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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

गणेश चतुर्थी कथा

गणेश चतुर्थी कब मनाई जाती हैं

भादो के महीने में कृष्ण पक्ष  चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती हैं | इस दिन से दस दिनों तक गणेश पूजा की जाती हैं | इसका महत्व देश के महाराष्ट्र प्रांत में अधिक देखा जाता हैं | महाराष्ट्र में गणेश जी का एक विशेष स्थान होता हैं | वहाँ पुरे रीती रिवाजों के साथ गणेश जी की स्थापना की जाती हैं उनका पूजन किया जाता हैं | पूरा देश गणेश उत्सव मनाता हैं |

गणेश चतुर्थी 2015 में 17 सितम्बर को मनाई जाएगी |

गणेश चतुर्थी

गणेश उत्सव को सामाजिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं क्यूंकि यह त्यौहार केवल घर के लोगो के बीच ही नहीं सभी आस पड़ोसियों के साथ मिलकर मनाया जाता हैं | गणेश जी की स्थापना घरो के आलावा कॉलोनी एवम नगर के सभी हिस्सों में की जाती हैं | विभिन्न प्रकार के आयोजन, प्रतियोगिता रखी जाती हैं | जिनमे सभी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं | ऐसे में गणेश उत्सव के बहाने सभी में एकता आती हैं | व्यस्त समय से थोड़ा वक्त निकाल कर व्यक्ति अपने आस पास के परिवेश से जुड़ता हैं |

गणेश चतुर्थी का व्रत महत्व

    जीवन में सुख एवं शांति के लिए गणेश जी की पूजा की जाती हैं |
    संतान प्राप्ति के लिए भी महिलायें गणेश चतुर्थी का व्रत करती हैं |
    बच्चों एवम घर परिवार के सुख के लिए मातायें गणेश जी की उपासना करती हैं |
    शादी जैसे कार्यों के लिए भी गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता हैं |
    किसी भी पूजा के पूर्व गणेश जी का पूजन एवम आरती की जाती हैं | तब ही कोई भी पूजा सफल मानी जाती हैं |
    माघ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के आलावा हर महीने की चतुर्थी का व्रत भी किया जाता हैं |
    गणेश चतुर्थी को संकटा चतुर्थी कहा जाता हैं |इसे करने से लोगो के संकट दूर होते हैं |

गणेश चतुर्थी कथा कहानी
गणेश जी को सर्व अग्रणी देवता क्यूँ कहा जाता हैं ?

एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जाती हैं | तब वे अपने शरीर के मेल को इक्कट्ठा कर एक पुतला बनाती हैं और उसमे जान डालकर एक बालक को जन्म देती हैं | स्नान के लिए जाने से पूर्व माता पार्वती बालक को कार्य सौंपती हैं कि वे कुंड के भीतर नहाने जा रही हैं अतः वे किसी को भी भीतर ना आने दे | उनके जाते ही बालक पहरेदारी के लिए खड़ा हो जाता हैं | कुछ देर बार भगवान शिव वहाँ आते हैं और अंदर जाने लगते हैं तब वह बालक उन्हें रोक देता हैं | जिससे भगवान शिव क्रोधित हो उठते हैं और अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट देते हैं | जैसे ही माता पार्वती कुंड से बाहर निकलती हैं अपने पुत्र के कटे सिर को देख विलाप करने लगती हैं | क्रोधित होकर पुरे ब्रह्मांड को हिला देती हैं | सभी देवता एवम नारायण सहित ब्रह्मा जी वहाँ आकर माता पार्वती को समझाने का प्रयास करते हैं पर वे एक नहीं सुनती |

तब ब्रह्मा जी शिव वाहक को आदेश देते हैं कि पृथ्वी लोक में जाकर एक सबसे पहले दिखने वाले किसी भी जीव बच्चे का मस्तक काट कर लाओं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई हो |नंदी खोज में निकलते हैं तब उन्हें एक हाथी दिखाई देता हैं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई होती हैं | नंदी उसका सिर काटकर लाते हैं और वही सिर बालक पर जोड़कर उसे पुन: जीवित किया जाता हैं | इसके बाद भगवान् शिव उन्हें अपने सभी गणों के स्वामी होने का आशीर्वाद देकर उनका नाम गणपति रखते हैं | अन्य सभी भगवान एवम देवता गणेश जी को अग्रणी देवता अर्थात देवताओं में श्रेष्ठ होने का आशीर्वाद देते हैं |तब से ही किसी भी पूजा के पहले भगवान गणेश की पूजा की जाति हैं |
गणेश जी को संकट हरता क्यूँ कहा गया ?

एक बार पुरे ब्रहमाण में संकट छा गया | तब सभी भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का निवारण करने हेतु प्रार्थना की गई | उस समय कार्तिकेय एवम गणेश वही मौजूद थे | तब माता पार्वती ने शिव जी से कहा हे भोलेनाथ ! आपको अपने इन दोनों बालकों में से इस कार्य हेतु किसी एक का चुनाव करना चाहिए |

तब शिव जी ने गणेश और कार्तिकेय को अपने समीप बुला कर कहा तुम दोनों में से जो सबसे पहले इस पुरे ब्रहमाण का चक्कर लगा कर आएगा मैं उसी को श्रृष्टि के दुःख हरने का कार्य सौपूंगा | इतना सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मयूर अर्थात मौर पर सवार होकर चले गये | लेकिन गणेश जी वही बैठे रहे थोड़ी देर बाद उठकर उन्होंने अपने माता पिता की एक परिक्रमा की और वापस अपने स्थान पर बैठ गये | कार्तिकेय जब अपनी परिक्रमा पूरी करके आये तब भगवान शिव ने गणेश जी से वही बैठे रहने का कारण पूछा तब उन्होंने उत्तर दिया माता पिता के चरणों में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण बसा हुआ हैं अतः उनकी परिक्रमा से ही यह कार्य सिध्द हो जाता हैं जो मैं कर चूका हूँ | उनका यह उत्तर सुनकर शिव जी बहुत प्रसन्न हुए एवम उन्होंने गणेश जी को संकट हरने का कार्य सौपा |

इसलिए कष्टों को दूर करने के लिए घर की स्त्रियाँ प्रति माह चतुर्थी का व्रत करती हैं और रात्रि ने चन्द्र को अर्ग चढ़ाकर पूजा के बाद ही उपवास खोलती हैं |

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