*सोलहवें अध्याय का माहात्म्य*
श्रीमहादेवजी कहते हैं- पार्वती ! अब मैं गीता के सोलहवें अध्याय का माहात्म्य बताऊँगा, सुनो। गुजरात में सौराष्ट्र नामक एक नगर है। वहाँ खड्गबाहु नाम के राजा राज्य करते थे, जो दूसरे इन्द्र के समान प्रतापी थे। उनका एक हाथी था, जो मद बहाया करता था और सदा मद में उन्मत्त रहता था। उस हाथी का नाम अरिमर्दन था।
एक दिन रात में वह हठात साँकलों और लोहे के खम्भों को तोड़-फोड़कर बाहर निकला। हाथीवान उसके दोनों ओर अंकुश लेकर डरा रहे थे, किन्तु क्रोधवश उन सबकी अवहेलना करके उसने अपने रहने के स्थान- हथिसार को गिरा दिया। उस पर चारों ओर से भालों की मार पड़ रही थी फिर भी हाथीवान ही डरे हुए थे, हाथी को तनिक भी भय नहीं होता था। इस कौतूहलपूर्ण घटना को सुनकर राजा स्वयं हाथी को मनाने की कला में निपुण राजकुमारों के साथ वहाँ आये। आकर उन्होंने उस बलवान दँतैले हाथी को देखा। नगर के निवासी अन्य काम धंधों की चिन्ता छोड़ अपने बालकों को भय से बचाते हुए बहुत दूर खड़े होकर उस महाभयंकर गजराज को देखते रहे। इसी समय कोई ब्राह्मण तालाब से नहाकर उसी मार्ग से लौटे। वे गीता के सोलहवें अध्याय के 'अभयम्' आदि कुछ श्लोकों का जप कर रहे थे। पुरवासियों और पीलवानों (महावतों) ने बहुत मना किया, किन्तु किसी की न मानी। उन्हें हाथी से भय नहीं था, इसलिए वे चिन्तित नहीं हुए। उधर हाथी अपनी चिंघाड़ से चारों दिशाओं को व्याप्त करता हुआ लोगों को कुचल रहा था। वे ब्राह्मण उसके बहते हुए मद को हाथ से छूकर कुशलपूर्वक (निर्भयता से) निकल गये। इससे वहाँ राजा तथा देखने वाले पुरवासियों के मन मे इतना विस्मय हुआ कि उसका वर्णन नहीं हो सकता। राजा के कमलनेत्र चकित हो उठे थे। उन्होंने ब्राह्मण को बुला सवारी से उतरकर उन्हें प्रणाम किया और पूछाः 'ब्राह्मण ! आज आपने यह महान अलौकिक कार्य किया है, क्योंकि इस काल के समान भयंकर गजराज के सामने से आप सकुशल लौट आये हैं। प्रभो ! आप किस देवता का पूजन तथा किस मन्त्र का जप करते हैं? बताइये, आपने कौन-सी सिद्धि प्राप्त की है?
ब्राह्मण ने कहाः राजन ! मैं प्रतिदिन गीता के सोलहवें अध्याय के कुछ श्लोकों का जप किया करता हूँ, इसी से सारी सिद्धियाँ प्राप्त हुई हैं।
श्रीमहादेवजी कहते हैं- तब हाथी का कौतूहल देखने की इच्छा छोड़कर राजा ब्राह्मण देवता को साथ ले अपने महल में आये। वहाँ शुभ मुहूर्त देखकर एक लाख स्वर्णमुद्राओं की दक्षिणा दे उन्होंने ब्राह्मण को संतुष्ट किया और उनसे गीता-मंत्र की दीक्षा ली। गीता के सोलहवें अध्याय के 'अभयम्' आदि कुछ श्लोकों का अभ्यास कर लेने के बाद उनके मन में हाथी को छोड़कर उसके कौतुक देखने की इच्छा जागृत हुई, फिर तो एक दिन सैनिकों के साथ बाहर निकलकर राजा ने हाथीवानों से उसी मत्त गजराज का बन्धन खुलवाया। वे निर्भय हो गये। राज्य का सुख-विलास के प्रति आदर का भाव नहीं रहा। वे अपना जीवन तृणवत् समझकर हाथी के सामने चले गये। साहसी मनुष्यों में अग्रगण्य राजा खड्गबाहु मन्त्र पर विश्वास करके हाथी के समीप गये और मद की अनवरत धारा बहाते हुए उसके गण्डस्थल को हाथ से छूकर सकुशल लौट आये। काल के मुख से धार्मिक और खल के मुख से साधु पुरुष की भाँति राजा उस गजराज के मुख से बचकर निकल आये। नगर में आने पर उन्होंने अपने राजकुमार को राज्य पर अभिषिक्त कर दिया तथा स्वयं गीता के सोलहवें अध्याय का पाठ करके परम गति प्राप्त की।
आज की कथा यही तक।
जय श्री राम🙏
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