🔴गौ भक्त राजा दिलीप जी की कथा🔴
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राजा दिलीप का कोई पुत्र नहीं था इसीलिए वो अपने गुरु वसिष्ठ के पास गये। गुरु ने कहा की तुमसे एक अपराध हुआ हैं इसीलिए तुम्हे पुत्र नहीं हो पा रहा । तुम्हारा अपराध हैं की तुम एक बार देवता की युद्ध मैं मदद करके वापस लोट रहे थे, रास्ते में देवताओ को भी भोग और मोक्ष देने वाली कामधेनु एक विशाल वट वृक्ष के निचे आराम कर रही थी। और अन्य कई गौ मातायें चारा चर रही थी। बस शिघ्रता वस तुमने अपना विमान रोक कर निचे उतर कर कामधेनु माता एवं गौमाताओं को प्रणाम नहीं किया अंजान मार दिया।
जबकि रास्ते में कही भी गौवंश दिखे उनको राह देते हुए दायें होकर प्रणाम करना चाहिए ये बात तुम्हें भी गुरुजनों ने पूर्व में बताई थी। यहाँ गौ अपराध और गुरु आज्ञा का उलंघन हुआ इसीलिए तुम्हारे यहाँ पुत्र की प्राप्ति नहीं हो सकती। (जरा सोचो हम तो कभी प्रणाम नहीं करते क्या हमारे पुत्र होंगे ? आजकल पुत्र कहाँ पैदा हो रहे हैं आज तो लड़के पैदा हो रहे हैं। जो हमेशा माँ बाप से लड़ाई करे वो लड़का। ) महाराजा दिलीप गुरु जी के पास जाकर रोने लगे गुरूजी कोई तो उपाय होगा। गुरु वसिष्ठ ने कहा जा ये नंदिनी गौमाता को ले जा और इस नंदनी गौ माता की संतुष्ट होते ही पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है। नंदनी गौ माता ही कामधेनु गाय की पुत्री थी। अब तुम्हे पुत्र केवल गौमाता दे सकती हैं।
राजा दिलीप ने नंदनी गौ माता की बहुत सेवा की। जब गौ माता चले तो वो भी चलते थे । जब गौ माता खाए तभी वो खाता थे । एक दिन गौ माता ने दिलीप राजा की परीक्षा करनी चाही। जैसे ही प्रकृति का सौन्दर्य निहारते राजा दिलीप की दृष्टि फिरि नंदिनी गौ माता गुफा मैं चली गई।उस गुफा मैं एक शेर था। शेर ने गौ माता को पकड़ लिया। और गौ माता करुण पुकार कर डकारने लगी और राजा दिलीप से मदद की गुहार लगाने लगी। याद रहे राजा दिलीप गुरु कृपा से चर – अचर सभी प्राणियों की भाषा समझ लेते थे दिलीप राजा ने शेर के ऊपर जैसे ही धनुष – बाण संधान किया उनका हाथ जहां का वहा जाम हो गया वे निसक्त से हो गए क्योकि यह सब खेल नंदनी गाय का था गाय का एक रूप भगवती दुर्गा भी है वही देव – दानव – यक्ष किन्नर और मानवों को शक्ति प्रदान करती है।
यहाँ तक की भगवान शिव की परा शक्ति भी यह गौमाता ही है। जब हाथ जकड गया राजा दिलीप मुहँ से ही चिल्लये मेरे गुरु जी की गौमाता को छोड़ दो और बदले में मुझे खा जाओ मुझे कोई दुःख नहीं होगा मगर हे शिंघ राज आपने इस नंदनी गाय को आघात पहुचाया तो मैं जीतेजी भी मरा ही समझो । शेर ने कहाँ की अरे तू तो एक राजा हैं मुझे गाय को खाने दे और वसिष्ठ जी को इस गाय के बदले दूसरी हजार गाय दे देना क्यों ऐसी बेवकूफी कर रहा हैं। दिलीप ने कहा नहीं ये गौ माता को छोड़ दे और मुझे खा ले बस मैं और कुछ नहीं जानता।
बस गौ माता हमसे इतना प्यार चाहती हैं और गौ माता ने राजा से कहाँ की बस मैं तुमसे प्रसन्न हूँ , मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रही थी। ऐसा कह कर गौमाता ने अपना समस्त वैभव राजा को दिखा दिया और राजा ने कहा की मुझे पुत्र चाहिए। और गौमाता की कृपा से दिलीप राजा ने रघु जैसा पुत्र प्राप्त किया जिनके नाम पर ही आगे रघुवंश चला । इसी रघुवंश में आगे जाकर स्वयं भगवान् राम के रूप में नारायण प्रगट हुए
जय श्रीराम! !