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रविवार, 28 अप्रैल 2024

जब भगवान शंकराचार्य ने एक चांडाल को अपना गुरु बनाया

 

जब भगवान शंकराचार्य ने एक चांडाल को अपना गुरु बनाया

दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने अवतार लेकर कलियुग में भारत मे आसुरी धर्म की स्थापना कर दी थी । शुक्राचार्य की माया को काटने के लिए आदि शंकराचार्य ( शंकर के अंशावतार ) को धरती पर जन्म लेना पड़ा ।।

आसुरी मत के प्रचलन के कारण उस समय छुवाछुत ने भारत मे घोर प्रभाव जमा लिया ।। अब आदिशंकराचार्य पर जिम्मेदारी थी, की वह इस छुवाछुत को खत्म करें ।

आदि शंकराचार्य से जुड़ा एक किस्सा प्रचलित है--

ये किस्सा भारत भ्रमण के दौरान का है.

इसके मुताबिक़ उन्होंने काशी प्रवास के दौरान शमशान के चंडाल को अपना गुरु बनाया था ।। उस वक्त के समाज में चांडाल अस्पृश्य माने जाते थे, कहते हैं कि आदि शंकराचार्य काशी में एक शमशान से गुजर रहे थे जहां उनका सामना चांडाल से हो गया ।।

आदि ने उन्हें सामने से हटने को कहा. जवाब में चांडाल ने हाथजोड़ कर बोला क्या हटाऊं,

शरीर या आत्मा

आकार या निराकार??

यह जवाब सुनकर आदि शंकराचार्य चकित रह गए ...और उसी चांडाल को अपना गुरु स्वीकार किया । वह चांडाल भी कोई और नही, स्वयं महादेव थे ।

शंकराचार्य के विषय में कहा गया है-

अष्टवर्षेचतुर्वेदी, द्वादशेसर्वशास्त्रवित् षोडशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्

अर्थात् आठ वर्ष की आयु में चारों वेदों में निष्णात हो गए, बारह वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत, सोलह वर्ष की आयु में शांकरभाष्यतथा बत्तीस वर्ष की आयु में शरीर त्याग दिया। ब्रह्मसूत्र के ऊपर शांकरभाष्यकी रचना कर विश्व को एक सूत्र में बांधने का प्रयास भी शंकराचार्य के द्वारा किया गया है, जो कि सामान्य मानव से सम्भव नहीं है। शंकराचार्य के दर्शन में सगुण ब्रह्म तथा निर्गुण ब्रह्म दोनों का हम दर्शन, कर सकते हैं। निर्गुण ब्रह्म उनका निराकार ईश्वर है तथा सगुण ब्रह्म साकार ईश्वर है। जीव अज्ञान व्यष्टि की उपाधि से युक्त है।

तत्त्‍‌वमसि तुम ही ब्रह्म हो; अहं ब्रह्मास्मि मैं ही ब्रह्म हूं; 'अयामात्मा ब्रह्म' यह आत्मा ही ब्रह्म है; इन बृहदारण्यकोपनिषद् तथा छान्दोग्योपनिषद वाक्यों के द्वारा इस जीवात्मा को निराकार ब्रह्म से अभिन्न स्थापित करने का प्रयत्‍‌न शंकराचार्य जी ने किया है ।।

" बोलो शंकर भगवान की जय "

यह संकल्प अवश्य लें : -

अपने जन्मदिवस पर हवन अवश्य ही करवाये।

अपनी विवाह की वर्षगाँठ पर सत्यनारायण कथा या सुंदरकांड का पाठ अवश्य ही करवाये।

विवाह शादी के लावा फेरे व अन्य पूजन दिन में ही करवाये, विधि विधान से करवाये, रात में पूजन करवाने से बचे।

सड़क व ट्रैफिक रोककर, गली में, नाली के किनारो पर किसी भी प्रकार की पूजा-सत्संग-कीर्तन-भंडारा इत्यादि न करें।

संस्कृत(हिन्दी) भाषा का अधिकाधिक प्रयोग करें।

ब्राह्मण, राजा, सन्यासी और बच्चों के संपर्क में बने रहें। जय सिया राम 🚩

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