यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 28 अप्रैल 2024

जीरा, धनिया और सौंफ़ (CCF) - परम पाचक चाय

जीरा, धनिया और सौंफ़ (CCF) - परम पाचक चाय



यह चाय एक आयुर्वेदिक क्लासिक है, और एक संयोजन है जिसका उपयोग पाचन नियमितता और सहायता के लिए सभी घरों में किया जाना चाहिए। जीरा, धनिया और सौंफ़ का सुंदर और पूरी तरह से संतुलित संयोजन तीनों दोषों के बीच पाचन सद्भाव का समर्थन करता है और इसके अलावा, शरीर को कई अन्य लाभ भी प्रदान कर सकता है।



सीसीएफ चाय के लाभ

  • सूजन से राहत मिलती है

  • पेट फूलना कम करता है

  • आंतों की ऐंठन को शांत करता है

  • पेट दर्द और ऐंठन को कम करता है

  • मतली और उल्टी ठीक हो जाती है

  • अग्नि (पाचन अग्नि) को उत्तेजित और संतुलित करता है


अतिरिक्त लाभ

  • मासिक धर्म में ऐंठन के लक्षणों को कम करता है

  • स्तन के दूध का प्रवाह और गुणवत्ता बढ़ जाती है

  • प्रसव से उबरने में सहायता करता है

  • सूजन को कम करता है

  • मानसिक स्पष्टता और संतुलित दिमाग में सहायता करता है

  • सफाई और लसीका जल निकासी को उत्तेजित करता है


ऐसा अद्भुत काढ़ा! यहां बताया गया है कि आप इसे कैसे बनाते हैं....



जिसकी आपको जरूरत है


4 कप बनता है

  • 1/2 छोटा चम्मच जीरा

  • 1/2 छोटा चम्मच धनिये के बीज

  • 1/2 छोटा चम्मच सौंफ के बीज

  • 5 कप पानी


तरीका

  1. सभी सामग्रियों को एक छोटे सॉस पैन में और स्टोव पर रखें।

  2. उबाल लें, फिर धीमी आंच पर 2-5 मिनट तक या जब तक आपकी ज़रूरत के हिसाब से पर्याप्त ताकत न आ जाए, धीमी आंच पर पकाएं।

  3. छान लें और तुरंत परोसें, या तो अलग-अलग कप में या थर्मस में पूरे दिन घूंट-घूंट करके परोसें।

मान्यता है कि काशी की मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव ने देवी सती के शव की दाहक्रिया की थी। तबसे वह महाशमशान है, जहाँ चिता की अग्नि कभी नहीं बुझती।

 

मान्यता है कि काशी की मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव ने देवी सती के शव की दाहक्रिया की थी। तबसे वह महाशमशान है, जहाँ चिता की अग्नि कभी नहीं बुझती।

एक चिता के बुझने से पूर्व ही दूसरी चिता में आग लगा दी जाती है। वह मृत्यु की लौ है जो कभी नहीं बुझती, जीवन की हर ज्योति अंततः उसी लौ में समाहित हो जाती है। शिव संहार के देवता हैं न, तो इसीलिए मणिकर्णिका की ज्योति शिव की ज्योति जैसी ही है, जिसमें अंततः सभी को समाहित हो ही जाना है। इसी मणिकर्णिका के महाश्मशान में शिव होली खेलते हैं।

शमशान में होली खेलने का अर्थ समझते हैं? मनुष्य सबसे अधिक मृत्यु से भयभीत होता है। उसके हर भय का अंतिम कारण अपनी या अपनों की मृत्यु ही होती है। श्मशान में होली खेलने का अर्थ है उस भय से मुक्ति पा लेना।

शिव किसी शरीर मात्र का नाम नहीं है, शिव वैराग्य की उस चरम अवस्था का नाम है जब व्यक्ति मृत्यु की पीड़ा, भय या अवसाद से मुक्त हो जाता है। शिव होने का अर्थ है वैराग्य की उस ऊँचाई पर पहुँच जाना जब किसी की मृत्यु कष्ट न दे, बल्कि उसे भी जीवन का एक आवश्यक हिस्सा मान कर उसे पर्व की तरह खुशी खुशी मनाया जाय। शिव जब शरीर में भभूत लपेट कर नाच उठते हैं, तो समस्त भौतिक गुणों अवगुणों से मुक्त दिखते हैं। यही शिवत्व है।

शिव जब अपने कंधे पर देवी सती का शव ले कर नाच रहे थे, तब वे मोह के चरम पर थे। वे शिव थे, फिर भी शव के मोह में बंध गए थे। मोह बड़ा प्रबल होता है, किसी को नहीं छोड़ता। सामान्य जन भी विपरीत परिस्थितियों में, या अपनों की मृत्यु के समय यूँ ही शव के मोह में तड़पते हैं। शिव शिव थे, वे रुके तो उसी प्रिय पत्नी की चिता भष्म से होली खेल कर युगों युगों के लिए वैरागी हो गए। मोह के चरम पर ही वैराग्य उभरता है न। पर मनुष्य इस मोह से नहीं निकल पाता, वह एक मोह से छूटता है तो दूसरे के फंदे में फंस जाता है। शायद यही मोह मनुष्य को शिवत्व प्राप्त नहीं होने देता।

कहते हैं काशी शिव के त्रिशूल पर टिकी है। शिव की अपनी नगरी है काशी, कैलाश के बाद उन्हें सबसे अधिक काशी ही प्रिय है। शायद इसी कारण काशी एक अलग प्रकार की वैरागी ठसक के साथ जीती है।

मणिकर्णिका घाट, हरिश्चंद घाट, युगों युगों से गङ्गा के इस पावन तट पर मुक्ति की आशा ले कर देश विदेश से आने वाले लोग वस्तुतः शिव की अखण्ड ज्योति में समाहित होने ही आते हैं।

होली आ रही है। फागुन में काशी का कण कण फ़ाग गाता है, "खेले मशाने में होली दिगम्बर खेले मशाने में होली"। सच यही है कि शिव के साथ साथ हर जीव संसार के इस महाश्मशान में होली ही खेल रहा है। तबतक, तबतक उस मणिकर्णिका की ज्योति में समाहित नहीं हो जाता। संसार शमशान ही तो है।

इसी साल जनवरी में कर्नाटक के मंगलुरू में स्वामी कोरगज्जा मंदिर की दानपेटी से एक कंडोम निकला था, जिसके बाद से वहाँ हड़कंप था।

 

खबर थोड़ी सी पुरानी है, पर किसी भी चैनल ने शायद नही दिखाई।

इसी साल जनवरी में कर्नाटक के मंगलुरू में स्वामी कोरगज्जा मंदिर की दानपेटी से एक कंडोम निकला था, जिसके बाद से वहाँ हड़कंप था।

मंदिर की पवित्रता को लगातार भंग किया जा रहा था, श्रद्धालु विवश थे और पुलिस लाचार क्योंकि औरधी पकड़ से बाहर थे।

भक्तों का विश्वास था कि स्वामी कोरसज्जा ऐसा नीच खत्म करने वालों को अवश्य सजा देंगे, और उनका विश्वास आखिरकार रंग लाया…

लेकिन तीन दिन पहले अचानक दूसरे समुदाय के दो लड़के मंदिर में आए और पुजारी के सामने माफी के लिए गिड़गिड़ाने लगे।

उन दोनों ने पुजारी को बताया

कि अपने साथी नवाज के साथ मिल कर उन्होंने ही कुछ दिन पहले मंदिर की दानपेटी में कंडोम डाला था।

नवाज माफी माँगने के लिए जिंदा नहीं था। दानपेटी में कंडोम डालने के बाद उसे एक दिन खून की उल्टियाँ हुईं और फिर पेचिश से उसके मल से खून निकला। अंत में वह अपने घर की दीवारों पर सिर मारते हुए मर गया। मरते समय उसने उन्हें बताया कि कोरगज्जा उन सब पर नाराज हैं।

अब्दुल रहीम और अब्दुल तौफीक ही जिंदा हैं। लेकिन वक्त बीतने के साथ रहीम को भी खून की उल्टियाँ शुरू हो गई हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे नवाज को हुई थी। उसके बाद दोनों अपनी जान जाने के डर से घबराकर पुजारी की शरण में जाकर माफी की भीख माँग करने लगे। भगवान के सामने खड़े होकर दोनों ने सब स्वीकार कर लिया और दया की भीख माँगने लगे।

पहली दफा नहीं है जब स्वामी कोरगज्जा की शरण में इस तरह कोई माफी माँगने पहुँचा हो। 4 साल पहले मनोज पंडित नाम के एक आदमी ने स्वामी कोरगज्जा को लेकर अभद्र टिप्पणी की थी। लेकिन बाद में उसकी हालत ऐसी हो गई कि वो गुरपुर के वज्रदेही मठ में माफी माँगने चला आया। मनोज ने स्वीकारा की उसे कोरगज्जा की आस्था के बारे में नहीं पता था।

‘अजीर्ण होने पर जल-पान औषध है। भोजन पच जाने पर अर्थात भोजन के डेढ़- दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक है। भोजन के मध्य में (अर्थात दो अन्न के बीच मे जैसे रोटी और चावल वो भी मात्रा गला साफ होने मात्र 2-3 घूंट) पानी पीना अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष के समान अर्थात पाचनक्रिया के लिए हानिकारक है ।

 जल है औषध समान

(जल ही जीवन है)

अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम् ।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम् ।।

‘अजीर्ण होने पर जल-पान औषध  है। भोजन पच जाने पर अर्थात भोजन के डेढ़- दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक है। भोजन के मध्य में (अर्थात दो अन्न के बीच मे जैसे रोटी और चावल वो भी मात्रा गला साफ होने मात्र 2-3 घूंट) पानी पीना अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष के समान अर्थात पाचनक्रिया के लिए हानिकारक है ।

पानी से रोगों का इलाज / उपचार :

1  अल्प जल-पान : उबला हुआ जल ठंडा करके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीने से अरुचि, जुकाम, मंदाग्नि, सूजन, खट्टी डकारें, पेट के रोग, नया बुखार और मधुमेह में लाभ होता है।

2.  उष्ण जल-पान : सुबह उबाला हुआ पानी गुनगुना करके दिनभर पीने से प्रमेह, मधुमेह, मोटापा, बवासीर, खाँसी-जुकाम, नया ज्वर, कब्ज, गठिया, जोड़ों का दर्द, मंदाग्नि, अरुचि, वात व कफ जन्य रोग, अफारा, संग्रहणी, श्वास की तकलीफ, पीलिया, गुल्म, पार्श्व शूल आदि में पथ्य का काम करता है।

3  प्रात: उषापान :-  सूर्योदय से 2 घंटा पूर्व, शौच क्रिया से पहले रात का रखा हुआ आधा से  सवा लीटर पानी पीना असंख्य रोगों से रक्षा करनेवाला है। शौच के बाद पानी न पियें।

औषधिसिद्ध जल :

1.  सोंठ-जल : दो लीटर पानी में 2. ग्राम सोंठ का चूर्ण या 1. साबूत टुकड़ा डालकर पानी आधा होने तक उबालें, ठंडा करके छान लें । यह जल गठिया, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, दमा, क्षयरोग (टी.बी.), पुरानी सर्दी, बुखार, हिचकी, अजीर्ण, कृमि, दस्त, आमदोष, बहुमूत्रता तथा कफजन्य रोगों में खूब लाभदायी है ।
2.  अजवायन-जल : एक लीटर पानी में एक चम्मच (करीब 7.5 ग्राम) अजवायन डालकर उबालें।  पानी आधा रह जाय तो ठंडा करके छान लें। उष्ण प्रकृति का यह जल हृदय-शूल, गैस, कृमि, हिचकी, अरुचि, मंदाग्नि,पीठ व कमर का दर्द, अजीर्ण, दस्त, सर्दी व बहुमुत्रता में लाभदायी है।

3.   जीरा-जल : एक लीटर पानी में एक से डेढ़ चम्मच जीरा डालकर उबालें। पौना लीटर पानी बचने पर ठंडा कर छान लें। शीतल गुणवाला यह जल गर्भवती एवं प्रसूता स्त्रियों के लिए तथा रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, अनियमित मासिकस्राव, गर्भाशय की सूजन, गर्मी के कारण बार-बार होनेवाला गर्भपात व अल्पमूत्रता में आशातीत लाभदायी है।

4.    सोने के पात्र का रखा जल या जल पात्र में स्वर्ण डला हुया जल छाती के ऊपर सभी रोग अर्थात कफ विकृति से उत्पन्न रोग जैसे मानसिक अवसाद अनिद्रा में रामबाण औषधि है।

खास बातें :

*  भूखे पेट, भोजन की शुरुआत व अंत में, धूप से आकर, शौच, व्यायाम या अधिक परिश्रम व फल खाने के तुरंत बाद पानी पीना निषिद्ध है।*

*  'अत्यम्बूपानान्न विपच्यतेऽन्नम्'           अर्थात बहुत अधिक या एक साथ पानी पीने से पाचन बिगड़ता है । इसलिए "मुहुर्मुहर्वारि पिबेदभूरी"। बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए।।*

लेटकर, खड़े होकर पानी पीना तथा पानी पीकर तुरंत दौड़ना या परिश्रम करना हानिकारक है। बैठकर धीरे-धीरे चुस्की लेते हुए बायाँ स्वर सक्रिय हो तब पानी पीना चाहिए।

* प्लास्टिक की बोतल में रखा हुआ, फ्रिज का या बर्फ मिलाया हुआ पानी हानिकारक है।*

*  सामान्यत:  व्यक्ति के लिए एक दिन में डेढ़ से दो लीटर पानी आवश्यक है  या अपने वजन का दसवां भाग अत्यधिक मात्रा है और अपना वजन÷10 - 2 यह न्यूनतम मात्रा है | देश-ऋतु-प्रकृति आदि के अनुसार यह मात्रा बदलती है।*

पारस पीपल के औषधीय गुण - चर्म रोगों में लाभकारी..

 ⚫⚫⚫

पारस पीपल के औषधीय गुण....

◼️चर्म रोगों में लाभकारी.....

दाद खाज ,खुजली  होनें पर पारस पीपल के पके हुये फलों को जलाकर राख बना लें इस राख को नारियल तेल के साथ मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगानें से दाद खाज और खुजली मिटती हैं।   


ठंड के दिनों में चलनें वाली सूखी खुजली के लिये पारस पीपल के फलों का रस लगानें से खुजली मिट जाती हैं।

◼️पुरानें अतिसार में लाभ.....

पारस पीपल की छाल  100 ग्राम  कूटकर आधा लीटर पानी में तब तक उबलना चाहिये जब तक की पानी आधा न रह जायें ।
इस क्वाथ को 10 - 10 ML सुबह शाम पिलानें से पुरानें अतिसार में आशातीत लाभ प्राप्त होता हैं ।

◼️संधिशोध में उपयोगी....

घुटनों कोहनी और शरीर के अन्य भागों की संधियों में सूजन और दर्द होनें पर पारस पीपल के पत्तों को गर्म कर प्रभावित स्थान पर बाँधने से दर्द और सूजन में राहत मिलती हैं ।


पारस पीपल का पौधा भी संधिवात में उपयोगी होता हैं, इसके लिए पारस पीपल के पौधा के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।

◼️मूत्राशय की सूजन में आराम....

पारस पीपल की छाल  का क्वाथ और इसके बीजों से बना तेल मूत्राशय की सूजन में देनें पर मूत्राशय की सूजन तुरंत उतर जाती हैं ।

◼️नशा छुडवानें में उपयोगी.....

किसी भी प्रकार का नशा छुडाना  हो तो पारस पीपल की छाल और अर्जुन  की छाल Arjun ki chal को समान मात्रा में पीसकर एक - एक चम्मच सुबह शाम पानी के साथ सेवन करनें से किसी भी प्रकार के नशे की लत छुट जाती हैं ।

◼️पेट दर्द में आराम....

पारस पीपल के पत्तों या इसकी छाल का क्वाथ बनाकर पीलानें से पेट दर्द में बहुत शीघ्र आराम मिलता हैं ।


◼️सिरदर्द में पारस पीपल के फायदे....

पारस पीपल के तनें को या ताजे फलों को पीसकर सिरदर्द में लेप करनें से सिरदर्द में अतिशीघ्र आराम मिलता हैं।

नाक से खून आने से बचने का घरेलू इलाज

 गर्मी के दिनों में नाक से खून आने का कारण एवं घरेलू उपयोग.....

चिलचिलाती गर्मी और तेज धूप में अक्सर नाक से खून आने की समस्या होती है. अगर इसको लेकर लापरवाही की जाती है तो यह गंभीर भी हो सकता है. आयुर्वेद अनुसंधान के मुताबिक, नाक से खून आने  की समस्या का कारण गर्मी के तापमान में नाक में सूखापन हो सकता है.  नाक में कई तरह की रक्त वाहिकाएं पाई जाती हैं, जो नाक के आगे और पीछे की सतह के काफी करीब होती हैं. जब नाक सूखती है तो ये खून की नलियां फैल जाती हैं. इस वजह से खून आने लगता है. साइनोसाइटिस की समस्या की चपेट में रहने वालों में भी यह समस्या देखी जाती है। इसे नकसीर कहते हैं।

▪️▪️क्यों आता है नाक से खून...

गर्मियों में तापमान ज्यादा होता है, इस वजह से गर्म हवाएं चलती हैं, जिसकी वजह से नाक अंदर से सूख जाती है और नलियां फैलने लगती हैं और नाक से ब्लड आने लगता है।इसलिए जब भी धूप में निकलें तो मुंह ढककर ही जाएं. साइनस की समस्या की चपेट में रहने वाले भी अक्सर इस समस्या से परेशान रहते हैं।गर्मी में नाक से खून आए तो घबराएं नहीं...

▪️▪️नाक से खून आने से बचने का घरेलू इलाज.....

◼️सरसो का तेल....

नाक से खून आने की समस्या का सबसे अच्छा समाधान सरसो का तेल है. रात में सोते समय सरसो का तेल हल्का गुनगुना करके दो से तीन बूंद नाक में डालकर सोएं. धीरे-धीरे समस्या खत्म हो जाएगी.

◼️सरसो का तेल और प्याज का रस....

प्याज का रस आयुर्वेद में औषधि के तौर पर भी इस्तेमाल होता है. इसमें फाइबर, पोटेशियम, कैल्शियम, विटामिन बी और एंटी-ऑक्सीडेंट मिलता है. आयुर्वेद के मुताबिक, प्याज का रस नाक में डालने से  नकासीर से राहत मिल सकती है. 2 से 3 बूंद प्याज का रस नाक में डालना चाहिए.

◼️मुंह से सांस लेने की कोशिश करें....

धूप में निकलते ही अगर अचानक ही नाक से खून आने लगे तो परेशान होने की बजाय मुंह से तेज सांस लें. धीरे-धीरे आपको आराम मिल जाएगा.

◼️बर्फ का इस्तेमाल करें....

अगर नाक से ब्लड आना नहीं रूक रहा है तो बर्फ के टुकड़े को एक कपड़े में लपेटकर नाक के ऊपर लगाकर लगाएं. इससे जल्दी ही आराम मिल जाएगा.

◼️बेल के पत्ते....

 बेल के पत्ते का रस पानी में मिलाकर हर दिन सेवन करें. इसमें विटामिन ई पाया जाता है, जो इस समस्या को खत्म कर सकता है।


पंचगव्य घृत घी रूप में एक आयुर्वेदिक महा औषधि है या ऐसे भी कह सकते हैं कि वह एक चमत्कारिक तुरंत असर करने वाली महा औषधि है।

 पंचगव्य घृत क्या है ?.....

पंचगव्य घृत घी रूप में एक आयुर्वेदिक महा औषधि है या ऐसे भी कह सकते हैं कि वह एक चमत्कारिक तुरंत असर करने वाली महा औषधि है।

इस आयुर्वेदिक औषधि का उपयोग मस्तिष्क को शक्ति देने ,पाचन शक्ति बढ़ाने ,मिर्गी के इलाज ,रक्त शोधन व पित्त विकार कैंसर जैसे हजारों रोगों को दूर करने में किया जाता है । अगर एक स्वस्थ व्यक्ति निरंतर इसका सेवन करता है तो 60 साल का व्यक्ति भी 30 वर्ष का लगने लगता है। चेहरे पर सूर्य के जैसी चमक आ जाती है।

पंचगव्य घृत बनाने की विधि .....

दशमूल, त्रिफला, हल्दी, दारुहल्दी, कूड़े की छाल, सतौना की छाल, अपामार्ग, नील, कुटकी, अमलतास, कठगूलर के मूल, पुष्करमूल और धमासा ये 24 औषधियां 10-10 तोले लेकर 32 सेर जल में मिलाकर क्वाथ करें।

 चतुर्थांश जल शेष रहने पर उतारकर छान लें। फिर भारंगी, पाठा, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, निसोंत, समुद्रफल, गजपीपल, पीपल, मूर्वा, दन्तीमूल, चिरायता, चित्रकमूल, काला सारिवा (अनन्तमूल), सफेद सारिवा, रोहिष घास, गन्धतृण, चमेली के पत्ते सब 1-1 तोले मिला जल में पीसकर कल्क करें। फिर क्वाथ, कल्क के साथ गाय के गोबर का रस, दही, दूध, गोमूत्र और गोघृत 2-2 सेर मिलाकर मन्दाग्नि पर घृत सिद्ध करें।

और अंतिम में इसमें स्वर्ण की भावना दें।


▪️▪️पंचगव्य घृत सेवन विधि ....

पंचगव्य घृत को सुबह 10 ml की मात्रा में गुनगुने पानी, और गाय के दूध के साथ खाली पेट लिया जा सकता है।

इस घृत को लेने के बाद, कम से कम एक घंटे तक कुछ भी (चाय, कॉफी या नाश्ता) नहीं लेना चाहिये ।

पंचगव्य घृत के फायदे व उपयोग ....

1-पंचगव्य घृत अपस्मार, उन्माद, सूजन, उदररोग, गुल्म, बवासीर, पाण्डु, कामला, भगंदर इत्यादि रोगों में लाभदायक है।

2- पंचगव्य घृत चातुर्थिक ज्वर को नष्ट करता है।

3-पंचगव्य घृत का प्रवेश धातुओं में सरलतापूर्वक हो जाता है। मस्तिष्क के भीतर आम, विष, कफ, कृमि या कीटाणु की स्थिति हुई हो, उसे यह घृत जला डालता है या नष्ट कर देता है। इस हेतु से रोगी को श्रद्धासह पथ्य पालन पूर्वक 2- 4 मास तक इस घृत का सेवन कराया जावे तो भगवान् धन्वन्तरिजी रोगी को नि:संदेह आरोग्यता प्रदान करते हैं।

5-अपस्मार और उन्माद पीड़ित कई रोगियों को इस घृत का सेवन सफलतापूर्वक कराया गया है और हमें घृत ने यश दिलाया है।

यह पंचगव्य घृत अपस्मार और उन्माद केi रोगी के लिए आशीर्वाद रूप श्रेष्ठ औषधि है। यद्यपि जीर्णावस्था और तीक्ष्णावस्था दोनों में प्रयुक्त होता है। तथापि जीर्णावस्था में इसके सेवन की विशेष आवश्यकता रहती है।

जीर्णावस्था में लीन विष को नष्ट करने, वायु के प्रति बंध दूर करने, मन और इन्द्रियों की विकृति को दूर कर प्रकृति को सबल बनाने तथा चिन्ता को नष्टकर मन को प्रसन्न रखने की आवश्यकता है। वे इस पंचगव्य घृत से होते हैं।

मोदी और नायडू का झगड़ा भी यही था कि नायडू देश की ट्रेन में अपना हिस्सा मांग रहे हैं और मोदी जिद्द पर अड़े हैं कि देश को यात्रियों द्वारा लूटी गई ट्रेन नहीं बनने दिया जाएगा।

 

लगभग 4 साल तक NDA में रहने के बाद TDP के चंद्रबाबू नायडू की बुद्धि विवेक और अन्तरात्मा की तिकड़ी अचानक जागी और नायडू को याद आया कि मोदी सरकार आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दे रही। इसीलिए नायडू की TDP ने NDA छोड़ दिया था।

राजनीति के बहुत शातिर घाघ खिलाड़ी चंद्रबाबू नायडू को क्या यह नहीं मालूम कि किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने का फैसला करने में 4 साल तो छोड़िए, 4 दिन भी नहीं लगते.? मोदी सरकार बहुत पहले ही यह साफ भी कर चुकी थी कि आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता।

स्वयं चंद्रबाबू नायडू को भी यह भलीभांति ज्ञात था कि आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह दर्जा पाने की किसी भी कसौटी पर आंध्रप्रदेश खरा नहीं उतरता। इसीलिए 4 साल तक आंध्रप्रदेश को वह दर्जा नहीं मिलने के बावजूद चंद्रबाबू नायडू NDA में ही बने रहे।

दरअसल NDA से चंद्रबाबू नायडू के जाने का जो कारण है वह भारतीय राजनीति की छाती में पिछले दो ढाई दशकों में पनपे और बढ़े भ्रष्टाचार के कैंसर की कोख से ही उपजा है।

मोदी सरकार द्वारा पिछले 4 सालों में आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा भले ही नहीं दिया गया हो लेकिन विशेष आर्थिक पैकेज और भरपूर आर्थिक सहायता जमकर दी गयी।

यहां यह उल्लेखनीय है कि किसी भी राज्य को यदि 20 हज़ार करोड़ की आर्थिक सहायता केंद्र देता है तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि वह पूरा रूपया उस राज्य को दे दिया जाएगा। इसकी एक नियमावली है जिसके तहत वह राज्य अपनी योजनाओं कार्यक्रमों की सूची देता है जिसके अनुसार किस्तों में केंद्र उसे राशि देता है। जब पहले दी गयी क़िस्त की राशि के खर्च का हिसाब (Utilisation Certificate) राज्य सरकार द्वारा केन्द्र सरकार को दिया जाता है तो उसे राशि की अगली क़िस्त केन्द्र सरकार देती है। यही वह बिन्दु है जहां पर मोदी सरकार से चंद्रबाबू नायडू की बुरी तरह ठन गई थी।

लगभग 2 वर्ष पूर्व विशेष आर्थिक सहायता कोष से दिए गए 3049 करोड़ रूपये का हिसाब और केंद्र की 13 योजनाओं के लिये दिए गए लगभग 1000 करोड़ रुपयों का हिसाब चंद्रबाबू नायडू सरकार ने आजतक केन्द्र सरकार को नहीं भेजा। परिणामस्वरूप 2 साल पहले ही उसकी अगली क़िस्त रोक दी गयी थी। केंद्रीय योजनाओं के लिए भी राशि रोक दी गयी थी। नायडू को लगा था कि थोड़ी नोकझोंक के बाद मामला सुलझ जाएगा। अतः यह खींचातानी दो साल तक चलती रही किन्तु मोदी सरकार टस से मस नहीं हुई। यही कहानी बहुचर्चित पोलावरम प्रोजेक्ट की भी थी। बिना पिछला हिसाब दिए हुए ही चंद्रबाबू नायडू उस प्रोजेक्ट के लिए एक बहुत मोटी रकम की अगली क़िस्त की मांग भी कर रहे थे जिसे मोदी सरकार द्वारा पूरा नहीं किया जा रहा था।

यहां सवाल यह है कि यदि काम के लिए पैसा आया और उसे खर्च भी किया गया तो उसका हिसाब (Utilisation Certificate) देने से किसी सरकार को क्यों और क्या परेशानी होती है.? इसका उत्तर यह है कि उस राशि की जो बंदरबांट होती है उसकी सच्चाई (Utilisation Certificate) देने पर उजागर हो जाती है। मोदी सरकार से पहले राज्य सरकारों से (Utilisation Certificate) मांगने का नियम केवल सरकारी औपचारिकताओं की फाइलों तक ही सीमित रह गया था। केन्द्र सरकार में गठबन्धन सहयोगी बनकर शामिल होनेवाले क्षेत्रीय दलों की राज्य सरकारों को उस राशि की बंदरबांट की खुली छूट देकर केन्द्र उनके समर्थन की कीमत चुकाता रहता था।

अर्थात देश की हालत उस ट्रेन सरीखी हो जाती थी जिसपर सवार हर यात्री अपनी अपनी सुविधानुसार सीट की रेक्सीन, गद्दी, पंखा बल्ब स्विच बोर्ड, सनमाईका, टोटी आदि यह कह के उखाड़कर अपने साथ ले जाता है कि क्योंकि... रेल हमारी सम्पत्ति है और मैंने अपना हिस्सा ले लिया।

मोदी और नायडू का झगड़ा भी यही था कि नायडू देश की ट्रेन में अपना हिस्सा मांग रहे हैं और मोदी जिद्द पर अड़े हैं कि देश को यात्रियों द्वारा लूटी गई ट्रेन नहीं बनने दिया जाएगा।

फिलहाल तो मोदी की जिद्द ही चली लेकिन 2024 में जनाब सबकुछ लूटा कर होश में आए।

धरती पर एक ऐसा लोक जहां कलयुग की अभी तक नहीं हुई एंट्री, यहां के बिना अधूरी है चारधाम यात्रा

 

🛕धरती पर एक ऐसा लोक जहां कलयुग की अभी तक नहीं हुई एंट्री, यहां के बिना अधूरी है चारधाम यात्रा

कलयुग के प्रभाव से बचने के लिए 88,000 ऋषि-मुनियों ने एक स्थान पर रहकर तप किया था। यह स्थान उन्हें स्वयं ब्रह्माजी ने उपलब्ध कराया था। मान्यता है कि इस स्थान पर सभी तीर्थों का वास रहता है। इसलिए इस स्थान की यात्रा के बिना आपके तीर्थ अधूरे रहते हैं।

कलयुग का दूसरा चरण चल रहा है। हर जगह कलयुग का प्रभाव देखने को मिलता है। लेकिन धरती पर खासकर भारत में एक ऐसी जगह है, जहां अभी तक कलयुग का प्रभाव नहीं पहुंचा है। ट्रैवलॉग में आज हम आपको ऐसी जगह लेकर चल रहे हैं जिसका इतिहास बहुत ही प्राचीन है। यह एक ऐसा तीर्थ स्थान है जहां के दर्शन के बिना आपकी चार धाम की यात्रा भी अधूरी मानी जाती है। इसे इस पावन भूमि का महान तीर्थ बताया गया है। इसे तीर्थों में तीर्थ कहा गया है। इसका वर्णन वेद-पुराण से लेकर हर हिंदू धर्मग्रंथ में मिलता है। श्रीमद्भागवत महापुराण, महाभारत, वायु पुराण, वामन पुराण, पद्म पुराण, शिव पुराण, देवी भागवत पुराण, यजुर्वेद का मंत्र भाग श्वेताश्वर उपनिषद्, प्रश्नोपनिषद, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, कालिका तंत्र, कर्म पुराण, शक्ति यामल तंत्र, श्रीरामचरित मानस, योगिनी तंत्र आदि ग्रंथों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। यह वही स्थान है, जहां महापुराणों की रचना हुई। महाभारत काल में युधिष्ठिर और अर्जुन भी यहां आए थे। इतना ही नहीं प्राचीन काल में 88 हजार ऋषि-मुनियों ने इसी स्थान पर कठोर तपस्या की थी। इसलिए इसे तपोभूमि भी कहा जाता है। नैमिषारण्य का प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में होता है। यहां उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में वाल्मीकि रचित काव्य का गायन किया था।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में नैमिषारण्य महान तीर्थ है । यह. लखनऊ से 80 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित यह प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ. इस स्थान को नैमिषारण्य, नैमिष या नीमषार के नाम से भी जाना जाता है। नैमिष यानी निमिष किंवा निमेष तथा आरण्य यानी अरण्य अर्थात वन क्षेत्र परमात्म तत्व का क्षेत्र.कहा जाता है, कि ब्रह्मा जी ने खुद भी इस स्थान को, ध्यान योग के लिए सबसे उत्तम बताया था। इस स्थान के मुख्य आकर्षण की बात करें तो इनमें चक्रतीर्थी, भूतेश्वरनाथ मंदिर, व्यास गद्दी, हवन कुंड, ललिता देवी का मंदिर, पंचप्रयाग, शेष मंदिर, हनुमान गढ़ी, शिवाला-भैरव जी मंदिर, पंच पांडव मंदिर, पंचपुराण मंदिर, मां आनंदमयी आश्रम, नारदानन्द सरस्वती आश्रम-देवपुरी मंदिर, रामानुज कोट, रुद्रावर्त आदि शामिल हैं।

चक्रतीर्थ (Chakratirtha Naimisharanya)

नैमिषारण्य स्टेशन से लगभग एक मील दूर चक्रतीर्थ सरोवर है.

यह एक बड़ा गोलाकार जलाशय है। घेरे के चारों ओर बाहर जल भरा रहता है, जिसमें श्रद्धालु स्नान करते हैं। जल में चलते हुए इस गोल चक्र की परिक्रमा भी करते हैं। जल के भरे हुए घेरे के बाद चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं। यहां विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर हैं। मुख्य मंदिर भूतनाथ महादेव का है.चक्रतीर्थ के बारे में कथा प्रचलित है कि एक बार अट्ठासी हजार ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मा जी से निवेदन कि जगत कल्याण के लिए उन्हें तपस्या करनी है और तपस्या के लिए दुनिया में सर्वश्रेष्ठ पवित्र, सौम्य और शांन्त भूमि के बारे में बताएं. यह घटना महाभारत के युद्ध के बाद की है। ऋषि-मुनि कलयुग के प्रारंभ को लेकर भी चिंतित थे। ब्रह्मा जी ने अपने मन से एक चक्र उत्पन्न करके ऋषियों कहा कि इस चक्र के पीछे चलते हुए जाएं। जिस भूमि पर इस चक्र का मध्य भाग यानी नेमि खुद गिर जाए तो समझ लेना कि पॄथ्वी का मध्य भाग वही है। ब्रह्माजी ने यह भी कहा कि वह स्थान कलयुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा। कहा जाता है कि इसी स्थान पर चक्र का नेमि गिरा था, जिस वजह से इसका नाम नैमिषारण्य पड़ा और यह जगह चक्रतीर्थ कहलाई। यह भी कहा जाता है कि नैमिषारण्य वो स्थान है जहां पर ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपने दुश्मन देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियां दान की थीं। ऐसी मान्यता है कि इस परम पवित्र भूमि के दर्शन बिना सभी तीर्थ अधूरे रहते हैं।

84 कोस की परिक्रमा

नैमिषारण्य की परिक्रमा भी की जाती है। यह 84 कोस की परिक्रमा है। परिक्रमा हर साल फाल्गुनमास की अमावस्या के बाद की प्रतिपदा तिथी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है। यहां पंचप्रयाग नाम से एक पक्का सरोवर है. सरोवर के किनारे अक्षयवट नामक वृक्ष हैं।

अन्य दर्शनीय स्थल

नैमिषारण्य में व्यास शुकदेव का मंदिर है। मंदिर के बाहर व्यासजी की गद्दी है। यहां दशाश्वमेध टीला पर एक मंदिर में श्रीकृष्ण और पांचों पांडवों की मूर्तियां हैं। यहीं पर चारों धाम मंदिर भी हैं। महर्षि गोपाल दास जी के द्वारा स्थापित जगन्नाथ धाम, बद्रीनाथ धाम, द्वारिकाधीश धाम और रामेश्वरम धाम के मंदिर हैं ।

मोदी के तेवर बदल गयें हैं और भाषण भी, क्या मोदी भटक गए हैं ? या भटक गए थे?

 

मोदी के तेवर बदल गयें हैं और भाषण भी, क्या मोदी भटक गए हैं ? या भटक गए थे?

लोकसभा चुनाव के पहले दौर के मतदान के तुरंत बाद मोदी की भाषा और शैली अचानक बदल गई और उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र से मुस्लिम तुष्टीकरण से संबंधित कई तथ्यों पर जनता के सामने खुलकर अपनी बातें रखी. जब उन्होंने कहा कि कांग्रेस पिछड़े और दलितों का आरक्षण छीन कर मुसलमानों को देना चाहती है, तो खलबली मच गई. उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस आर्थिक सर्वेक्षण करवाकर सम्पन्न लोगों का धन घुसपैठियों में बांटना चाहती है तो सहसा लोगों को विश्वास नहीं हुआ. उसके बाद राहुल गाँधी के सलाहकार सैम पित्रोदा, जो उनके पिता राजीव गाँधी के मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक थे, ने विरासत टैक्स का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अमेरिका में जब कोई व्यक्ति मरता हैं तो उसकी संपत्ति का 55% हिस्सा सरकार ले लेती है. भारत में ऐसा टैक्स नहीं है, जिसके लिए योजना बनाई जा सकती है. पूरा देश सन्न रह गया. राहुल गाँधी ने हाल ही में तेलंगाना की एक सभा में भाषण देते हुए कहा था वह केवल जातिगत जनगणना नहीं करायेगे, वह आर्थिक और संस्थागत सर्वेक्षण भी करवाएंगे जो देश का एक्स रे होगा, जिससे पता चल सकेगा किसके पास कितनी संपत्ति है, किसकी कितनी हिस्सेदारी है. इसके बाद वह क्रांतिकारी कदम उठाएंगे. प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र, राहुल गाँधी के भाषण और सैम पित्रोदा के बयान की कड़ियां जोड़ते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण, दलितों और पिछड़ों का आरक्षण छीन कर मुस्लिमों को देने और सम्पन्न लोगों द्वारा मेहनत से कमाई गई संपत्ति को घुसपैठियों में बांटने का मुद्दा जोर शोर से उठाया. इसके बाद तो चुनावी मैदान का पूरा परिदृश्य बदल गया.

जहाँ विपक्ष इसे ध्रुवीकरण करने की कोशिश बता रहा था, वही मोदी भक्त गदगद थे और सोशल मीडिया पर चर्चा कर रहे थे कि असली मोदी वापस आ गए हैं. यह सही है कि मोदी जिन वादों और इरादों के साथ पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आए थे, उन्हें धीरे धीरे भूलने लगे थे. सबका साथ, सबका विकास तक तो ठीक रहा लेकिन जब से यह “सबका साथ, सबका विकास, सब का विश्वास और सब का प्रयास” बन गया, लोग हैरान भी थे और परेशान भी, जो धीरे धीरे उदासीनता में बदल रही थी. पहले चरण के कम मतदान से यह स्पष्ट रूप से दिखाई भी पड़ा. कहना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री मोदी के अचानक इस बदले व्यवहार का कारण क्या है, क्योंकि अब तक मोदी सिर्फ और सिर्फ विकास की बात करते रहे हैं और भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की बात करते रहे हैं. इसलिए इस पर सियासत तो होगी. सामान्यतः सभी राजनैतिक दल मुस्लिमों के विरुद्ध कोई भी बयान देने से बचते हैं, चाहे मामला देश के लिए कितना ही महत्वपूर्ण क्यों न हो. अनेक अवसरों पर राजनीतिक स्वार्थ के लिए तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पार करते हुए राष्ट्रीय हितों की बलि चढ़ाने में भी कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों ने संकोच नहीं किया. इसका परिणाम ये हुआ कि बहुसंख्यक हिंदू अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक बन गए हैं. क्या कोई कांग्रेस द्वारा बनाए गए पूजा स्थल कानून, वक्फ बोर्ड कानून, और अल्पसंख्यक आयोग कानून को भूल सकता है. गनीमत इतनी रही कि कांग्रेस अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में सांप्रदायिक हिंसा कानून पारित नहीं करवा सकी अन्यथा हिंदुओं की स्थिति कितनी बदतर हो चुकी होगी उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती.

प्रधानमंत्री मोदी का यह आरोप बहुत गंभीर हैं कि कांग्रेस पिछड़ों और दलितों का आरक्षण छीन कर मुस्लिमों को देना चाहती है. राजनीति की विडंबना देखिए कि पिछड़ों की राजनीति करने वाले और जातिगत जनगणना की जोरशोर से मांग करने वाले क्षेत्रीय दल इस मामले पर पूरी तरह चुप हैं लेकिन दलितों और पिछड़ों में बेचैनी स्पष्ट देखी जा सकती है. नेहरू गाँधी का मुस्लिम प्रेम किसी से छिपा नहीं है. यद्यपि नेहरु ने मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण देने का समर्थन नहीं किया था लेकिन कांग्रेस इस मोहपाश से कभी बाहर नहीं आ सकी और 1960 से ही इस दिशा में प्रयासरत हैं. इसका पहला प्रयोग अविभाजित आंध्र प्रदेश में किया गया जब 1994 में कांग्रेसी मुख्यमंत्री विजय भास्कर रेड्डी ने बड़ी चालाकी से बिना कोटा निर्धारित किए मुसलमानों की कुछ जातियों को सरकारी आदेश से ओबीसी में शामिल कर दिया. इससे हिन्दू ओबीसी वर्ग का लाभ अपने आप कम हो गया. 2004 में कांग्रेसी मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी ने मुसलमानों को 5% कोटा निर्धारित करते हुए ओबीसी वर्ग में आरक्षण दे दिया, जिसे उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया क्योंकि इससे आरक्षण की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा पार हो गयी थी. 2005 में आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने फिर एक बार विधानसभा में अधिनियम पारित करके शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मुसलमानों के लिए ओबीसी के अंतर्गत 5% का कोटा निर्धारित कर दिया. इसे आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने रद्द कर दिया.

इसके बाद भी कांग्रेस नहीं रुकी और 2007 में मुसलमानों की 14 श्रेणियों को ओबीसी की मान्यता देते हुए 4% कोटा निर्धारित कर दिया और इसके लिए अध्यादेश जारी कर दिया लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगाते हुए सरकार की गंभीर आलोचना की. 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद टीआरएस के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने मुसलमानों के लिए आरक्षण का कोटा बढ़ाते हुए 12% करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया और इसे केंद्र सरकार की अनुमति के लिए भेजा जिसे भाजपा सरकार से अनुमति नहीं मिल सकी. इसके बाद कांग्रेस की कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने समय समय पर मुसलमानों की अनेक जातियों को बिना कोटा निर्धारित किए ओबीसी वर्ग में शामिल कर दिया, जिसके अंतर्गत उन्हें आज भी आरक्षण प्राप्त हो रहा है. इससे हिंदू समुदाय के ओबीसी वर्ग का आरक्षण अपने आप कम हो गया, और उन्हें खासा नुकशान हुआ. हाल ही में बिहार की बहु प्रचारित जातिगत सर्वे में समूचे मुस्लिम समुदाय को पिछड़े वर्ग में शामिल किया गया था जिसके आधार पर भविष्य में इन्हें ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत बिना कोटा निर्धारित किए आरक्षण देने की मंशा रही होगी.

कांग्रेस ने 2004 के अपने घोषणापत्र में लिखा था कि उसने कर्नाटक और केरल में मुसलमानों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में इस आधार पर आरक्षण दिया है कि वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भी मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में इस तरह की सुविधा प्रदान करने के लिए कृत संकल्पित है. 2009 के कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में भी इस वायदे को दोहराया गया है. 2014 के घोषणापत्र में भी कांग्रेस ने लिखा था कि कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के मामले में कई कदम उठाए हैं. सरकार न्यायालय में लंबित इस मामले की प्रभावी ढंग से पैरवी करेगी और सुनिश्चित करेगी कि उचित कानून बनाकर इन नीति को राष्टीय स्तर पर लागू किया जाए. इससे बिलकुल स्पष्ट है कि मुसलमानों को आरक्षण देना कांग्रेस की सोंची समझी नीति है, जिस पर दशकों से काम किया जा रहा है.

जहाँ तक लोगों की संपत्ति छीनकर बांटने का प्रश्न है, कांग्रेस का अतीत इस मामले में भी बहुत दागदार है. 1953 में जवाहर लाल नेहरू ने सम्पदा शुल्क अधिनियम लागू किया था जिसमें जिसमें विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत अधिकतम 85% तक शुल्क वसूला जाता था. यानी मालिक की मृत्यु के बाद संपत्ति का 85% भाग सरकार हड़प लेती थी. यह कानून तीन दशक तक चलता रहा और राजीव गाँधी ने इसे तब समाप्त किया जब उन्हें इंदिरा गाँधी की परिसंपत्तियां मिलनी थी. राहुल गाँधी ने अपने कई भाषणों में इस ओर संकेत किया था और जिस एक्स रे की बात राहुल गाँधी कर रहे थे उसका खुलासा उनके सलाहकार सैम पित्रोदा ने कर दिया. यद्यपि कांग्रेस ने उनका निजी विचार बताते हुए मामले को दबाने की कोशिश की लेकिन लोग चिंतित हैं और सियासत गर्म हो गयी है.

बहुत कम लोगों को याद होगा कि प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जो वित्त मंत्री भी थीं ने आयकर का बोझ इतना बढ़ा दिया था कि वह सरचार्ज सहित 97.75% पहुँच गया. पत्रकार वार्ता में जब उनसे पूछा गया कि आयकर का इतना बोझ लोग और कंपनियां कैसे सह पाएंगी तो उनके वित्त सचिव ने जवाब दिया था कि अभी भी 2.25% आय तो बच रही हैं. यहीं से कालेधन की अर्थव्यवस्था की शुरुआत हुई जिसने देश की प्रगतिशील और ईमानदार अर्थव्यवस्था का गला घोंट दिया और देश को कई दशक पीछे धकेल दिया. इसके बाद इंदिरा जी ने वामपंथियों के दबाव में उद्योगों का अंधाधुंध राष्ट्रीयकरण किया जिसने देश की अर्थव्यवस्था की जड़ें हिला दी. कपड़ा मिलों के अधिग्रहण और उन्हें मिलाकर राष्ट्रीय कपड़ा निगम बनाने की सनक ने देश में औद्योगिक वातावरण चौपट कर दिया. सरकार को अरबों रुपए का निवेश इन बीमार मिलों में करना पड़ा, जो नहीं चल सकी और अंत में कौड़ियों के मोल बेचनी पड़ी जिससे देश का अरबों रुपया स्वाहा हो गया.

अगर दोपहर का भूला शाम को वापस आ गया है तो उससे नाराज नहीं होना चाहिए बल्कि उसे इतना संबल देने की आवश्यकता है कि वह फिर भटकने न पाये. इसी में आपका भला और सबकी भलाई है.

आज आवश्यकता इस बात की है के सभी मतदान करना सुनिश्चित करें क्योंकि आपका एक वोट आपका ही नहीं आपके राष्ट्र का भविष्य तय करेगा. महंगाई बेरोजगारी, जाति पांति और मुफ्तखोरी से ऊपर उठकर वोट करें. सोच समझकर वोट करें, और देश के लिए वोट करें. देश बचेगा तो ही आप बच सकेंगे और सनातन संस्कृति भी बच सकेगी.

ममता बनर्जी - मोदी जी.ऐक बात शे बाहुत तौकलीफ हुआ.आप G20 का डिनौर में केजरीवाल शाहब को नौई बुलाया.औच्छा नहीं लगा बिल्कुल.

 

ममता बनर्जी - मोदी जी.ऐक बात शे बाहुत तौकलीफ हुआ.आप G20 का डिनौर में केजरीवाल शाहब को नौई बुलाया.औच्छा नहीं लगा बिल्कुल.

.

मोदी - अरे दीदी. मैं बुलाना चाहता था. बहुत मन था पर इसकी हरकतें ऐसी हैँ कि क्या करूँ.    पिछली बार ऑल पार्टी मीट के बाद डिनर पर बुलाया था. वहाँ इसने सबका जीना हराम कर दिया.शिकायत पे शिकायत.

.

बटर पनीर में बटर नहीं दिख रा..अडानी के रिफाइंड आयल में बनाया है शायद.

.

दाल मखनी बहुत गाढ़ी है. खाने में मेहनत करनी पड़ री है.

.

दाल में नमक कम है. (( इसे नमक दिया, इसने खुद नमक अपनी दाल में डाला. फिर थू थू करके बोला दाल में नमक ज्यादा है.मैं नी खा रा.))

.

चुर-चुर नान में से चुर चुर की आवाज नी आरी.तंदूर वाला कोयले में कमीशन खा गया.

.

गाजर के हलुवे में से किसमिस गायब हैँ.मोद्दी जी ने सारे अडानी अम्बानी को खिला दिए.

.

मुझे जो दही भल्ले दिए उनमें भल्ले दही में आधे ही डूबे हुए थे.जबकि हर पूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री का भल्ला पूरा दही में डूबा था. दिल्ली से इतनी नफरत क्यों मोद्दी जी??

.

हर 15 में से एक गोलगप्पा फूटा हुआ है.पूरे 7% कमीशन खाई गई है इसमें.

.

खुद चिकन चिली उठाकर खाया और फिर चिल्लाया... मोद्दी जी ने मेरा धरम भ्रष्ट कर दिया. चिली पनीर की जगह चिली चिकन खिला दिया. हर जगह धांधली है.

.

प्लेट बहुत भारी हैँ. खड़े खड़े खाने से हाथ थक रे हैँ.

.

मुझको चम्मच छोटा वाला दिया मोद्दी जी ने ताकि मैं ठीक से ना खा सकूं (( जबकि चम्मच इसने खुद ली थी क्रॉकरी टेबल से.))

.

वेटर सबको बांटते हुए जाता है. मेरे पास आते ही बोलता है कि ख़त्म हो गया.दोबारा लेकर आता हूँ.मैं भी चीफ मिनिस्टर हूँ.((फिर जब वेटर दोबारा लेकर आया तो ये वहाँ से गायब हो गया.))

.

आलू गोभी की सब्जी में आलू ज्यादा हैँ.आलू गोभी से ज्यादा गले हैँ. भेदभाव की तो आदत है ही मोद्दी जी की.

.

फिंगर बाउल में हाथ डुबाते ही चिल्लाया.... आआआआ !!!! उबलता हुआ पानी दे दिया मोद्दी जी ने ताकि मेरे हाथ जल जाएँ.

.

वेट टिश्यू में मॉइस्चर लेवल कम है. सूखे सूखे से लग रे हैँ.भ्रष्टाचार हुआ है इसमें.

.

सौंफ के साथ मिश्री नहीं है.ये कैसा मुखवाश हुआ.

.

सुनीता और बच्चों के लिए खाना पैक करने को बोला तो प्लास्टिक की थैलियों में डाल के दे दिया.मैं क्या भिखारी हूँ??

.

.

.

मोदी -अब बताओ दीदी मैं क्या करूँ??

.

ममता - बोकाचो** है शाला...

भगवान मोदी को सद्बुद्धि दें जो 75 साल की आयु में यह सोचते हैं कि ट्रिपल तलाक कानून बनने से मोमिनाएं और सरकारी सहायता मिलने से पसमांदा मोमिन भाजपा को वोट देने लगेंगे ।वोट दे भी दें तब भी देश विरोधी मानसिकता तो नहीं बदलने वाली है ।

 

जब भी चुनाव होते हैं तो पत्रकार वोट दे कर निकले आम मुस्लिमों से पूछते हैं कि किस मुद्दे पर वोट दिया , किसको दिया ।

जो उत्तर मिलते हैं उनसे इनकी देश के प्रति मानसिकता साफ हो जाती है । इनमें से सभी मोदी , भाजपा से दिल से नफरत करते हैं लेकिन उसको सीधे बयान करने की जगह घुमा फिरा कर कहते हैं कि वोट राहुल गांधी या तेजस्वी यादव या अखिलेश यादव को दिया है क्योंकि मंहगाई बढ़ रही है , रोजगार नहीं मिलता है , वह मुस्लिमों की सुरक्षा करेगी, दस साल हो गए हैं बदलाव होना चाहिए आदि ।

जबकि भाजपा ने ही इनके लिए फ्री राशन, फ्री गैस, फ्री मकान और अल्पसंख्यक कल्याण योजनाएं देश भर में चला रखी हैं जिसका तीन लाख करोड़ हर साल इनके हिस्से में आता है और फिर भी इनकी गरीबी दूर नहीं होती है ।

गरीबी दूर क्यों नहीं होती , क्योंकि हर महिला के आज भी पांच छह बच्चों से कम नहीं होते हैं और इसका कारण वह अल्लाह की देन मानते हैं लेकिन गरीबी बेरोजगारी का कारण मोदी को । पाकिस्तान , बांग्लादेश इसी आबादी के बढ़ने से अपनी जनता को खाना नहीं खिला पा रहे हैं लेकिन भारत में तीस करोड़ मुस्लिम मुफ्त सरकारी सहायता का जबरदस्त फायदा ले कर अपनी तादाद लगातार बढ़ा कर गजवाए हिंद की ओर बढ़ रहे हैं ।


इनकी जेहादी सोच पूरी दुनियां में ही ऐसी ही है । यह पाकिस्तान के मिनिस्टर का बयान पढ़िए आबादी पर ।

पाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री अब्दुल कादिर ने ऐसा बेतुका बयान दिया है कि जिससे सरकार की सोच का स्तर पता चलता है और यह भी कि मंत्रियों की उस सोच पर कट्टरपंथी कितने हावी हैं। कादिर ने आबादी बढ़ाने का ऐसा ‘सुझाव’ दिया है कि उस पर बहस छिड़ गई है।

अपने यहां आबादी पर काबू करने के लिए पाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री की वह सलाह है कि ‘जिन देशों में मुसलमान कम हैं वहां जाकर बच्चे पैदा किए जाएं’। स्वास्थ्य मंत्री अब्दुल कादिर पटेल ने आबादी बढ़ाने को लेकर ऐसा सुझाव दिया है, जिस पर विवाद पैदा हो गया है। उन्होंने कहा है कि अगर लोग ज्यादा बच्चे पैदा करना चाहते हैं तो उन देशों में चले जाएं जहां मुसलमान कम हैं। इससे उन देशों में मुस्लिम आबादी बढ़ेगी। यानी परोक्ष रूप से कादिर ‘सुझाव’ दे रहे हैं कि पाकिस्तान के मुसलमान ‘गैर मुस्लिम’ देशों में जाकर वहां मुसलमानों की तादाद बढ़ाएं और वहां ‘पाकिस्तान’ बसा दें।

उन्होंने आगे कहा कि ‘पाकिस्तान की आबादी साल 2030 तक 28.5 करोड़ हो जाएगी, जो उनके लिए खतरे की घंटी है। हम मुसलमान कम नहीं करना चाह रहे। उन्हें बेहतर बनाना चाह रहे हैं। हम मुसलमान को तालीमयाफ्ता, सेहतमंद बनाना चाहते हैं। कुछ लोग हमारी इस बात का विरोध करते हैं कि अल्लाह दे रहा है और हम बढ़ा रहे हैं। तो मेरा कहना है कि आप किसी ऐसे मुल्क में जाकर इतने बच्चे पैदा करो जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हों’।

पाकिस्तान में इस वक्त आबादी 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। पाकिस्तान अपनी इस बढ़ती आबादी और उसकी तुलना में सिकुड़ते संसाधनों को लेकर संकट में है। वहां की सरकार कट्टरपंथियों की धमक के चलते जनसंख्या नियंत्रण का कोई ​कदम उठाने में हिचकती रही है। इसलिए इस तरफ उसे कोई कारगर तरीका नहीं सूझ रहा है। लेकिन कादिर ने अपना उक्त सुझाव देकर संभवत: अपने जिहादी सोच वाले आकाओं को भी खुश किया है।

यह कोई छुपा तथ्य नहीं है कि जहां भी मुस्लिम आबादी बढ़ी है वहां अराजकता और जिहादी सोच का विस्तार हुआ है। यूरोप के कई देश इस समस्या से जूझ रहे हैं। फ्रांस सहित कुछ देशों ने तो जहरीली सोच फैलाने वाले कट्टर इस्लाम को काबू करने के कड़े कदम उठाने शुरू भी कर दिए हैं। लेकिन कनाडा, स्वीडन जैसे देशों में मुस्लिमों ने अपनी तादाद इतनी बढ़ा ली है कि वे वहां की सरकार के फैसलों पर प्रभाव डालने की स्थिति में आ चुके हैं।

मुस्लिमों की बढ़ती तादाद से परेशान पश्चिमी देशों में आज इस्लामी कायदे लागू करने की मांगें उठाई जा रही हैं। दुनिया के किसी भी कोने में मुस्लिमों को चुभने वाला कोई भी मुद्दा उठता है तो सात समंदर पार तक की सरकारों और नागरिकों की नाक में दम कर दिया जाता है। सभ्य समाज अब इस हरकत को नासूर मानने लगा है और मुस्लिमों से नजदीकी बढ़ाने से बचता दिख रहा है।


इस वीडियो में 26 साल की मोमिना के छह बच्चे हैं , उसकी मां के दस बच्चे थे जिसमें आठ के ऐसे ही बच्चे हैं । इनको एनआरसी के बारे में पता है । और इनकी उम्मीद तेजस्वी यादव , अखिलेश यादव और राहुल गांधी से है जो इनको अपने एजेंडे को बढ़ाने में और मदद करेंगे तो वोट इनको ही मिलेगा ।

भगवान मोदी को सद्बुद्धि दें जो 75 साल की आयु में यह सोचते हैं कि ट्रिपल तलाक कानून बनने से मोमिनाएं और सरकारी सहायता मिलने से पसमांदा मोमिन भाजपा को वोट देने लगेंगे ।वोट दे भी दें तब भी देश विरोधी मानसिकता तो नहीं बदलने वाली है ।

वह इस वीडियो को जरूर देखें । शायद देख भी लिया हो क्योंकि यह पहले चरण का वीडियो है इसीलिए उन्होंने चुनाव में अपना भाषण इन पर केंद्रित किया है ।

इस देश में सबसे पहले जनसंख्या कानून ला कर दो बच्चों से अधिक होने पर सभी सरकारी सब्सिडी समाप्त करने की जरूरत है और वोट का अधिकार निलंबित करने की जरूरत भी है ।

सामान्य तौर पर एकादशी के दिन चावल नहीं खाई जाती है परंतु…… जगन्नाथ पुरी में एकादशी को लेकर यह नियम मान्य क्यों नहीं…….

 

क्या हमें एकादशी के दिन अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए ?

सामान्य तौर पर एकादशी के दिन चावल नहीं खाई जाती है परंतु……

जगन्नाथ पुरी में एकादशी को लेकर यह नियम मान्य क्यों नहीं…….

और क्या एकादशी के दिन चावल खाने का पाप जगन्नाथ पुरी के लोगों को नहीं लगता तो बता दें कि सिर्फ एकादशी के दिन चावल खाना ही नहीं बल्कि व्रत में चावल खाना भी यहां मान्य है….

इसके पीछे एक पौराणिक कथा जिसके अनुसार, एक बार ब्रह्म देव स्वयं जगन्नाथ पुरी भगवान जगन्नाथ का महा प्रसाद खाने की इच्छा से पहुंचे लेकिन तब तक महाप्रसाद समाप्त हो चुका था। मात्र एक पत्तल में थोड़े से चावल के दाने थे जिसे एक कुत्ता चाट-चाटकर खा रहा था…

ब्रह्मदेव

भक्ति भाव में इतने डूब गए थे कि जगन्नाथ भगवान का महाप्रसाद खाने की लालसा में उन्होंने उस कुत्ते के साथ बैठकर ही चावल के बचे-कुचे चावलों को खाना शुरू कर दिया। जिस दिन यह घटना घटित हुई उस दिन संयोग से एकादशी थी।

ब्रह्म देव का भक्ति भाव देख जगन्नाथ भगवान स्वयं प्रकट हुए और ब्रह्म देव को इस तरह बिना किसी ऊंच-नीच के कुत्ते के साथ उनके महाप्रसाद का चावल खाते देख बोले कि आज से मेरे महाप्रसाद में एकादशी का नियम लागू नहीं होगा….

बस उसी दिन से जगन्नाथ पुरी में एकादशी हो या कोई अन्य तिथि भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद पर किसी भी व्रत या तिथि का प्रभाव नहीं पड़ता है….

यह मैंने स्वयं देखा अपनी आंखों से वृंदावन में एकादशी के दिन भगवान को महाप्रसाद लगता है फल और अन्न का

तो क्या उसे दिन भगवान का प्रसाद फल अन्नन्के रूप में खाना भी वर्जित है???? कैसी लगी कहानी ???

photo source Google


केरल के ईसाई तो "जाग गए", यानी कुछ समय पहले खुलकर "लव जेहाद" के विरोध में उतर आए हैं... लेकिन "तथाकथित प्रगतिशील हिन्दू" (यानी शतुरमुर्ग) अभी भी रेती में अपना सिर घुसाए, तूफ़ान की तरफ अपना पिछवाड़ा करके खड़े हैं।

 

केरला स्टोरी वाली घटना यानी लव जिहाद में या दूसरे तरीकों से किशोरावस्था में हिंदू लड़के और लड़कियों का ब्रेनवाश करके उन्हें अपने इस्लाम के जाल में फंसा कर उन्हें या तो बच्चा पैदा करने वाली फैक्ट्री बना देना या फिर आतंकी बना देना यह सब कुछ सिर्फ केरल में नहीं हुआ इन लोगों ने यह प्रयोग श्रीलंका में भी किया था।

आप लोगों को 2018 में कोलंबो और उसके आसपास हुए सीरियल ब्लास्ट वाली घटना याद होगी जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे।

इस घटना को लव जिहाद में फंसकर हिंदू से मुसलमान बनी एक लड़की ने अंजाम दिया था।

इस घटना के बाद श्रीलंका सरकार ने जब जांच के आदेश दिए जब श्रीलंका में ऐसी कुल 100 से ज्यादा लड़कियों का पता चला जो या तो बौद्ध थी या सिंघली थी या तमिल हिंदू थी जिन्हें एक संगठित गिरोह ने लव जिहाद में फंसा कर मुसलमान बना दिया था।

श्रीलंका के मुस्लिम मौलवी उसकी ट्रेनिंग लेने केरल के उसी बदनाम कन्वर्जन सेंटर में आए थे जिसे लव जिहाद की फैक्ट्री कहा जाता है।

इसके बाद श्रीलंका सरकार ने इस पर बहुत कड़ा एक्शन लिया था और श्रीलंका में चल रहे ऐसे तमाम सेंटर को नष्ट कर दिया और 20 से ज्यादा लोगों को कड़ी धाराएं लगाकर आजीवन जेल में डाल दिया जो यह कन्वर्जन रैकेट चला रहे थे।

इतना ही नहीं श्रीलंका सरकार ने अपने देश में सभी बौद्ध धर्म गुरुओं सिंघली धर्मगुरुओं और हिंदू धर्म गुरुओं से अपील किया कि वह अपने अपने समुदाय की लड़कियों को संस्कारी बनाने और उन्हें इस बात की ट्रेनिंग दे कि वह लव जिहाद में ना फंसे और यदि कोई उनके साथ ऐसी कोशिश करता है तब उसकी जानकारी अपने माता-पिता या पुलिस को दें।

इस इस जांच रिपोर्ट के सामने आने के बाद ही श्रीलंका में बौद्ध और मुस्लिम दंगे भड़क गए थे जिसमें मुसलमानों पर बौद्धों ने भीषण हमले किये।

आप मित्रों ने जोम्बी फ़िल्में देखी होंगी... जिसमें खून पीने वाले जोम्बी जिस मनुष्य को काट लेते हैं, वह साधारण मनुष्य भी जोम्बी बन जाता है... और दूसरों का खून पीने लगता है... इस प्रकार यह "चेन सिस्टम" चलता जाता है।

चित्र में दिखाई गई सुन्दर कन्या का नाम है, "पुलस्तिनी राजेन्द्रन", एक तमिल हिन्दू लड़की... यह लड़की फँसी एक जोम्बी के चक्कर में... यानी लव जेहाद में... फिर क्या था!!! ये भी चली दूसरों का खून पीने... जी हाँ... पुलस्तिनी राजेन्द्रन निकाह के बाद बनी "साराह"... और यह जोम्बी हाल ही के श्रीलंका के आत्मघाती बम विस्फोटों में शामिल दर्जनों जोम्बियों में से एक थी।

केरल के ईसाई तो "जाग गए", यानी कुछ समय पहले खुलकर "लव जेहाद" के विरोध में उतर आए हैं... लेकिन "तथाकथित प्रगतिशील हिन्दू" (यानी शतुरमुर्ग) अभी भी रेती में अपना सिर घुसाए, तूफ़ान की तरफ अपना पिछवाड़ा करके खड़े हैं।

निष्कर्ष :- "खून पीने वाले जोम्बियों" से खुद भी यथासंभव दूर रहें... और अपने परिजनों को भी दूर रखें।

function disabled

Old Post from Sanwariya