती हैं और इन जड़ों की सुगन्ध बहुत ही दृढ़ होती है। खस के सुगन्धित तेल की कीमत राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में 20 से 25 हजार रुपये लीटर तक मिल जाती है। जमीन बाढ़ ग्रस्त हो, बंजर हो या पथरीली, इसकी खेती हर जगह की जा सकती है। आये दिन प्राकृतिक आपदा के कारण खेती बर्बाद हो जाती है, ऐसे में किसानों के लिये इसकी खेती लाभकारी सिद्ध हो सकती है।

उत्पादन और उपयोग

भारत में खस की विधिपूर्वक एक फसल के रूप में खेती राजस्थान, असम, बिहार, उत्तरप्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश और मध्यप्रदेश में की जाती है। खस की व्यावसायिक खेती भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बाग्लादेश, श्रीलंका, चीन और मलेशिया में की जा रही है। इसके अलावा अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, ग्वाटेभाला, मलेशिया, फिलीपींस, जापान, अंगोला, कांगो, डोमिनिकन गणराज्य, अर्जेंटीना, जमैका, मॉरीशस और होंडुरास में भी खस की खेती की जाती है। उत्तर भारत में उत्पादित होने वाले खस के सुगन्धित तेल की प्रीमियम गुणवत्ता की कीमत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत अच्छी प्राप्त होती है। खस की जड़ों से निकाला गया सुगन्धित तेल मुख्यतः शर्बत, पान मसाला, खाने के तम्बाकू, इत्र, साबुन तथा अन्य सौन्दर्य प्रसाधनों में प्रयोग किया जाता है। इसकी सूखी हुई जड़ें लिनन व कपड़ों में सुगन्ध में हेतु प्रयुक्त की जाती हैं। खस का इस्तेमाल सिर्फ ठंडक के लिए ही नहीं होता, आयुर्वेद जैसी परम्परागत चिकित्सा प्रणालियों में औषधि के रूप में भी होता है। यह जलन को शान्त करने और त्वचा सम्बन्धी विकारों को दूर करने में प्रयोग किया जाता है।

अनुकूल वातावरण

खस की अच्छी पैदावार की लिए शीतोष्ण एवं समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है। इसकी खेती उपजाऊ दोमट से लेकर अनुपजाऊ लेटराइट मिट्टियों में भी की जा सकती है। रेतीली दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 8.0 से 9.0 के मध्य हो, पर खस की खेती की जा सकती है। इसकी खेती ऐसे स्थानों में की जा सकती है, जहाँ वर्षा के दिनों में कुछ समय के लिए पानी इकट्ठा हो जाता है तथा अन्य कोई फसल लेना सम्भव नहीं होता है, खस की खेती एक विकल्प के रूप में की जा शकती है।

कैसे पता करें कि कोई हमारे फोन में सेंध लगा रहा है, रिकॉर्डिंग कर रहा है या संदेश किसी और के पास भी जा रहे हैं, जो सेंध लगा रहा है?

 

YouTube ऐप्प खोलने पर दिखने वाला विकल्प YouTube शॉर्ट्स क्या है?


यूट्यूब शॉर्ट एक तरह का टिकटोक है जैसे कभी सेल्फी का फैशन चल रहा था ऐसे आज शॉर्ट वीडियो का फैशन चल रहा है और सॉर्ट वीडियो का फैशन चलाने का सबसे बड़ा श्रेय टिक टॉक को जाता है

आज हर दसवां आदमी अपना मोबाइल का फ्रंट कैमरा ऑन करके किसी भी गाने की दो चार लाइन गाकर यूट्यूब या अन्य शॉर्ट वीडियो प्लेटफार्म पर डाल देता है सामान्यत इन वीडियो की लंबाई 1 मिनट से कम की होती है

यूट्यूब ने भी इसी चीज का फायदा उठाया जब यूट्यूब ने देखा कि भारत में टिकटोक बैन हो गया है तो उसे लगा कि अब भारत में शार्ट वीडियो एप्स में उसका व्यापार अच्छा चल सकता है उसने अपने ऐप में एक फीचर ओर डाल दिया जिसका नाम है यूट्यूब शॉर्ट वीडियो

ये सॉर्ट वीडियो ऐप युवक और युवतियों को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हो गए है

अब सवाल यह आता ऐप भी इंस्टॉल कर लिया वीडियो भी बना ली कमाई कैसे होगी

तो इसका भी एक तरीका हमने ढूंढ निकाला है

क्या किसी सॉर्ट वीडियो ऐप पर ऐड आते है मतलब वीडियो के बीच में कोई ऐड आ जाए जहां तक मेरी जानकारी है नही आते तो यहां आप ऐड से पैसे नही कमा सकते

पैसे कमाने के कुछ तरीके

सबसे पहले ढेर सारे फॉलोअर या सब्सक्राइबर इकट्ठा कीजिए उसके बाद आपके पास स्पॉन्सरशिप आनी शुरू हो जाएगी जो आपको कुछ पैसा देगे दूसरा आप अपने इंस्टाग्राम अकाउंट में सॉर्ट वीडियो के जरिए फॉलोअर बढ़ाए सॉर्ट वीडियो ऐप का कोई भरोसा नहीं कब सरकार इन्हे बंद करदे आप अपने फॉलोअर से एफिलिएट लिंक से कुछ सामान खरीद वा सकते हो वहां से भी आपको कुछ कमीशन मिलेगा

लेकिन लेकिन एक सबसे अच्छा तरीका जो सिर्फ यूट्यूब के लिए है और बहुत अच्छे से काम करता है यूट्यूब पर सॉर्ट वीडियो दो तरह से देखी जाती है पहली सॉर्ट वीडियो के रूप में, दूसरी सामान्य वीडियो के रूप में सॉर्ट वीडियो पर तो ऐड नही आयेंगे लेकिन जब कोई उन्हीं वीडियो को सामान्य रूप से देखेगा तो ऐड आयेंगे और वहा से कुछ अर्निंग भी होगी

इसके लिए आपको सबसे पहले 1000 सब्सक्राइबर और 4000 घंटे का वॉचटाइम पूरा करना है फिर आपका चैनल मोनोटाइज हो जाएगा अगर आप अच्छे सॉर्ट वीडियो बनाते हो तो ऊपर का टास्क ज्यादा मुश्किल भी नहीं है क्योंकि सॉर्ट वीडियो जल्दी वायरल होती है और वहां सब्सक्राइबर भी जल्दी मिलते है लेकिन एक समस्या है अगर कोई आपकी वीडियो को सॉर्ट वीडियो के रूप में देखेगा तो वॉचटीम काउंट नही होगा वॉचटाइम तभी काउंट होगा जब आपकी वीडियो सामान्य वीडियो की तरह देखी जाए ये कैसे होगा बताता हूं

शुरुआत में ये थोड़ा मुश्किल होगा लेकिन जैसे जैसे आपके सब्सक्राइबर बढ़ेंगे तो आपके वीडियो डालते ही उनके पास नोटिफिकेशन जायेगा अगर उस नोटिफिकेशन से वे वीडियो पर जायेंगे तो वह वीडियो सामान्य वीडियो की तरह प्ले होगा जिससे आपका वॉच टाइम काउंट होगा

और जब आपका चैनल मोनोटाइज हो जाएगा तब आपके सॉर्ट वीडियो पर सामान्य देखे जाने पर ऐड आयेंगे और आप पैसे कमाएंगे मोनोटाईज होने के बाद आप अपने चैनल पर blog भी डाल सकते हो कुछ नही करना है आप क्या खा रहे हो, क्या पहन रहे हो, कहा जा रहे हो, वीडियो कैसे बनाते हो, आपका घर कैसा है, ऐसी वीडियो बनानी है तब आपकी अर्निंग और ज्यादा बढ़ जायेगी फिर आप मजे करना और हां अगर इस लेख के बाद आप ये सब करो तो कभी कभी मुझे याद कर लेना

उम्मीद करता हूं जानकारी पसंद आई होगी

मैं आज फिर हाज़िर हूं आपके सामने एक नया गैजेट(समान) लेकर - sink cleaner

दोस्तो आज मैं आपके लिए सिंक क्लीनर लेकर आया हूं

आप इसकी मदद से अपने सिंक या वाशबेशन में फंसा कोई भी कचरा आसानी से निकाल सकते है और आप किसी भी पाइप की सफाई भी इसकी मदद से कर सकते हो

इसका इस्तेमाल करना बहुत आसान है और यह साइज में भी बहुत छोटा है लेकिन इसकी लंबाई भी अच्छी खासी है आप चेक कर सकते है[1] और खास बात यह है की इसकी मोटाई बहुत कम है यानीके आप इसे घर के किसी बारीक पाइप के अंदर डालकर उसकी भी सफाई कर सकते हो।

इससे आप पाइप में फंसे बालों को बहुत ही आसानी से निकाल सकते हो यह अच्छे मैटेरियल स्टील से बना है इसके खराब होने के चांस बहुत कम होते है क्योंकि यह घर में कभी कभी इस्तेमाल होता है मेरे घर में भी इसे इस्तेमाल किया जाता है उसी के बाद में ये रिव्यू लिख रहा हूं

अगर आप इसका अभी का प्राइस देखना चाहते है या इसे खरीदना चाहते है तो नीचे दी गई लिंक पर जाए

ऑर्डर करने के लिए यहां क्लिक करे
click on link
https://d-p4shop.dotpe.in



whatsapp link

https://wa.me/message/MGAXBXAZ7MHOG1


नोट
मैं अपनी तरफ से आपको कम मूल्य में एक अच्छा समान दिलाने की पूरी कोशिश करता हूं और काफी रिसर्च के बाद जो प्रोडक्ट सबसे अच्छा लगता वही आपके लिए लेकर आता हूं अगर आप भी नए नए प्रोडक्ट का रिव्यू पढ़ना चाहते है तो इस मंच को फॉलो जरूर करे

For daily updates join these groups

Telegram channel 👇
https://t.me/p4dukan

किन -किन धातुओं को मिलाकर चुंबक बनाते हैं?

लौह और निकल युक्त क्रोड के कारण हमारी धरती भी चुम्बकीय गुणों युक्त है।


प्राकृतिक रूप से चुम्बकीय गुणों युक्त लोहे का एक खनिज मेग्नेटाइट, जिसे लोडस्टोन भी कहते हैं, प्रथम ज्ञात चुम्बकीय पदार्थ था। साधारण मेग्नेटाइट चुम्बकीय गुणों युक्त नहीं रह पाता। किन्तु, मेग्हेमाइट (cubic

) युक्त मेग्नेटाइट (

) जिसमें टाइटेनियम, अल्युमीनियम और मैंग्नीज के आयनों की अशुद्धि है, स्थायी चुम्बकत्व वाले लोडस्टोन में मिलते हैं। ईसा पूर्व छठी शताब्दी के ग्रीक दार्शनिक थालेस ऑफ मिलेतुस (Thales of Miletus) को चुम्बकीय गुणों का वर्णन करने वाला पहला व्यक्ति मानते हैं। भारत में भी चुम्बक का विवरण लगभग इतना ही पुराना है। चौथी सदी ईसा पूर्व में चीन के साहित्य में भी इसका विवरण मिलता है। तथा चीन में ही ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में दिक्सूचक के रूप में लोडस्टोन का प्रयोग किया गया।

उत्तरी अमेरिका की ओल्मेक सभ्यता में चुम्बक के प्रयोग के प्राचीनतम प्रमाण मिलते हैं। यह लोडस्टोन

(लोहे और टाइटेनियम के अयस्क) से बना था।

लगभग सभी चुम्बकीय द्रव्यों का एक तापमान (जिसे क्यूरी तापमान कहते हैं — पियरे क्यूरी के सम्मान में) से अधिक तापमान पर स्थाई चुम्बकीय गुण समाप्त हो जाता है।


वर्तमान समय में स्थाई चुम्बकीय गुणों वाले अनेक द्रव्य हैं। इनमें प्रमुख हैं :

१. अल्निको (Alnico)

अल्युमिनियम, निकल तथा कोबाल्ट की मिश्र-धातु। इसमें ८–१२% Al (अल्युमिनियम), १५–२६% Ni (निकल), ५–२४% Co (कोबाल्ट), ०-६% Cu (ताम्र), ०-१% Ti (टाइटेनियम), तथा शेष Fe (लौह) होता है। इस मिश्रधातु से बने चुम्बकों से शक्तिशाली स्थाई चुम्बक १९७० के उपरान्त ही बन पाए।पहली माइक्रोवेव ओवन में अल्निको चुम्बक ही काम में लिए गए।

२. फैराइट

यह एक प्रकार का सैरामिक पदार्थ है। इसमें आयरन ऑक्साइड (

, जंग) में कम मात्रा में स्ट्रोंसियम (strontium), बेरियम (barium), मैंग्नीज (manganese), निकल (nickel), तथा यशद (zinc) में से एक या अधिक धातुओं के साथ मिला कर पकाया जाता है। यह विद्युत के कुचालक हैं, अतः इनका उपयोग ट्रांसफार्मर, विद्युत मोटर आदि में किया जाता है।

स्ट्रोंसियम तथा बेरियम के फैराइट विद्युत उपकरणों में सामान्यतः प्रयोग किए जाते हैं।

३, समेरियम-कोबाल्ट चुम्बक (samarium–cobalt (SmCo))

इन्हें १९६० में विकसित किया गया। समेरियम तथा कोबाल्ट १:५ अथवा २:१७ में मिश्रित किए जाते हैं। इन्हे हैडफोन, उच्च श्रेणी की विद्युत मोटरों, टर्बो उपकरणों आदि में प्रयोग किया जाता है।

४. नियोडियम चुम्बक

१९८४ में नियोडियम चुम्बक बनाए गए जोकि सर्वाधिक शक्तिशाली चुम्बकीय गुणों युक्त हैं। यह नियोडियम (Nd), लौह (Fe) तथा बोरोन (B) का २:१४:१ मोलर अनुपात की मिश्रधातु है। यह कम्प्यूटर हार्डडिस्क, शक्तिशाली छोटे जनरेटर आदि में प्रयोग आते हैं। इनमें सरलता से जंग लगती है, अतः इनपर अन्य पदार्थों का लेप लगाया जाता है।


यहाँ स्थाई चुम्बकीय गुणों वाले कुछ द्रव्यों का उल्लेख दिया गया है, जिन्हें अधिक से कम क्यूरी तापमान के आधार पर क्रम में सजाया गया है:

पदार्थ क्यूरी-ताप (॰ काल्विन)

Co (कोबाल्ट धातु) — १३८८॰

Fe (लौह) — १०४३॰

(फैरस-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ८५८॰

(निकल-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ८५८॰

(क्युप्रस-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ७२८॰

(मेग्नीशियम-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ७१३॰

MnBi (मैंग्नीज-बिस्मथ मिश्रधातु) — ६३०॰

Ni (निकल) — ६२७॰

MnSb (मैंग्नीज-स्टैबियम मिश्रधातु) — ५८७॰

(मैंग्नीज-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ५७३॰

(यिट्रियम आक्साइड-फैरस पेन्टाक्साइड) — ५६०॰

(क्रोमियम ऑक्साइड) — ३८६॰

MnAs (मैंग्नीज-आर्सेनिक मिश्रधातु) — ३१८॰

Gd (गैडेलियम धातु) — २९२॰

सिद्धान्ततः इन सभी पदार्थो के सामान्य ताप पर आकर्षित करने वाले स्थाई चुम्बक बनाए जा सकते हैं।


इनके अतिरिक्त कुछ पदार्थ विद्युत चुम्बकीय होते हैं। तथा कुछ अस्थाई रूप से चुम्बकीय, इनके चुम्बकीय गुण शीघ्रतापूर्वक समाप्त हो जाते हैं।


वास्को दा गामा ने भारतीय नाविकों के चुम्बकीय दिक्सूचक यंत्रों के प्रयोग का विवरण दिया है।

भारतीय परम्परा में चुम्बक को कान्तलोह भी कहा गया है।

नागार्जुन कृत रसरत्नाकर, रसरत्नसमुच्चय, सोमदेव कृत रसेन्द्रचुडामणि, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में कान्तलोह अथवा चुम्बक का विवरण दिया है। यह ग्रंथ नवीं से सोलहवीं शताब्दी के मध्य लिखे गए हैं।

चुम्बक का विवरण रसेन्द्रचूडामणि: (सोमदेव रचित) में इस प्रकार किया गया है :

कान्तलोहं चतुर्धोक्तं रोमकं भ्रामकं तथा ।
चुम्बकं द्रावकं चेति तेषु श्रेष्ठं परं परम् ॥ १४.८८ ॥

विन्ध्याद्रौ चुम्बकाश्मानश्चुम्बन्त्यायसकीलकम् ।
क्षिप्रं समाहरत्येव यूनां चित्तमिवाङ्गना ॥ १४.९१ ॥

आयुर्वेदप्रकाशः में

अथ द्वितीयोऽध्याय: ॥ अथोपरसा कथ्यन्ते । गन्धो हेिङ्गुलमभ्रतालकशिलाः स्रोतोञ्जनं टङ्कणं राजावर्तकचुम्बकौ च स्फटिका शङ्खः खटी गैरिकम् । कासीसं रसकं कपर्दसिकताबोलाश्व कडुष्ठक सौराष्ट्री च मता अमी उपरसाः स्रुतस्य केिचिद्गुणैः । तुल्याः स्युर्यदि ते वेिशोध्य विधिना संसाधिताः सेवितास्तत्तद्रोगह्वरानुपानसहितैर्योगैश्चिरायुःप्रदाः ॥ १ ॥

अथ चुम्बक: । स तु पाषाणजाति: । उक्तं च कान्तलोहाश्मभेदाः स्युधुम्बकभ्रामकादय: । चुम्बक: कान्तपाषाणोऽवँस्कान्तो लोह्वकर्षकः ॥ ११ ॥

भावप्रकाशः के पूर्वखण्ड में भावप्रकाशनिघण्टुः के धातूपधातुरसोपरसरत्नोपरत्नविषोपविषवर्गः (धातु, उपधातु रसों तथा रसरत्नों, विष तथा उपविष वर्ग) में

चुम्बकः कान्तपाषाणोऽयस्कान्तो लौहकर्षकः

चुम्बको लेखनः शीतो मेदोविषगरापहः १४५



स्रोत — हिन्दी तथा अंग्रेजी विकिपीडिया

function disabled

Old Post from Sanwariya