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गुरुवार, 5 जनवरी 2023

चतुर्दशी के दिन आर्द्रा नक्षत्र का योग हो तो उस समय किया गया प्रणव (ॐ) का जप अक्षय फलदायी होता है ।*

*🌞~ आज का हिन्दू पंचांग ~🌞*

*⛅दिनांक - 05 जनवरी 2023*
*⛅दिन - गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2079*
*⛅शक संवत् - 1944*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - पौष*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - चतुर्दशी रात्रि 02:14 तक तत्पश्चात पूर्णिमा*
*⛅नक्षत्र - मृगशिरा रात्रि 09:26 तक तत्पश्चात आर्द्रा*
*⛅योग - शुक्ल सुबह 07:34 तक तत्पश्चात ब्रह्म*
*⛅राहु काल - दोपहर 02:06 से 03:27 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:22*
*⛅सूर्यास्त - 06:08*
*⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:36 से 06:29 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:19 से 01:12 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - चतुर्दशी-आर्द्रा नक्षत्र योग*
*⛅विशेष - चतुर्दशी के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है ।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*

*🔸चतुर्दशी-आर्द्रा नक्षत्र योग🔸*

*🔹पुण्यकाल : रात्रि 09:26 से 02:14 ( 06 जनवरी 2:14 A.M) तक*

*🔸चतुर्दशी के दिन आर्द्रा नक्षत्र का योग हो तो उस समय किया गया प्रणव (ॐ) का जप अक्षय फलदायी होता है ।*

*(शिव पुराण, विद्येश्वर संहिताः अध्याय 10)*

*🌹 शास्त्रों में ॐकार की महिमा 🌹*

*🌹 ‘प्रणववाद’ ग्रंथ में ॐकार मंत्र से संबंधित २२ हजार श्लोकों का समावेश है ।*

*🌹 पतंजलि महाराज ने कहा है : तस्य वाचक: प्रणव: । (पातंजल योगदर्शन ) ‘ॐ’(प्रणव)परमात्मा का वाचक है, उसकी स्वाभाविक ध्वनि है । और सबमें अपने-आप यह ध्वनि हो रही है लेकिन आज का मनुष्य इतना बहरा है, इतना बहिर्मुख है कि ॐकार को बाहर से, भीतर से नही सुन पाता है इसलिए गुरुदेव देते हैं मंत्र ।*

*🌹 ‘ॐ’ बीजमंत्र है । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है : प्रणव: सर्ववेदेषु.... वेदों में मैं ‘ॐ’ हूँ ।*

*🌹 प्रणव अर्थात ‘ॐ' । संसार की सारी विद्याएँ जिन शब्दों से उच्चारित होती है उनका मूल है ‘ॐ’ । शास्त्रों में इसका व्यापक रूप से वर्णन किया गया है ।*

*श्री हरि– जून २०२० से*

*🔸ॐ कार मंत्र में 19 शक्तियाँ हैं - (भाग-1)🔸*

*🔹रक्षण शक्ति : ॐ सहित मंत्र का जप करते हैं तो वह हमारे जप तथा पुण्य की रक्षा करता है । किसी नामदान के लिए हुए साधक पर यदि कोई आपदा आनेवाली है, कोई दुर्घटना घटने वाली है तो मंत्र भगवान उस आपदा को शूली में से काँटा कर देते हैं । साधक का बचाव कर देते हैं। ऐसा बचाव तो एक नहीं, मेरे हजारों साधकों के जीवन में चमत्कारिक ढंग से महसूस होता है ।*

*🔹गति शक्ति : जिस योग में, ज्ञान में, ध्यान में आप फिसल गये थे, उदासीन हो गये थे, किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये थे उसमें मंत्रदीक्षा लेने के बाद गति आने लगती है । मंत्रदीक्षा के बाद आपके अंदर गति शक्ति कार्य में आपको मदद करने लगती है ।*

*🔸कांति शक्ति : मंत्रजाप से जापक के कुकर्मों के संस्कार नष्ट होने लगते हैं और उसका चित्त उज्जवल होने लगता है । उसकी आभा उज्जवल होने लगती है, उसकी मति-गति उज्जवल होने लगती है और उसके व्यवहार में उज्जवलता आने लगती है ।*

*🔸इसका मतलब ऐसा नहीं है कि आज मंत्र लिया और कल सब छूमंतर हो जायेगा... धीरे-धीरे होगा। एक दिन में कोई स्नातक नहीं होता,  एक दिन में कोई एम.ए. नहीं पढ़ लेता, ऐसे ही एक दिन में सब छूमंतर नहीं हो जाता। मंत्र लेकर ज्यों-ज्यों आप श्रद्धा से, एकाग्रता से और पवित्रता से जप करते जायेंगे त्यों-त्यों विशेष लाभ होता जायेगा ।*

*🔹प्रीति शक्ति : ज्यों-ज्यों आप मंत्र जपते जायेंगे त्यों-त्यों मंत्र के देवता के प्रति, मंत्र के ऋषि, मंत्र के सामर्थ्य के प्रति आपकी प्रीति बढ़ती जायेगी ।*

*🔹तृप्ति शक्ति : ज्यों-ज्यों आप मंत्र जपते जायेंगे त्यों-त्यों आपकी अंतरात्मा में तृप्ति बढ़ती जायेगी, संतोष बढ़ता जायेगा ।*

*🔹जिनको गुरुमंत्र सिद्ध हो गया है उनकी वाणी में सामर्थ्य आ जाता है । नेता भाषण करता है त लोग इतने तृप्त नहीं होते, किंतु जिनका गुरुमंत्र सिद्ध हो गया है ऐसे महापुरुष बोलते हैं तो लोग बड़े तृप्त हो जाते हैं और महापुरुष के शिष्य बन जाते हैं ।*

*🔹अवगम शक्ति : मंत्रजाप से दूसरों के मनोभावों को जानने की शक्ति विकसित हो जाती है । दूसरे के मनोभावों को आप अंतर्यामी बनकर जान सकते हो ।*

*🔹प्रवेश अवति शक्ति : अर्थात् सबके अंतरतम की चेतना के साथ एकाकार होने की शक्ति । अंतःकरण के सर्व भावों को तथा पूर्वजीवन के भावों को और भविष्य की यात्रा के भावों को जानने की शक्ति कई योगियों में होती है । वे कभी-कभार मौज में आ जायें तो बता सकते हैं कि आपकी यह गति थी, आप यहाँ थे, फलाने जन्म में ऐसे थे, अभी ऐसे हैं । जैसे दीर्घतपा के पुत्र पावन को माता-पिता की मृत्यु पर उनके लिए शोक करते देखकर उसके बड़े भाई पुण्यक ने उसे उसके पूर्वजन्मों के बारे में बताया था । यह कथा योगवाशिष्ठ महारामायण में आती है ।*

*🔹श्रवण शक्ति : मंत्रजाप के प्रभाव से जापक सूक्ष्मतम, गुप्ततम शब्दों का श्रोता बन जाता है । जैसे, शुकदेवजी महाराज ने जब परीक्षित के लिए सत्संग शुरु किया तो देवता आये । शुकदेवजी ने उन देवताओं से बात की । माँ आनंदमयी का भी देवलोक के साथ सीधा सम्बन्ध था । और भी कई संतो का होता है । दूर देश से भक्त पुकारता है कि गुरुजी ! मेरी रक्षा करो... तो गुरुदेव तक उसकी पुकार पहुँच जाती है !*


*🌞बनेंगे सबके काम🌞*
               *🌞तो बोलो जय श्री राम🌞*

भारत में मुसलमानो के 800 वर्ष के शासन का झूठ

✴️भारत में मुसलमानो के 800 वर्ष के शासन का झूठ✴️



*क्या भारत में मुसलमानों ने 800 वर्षों तक शासन किया है-

सुनने में यही आता है पर न कभी कोई आत्ममंथन करता है और न इतिहास का सही अवलोकन। आईये देखते हैं, इतिहास के वास्तविक नायक कौन थे? और उन्होंने किस प्रकार मुगलिया ताकतों को रोके रखा और भारतीय संस्कृति की रक्षा में सफल रहे।

*राजा दाहिर : प्रारम्भ करते है मुहम्मद बिन कासिम के समय से-*

भारत पर पहला आक्रमण मुहम्मद बिन ने 711 ई में सिंध पर किया। राजा दाहिर पूरी शक्ति से लड़े और मुसलमानों के धोखे के शिकार होकर वीरगति को प्राप्त हुए।

*बप्पा रावल:*_ _दूसरा हमला 735 में राजपुताना पर हुआ जब हज्जात ने सेना भेजकर बप्पा रावल के राज्य पर आक्रमण किया। वीर बप्पा रावल ने मुसलमानों को न केवल खदेड़ा बल्कि अफगानिस्तान तक मुस्लिम राज्यों को रौंदते हुए अरब की सीमा तक पहुँच गए। ईरान अफगानिस्तान के मुस्लिम सुल्तानों ने उन्हें अपनी पुत्रियां भेंट की और उन्होंने 35 मुस्लिम लड़कियों से विवाह करके सनातन धर्म का डंका पुन: बजाया। बप्पा रावल का इतिहास कही नहीं पढ़ाया जाता। यहाँ तक की अधिकतर इतिहासकर उनका नाम भी छुपाते है। गिनती भर हिन्दू होंगे जो उनका नाम जानते हैं!

*दूसरे ही युद्ध में भारत से इस्लाम समाप्त हो चुका था। ये था भारत में पहली बार इस्लाम का नाश।*

*सोमनाथ के रक्षक राजा जयपाल और आनंदपाल:*

अब आगे बढ़ते है गजनवी पर। बप्पा रावल के आक्रमणों से मुसलमान इतने भयक्रांत हुए की अगले 300 सालों तक वे भारत से दूर रहे।_

इसके बाद महमूद गजनवी ने 1002 से 1017 तक भारत पर कई आक्रमण किये पर हर बार उसे भारत के हिन्दू राजाओ से कड़ा उत्तर मिला। पहले राजा जयपाल और फिर उनका पुत्र आनंदपाल, दोनों ने उसे मार भगाया था।

महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर भी कई आक्रमण किये पर 17 वे युद्ध में उसे सफलता मिली थी। सोमनाथ के शिवलिंग को उसने तोडा नहीं था बल्कि उसे लूट कर वह काबा ले गया था। जिसका रहस्य आपके समक्ष जल्द ही रखता हु। यहाँ से उसे शिवलिंग तो मिल गया जो चुम्बक का बना हुआ था। पर खजाना नहीं मिला। भारतीय राजाओ के निरंतर आक्रमण से वह वापिस गजनी लौट गया और अगले 100 सालो तक कोई भी मुस्लिम आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण न कर सका।

*सम्राट पृथ्वीराज चौहान:*

1098 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज राज चौहान को 16 युद्द के बाद परास्त किया और अजमेर व दिल्ली पर उसके गुलाम वंश के शासक जैसे कुतुबुद्दीन, इल्तुमिश व बलवन दिल्ली से आगे न बढ़ सके। उन्हें हिन्दू राजाओ के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। पश्चिमी द्वार खुला रहा जहाँ से बाद में ख़िलजी लोधी तुगलक आदि आये। ख़िलजी भारत के उत्तरी भाग से होते हुए बिहार बंगाल पहुँच गए। कूच बिहार व बंगाल में मुसलमानो का राज्य हो गया पर बिहार व अवध प्रदेश मुसलमानो से अब भी दूर थे। शेष भारत में केवल गुजरात ही मुसलमानो के अधिकार में था। अन्य भाग स्वतन्त्र थे।

*राणा सांगा:-*

1526 में राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी के विरुद्ध बाबर को बुलाया। बाबर ने लोधियों की सत्ता तो उखाड़ दी पर वो भारत की सम्पन्नता देख यही रुक गया और राणा सांगा को उसने युद्ध में हरा दिया। चित्तोड़ तब भी स्वतंत्र रहा पर अब दिल्ली मुगलो के अधिकार में थी। हुमायूँ दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया पर उसका बेटा अवश्य दिल्ली से आगरा के भाग पर शासन करने में सफल रहा। तब तक कश्मीर भी मुसलमानो के अधिकार में आ चूका था।_

*महाराणा प्रताप*

अकबर पुरे जीवन महाराणा प्रताप से युद्ध में व्यस्त रहा। जो बाप्पा रावल के ही वंशज थे और उदय सिंह के पुत्र थे जिनके पूर्वजो ने 700 सालो तक मुस्लिम आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक सामना किया। जहाँगीर व शाहजहाँ भी राजपूतों से युद्धों में व्यस्त रहे व भारत के बाकी भाग पर राज्य न कर पाये।

दक्षिण में बीजापुर में तब तक इस्लाम शासन स्थापित हो चुका था।

*छत्रपति शिवाजी महाराज:* 

औरंगजेब के समय में मराठा शक्ति का उदय हुआ और शिवाजी महाराज से लेकर पेशवाओ ने मुगलो की जड़े खोद डाली। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज्य का विस्तार उनके बाद आने वाले मराठा वीरों ने किया। बाजीराव पेशवा इन्होने मराठा सम्राज्य को भारत में हिमाचल बंगाल और पुरे दक्षिण में फैलाया। दिल्ली में उन्होंने आक्रमण से पहले गौरी शंकर भगवान से मन्नत मांगी थी कि यदि वे सफल रहे तो चांदनी चौक में वे भव्य मंदिर बनाएंगे। जहाँ कभी पीपल के पेड़ के नीचे 5 शिवलिंग रखे थे। बाजीराव ने दिल्ली पर अधिकार किया और गौरी शंकर मंदिर का निर्माण किया। जिसका प्रमाण मंदिर के बाहर उनके नाम का लगा हुआ शिलालेख है। बाजीराव पेशवा ने एक शक्तिशाली हिन्दुराष्ट्र की स्थापना की जो 1830 तक अंग्रेजो के आने तक स्थापित रहा।_

*अंग्रेजों और मुगलों की मिलीभगत:*

मुगल सुल्तान मराठाओ को चौथ व कर देते रहे थे और केवल लालकिले तक सिमित रह गए थे। और वे तब तक शक्तिहीन रहे। जब तक अंग्रेज भारत में नहीं आ गए। 1760 के बाद भारत में मुस्लिम जनसँख्या में जबरदस्त गिरावट हुई जो 1800 तक मात्र 7 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी। अंग्रेजो के आने के बाद मुसल्मानो को संजीवनी मिली और पुन इस्लाम को खड़ा किया गया, ताकि भारत में सनातन धर्म को नष्ट किया जा सके। इसलिए अंग्रेजो ने 50 साल से अधिक समय से पहले ही मुसलमानो के सहारे भारत विभाजन का षड्यंत्र रच लिया था। मुसलमानो के हिन्दु विरोधी रवैये व उनके धार्मिक जूनून को अंग्रेजो ने सही से प्रयोग किया तो यह झूठा इतिहास क्यों पढ़ाया गया?:-_

असल में हिन्दुओ पर 1200 सालो के निरंतर आक्रमण के बाद भी जब भारत पर इस्लामिक शासन स्थापित नहीं हुआ और न ही अंग्रेज इस देश को पूरा समाप्त कर सके। तो उन्होंने शिक्षा को अपना अस्त्र बनाया और इतिहास में फेरबदल किये। अब हिन्दुओ की मानसिकता को बदलना है तो उन्हें ये बताना होगा की तुम गुलाम हो। लगातार जब यही भाव हिन्दुओ में होगा तो वे स्वयं को कमजोर और अत्याचारी को शक्तिशाली समझेंगे। इसी चाल के अंतर्गत ही हमारा जातीय नाम आर्य के स्थान पर हिन्दू रख दिया गया, जिसका अर्थ होता है काफ़िर, काला, चोर, नीच आदि ताकि हम आत्महीनता के शिकार हो अपने गौरव, धर्म, इतिहास और राष्ट्रीयता से विमुख हो दासत्व मनोवृति से पीड़ित हो सकें। *वास्तव में हमारे सनातन धर्म के किसी भी शास्त्र और ग्रन्थ में हिन्दू शब्द कहीं भी नहीं मिलता बल्कि शास्त्रो में हमे आर्य, आर्यपुत्र और आर्यवर्त राष्ट्र के वासी बताया गया है। आज भी पंडित लोग संकल्प पाठ कराते हुए  "आर्यवर्त अन्तर्गते..."* का उच्चारण कराते हैं । अत: भारत के हिन्दुओ को मानसिक गुलाम बनाया गया जिसके लिए झूठे इतिहास का सहारा लिया गया और परिणाम सामने है।_

*लुटेरे और चोरो को आज हम बादशाह सुलतान नामो से पुकारते है उनके नाम पर सड़के बनाते है।* शहरो के नाम रखते है और उसका कोई हिन्दू विरोध भी नहीं करता जो बिना गुलाम मानसिकता के संभव नहीं सकता था। इसलिए उन्होंने नई रण नीति अपनाई। इतिहास बदलो, मन बदलो और गुलाम बनाओ। यही आज तक होता आया है। जिसे हमने मित्र माना वही अंत में हमारी पीठ पर वार करता है। इसलिए झूठे इतिहास और झूठे मित्र दोनों से सावधान रहने की आवश्यकता है।

*इस लेख को अधिक से अधिक जनता तक पहुंचाएं। हमें अपना वास्तविक इतिहास जानने का न केवल अधिकार है अपितु तीव्र आवश्यकता भी, ताकि हम उस दास मानसिकता से मुक्त हो सकें जो हम सब के अंदर घर कर गयी है, ताकि हम जान सकें की हम कायर और विभाजित पूर्वजों की सन्तान नहीं, हम कर्मठ और संगठित वीरों की सन्तान हैं।*

#आर्यवर्त

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