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रविवार, 28 अप्रैल 2024

‘अजीर्ण होने पर जल-पान औषध है। भोजन पच जाने पर अर्थात भोजन के डेढ़- दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक है। भोजन के मध्य में (अर्थात दो अन्न के बीच मे जैसे रोटी और चावल वो भी मात्रा गला साफ होने मात्र 2-3 घूंट) पानी पीना अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष के समान अर्थात पाचनक्रिया के लिए हानिकारक है ।

 जल है औषध समान

(जल ही जीवन है)

अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम् ।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम् ।।

‘अजीर्ण होने पर जल-पान औषध  है। भोजन पच जाने पर अर्थात भोजन के डेढ़- दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक है। भोजन के मध्य में (अर्थात दो अन्न के बीच मे जैसे रोटी और चावल वो भी मात्रा गला साफ होने मात्र 2-3 घूंट) पानी पीना अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष के समान अर्थात पाचनक्रिया के लिए हानिकारक है ।

पानी से रोगों का इलाज / उपचार :

1  अल्प जल-पान : उबला हुआ जल ठंडा करके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीने से अरुचि, जुकाम, मंदाग्नि, सूजन, खट्टी डकारें, पेट के रोग, नया बुखार और मधुमेह में लाभ होता है।

2.  उष्ण जल-पान : सुबह उबाला हुआ पानी गुनगुना करके दिनभर पीने से प्रमेह, मधुमेह, मोटापा, बवासीर, खाँसी-जुकाम, नया ज्वर, कब्ज, गठिया, जोड़ों का दर्द, मंदाग्नि, अरुचि, वात व कफ जन्य रोग, अफारा, संग्रहणी, श्वास की तकलीफ, पीलिया, गुल्म, पार्श्व शूल आदि में पथ्य का काम करता है।

3  प्रात: उषापान :-  सूर्योदय से 2 घंटा पूर्व, शौच क्रिया से पहले रात का रखा हुआ आधा से  सवा लीटर पानी पीना असंख्य रोगों से रक्षा करनेवाला है। शौच के बाद पानी न पियें।

औषधिसिद्ध जल :

1.  सोंठ-जल : दो लीटर पानी में 2. ग्राम सोंठ का चूर्ण या 1. साबूत टुकड़ा डालकर पानी आधा होने तक उबालें, ठंडा करके छान लें । यह जल गठिया, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, दमा, क्षयरोग (टी.बी.), पुरानी सर्दी, बुखार, हिचकी, अजीर्ण, कृमि, दस्त, आमदोष, बहुमूत्रता तथा कफजन्य रोगों में खूब लाभदायी है ।
2.  अजवायन-जल : एक लीटर पानी में एक चम्मच (करीब 7.5 ग्राम) अजवायन डालकर उबालें।  पानी आधा रह जाय तो ठंडा करके छान लें। उष्ण प्रकृति का यह जल हृदय-शूल, गैस, कृमि, हिचकी, अरुचि, मंदाग्नि,पीठ व कमर का दर्द, अजीर्ण, दस्त, सर्दी व बहुमुत्रता में लाभदायी है।

3.   जीरा-जल : एक लीटर पानी में एक से डेढ़ चम्मच जीरा डालकर उबालें। पौना लीटर पानी बचने पर ठंडा कर छान लें। शीतल गुणवाला यह जल गर्भवती एवं प्रसूता स्त्रियों के लिए तथा रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, अनियमित मासिकस्राव, गर्भाशय की सूजन, गर्मी के कारण बार-बार होनेवाला गर्भपात व अल्पमूत्रता में आशातीत लाभदायी है।

4.    सोने के पात्र का रखा जल या जल पात्र में स्वर्ण डला हुया जल छाती के ऊपर सभी रोग अर्थात कफ विकृति से उत्पन्न रोग जैसे मानसिक अवसाद अनिद्रा में रामबाण औषधि है।

खास बातें :

*  भूखे पेट, भोजन की शुरुआत व अंत में, धूप से आकर, शौच, व्यायाम या अधिक परिश्रम व फल खाने के तुरंत बाद पानी पीना निषिद्ध है।*

*  'अत्यम्बूपानान्न विपच्यतेऽन्नम्'           अर्थात बहुत अधिक या एक साथ पानी पीने से पाचन बिगड़ता है । इसलिए "मुहुर्मुहर्वारि पिबेदभूरी"। बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए।।*

लेटकर, खड़े होकर पानी पीना तथा पानी पीकर तुरंत दौड़ना या परिश्रम करना हानिकारक है। बैठकर धीरे-धीरे चुस्की लेते हुए बायाँ स्वर सक्रिय हो तब पानी पीना चाहिए।

* प्लास्टिक की बोतल में रखा हुआ, फ्रिज का या बर्फ मिलाया हुआ पानी हानिकारक है।*

*  सामान्यत:  व्यक्ति के लिए एक दिन में डेढ़ से दो लीटर पानी आवश्यक है  या अपने वजन का दसवां भाग अत्यधिक मात्रा है और अपना वजन÷10 - 2 यह न्यूनतम मात्रा है | देश-ऋतु-प्रकृति आदि के अनुसार यह मात्रा बदलती है।*

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