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मंगलवार, 20 मार्च 2018

हनुमानजी के 10 रहस्य

हनुमानजी के 10 रहस्य

हिन्दुओं के प्रमुख देवता हनुमानजी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं। शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे।

1. हनुमानजी का जन्म स्थान :

कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।

हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।

2.कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी :

इंद्र से उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरजीवी रहेंगे। इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम और अर्जुन की परीक्षा लेते हैं। कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं।

ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे-
'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'
श्रीमद् भागवत अनुसार हनुमानजी
कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।

3.कपि नामक वानर :

हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए। उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे।
रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।

4. हनुमान परिवार :

हनुमानजी की माता का अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं। उनके पिता का नाम कपिराज केसरी था। ब्रह्मांडपुराण अनुसार हनुमानजी सबसे बड़े भाई हैं। उनके बाद मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे।

कहते हैं कि जब वर्षों तक केसरी से अंजना को कोई पुत्र नहीं हुआ तो पवनदेव के आशिर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। इसीलिए हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहते हैं। कुंति पुत्र भीम भी पवनपुत्र हैं। हनुमानजी रुद्रावतार हैं।

पराशर संहिता अनुसार सूर्यदेव की शिक्षा देने की शर्त अनुसार हनुमानजी को सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा था।

5. इन बाधाओं से बचाते हैं हनुमानजी :

रोग और शोक, भूत-पिशाच, शनि, राहु-केतु और अन्य ग्रह बाधा, कोर्ट-कचहरी-जेल बंधन, मारण-सम्मोहन-उच्चाटन, घटना-दुर्घटना से बचना, मंगल दोष, पितृदोष, कर्ज, संताप, बेरोजगारी, तनाव या चिंता, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

6. हनुमानजी के पराक्रम :

हनुमान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं। बचपन में उन्होंने सूर्य को निकल लिया था। एक ही छलांक में वे समुद्र लांघ गए थे। उन्होंने समुद्र में राक्षसी माया का वध किया। लंका में घुसते ही उन्होंने लंकिनी और अन्य राक्षसों के वध कर दिया।

अशोक वाटिका को उजाड़कर अक्षय कुमार का वध कर दिया। जब उनकी पूछ में आग लगाई गई तो उन्हों लंका जला दी। उन्होंने सीता को अंगुठी दी, विभिषण को राम से मिलाया। हिमालय से एक पहाड़ उठाकर ले आए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।

इस बीच उन्होंने कालनेमि राक्षस का वध कर दिया। पाताल लोक में जाकर राम-लक्ष्मण को छुड़ाया और अहिरावण का वध किया। उन्होंने सत्यभामा, गरूढ़, सुदर्शन, भीम और अर्जुन का घमंड चूर चूर कर दिया था।
हनुमानजी के ऐसे सैंकड़ों पराक्रम हैं।

7.हनुमाजी पर लिखे गए ग्रंथ :

तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक, हनुमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक, आदि अनेक स्तोत्र लिखे। तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है।

इंद्रा‍दि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की। समर्थ रामदास द्वारा मारुती स्तोत्र रचा गया। आनं‍द रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं। इसके अलावा कालांतर में उन पर हजारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं। गुरु गोरखनाथ ने उन पर साबर मं‍त्रों की रचना की है।

8. माता जगदम्बा के सेवक हनुमानजी :

रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक भी हैं। हनुमानजी माता के आगे-आगे चलते हैं और भैरवजी पीछे-पीछे। माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास हनुमानजी और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं। हनुमानजी की खड़ी मुद्रा में और भैरवजी की मुंड मुद्रा में प्रतिमा होती है। कुछ लोग उनकी यह कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़कर देखते हैं।

9. सर्वशक्तिमान हनुमानजी :

हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे। ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया।

सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं। जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती। हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।

10. इन्होंने देखा हनुमानजी को :

13वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और 20वीं शताब्दी में स्वामी रामदास हनुमान को देखने का दावा करते हैं। हनुमानजी त्रेता में श्रीराम, द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन और कलिकाल में रामभक्तों की सहायता करते हैं। जय श्री राम।          🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻

हनुमानजी के 5 सगे भाई थे

पुराणों में ऐसी कई बातें ल‍िखी हुई हैं, जिसे जानकर लोग हैरत में पड़ जाएं. वैसे तो रामभक्त हनुमान की कीर्ति रामचरितमानस में भरपूर गाई गई है. पर पुराण में उनके बारे में एक बेहद गूढ़ जानकारी मिलती है. पुराण में कहा गया है कि हनुमानजी के 5 सगे भाई थे, जो विवाहित थे.

'ब्रह्मांडपुराण' में वानरों की वंशावली के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. इसी में हनुमानजी के सगे भाइयों के बारे में जिक्र मिलता है. अपने भाइयों के बीच हनुमानजी सबसे बड़े थे. उनके अन्य भाइयों के नाम हैं- मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान. उनके अन्य सभी भाई विवाहित थे और सभी संतान से युक्त थे.

'ब्रह्मांडपुराण' में ल‍िखा है कि केसरी ने कुंजर की पुत्री अंजना को पत्नी के रूप में स्वीकार किया. अंजना रूपवती थीं. इन्हीं के गर्भ से प्राणस्वरूप वायु के अंश से हनुमान का जन्म हुआ. इसी प्रसंग में हनुमान के अन्य भाइयों के बारे में बताया गया है.

ब्रह्मचारी हनुमान

इसके अलावा जिन हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा जाता है, उनकी शादी भी हुई थी। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज है। लेकिन इसके अलावा उनके पांच भाई भी थे, क्या आप जानते हैं?

हनुमान जी के पांच सगे भाई

जी हां... हनुमान जी के पांच सगे भाई थे और वो पांचों ही विवाहित थे। यह कोई कहानी या मात्र मनोरंजन का साधन बनाने के लिए हवा में बताई गई बात नहीं है, बल्कि सच्चाई है। हनुमान जी के पांच सगे भाई थे, इस बात का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण' में मिलता है।

ब्रह्मांडपुराण के अनुसार

इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन शामिल है। बड़ी बात यह है कि पांचों भाइयों में बजरंगबली सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे।

सबसे बड़े थे बजरंगबली

बजरंगबली के बाद क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। इन सभी के संतान भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। हनुमानजी के बारे जानकारी वैसे तो रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत और भी कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है। लेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है 'ब्रह्मांडपुराण' उन्हीं में से एक है।

सारे जम्बूद्वीप का राजा

बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम का एक राजा राज करते थे। उसके चार रानियाँ थीं। उनके छ: लड़के थे जो सब-के-सब बड़े ही चतुर और बलवान थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। उसने कुछ दिन राज किया, लेकिन छोटे भाई विक्रम ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा। एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने हैं, उन्हें देखना चाहिए। सो वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा।

उस नगर में एक ब्राह्मण तपस्या करता था। एक दिन देवता ने प्रसन्न होकर उसे एक फल दिया और कहा कि इसे जो भी खायेगा, वह अमर हो जायेगा। ब्रह्मण ने वह फल लाकर अपनी पत्नी को दिया और देवता की बात भी बता दी। ब्राह्मणी बोली, “हम अमर होकर क्या करेंगे? हमेशा भीख माँगते रहेंगें। इससे तो मरना ही अच्छा है। तुम इस फल को ले जाकर राजा को दे आओ और बदले में कुछ धन ले आओ।”

यह सुनकर ब्राह्मण फल लेकर राजा भर्तृहरि के पास गया और सारा हाल कह सुनाया। भर्तृहरि ने फल ले लिया और ब्राह्मण को एक लाख रुपये देकर विदा कर दिया। भर्तृहरि अपनी एक रानी को बहुत चाहता था। उसने महल में जाकर वह फल उसी को दे दिया। रानी की मित्रता शहर-कोतवाल से थी। उसने वह फल कोतवाल को दे दिया। कोतवाल एक वेश्या के पास जाया करता था। वह उस फल को उस वेश्या को दे आया। वेश्या ने सोचा कि यह फल तो राजा को खाना चाहिए। वह उसे लेकर राजा भर्तृहरि के पास गई और उसे दे दिया। भर्तृहरि ने उसे बहुत-सा धन दिया; लेकिन जब उसने फल को अच्छी तरह से देखा तो पहचान लिया। उसे बड़ी चोट लगी, पर उसने किसी से कुछ कहा नहीं। उसने महल में जाकर रानी से पूछा कि तुमने उस फल का क्या किया। रानी ने कहा, “मैंने उसे खा लिया।” राजा ने वह फल निकालकर दिखा दिया। रानी घबरा गयी और उसने सारी बात सच-सच कह दी। भर्तृहरि ने पता लगाया तो उसे पूरी बात ठीक-ठीक मालूम हो गयी। वह बहुत दु:खी हुआ। उसने सोचा, यह दुनिया माया-जाल है। इसमें अपना कोई नहीं। वह फल लेकर बाहर आया और उसे धुलवाकर स्वयं खा लिया। फिर राजपाट छोड, योगी का भेस बना, जंगल में तपस्या करने चला गया।

भर्तृहरि के जंगल में चले जाने से विक्रम की गद्दी सूनी हो गयी। जब राजा इन्द्र को यह समाचार मिला तो उन्होंने एक देव को धारा नगरी की रखवाली के लिए भेज दिया। वह रात-दिन वहीं रहने लगा।

भर्तृहरि के राजपाट छोड़कर वन में चले जाने की बात विक्रम को मालूम हुई तो वह लौटकर अपने देश में आया। आधी रात का समय था। जब वह नगर में घुसने लगा तो देव ने उसे रोका। राजा ने कहा, “मैं विक्रम हूँ। यह मेरा राज है। तुम रोकने वाले कौन होते होते?”

देव बोला, “मुझे राजा इन्द्र ने इस नगर की चौकसी के लिए भेजा है। तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो आओ, पहले मुझसे लड़ो।”\n\n

दोनों में लड़ाई हुई। राजा ने ज़रा-सी देर में देव को पछाड़ दिया। तब देव बोला, “हे राजन्! तुमने मुझे हरा दिया। मैं तुम्हें जीवन-दान देता हूँ।”

इसके बाद देव ने कहा, “राजन्, एक नगर और एक नक्षत्र में तुम तीन आदमी पैदा हुए थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के और तीसरे ने कुम्हार के। तुम यहाँ का राज करते हो, तेली पाताल का राज करता था। कुम्हार ने योग साधकर तेली को मारकर शम्शान में पिशाच बना सिरस के पेड़ से लटका दिया है। अब वह तुम्हें मारने की फिराक में है। उससे सावधान रहना।”

इतना कहकर देव चला गया और राजा महल में आ गया। राजा को वापस आया देख सबको बड़ी खुशी हुई। नगर में आनन्द मनाया गया। राजा फिर राज करने लगा।

एक दिन की बात है कि शान्तिशील नाम का एक योगी राजा के पास दरबार में आया और उसे एक फल देकर चला गया। राजा को आशंका हुई कि देव ने जिस आदमी को बताया था, कहीं यह वही तो नहीं है! यह सोच उसने फल नहीं खाया, भण्डारी को दे दिया। योगी आता और राजा को एक फल दे जाता।

संयोग से एक दिन राजा अपना अस्तबल देखने गया था। योगी वहीं पहुँच और फल राजा के हाथ में दे दिया। राजा ने उसे उछाला तो वह हाथ से छूटकर धरती पर गिर पड़ा। उसी समय एक बन्दर ने झपटकर उसे उठा लिया और तोड़ डाला। उसमें से एक लाल निकला, जिसकी चमक से सबकी आँखें चौंधिया गयीं। राजा को बड़ा अचरज हुआ। उसने योगी से पूछा, “आप यह लाल मुझे रोज़ क्यों दे जाते हैं?”

योगी ने जवाब दिया, “महाराज! राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और बेटी, इनके घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।”

राजा ने भण्डारी को बुलाकर पीछे के सब फल मँगवाये। तुड़वाने पर सबमें से एक-एक लाल निकला। इतने लाल देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। उसने जौहरी को बुलवाकर उनका मूल्य पूछा। जौहरी बोला, “महाराज, ये लाल इतने कीमती हैं कि इनका मोल करोड़ों रुपयों में भी नहीं आँका जा सकता। एक-एक लाल एक-एक राज्य के बराबर है।”

यह सुनकर राजा योगी का हाथ पकड़कर गद्दी पर ले गया। बोला, “योगीराज, आप सुनी हुई बुरी बातें, दूसरों के सामने नहीं कही जातीं।”

राजा उसे अकेले में ले गया। वहाँ जाकर योगी ने कहा, “महाराज, बात यह है कि गोदावरी नदी के किनारे मसान में मैं एक मंत्र सिद्ध कर रहा हूँ। उसके सिद्ध हो जाने पर मेरा मनोरथ पूरा हो जायेगा। तुम एक रात मेरे पास रहोगे तो मंत्र सिद्ध हो जायेगा। एक दिन रात को हथियार बाँधकर तुम अकेले मेरे पास आ जाना।”

राजा ने कहा “अच्छी बात है।”

इसके उपरान्त योगी दिन और समय बताकर अपने मठ में चला गया।

वह दिन आने पर राजा अकेला वहाँ पहुँचा। योगी ने उसे अपने पास बिठा लिया। थोड़ी देर बैठकर राजा ने पूछा, “महाराज, मेरे लिए क्या आज्ञा है?”

योगी ने कहा, “राजन्, “यहाँ से दक्षिण दिशा में दो कोस की दूरी पर मसान में एक सिरस के पेड़ पर एक मुर्दा लटका है। उसे मेरे पास ले आओ, तब तक मैं यहाँ पूजा करता हूँ।”

यह सुनकर राजा वहाँ से चल दिया। बड़ी भयंकर रात थी। चारों ओर अँधेरा फैला था। पानी बरस रहा था। भूत-प्रेत शोर मचा रहे थे। साँप आ-आकर पैरों में लिपटते थे। लेकिन राजा हिम्मत से आगे बढ़ता गया। जब वह मसान में पहुँचा तो देखता क्या है कि शेर दहाड़ रहे हैं, हाथी चिंघाड़ रहे हैं, भूत-प्रेत आदमियों को मार रहे हैं। राजा बेधड़क चलता गया और सिरस के पेड़ के पास पहुँच गया। पेड़ जड़ से फुनगी तक आग से दहक रहा था। राजा ने सोचा, हो-न-हो, यह वही योगी है, जिसकी बात देव ने बतायी थी। पेड़ पर रस्सी से बँधा मुर्दा लटक रहा था। राजा पेड़ पर चढ़ गया और तलवार से रस्सी काट दी। मुर्दा नीचे किर पड़ा और दहाड़ मार-मार कर रोने लगा।

राजा ने नीचे आकर पूछा, “तू कौन है?”

राजा का इतना कहना था कि वह मुर्दा खिलखिकर हँस पड़ा। राजा को बड़ा अचरज हुआ। तभी वह मुर्दा फिर पेड़ पर जा लटका। राजा फिर चढ़कर ऊपर गया और रस्सी काट, मुर्दे का बगल में दबा, नीचे आया। बोला, “बता, तू कौन है?”

मुर्दा चुप रहा।

तब राजा ने उसे एक चादर में बाँधा और योगी के पास ले चला। रास्ते में वह मुर्दा बोला, “मैं बेताल हूँ। तू कौन है और मुझे कहाँ ले जा रहा है?”

राजा ने कहा, “मेरा नाम विक्रम है। मैं धारा नगरी का राजा हूँ। मैं तुझे योगी के पास ले जा रहा हूँ।”

बेताल बोला, “मैं एक शर्त पर चलूँगा। अगर तू रास्ते में बोलेगा तो मैं लौटकर पेड़ पर जा लटकूँगा।”

राजा ने उसकी बात मान ली। फिर बेताल बोला, “ पण्डित, चतुर और ज्ञानी, इनके दिन अच्छी-अच्छी बातों में बीतते हैं, जबकि मूर्खों के दिन कलह और नींद में। अच्छा होगा कि हमारी राह भली बातों की चर्चा में बीत जाये। मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ। ले, सुन।

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें मे

        पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रँथ हैं। उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।

महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः  पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।

1.ब्रह्म पुराण

ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय  तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

2.पद्म पुराण

पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है। इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।

*3.* *विष्णु पुराण*

विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था। इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैःउत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

*4.* *शिव पुराण*

शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।

*5.* *भागवत पुराण*

भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।

*6.* *नारद पुराण*

नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।

*7.* *मार्कण्डेय पुराण*

अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।

*8.* *अग्नि पुराण*

अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं। इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

*9.* *भविष्य पुराण*

भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है। इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले  नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है। ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।

*10.* *ब्रह्म वैवर्त पुराण*

ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

*11.* *लिंग पुराण*

लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

*12.* *वराह पुराण*

वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।

*13.* *स्कन्द पुराण*

स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।

*14.* *वामन पुराण*

वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।

*15.* *कुर्मा पुराण*

कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा  विस्तार पूर्वक लिखी गयी है। इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।

*16.* *मतस्य पुराण*

मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है

*17.* *गरुड़ पुराण*

गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है। समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।

*18.* *ब्रह्माण्ड पुराण*

ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।

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