यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 31 जनवरी 2022

आर्य भट्ट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सर की गणना कैसे की गयी?

आर्य भट्ट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सर की गणना कैसे की गयी?
रावण के दस सिर कैसे हो सकते हैं, जबकि शून्य की खोज आर्यभट्ट ने की?

कुछ लोग हिन्दू धर्म व "रामायण" महाभारत "गीता" को काल्पनिक दिखाने के लिए यह प्रश्न करते है कि जब आर्यभट्ट ने लगभग 6 वी शताब्दी मे (शून्य/जीरो) की खोज की तो आर्यभट्ट की खोज से लगभग 5000 हजार वर्ष पहले रामायण मे रावण के 10 सिर की गिनती कैसे की गई !!!

और महाभारत मे कौरवो की 100 की संख्या की गिनीती कैसे की गई !!

जबकि उस समय लोग (जीरो) को जानते ही नही थे !!

तो लोगो ने गिनती को कैसे गिना !!!!
अब मै इस प्रश्न का उत्तर दे रहा हु !!

कृपया इसे पूरा ध्यान से पढे!

आर्यभट्ट से पहले संसार 0(शुन्य) को नही जानता था !!

आर्यभट्ट ने ही (शुन्य / जीरो) की खोज की, यह एक सत्य है !!

लेकिन आर्यभट्ट ने "0( जीरो )"" की खोज *अंको मे* की थी, *शब्दों* में खोज नहीं की थी, उससे पहले 0 (अंक को) शब्दो मे शुन्य कहा जाता था !!!

उस समय मे भी हिन्दू धर्म ग्रंथो मे जैसे शिव पुराण,स्कन्द पुराण आदि मे आकाश को *शुन्य* कहा गया है !!

यहाँ पे "शुन्य" का मतलव अनंत से होता है !!

लेकिन *रामायण व महाभारत* काल मे गिनती अंको मे न होकर शब्दो मे होता था,और वह भी *संस्कृत* मे !!

उस समय *1,2,3,4,5,6,7,8, 9,10* अंक के स्थान पे *शब्दो* का प्रयोग होता था वह भी *संस्कृत* के शव्दो का प्रयोग होता था !!!

जैसे !

1 = प्रथम

2 = द्वितीय

3 = तृतीय"

4 = चतुर्थ

5 = पंचम""

6 = षष्टं"

7 = सप्तम""

8 = अष्टम""

9 = नवंम""

10 = दशम !!

*दशम = दस*

यानी" दशम मे *दस* तो आ गया,लेकिन अंक का

0 (जीरो/शुन्य ) नही आया,‍‍रावण को दशानन कहा जाता है !!

*दशानन मतलव दश+आनन =दश सिर वाला*

अब देखो

रावण के दस सिर की गिनती तो हो गई !!

लेकिन अंको का 0 (जीरो) नही आया !!

इसी प्रकार महाभारत काल मे *संस्कृत* शब्द मे *कौरवो* की सौ की संख्या को *शत-शतम* ""बताया गया !!

*शत्* एक संस्कृत का "शब्द है,

जिसका हिन्दी मे अर्थ सौ (100) होता है !!

सौ(100) "को संस्कृत मे शत् कहते है !!

*शत = सौ*

इस प्रकार महाभारत काल मे कौरवो की संख्या गिनने मे सौ हो गई !!

लेकिन इस गिनती मे भी *अंक का 00(डबल जीरो)* नही आया,और गिनती भी पूरी हो गई !!!

महाभारत धर्मग्रंथ में कौरव की संख्या शत बताया गया है!

रोमन मे भी

1-2-3-4-5-6-7-8-9-10 की

जगह पे (¡)''(¡¡)"""(¡¡¡)""

पाँच को V कहा जाता है !!

दस को x कहा जाता है !!

रोमन मे x को दस कहा जाता है !!

X= दस

इस रोमन x मे अंक का (जीरो/0) नही आया !!

और हम" दश पढ "भी लिए

और" गिनती पूरी हो गई!!

इस प्रकार रोमन word मे "कही 0 (जीरो) "नही आता है!!

और आप भी" रोमन मे""एक से लेकर "सौ की गिनती "पढ लिख सकते है !!

आपको 0 या 00 लिखने की जरूरत भी नही पड़ती है !!

पहले के जमाने मे गिनती को *शब्दो मे* लिखा जाता था !!

उस समय अंको का ज्ञान नही था !!

जैसे गीता,रामायण मे 1"2"3"4"5"6 या बाकी पाठो (lesson ) को इस प्रकार पढा जाता है !!

जैसे

(प्रथम अध्याय, द्वितीय अध्याय, पंचम अध्याय,दशम अध्याय... आदि !!)

इनके"" दशम अध्याय ' मतलब

दशवा पाठ (10 lesson) "" होता है !!

दशम अध्याय= दसवा पाठ

इसमे *दश* शब्द तो आ गया !!

लेकिन इस दश मे *अंको का 0* (जीरो)" का प्रयोग नही हुआ !!

बिना 0 आए पाठो (lesson) की गिनती दश हो गई !!

(हिन्दू बिरोधी और नास्तिक लोग सिर्फ अपने गलत कुतर्क द्वारा

‍ हिन्दू धर्म व हिन्दू धर्मग्रंथो को काल्पनिक साबित करना चाहते है !!)

जिससे हिन्दूओ के मन मे हिन्दू धर्म के प्रति नफरत भरकर और हिन्दू धर्म को काल्पनिक साबित करके,हिन्दू समाज को अन्य धर्मों में परिवर्तित किया जाए !!!

लेकिन आज का हिन्दू समाज अपने धार्मिक शिक्षा को ग्रहण ना करने के कारण इन लोगो के झुठ को सही मान बैठता है !!!

यह हमारे धर्म व संस्कृत के लिए हानि कारक है !!

अपनी सभ्यता पहचाने,गर्व करे की हम भारतीय है।
*लेखक अज्ञात है*

गणित मोदी हमसे बेहतर व ज्यादा जानते हैं,मगर,


गणित मोदी हमसे बेहतर व ज्यादा जानते हैं,

*मगर,*
*गाँधी की तरह खेलना सिर्फ मोदी को आता है,*

*आप और हम तो सिर्फ उलाहना दे सकते हैं,*

*गाँधी ने अहिंसा की आड़ में अपने चहेते मुइमो को एक अलग देश भी दे दिया, लाखों हिन्दुओं का मुइमो के हाथों कत्ल भी करवा दिया, असंख्य हिन्दू बहनों के कुकर्म  बलात्कार भी करवा दिये,*

*सैकड़ों मंदिरों में कुरान पढ़वा ली, रोजे खुलवा लिये...*

*मगर हिन्दुओं के लिये कुछ नहीं किया, किसी भी मस्जिद में गीता नहीँ पढ़वाई, कहा कि मेरी लाश पर से पाकिस्तान बनेगा, मगर उस ने जीवित रहते हुए पाकिस्तान बनवा दिया, 3 करोड़ मुस्लिम भारत में रोक लिये।  कांग्रेस की वोटबैंक की खेती को हरीभरी रखने के लिये,*

*अब 70 साल बाद असली चाणक्य आया है, जो मुस्लिमों का विश्वास जीतने की आड़ में हिन्दू राष्ट्र का मार्ग आधा तय कर चुका है और युद्धगति से भारत में मुईमो पर राजनीतिक शिकंजा कसता जा रहा है,*

*आप क्या सोचते हो कि जो वोटों की गिनती की गणित आप दिखा रहे हैं मोदी इससे अनजान हैं,*

*नहीँ, वे हमसे बेहतर जानते हैं इन गणनाओं को, मगर उसे असली गांँधीगिरी का पता है, वे खेल रहे हैं।  उन्हें खेलने दीजिये,*

*गाँधी- गाँधी जपते मोदी ने सरदार पटेल की मूर्ति बनवा दी,*

*गाँधी गाँधी जपते मोदी ने सुभाष चन्द्र बोस के आजादी दिवस को मनाकर बोस के नाम का संग्रहालय बनवा दिया,*

*गाँधी गाँधी जपते मोदी ने धारा 370 खत्म करते हुए जम्मू कश्मीर से हमेशा के लिये राजनीतिक इस्लामीकरण खत्म कर दिया*।

*गाँधी गाँधी जपते मोदी ने 2अक्टूबर को लाल बहादुर शास्त्री जी को महत्व देते हुए एक नई पीढ़ी को जाग्रत कर दिया,*

*गाँधी गाँधी जपते मोदी ने कांग्रेस को उसी की छल बल वाली पैतरेबाजी में ऐसा उलझाया कि आज गाँधी की औलाद कांग्रेस का अध्यक्ष पद से भाग खड़ा हुआ,*

*बाकी सब कुछ उसके ही हिसाब से चल रहा है, वह अपने मिशन पर ही है, इसे मत गरियाओ, यह राजनीतिक संन्यासी आपकी और बड़े बड़े पोलीटिकल पंडित की समझ से परे है, 2002 गुजरात में इसने हजारों रक्तांजलियांँ लेकर अपने आपको संसार की नजरों में हिन्दू राजा घोषित कर दिया था, इसे कोई नहीं रोक सकता, जब तक यह भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित नहीं कर देता,*

 इसने हिन्दू राष्ट्र का आधा मार्ग तय कर लिया है, अभी उसे तुम्हारी सलाह की नहीं, वोट की जरूरत है।  बाकी का काम कैसे करना उसे पक्का पता है,  तुम 1000 साल से सो रहे हो इसलिये मैकॉले की शिक्षा व्यवस्था की अंधता व 70 साल तक कांग्रेसी टुकड़ों पर पलने की आदतों के कारण तुम्हें नजर नहीं आ रहा है।

इसलिए सिर्फ भाजपा को वोट देकर उनके हाथ मजबूत करे बस्स।

🙏🏼

शनिवार, 29 जनवरी 2022

ऐसा वृक्ष जिससे मक्खन निकलता है

जिस वृक्ष से मक्खन निकलते हैं , उस वृक्ष को "मक्खन की कटोरी " (वट वृक्ष की एक प्रजाति), के नाम से जाना जाता है ।

  • बोटेनिकल नाम: फिकस बेंगालेंसिस।

इस वृक्ष के पत्ते तोड़ने पर , एक सफेद तरल पदार्थ का रिसाव होता है। जिसे मक्खन की संज्ञा दी जाती है।मान्यता है, यह भगवान श्रीकृष्ण के "चुराये मक्खन "का ही पिघला स्वरूप है।

इस वृक्ष को "कृष्ण का पेड़" , "कृष्ण वट" भी कहते हैं।

शोध के पश्चात इस पेड़ को दुर्लभ माना जाता है।

इस वृक्ष को ,प्रकृति का तोहफा माना जाता है। क्योंकि इससे स्वास्थ्य वर्धक लाभांश प्राप्त होते हैं।

इसकी जड़ें काफी गहराई तक फैले होते हैं , जिससे उसके आसपास की मिट्टी में सदा पानी की मौजूदगी बनी रहती है ।

यह पेड़ 2 ,3 महीने में दस फीट तक बड़े हो सकते हैं । इसमें जल की भी पचूर मात्रा मौजूद रहती हैं।

इसकी मूल प्रजाति अधिकांशतः उत्तराखंड में पाई जाती है।

इस वृक्ष के पत्ते कुछ अलग से होते हैं । इस की खासियत, है कि ,ये वर्ष भर हरे भरे रहते है । इनकी पत्तियां जल्दी झड़ती नहीं हैं । ये सदाबहार वृक्ष कहलाती हैं।

यह दूसरों वृक्षों की तुलना में अधिक कार्बन डाइआक्साइड अवशोषित कर , अधिक मात्रा में शुद्ध ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है ।

मान्यता है कि, अपने बचपन समय में भगवान श्रीकृष्ण अपनी माता यशोदा के डांट भटकार से बचने हेतु ,दूसरों के घरों से चुराये मक्खन, एकमात्र इस वट वृक्ष के पत्तों को कटोरी नुमा आकार देकर, उसमें मक्खन छुपाकर रख देते थे ।

पर कान्हा ने जब अपनी मैया की डांट सुन ली , तो मक्खन कटोरी ,पत्ते से माखन पिघलने लगा।

कहते हैं ,इस पेड़ के पत्ते तोड़ने के फलस्वरूप माखन का यही पिघला स्वरूप सफेद तरल पदार्थ के रूप में निकलने लगा ।

कहा जाता है , तभी से इस वृक्ष के बड़े पत्ते कटोरीनुमा और इसके छोटे पत्ते चम्मच समान आकार में विकसीत होने लगे।

चित्र गुगल से।

बेताल की रहस्यमयी गुफा के टपकते घी का रहस्य

बेताल की रहस्यमयी गुफा के टपकते घी का रहस्य

भारतीय उपमहाद्वीप में ऐसी कई गुप्त गुफाओं के होने के प्रमाण मिलते हैं, जिनका निर्माण राजा-महाराजाओं द्वारा किया गया। इन सुरंगों का इस्तेमाम युद्ध की स्थिति में राजपरिवार को सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचाने के लिये किया जाता था। जिसकी जानकारी पूर्णता गुप्त रखी जाती थी। इसके अलावा कुछ ऐसी भी गुफाओं के बारे में पता चलता है जो अपनी दैवीय शक्तियों का दावा करती हैं।

ऐसा माना जाता है कि ये गुफाएं गुप्त सिद्धियां प्राप्त करने का स्थान हुआ करती थीं। हमारे साथ जानिए हिमाचल प्रदेश स्थित एक ऐसी गुप्त गुफा के बारे में जिसकी दीवारों से टपकता हुआ देसी घी बना हुआ है सबसे बड़ा रहस्य। बेताल गुफा की तिलस्मी दीवारें अपनी पहाड़ी खूबसूरती के लिए विश्व विख्यात हिमाचल प्रदेश अपने अंदर कई रहस्य छुपाए बैठा है। इस बर्फीले क्षेत्र में कई ऐसे प्राचीन स्थल मौजूद हैं जिनका संबंध प्राचीन काल से बताया जाता है। यहां प्रागैतिहासिक काल के कई मंदिरों व गुफाओ को खोजा गया है, जिनमें से कुछ हमारे सामने मात्र रहस्य के रूप में उपस्थित हैं। इन्हीं में से एक है हिमाचल की पहाड़ियों में स्थित 'बेताल गुफा'।

जिसकी तिलस्मी दीवारें बनी हुईं हैं रहस्य। दीवारों से टपकता है 'देसी घी' बेताल गुफा (हिमाचल प्रदेश) मंडी जिले के सुंदरनगर में स्थित है। जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां कभी दीवारों से शुद्ध देसी घी टपकता था। इस प्राचीन गुफा से जुड़ा यह तथ्य किसी को भी सोचने पर मजबूर कर सकता है। इस अद्भुत घटना की पुष्टि खुद यहां के स्थानीय लोग करते हैं। दीवारों से टपकते देसी घी की असल सच्चाई क्या है इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता। गुफा करती है मनोकामना पूरी स्थानीय लोगों का मानना है की यह गुफा चमत्कारी शक्तियों से भरी है। जहां कभी इंसानों की हर मनोकामनाएं पूरी हुआ करती थीं। कहा जाता है जो भी गांववाला इस गुफा से बर्तन या घी मांगता था उसकी इच्छाएं जरूर पूरी हुआ करती थीं। शायद इसलिए इन दीवारों से घी टपकता रहता था।

गुफा में देवी-देवता इस चमत्कारी गुफा की लंबाई 40 से 50 मीटर और चौड़ाई 15 फीट बताई जाती है। गुफा में हिन्दू धर्म से जुड़ी कई प्रतिमाएं हैं, जिनकी पूजा यहां के स्थानीय लोग करते हैं। इस गुफा के अंदर एक जल स्रोत होने की बात भी पता चली है, जिसके बहते पानी की आवाज़ संगीत के जैसे सुनाई पड़ती है। जुड़ी हैं कई कहानियां इस रहस्यमय गुफा को लेकर कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है जब भी कभी यहां गांव में किसी के घर शादी-ब्याह होता था, तो परिवार का कोई बड़ा सदस्य थाल सजाकर गुफा के बाहर सिंदूर से निमंत्रण लिख कर आता था। जिसके बाद वो गुफा से शादी के बर्तन मांगता था।

अगली सुबह उसे गुफा के बाहर मांगे गए बर्तन मिलते। समारोह के खत्म होने के पश्चात व्यक्ति बर्तन वापस गुफा के पास रख देता था। जिसके बाद वो बर्तन अपने आप अदृश्य हो जाया करते थे । बर्तन और घी मिलना हुआ बंद लोगों की मानें तो एक बार किसी ने बर्तन लेकर गुफा को वापस नहीं किये, जिसके बाद यहां से बर्तन मिलने बन्द हो गए। लोगों का यह भी कहना है कि किसी ग्वाले की वजह से दीवारों से घी टपकना बंद हो गया। कहा जाता है कि एक दिन ग्वाला इस गुफा में आया और टपकते घी को देख उसके मन में लालच आ गया , वो रोटी के साथ घी लगाकर खाने लगा। जिसके बाद से गुफा का यह भी चमत्कार हमेशा के लिए बंद हो गया। लोगों की आस्था बरकरार भले ही अब गुफा के इन चमत्कारों का कोई महत्व नहीं रहा लेकिन यहां के लोगों की आस्था अब भी बरकरार है। गांववाले यहां नियमित रूप से पूजा-अर्चना करते हैं। इस आस्था के साथ कि यहां स्थित दैविय शक्ति लोगों की पुकार सुनती है।

इसलिए जब भी कोई गांव का सदस्य बीमार पड़ता है तो लोग गुफा के पास जाकर पूजा-पाठ करते हैं। कैसे करें प्रवेश बेताल गुफा पहुंचने के लिए आपको हिमाचल के मंडी आना पड़ेगा। जहां आप रेल/सड़क/हवाई मार्ग के सहारे पहुंच सकते हैं। यहां का नज़दीकी हवाई अड्डा भुंतर (कुल्लू-मनाली) है। रेल मार्ग के लिए आप जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।

चित्र साभार: फेसबुक

अब बिना पिन नहीं खुलेगा वॉट्सऐप वेब अकाउंट - वॉट्सऐप फीचर

 वॉट्सऐप फीचर अपडेट:अब बिना पिन नहीं खुलेगा वॉट्सऐप वेब अकाउंट

वॉट्सऐप एक नया फीचर लाने वाला है। यह फीचर सिर्फ डेस्कटॉप यूजर्स के लिए होगा। जो वॉट्सऐप डेस्कटॉप की सिक्योरिटी के लिए लाया गया है। इसका नाम टू स्टैप वैरिफिकेशन फीचर होगा। इस फीचर के चलते आप अनऑथराइज्ड लॉगिन से बच पाएंगे। हालांकि यह फीचर ऑप्शनल होगा।

मोबाइल पर 6 डिजिट कोड मिलेगा
आप इस फीचर को अपनी मर्जी से इनेबल या डिसेबल कर पाएंगे। इस फीचर से अगर आप नए स्मार्टफोन के जरिए वॉट्सऐप पर लॉगिन करते हैं, तो ऐप आपके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर एक 6 डिजिट का कोड भेजेगा। अभी डेस्कटॉप लॉगिन के लिए आपको सिर्फ वॉट्सऐप वेब पर एक क्यूआर कोड स्कैन करना होता है और आपका अकाउंट लॉगिन हो जाता है। इसके लिए किसी भी प्रकार के पिन की जरूरत नहीं पड़ती।

डेस्कटॉप पर वॉट्सऐप चैट का एक्सेस सेफ होगा
डेस्कटॉप पर वॉट्सऐप चैट का एक्सेस बेहतर और सेफ करने के लिए अब एक PIN की भी जरूरत होगी। वॉट्सऐप टू-स्टेप वैरिफिकेशन को मैनेज करना आसान बनाना चाहता है, इसलिए वे आने वाले अपडेट में वेब/डेस्कटॉप पर यह फीचर शुरू करने पर काम कर रहे हैं। हालांकि फिलहाल इसकी टेस्टिंग की जा रही है जो जल्द ही वॉट्सऐप वेब और डेस्कटॉप यूजर्स के लिए जारी किया जा सकता है।

फोन खो जाने पर क्या होगा?
रिपोर्ट में कहा गया है कि वेब/डेस्कटॉप यूजर्स टू-स्टेप वैरिफिकेशन को इनेबल या डिसेबल कर पाएंगे। यह उस समय जरूरी बन जाता है, जब आप अपना फोन खो देते हैं और आपको अपना पिन याद नहीं रहता है। आप एक रिसेट लिंक के जरिए पिन को रिस्टोर कर सकते हैं।

दुकान के लिए जबरदस्त स्लोगन

सैलून वाले क़ी दुकान पर एक स्लोगन पढा़ ..
"हम दिल का बोझ तो नहीं पर सिर का बोझ जरूर हल्का कर सकते हैं "..🤣

लाइट क़ी दुकान वाले ने बोर्ड के नीचे लिखवाया ..
"आपके दिमाग की बत्ती भले ही जले या ना जले,परंतु हमारा बल्ब ज़रूर जलेगा ".. 🤣

चाय के होटल वाले ने काउंटर पर लिखवाया ..
"मैं भले ही साधारण हूँ, पर चाय स्पेशल बनाता हूँ।"🤣

एक रेस्टोरेंट ने सबसे अलग स्लोगन लिखवाया ..
"यहाँ घऱ जैसा खाना नहीं मिलता, आप निश्चिंत होकर अंदर पधारें।" 😀

इलेक्ट्रॉनिक दुकान पर स्लोगन पढ़ा तो मैं भाव विभोर हो गया ..
"अगर आपका कोई फैन नहीं है तो यहाँ से ले जाइए "..😂

गोलगप्पे के ठेले पर एक स्लोगन लिखा था ..
"गोलगप्पे खाने के लिए दिल बड़ा हो ना हो, मुँह बड़ा रखें, पूरा खोलें" ..🤣

फल भंडार वाले ने तो स्लोगन लिखने की हद ही कर दी ..
"आप तो बस कर्म करिए, फल हम दे देंगे ".. 🤣

घड़ी वाले ने एक ग़ज़ब स्लोगन लिखा ..?
"भागते हुए समय को बस में रखें, चाहे दीवार पर टांगें, चाहे हाथ पर बांधें..."..🤣

ज्योतिषी ने बोर्ड पर स्लोगन लिखवाया۔
"आइए .. मात्र 100 रुपए में अपनी ज़िंदगी के आने वाले एपिसोड देखिए ..."🤣

बालों के तेल क़ी एक कंपनी ने हर प्रोडक्ट पर एक स्लोगन लिखा ..
"भगवान ही नहीं, हम भी बाल बाल बचाते हैं।" ..😂😀🤣

आप जैसे अभी हल्का सा मुस्करा रहे हैं या हँस रहें हैं, ऐसे ही खुश रहें।। 
हँसते रहे हँसाते रहें
स्वस्थ रहें 🚴‍♀️🏸🏃🏿‍♀️मस्त 😊💃🏻🍻रहे
अपना और अपने परिवार 👩‍🚀🦸‍♂️🙆🏼‍♀️🙋🏻‍♂️👩‍👩‍👦‍👦का ख्याल रखें 🤣😂🤩🤩

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

यह तथा कथित खान सर किसी बहुतबड़े षड्यंत्र का सूत्रपात कर रहा है।

यह तथा कथित खान सर किसी बहुत
बड़े षड्यंत्र का सूत्रपात कर रहा है।
इसे रोकिए यह बहुत दिमाग से खेल रहा है।
इस पर अंकुश लगाना बेहद आवश्यक है।

खान सर की ऑनलाइन टीचरी में करोड़ों
की कमाई।
कुछ महीने पहले उन्होंने तापमान नापने के
लिए मोदी जी के विरोध में कुछ बोला था।

सब्सक्रिप्शन तेजी से कम होने लगा तो
पैंतरा बदला।
राम,महाभारत भी पढ़ाने लगे और बड़ी
चलाकी से हिन्दुओं में हजारों वर्षों का
जातिवाद भी पढ़ाने लगे।

मोमिनों से गाली भी सुन ली,पढ़ाने की
चालाकी तो आती ही है और छात्र असली
मंशा कहां तक समझ पाएंगे ?
.......
किसान कानूनों का विरोध तो खुलकर किया
अब फिर पैंतरा बदला मौका मिला आरआरबी
के किसी परीक्षा का जिसमें पहले एक परीक्षा
होनी थी अब दो परीक्षा का नोटिफिकेशन
निकल गया तो हंगामा करवा दिया।

कल खानसर की वीडियो देख रहा था,
बोल रहे थे किसान आंदोलन में सरकार झुकी है।
तो इसमें भी झुकेगी,और बड़े अंदाज से बता रहे
थे कि 1857 के विद्रोह और जलियावाला बाग
के बाद क्या आंदोलन रुका ?

एक तरफ  वे छात्रों से कह रहे हैं कि अराजक
न हों,दूसरी तरफ बोल रहे हैं कि छात्र अब हमारे
हाथ में नहीं हैं।
एक तरफ बोल रहे हैं पूरे देश के टीचर इनके
संपर्क में हैं तो दूसरी तरफ कह रहे हैं कि सबसे
कहा है कि खुद सामने न आएं।
छात्रों को सामने रखें...

बोल रहे हैं पुलिस वाले पत्थर फेंक रहे थे,
यह नहीं बोल रहे कि रेल की पटरियों पर
बड़े-बड़े बोल्डर रख कर छात्र उन्हें हटाने
नहीं दे रहे।
अराजक छात्रों पर पुलिस नियंत्रण कर रही है,
तो कह रहे हैं कि 8.30 बजे रात में छात्रों पर
लाठी चला रही है।
कह रहे हैं कि पुलिस चाहे तो अभी हमको
गिरफ्तार कर ले।
......
पूरी तरह से छात्रों को भड़का दिया है,
28 तारीख को दिल्ली से सहित कई जगहों
पर रेल रोका जाएगा और इसमें वामपंथी
समेत तमाम छात्र संगठन जमकर हिंसा करेंगे।

यदि सरकार बल प्रयोग करती है तो तुरंत
सरकार को फासीवादी घोषित कर दिया
जाएगा।

यदि गलती से कुछ छात्रों की हत्या
 (उकसा कर मरवा देना हत्या ही होगी)
हो जाती है तब तो पूरे देश में छात्र आंदोलन
शुरु हो जाएगा फिर दंगा और गृहयुद्ध।
.....
आरआरबी में कौन बैठा है
जो इनके खेल में शामिल है?

लखीमपुर खीरी में भी भीतरघात ही हुआ था,
नहीं तो कार लेकर हिंसक आंदोलन के बीच
नेता पुत्र नहीं पहुंचता और न ही 8 लोग मरते
न किसान कानून वापस होता।

क्या सरकार को दिखाई नहीं दे रहा है कि हर
तीसरे महीनें किसी न किसी बहाने से कोई न
कोई हिंसक आंदोलन शुरु कर दिया जाता है।

यह सरकार की सबसे बड़ी कमी है या अपने
यहाँ गद्दारों की संख्या अधिक हो गई है एक
से निपटे तो दूसरा शुरु हो जाता है।

वैसे खान सर वाला वीडियो देख लीजिए,
मक्कारी साफ नजर आ जाएगी और खेल भी,
यह पढ़ाते पढ़ाते छात्रों को चराने लगा,
इसे लग रहा है कि यदि यह नहीं पढ़ाता
तो न किसी को नौकरी मिलती न किसी
का भाग्य खुलता।

न तो इसके पढ़ाने से पहले किसी की नौकरी
लगी न तब लगेगी जब पढ़ाना बंद कर देगा।

इसे लगने लगा है कि अब बहुत पढ़ा लिए,
बहुत पैसा कमा लिए,अब राजनीति में घुसा जाए।

मोमिनों का एक ही उद्देश्य है (जे हाद)
चाहे जहां रहे जिस रुप में रहे अंत में जाकर
एक ही काम करेगा।
जिसे लोग सम्मान देने लगते हैं वह कुछ दिन
बाद अपने असली रूप में आ जाता है।
देखिए सोचिए और समझिए।
💐#साभार;
विश्व गुरु💐

जयतु भारतं💐
जयश्रीराम💐

बुधवार, 26 जनवरी 2022

42वें संशोधन के बाद संविधान के अनुच्छेद 25-31 का पूरा अर्थ हिन्दू-विरोधी कर डाला गया।

*🚩संविधान स्थापना दिवस पर जानना जरूरी है, समान नागरिक संहिता क्यों नहीं है?*
*26 जनवरी 2022*
azaadbharat.org

*🚩नवम्बर 1948 में संविधान सभा की बैठक में समान नागरिक संहिता को लागू किये जाने पर लम्बी बहस चली. बहस में इस्लामिक चिन्तक मोहम्मद इस्माईल, जेड एच लारी, बिहार के मुस्लिम सदस्य हुसैन इमाम, नजीरुद्दीन अहमद सहित अनेक मुस्लिम नेताओं ने भीमराव अम्बेडकर का विरोध किया था. इसके बाद हुए मतदान में डॉ० अम्बेडकर का समान नागरिक संहिता का प्रस्ताव विजयी हुआ और संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लागू किये जाने सम्बन्धी विधान लाया गया।*

*🚩अनुच्छेद-44 (समान नागरिक संहिता), अनुच्छेद-312 (भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा), अनुच्छेद-351 (हिंदी का प्रचार) जैसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद अभी तक पेंडिंग हैं। अनुच्छेद-51A (मौलिक कर्तव्य) को लोगों की इच्छा पर छोड़ दिया गया है।*
*इसके बाद भी मुसलमानों के दबाव में समान नागरिक संहिता को लागू करने का विचार दफना दिया गया. मुस्लिम तुष्टिकरण बढ़ता गया और समान नागरिक संहिता की राह संकीर्ण होती गई. इसी विरोध और कट्टरता के चलते सन 1972 में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का जन्म हुआ. तबसे यह समान नागरिक संहिता का विरोध करते हुए शरीयत को संविधान और कानून से ऊपर बताता-मानता है।*

*🚩कुछ समय से देश में समान नागरिक संहिता की चर्चा बार-बार हो रही है, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पा रही है। इसी तरह हिंदू मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त कराने की मांग भी अनसुनी बनी हुई है। छोटे-मोटे संगठन और एक्टिविस्ट धर्मांतरण के विरुद्ध कानून बनाने की भी मांग कर रहे हैं। भोजन उद्योग में हलाल मांस का दबाव बढ़ाने की संगठित गतिवधियों के विरुद्ध भी असंतोष बढ़ा है। शिक्षा अधिकार कानून में हिंदू-विरोधी पक्षपात पर भी काफी उद्वेलन है। आखिर इन मांगों पर सत्ताधारियों का क्या रुख है?*

*🚩भारतीय संविधान आदर्श नहीं है। संविधान के मुख्य निर्माता डॉ. अंबेदकर ने ही दो बार, वह भी संसद में, पूरी जिम्मेदारी से कहा था कि वे “इस संविधान को जला देना चाहते” हैं। प्रथम अवसर पर (2 सितंबर 1953) उन्होंने कहा कि, ‘‘मैं इस संविधान को पसंद नहीं करता। यह किसी के काम का नहीं।’’ दूसरे अवसर पर (19 मार्च 1955) उन्होंने कहा, ‘‘जो मंदिर बनाया गया, उसपर देवताओं के बजाए राक्षसों ने कब्जा कर लिया।’’*

*🚩उसी संविधान की आज डॉ. अंबेदकर का नाम ले-लेकर आडंबरपूर्ण पूजा करवाना हास्यास्पद है। वैसे भी, संविधान राजनीतिक तंत्र चलाने का दस्तावेज है। देश उससे बहुत ऊँची वस्तु है। संविधान में बदलाव होते रहते हैं। यहाँ तो इसे मनमाने बदला गया है। जैसे, 42वें संशोधन (1976) द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘सोशलिस्ट’ व ‘सेक्यूलर’ जोड़कर बुनियादी रूप से विकृत किया गया। तब से यह केवल समाजवाद और सेक्यूलरवाद मानने वालों का संविधान है। ऐसी मतवादी तानाशाही थोपकर भिन्न विचार वाले नक्कू बना दिए गए। इसलिए तब से वामपंथी, इस्लामी और इस्लामपरस्त ही ‘संवैधानिक मूल्यों’ की अधिक दुहाई देते हैं। उन्हें मालूम है कि वे क्या बोल रहे हैं!*

*🚩समान नागरिक संहिता की चाह तो मूल संविधान में ही थी, लेकिन शासकों ने शुरू से इसे उपेक्षित किया। कई बार सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर भी कार्रवाई नहीं की। समान संहिता की मांग हिंदू मुद्दा नहीं, बल्कि सेक्युलर मांग है। यह मांग तो सेक्युलरवादियों को करनी चाहिए। धर्मांतरण रोकना भी कानूनी प्रतिबंध का विषय नहीं। धर्मांतरण कराने में मिशनरी रणनीति और कटिबद्धता ऐसी है कि चीन जैसा कठोर शासन भी महज कानून से इसे रोकने में विफल रहा है। धर्मांतरण रोकने के आसान रास्ते की आस छोड़नी चाहिए। इसका उपाय शिक्षा और वैचारिक युद्ध में है। उससे कतरा कर संगठित धर्मांतरणकारियों से पार पाना असंभव है।*

*🚩कुछ लोग जब-तब हिंदू राष्ट्र की बातें किया करते हैं, जबकि यथार्थवादी मांग यह होती कि हिंदुओं को दूसरे समुदायों जैसे बराबर अधिकार मिलें। दुर्भाग्यवश अधिकांश लोगों को इसकी चेतना नहीं। हालिया समय में संविधान के अनुच्छेद 25 से 31 की हिंदू-विरोधी व्याख्या स्थापित कर दी गई है। कई शैक्षिक, सांस्कृतिक, सामाजिक अधिकारों पर केवल गैर-हिंदुओं यानी अल्पसंख्यकों का एकाधिकार बना दिया गया है।*

*सरकार हिंदू शिक्षा संस्थान और मंदिरों पर मनचाहा हस्तक्षेप करती है और अपनी शर्तें लादती है। वह ऐसा गैर-हिंदू संस्थाओं पर नहीं करती। इसी तरह अल्पसंख्यकों को संवैधानिक उपचार पाने का दोहरा अधिकार है, जो हिंदुओं को नहीं है। हिंदू केवल नागरिक रूप में न्यायालय से कुछ मांग सकते हैं, जबकि अन्य नागरिक और अल्पसंख्यक, दोनों रूपों में संवैधानिक अधिकार रखते हैं। ऐसा अंधेर दुनिया के किसी लोकतंत्र में नहीं कि अल्पसंख्यक को ऐसे विशेषाधिकार हों जो अन्य को न मिलें।*

*🚩'सोशलिज्म’ और ‘सेक्यूलरिज्म’ की धारणाओं से हमारे संविधान निर्माता बखूबी परिचित थे। उन्होंने सोच-समझ कर, बल्कि सेक्यूलरिज्म पर विचार करके, इसे संविधान में कोई जगह नहीं दी। अतः 1976-78 ई. में कांग्रेस, कम्युनिस्ट और जनता पार्टी जिसमें जनसंघ (भाजपा का पूर्वरूप) शामिल था, सबने संविधान को भयंकर विकृत कर दिया। यहाँ वामपंथी-इस्लामी दबदबे का रास्ता साफ किया।*

*🚩नोट करें कि जब संविधान बना ही था, तब भी डॉ. अंबेदकर ने इसे गैर-सेक्यूलर, यानी धार्मिक भेद-भावकारी बताया था। इसीलिए आगे सभी के लिए ‘समान नागरिक संहिता’ बनाने की बात संविधान में लिखी गई थी।*

*लेकिन यह संविधान एक अधिक गंभीर तरह से हिन्दुओं के विरुद्ध पक्षपात ही नहीं करता, बल्कि इसने हिन्दुओं को विशेष खतरे में डालने का बाकायदा प्रबंध किया। संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता वाली धारा 25 में ‘प्रोपेगेशन ऑफ रिलीजन’, यानी अपना रिलीजन फैलाने का अधिकार भी दिया गया है, किन्तु ‘धर्म-रक्षा’ का अधिकार नहीं दिया! याद रहे, केवल क्रिश्चियनिटी और इस्लाम ही दूसरों को धर्मांतरित कराने का ‘धर्म-प्रचार’ करते हैं। संविधान सभा में भी ‘प्रोपेगेशन’ का क्रिश्चियन, इस्लामी अर्थ ही लिया गया था। जब इस नुक्ते पर बहस हो रही थी तो कहा गया कि इसे ‘क्रिश्चियन मित्रों’ का ध्यान रखते हुए स्वीकार कर लें, क्योंकि कई कांग्रेस नेता ‘प्रोपेगेशन’ वाला नुक्ता हटाना चाहते थे।*

*बाद में भी, इस पर स्वयं प्रधानमंत्री नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को पत्र (17 अक्तूबर 1952) लिख कर साफ किया, “वी परमिट, बाई अवर कंस्टीच्यूशन, नॉट ओनली फ्रीडम ऑफ कांशेंस एंड बिलीफ बट आलसो प्रोजेलाइटिज्म।” यानी, धर्मांतरण कराना, जो केवल क्रिश्चियन और मुस्लिम कराते हैं। भारत में यह मुख्यतः हिन्दुओं का धर्मांतरण है, यह भी सभी नेता जानते थे। किन हथकंडों और प्रपंचों से धर्मांतरण कराया जाता है, यह भी वे बखूबी जानते थे!*

*अतः संविधान में हिन्दुओं को धर्म-रक्षा का अधिकार नहीं देना हिन्दुओं पर दोहरी चोट है! क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा हिन्दू का धर्मांतरण कराना ‘मौलिक अधिकार’है, किन्तु ऐसे घोषित शिकारियों से हिन्दू अपनी धर्म-रक्षा कर सकें, इसका उन्हें कोई सामान्य अधिकार भी नहीं दिया गया। बेचारे अन्य कारण देकर या अवैध तरीकों से ही अपनी धर्म-रक्षा कर सकते हैं, जैसे- धोखा-धड़ी की गुहार लगाकर, रो-गाकर, या जिसे अवैध कहकर उन्हें दंडित किया जाएगा! झारखंड में ऐसे मुकदमे चल रहे हैं, जिसमें धोखे या जोर-जबरदस्ती धर्मांतरण कराने वाले मिशनरी, तबलीगी तो छुट्टा घूमते हैं, किन्तु उन‌का विरोध करने वाले हिन्दुओं को कोर्ट से जमानत भी नहीं मिलती! फिर भी, यहाँ हिन्दुओं को ही ‘सांप्रदायिक’, ‘असहिष्णु’, ‘बहुसंख्यकवादी’, आदि कह-कह कर लांछित किया जाता है।*
shorturl.at/knpqK

*🚩वस्तुतः 42वें संशोधन के बाद संविधान के अनुच्छेद 25-31 का पूरा अर्थ हिन्दू-विरोधी कर डाला गया। तब से देश में दो प्रकार के नागरिक हैं: (1) अल्पसंख्यक, (2) गैर-अल्पसंख्यक। एक को डबल अधिकार, दूसरे को केवल सिंगल जो पहले वाले को भी है। इस प्रकार, एक विशेषाधिकार-संपन्न अल्पसंख्यक, तथा बाकी हीन गैर-अल्पसंख्यक ही सही संज्ञा है। इस थोपी गई हीनता के कारण ही कई हिन्दू संप्रदाय अपने को हिन्दुओं से अलग, और इसलिए अल्पसंख्यक कहलाने का प्रयास करते रहे हैं। इसके लिए उन्हें ही लांछित करने वाले संघ-भाजपाई अपने गिहरबान में झाँक कर देखें कि संविधान में ‘सेक्यूलर’ जोड़कर और खुद को गर्व से ‘सच्चा सेक्यूलर’ कहकर वास्तव में उन्होंने क्या विध्वंस किया है! उन्होंने हिन्दुओं को संवैधानिक रूप से हीन नागरिक बना देने में सक्रिय सहयोग किया। और अब उनके महान अबोध नेता इसी संविधान की जबरन पूजा करवा कर हिन्दुओं के जले पर नमक छिड़क रहे हैं!*

🚩Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

🔺 facebook.com/ojaswihindustan

🔺 youtube.com/AzaadBharatOrg

🔺 twitter.com/AzaadBharatOrg

🔺.instagram.com/AzaadBharatOrg

🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

सभी भारतवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई

*आज गणतंत्र दिवस है, 
इसकी आप सभी को बधाई व शुभकामनाये, 
आइये हम भी अपने जीवन मे एक सविधान लागु करे कि हम हमें प्राप्त मनुष्य देहि का हेतुक हर हाल मे प्राप्त करें, हम हमेशा स्वस्थ, व्यस्त व मस्त रहेंगे ताकि परिवार, समाज व देश भी हमेशा आर्थिक, मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ व मजबूत रहे, 
हम हमारी सनातन संस्कृति, संस्कार व मूल्यों के प्रति समर्पित रहेंगे!
अखंड भारतवर्ष, हिन्द, हिंदी, हिन्दू व हिंदुस्तान का भगवा विश्व मे लहराये इसके प्रति प्रयासरत व समर्पित रहेंगे!* 
 *❤ कैलाश चंद्र लढा ❤* सांवरिया
जोधपुर
www.sanwariyaa.blogspot.com
www.sanwariya.org

सोमवार, 24 जनवरी 2022

सुभाष बाबू का अन्त कैसे, कब और कहाँ हुआ, यह रहस्य ही है।

23 जनवरी 1897 जन्म-तिथि

नेताजी #सुभाषचन्द्र_बोस एवं #पराक्रम_दिवस
स्वतन्त्रता आन्दोलन के दिनों में जिनकी एक पुकार पर हजारों महिलाओं ने अपने कीमती गहने अर्पित कर दिये, जिनके आह्नान पर हजारों युवक और युवतियाँ आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गये, उन नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म उड़ीसा की राजधानी कटक के एक मध्यमवर्गीय परिवार में 23 जनवरी, 1897 को हुआ था।

सुभाष के अंग्रेजभक्त पिता रायबहादुर जानकीनाथ चाहते थे कि वह अंग्रेजी आचार-विचार और शिक्षा को अपनाएँ। विदेश में जाकर पढ़ें तथा आई.सी.एस. बनकर अपने कुल का नाम रोशन करें; पर सुभाष की माता श्रीमती प्रभावती हिन्दुत्व और देश से प्रेम करने वाली महिला थीं। वे उन्हें 1857 के संग्राम तथा विवेकानन्द जैसे महापुरुषों की कहानियाँ सुनाती थीं। इससे सुभाष के मन में भी देश के लिए कुछ करने की भावना प्रबल हो उठी।

सुभाष ने कटक और कोलकाता से विभिन्न परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। फिर पिताजी के आग्रह पर वे आई.सी.एस की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गये। अपनी योग्यता और परिश्रम से उन्होंने लिखित परीक्षा में पूरे विश्वविद्यालय में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया; पर उनके मन में ब्रिटिश शासन की सेवा करने की इच्छा नहीं थी। वे अध्यापक या पत्रकार बनना चाहते थे। बंगाल के स्वतन्त्रता सेनानी देशबन्धु चितरंजन दास से उनका पत्र-व्यवहार होता रहता था। उनके आग्रह पर वे भारत आकर कांग्रेस में शामिल हो गये।

कांग्रेस में उन दिनों गांधी जी और नेहरू की तूती बोल रही थी। उनके निर्देश पर सुभाष बाबू ने अनेक आन्दोलनों में भाग लिया और 12 बार जेल-यात्रा की। 1938 में गुजरात के हरिपुरा में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गये; पर फिर उनके गांधी जी से कुछ मतभेद हो गये। गांधी जी चाहते थे कि प्रेम और अहिंसा से आजादी का आन्दोलन चलाया जाये; पर सुभाष बाबू उग्र साधनों को अपनाना चाहते थे। कांग्रेस के अधिकांश लोग सुभाष बाबू का समर्थन करते थे। युवक वर्ग तो उनका दीवाना ही था।

सुभाष बाबू ने अगले साल मध्य प्रदेश के त्रिपुरी में हुए अधिवेशन में फिर से अध्यक्ष बनना चाहा; पर गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया को खड़ा कर दिया। सुभाष बाबू भारी बहुमत से चुनाव जीत गये। इससे गांधी जी के दिल को बहुत चोट लगी। आगे चलकर सुभाष बाबू ने जो भी कार्यक्रम हाथ में लेना चाहा, गांधी जी और नेहरू के गुट ने उसमें सहयोग नहीं दिया। इससे खिन्न होकर सुभाष बाबू ने अध्यक्ष पद के साथ ही कांग्रेस भी छोड़ दी। 

अब उन्होंने ‘फारवर्ड ब्लाक’ की स्थापना की। कुछ ही समय में कांग्रेस की चमक इसके आगे फीकी पड़ गयी। इस पर अंग्रेज शासन ने सुभाष बाबू को पहले जेल में और फिर घर में नजरबन्द कर दिया; पर सुभाष बाबू वहाँ से निकल भागे। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। सुभाष बाबू ने अंग्रेजों के विरोधी देशों के सहयोग से भारत की स्वतन्त्रता का प्रयास किया। उन्होंने आजाद हिन्द फौज के सेनापति पद से जय हिन्द, चलो दिल्ली तथा तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा का नारा दिया; पर दुर्भाग्य से उनका यह प्रयास सफल नहीं हो पाया।

सुभाष बाबू का अन्त कैसे, कब और कहाँ हुआ, यह रहस्य ही है। कहा जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को जापान में हुई एक विमान दुर्घटना में उनका देहान्त हो गया। यद्यपि अधिकांश तथ्य इसे झूठ सिद्ध करते हैं; पर उनकी मृत्यु के रहस्य से पूरा पर्दा उठना अभी बाकी है।

वामपंथियों ने सुभाषचंद्र बोस को भी नहीं छोड़ा, किया 'गाली-गलौच' वाली भाषा का इस्तेमाल

वामपंथियों ने सुभाषचंद्र बोस को भी नहीं छोड़ा, किया 'गाली-गलौच' वाली भाषा का इस्तेमाल

*23 जनवरी 2022*
azaadbharat.org
*🚩लगभग आरंभ से ही कम्युनिस्टों को अपनी वैज्ञानिक विचारधारा और प्रगतिशील दृष्टि का घोर अहंकार रहा है लेकिन अनोखी बात यह है कि इतिहास व भविष्य ही नहीं, ठीक वर्तमान यानी आंखों के सामने की घटना-परिघटना पर भी उनके मूल्यांकन, टीका-टिप्पणी, नीति, प्रस्ताव आदि प्राय: मूढ़ता की पराकाष्ठा साबित होते रहे हैं। यह न तो एक बार की घटना है, न एक देश की। सारी दुनिया में कम्युनिस्टों का यही रिकॉर्ड है। इसके निहितार्थ समझने से पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कम्युनिस्ट मूल्यांकन को उदाहरण के लिए देखें।*

*🚩1940 में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तिका 'बेनकाब दल व राजनीति' में नेताजी को 'अंधा मसीहा' कहा गया। फिर उनके कामों को कहा गया- 'सिद्धांतहीन अवसरवाद", जिसकी मिसाल मिलनी कठिन है। यह सब तो नरम मूल्यांकन था। धीरे-धीरे नेताजी के प्रति कम्युनिस्ट शब्दावली हिंसक और गाली-गलौज से भरती गई। जैसे, 'काला गिरोह', 'गद्दार बोस', 'दुश्मन के जरखरीद एजेंट', 'तोजो (जापानी तानाशाह) और हिटलर के अगुआ दस्ते', 'राजनीतिक कीड़े', 'सड़ा हुआ अंग जिसे काटकर फेंकना है', आदि। ये सब विशेषण सुभाष बोस और उनकी सेना आई. एन. ए (इंडियन नेशनल आर्मी) के लिए थे। तब कम्युनिस्ट मुखपत्रों, पत्रिकाओं में नेताजी के कई कार्टून छपे थे, जिससे कम्युनिस्टों की घोर अंधविश्वासी मानसिकता की झलक मिलती है (उनपर सधी नजर रखने वाले इतिहासकार स्व. सीताराम गोयल के सौजन्य से वे कार्टून उपलब्ध हैं)। अधिकांश कार्टूनों में सुभाष बाबू को 'जापानी, जर्मन फासिस्टों के कुत्ते या बिल्ली' जैसा दिखाया गया है, जिससे उसका मालिक जैसे चाहे खेलता है।*
*एक कार्टून में बोस को तोजो का मुखौटा, तो अन्य में भारतवासियों पर जापानी बम गिराने वाला दिखाया गया है। एक में बोस को 'गांधीजी की बकरी छीनने वाला' दिखाया गया। एक कार्टून में तोजो एक गधे के गले में रस्सी डाले सवारी कर रहा है, उस गधे का मुंह बोस जैसा बना था तो दूसरे में बोस को 'तोजो का पालतू क्षुद्र बौना' दिखाया।*

*🚩कम्युनिस्ट अखबार पीपुल्स डेली (10 जनवरी 1943) में तब कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वोच्च नेता रणदिवे ने अपने लेख में बोस को 'जापानी साम्राज्यवाद का गुंडा' तथा उनकी सेना को 'भारतीय भूमि पर लूट, डाका, विध्वंस मचाने वाला भड़ैत' बताया। लेकिन रोचक बात यह है कि यह सब कहने के बाद, समय बदलते ही, जब आई. एन. ए. की लोकप्रियता देशभर में बढ़ने लगी, तो कम्युनिस्टों ने उसके बंदी सिपाहियों के पक्ष में लफ्फाजी शुरू कर दी!*

*🚩उपर्युक्त इतिहास के संदर्भ में स्मरण रखने की पहली बात है कि यह सब न अपवाद था, न अनायास। दूसरी बात, जो बुद्धि अपने सामने हो रही घटना, व्यक्तित्व का ऐसा मूढ़ मूल्याकंन करती रही, वह दूसरे लोगों, घटनाओं, सत्ताओं का मूल्यांकन भी वैसे ही करती है यानी जड़-विश्वासयुक्त, घोर मतिहीन। सभी मूल्यांकनों का स्रोत एक बनी-बनाई विचारधारा में अंधविश्वास ही था और है, जो तथ्यों को यथावत देखने की बजाए एक और खास एक ही तरह से देखने को मजबूर करता था। यह बंदी मानसिकता देश और समाज के लिए कितनी घातक रही है, हमें इसे ठीक से समझना चाहिए। तीसरी बात यह है कि नेताजी सुभाष, जय प्रकाश नारायण, गांधीजी आदि के अपमानजनक और जड़मति मूल्यांकनों की क्षमा मांग लेने के बाद भी इस देश में कम्युनिस्ट वही काम बार-बार करते रहे हैं। उनकी देश-समाज-विरोधी प्रवृत्ति नहीं बदली है।* 

*🚩आज भी अयोध्या, कश्मीर, गोधरा, इस्लामी आतंकवाद आदि गंभीर मुद्दों तथा अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी या नरेन्द्र मोदी जैसे शीर्ष नेताओं के मूल्यांकन और तद्नुरूप कम्युनिस्ट अभियान चलाने में ठीक उसी मूढ़ता और देशघाती जिद की अक्षुण्ण परंपरा है। यह काम कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ-साथ तमाम मार्क्सवादी प्रोफेसर, लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवी भी करते रहे हैं। चूंकि ये लोग कम्युनिस्ट पार्टी से सीधे जुड़े हुए नहीं हैं तथा बड़े-बड़े अकादमिक या मीडिया पदों पर रहे हैं, इससे इनका वास्तविक चरित्र पहचानने में गलती नहीं करनी चाहिए।*

*🚩इस प्रकार, नेताजी व आई. एन. ए. को 'तोजो का कुत्ता' और राष्ट्रीय स्वयंयेवक संघ को 'तालिबान, अलकायदा सा आतंकवादी' बताने में एक सी भयंकर मूढ़ता और हानिकारक क्षमता है, यह हमें देखना, समझना चाहिए। कभी भगवाकरण, तो कभी असहिष्णुता के बहाने चल रहे अभियान उसी घातक अंधविश्वास व हिन्दू-विरोध से परिचालित हैं। इससे देश-समाज बंटता है, जो कम्युनिस्ट 1947 में एक बार सफलतापूर्वक करवा चुके हैं। आज भी प्रगतिशील, सेक्युलर, लिबरल आदि विशेषणों की आड़ में वही भारत-विरोधी और हिन्दू-द्वेषी राजनीति थोपी जाती है क्योंकि घटनाओं, स्थितियों, व्यक्तियों, समुदायों की माप-तौल के पैमाने, बाट, इंच-टेप वही हैं।*

*🚩लंबे नेहरूवादी-कम्युनिस्ट गठजोड़ के कारण वही पैमाने हमारे बुद्धिजीवियों की मानसिकता में अनायास जमा दिए गए हैं। इससे जो हानि होती है, उससे युवाओं को पूरी तरह अवगत होना चाहिए। नेताजी के कम्युनिस्ट मूल्यांकन का यही जरूरी सबक है।*
*लेखक : डॉ. शंकर शरण*

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

🔺 facebook.com/ojaswihindustan

🔺 youtube.com/AzaadBharatOrg

🔺 twitter.com/AzaadBharatOrg

🔺.instagram.com/AzaadBharatOrg

🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ
Attachments area

शनिवार, 22 जनवरी 2022

कॉन्वेंट स्कूलों का काला सच जानें, अपने बच्चों को मरने से बचाएं

*🚩 कॉन्वेंट स्कूलों का काला सच जानें, अपने बच्चों को मरने से बचाएं*
*21 जनवरी 2022*
azaadbharat.org

*🚩भारत में जितने भी मिशनरी स्कूल मैकाले की शिक्षा पद्धति से चल रहे हैं, उन स्कूलों में बच्चे न तो तिलक और न ही मेंहदी लगा सकते हैं, हिन्दू त्यौहार नहीं मना सकते और यहां तक कि हिंदी भी नहीं बोल सकते- मतलब कि बच्चो को कोई स्वतंत्रता नहीं है। ऊपर से धर्मपरिवर्तन करने का दबाव बनाया जाता है।*

*🚩तमिलनाडु के तंजावुर में सेक्रेड हार्ट हायर सेकेंडरी स्कूल, तिरुकट्टुपाली में कक्षा 12वीं में पढ़ने वाली एम लावण्या नाम की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली। दरअसल लावण्या पर स्कूल के अधिकारियों ने ईसाई धर्म में परिवर्तित होने का दवाब डाला। लावण्या ने इससे इनकार कर दिया, जिसके बाद स्कूल के अधिकारियों ने उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। इस प्रताड़ना से तंग आकर छात्रा ने खुदकुशी कर ली। बताया जा रहा है कि अधिकारियों की तरफ से उसे कहा गया कि अगर वह स्कूल में अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है तो उसे ईसाई धर्म अपनाना होगा।*

*🚩लावण्या पिछले पाँच वर्षों से सेंट माइकल गर्ल्स हॉस्टल में रह रही थी। यह हॉस्टल उसके स्कूल के पास ही है। सरकारी सहायता प्राप्त ईसाई मिशनरी स्कूल उसपर ईसाई धर्म अपनाने का दबाव बना रहा था। हालाँकि लावण्या अपना धर्म नहीं छोड़ने पर अड़ी थी और उसने धर्म परिवर्तन करने से इनकार कर दिया।*

*लावण्या के विरोध से नाराज स्कूल प्रशासन ने पोंगल समारोह के लिए उसकी छुट्टी का आवेदन रद्द कर दिया। लावण्या छुट्टियों में अपने घर जाना चाहती थी, लेकिन उसे स्कूल के शौचालयों की सफाई, खाना पकाने और बर्तन धोने जैसे काम करने के लिए मजबूर किया गया। कथित तौर पर प्रताड़ना से परेशान लावण्या ने अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए स्कूल के बगीचे में इस्तेमाल किए गए कीटनाशकों का सेवन कर लिया।*

*9 जनवरी की रात को लावण्या को बेचैनी और लगातार उल्टी होने के बाद स्थानीय क्लिनिक ले जाया गया। हॉस्टल के वार्डन ने उसके माता-पिता को बुलाया और उसे घर ले जाने के लिए कहा। इसके बाद लावण्या को तंजौर के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसका इलाज आईसीयू में चल रहा था, उसके लगभग 85 फीसदी फेफड़े में जहर पहुँच चुका था और लावण्या ने 19 जनवरी, 2022 को अस्पताल में अंतिम साँस ली।*

*🚩सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें लावण्या बेहोशी की हालत में अपने साथ हुए टॉर्चर के बारे में बताती है। मूल रूप से यह वीडियो तमिल में है, जिसका अनुवाद 'द कम्यून' ने किया है। इसके मुताबिक वीडियो में कहा गया है, “मेरा नाम लावण्या है। उन्होंने (स्कूल प्रशासन ने) मेरे माता-पिता से मेरी उपस्थिति में पूछा था कि क्या वे मुझे ईसाई धर्म में परिवर्तित कर सकते हैं और आगे की पढ़ाई के लिए मदद कर सकते हैं। चूँकि मैंने नहीं माना, वे मुझे डाँटते रहे।” लावण्या ने इस दौरान राचेल मैरी का भी नाम लिया जिसने कथित तौर पर उसे प्रताड़ित किया था।*

*🚩लावण्या के परिजन 17 जनवरी को तिरुकट्टुपल्ली पुलिस थाने के सामने जमा हो गए और स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की माँग को लेकर प्रदर्शन किया। उन्होंने आरोप लगाया कि हॉस्टल वार्डन सगयामरी ने उसे धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया था इसलिए लावण्या ने कीटनाशकों का सेवन किया था।*

*🚩घटना का संज्ञान लेते हुए, विश्व हिंदू परिषद, हिंदू मुन्नानी और राजनीतिक संगठन इंदु मक्कल काची जैसे हिंदू संगठनों ने लावण्या को न्याय दिलाने और हिंदुओं के धर्मांतरण के खिलाफ आवाज उठाई है। विहिप के प्रदेश प्रवक्ता अरुमुगा कानी ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद तब तक चैन से नहीं बैठेगी जब तक लावण्या को न्याय नहीं मिल जाता। पहले कदम के तौर पर विहिप ने 19 जनवरी को तंजावुर जिला सचिव मुथुवेल के नेतृत्व में भूख हड़ताल किया। उन्होंने कहा, “हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ऐसी घटनाएँ दोबारा न हों। तब तक हम विरोध करेंगे।”*

*🚩इंदु मक्कल काची के संस्थापक अर्जुन संपत ने ट्विटर पर लावण्या के निधन की सूचना दी की और स्कूल प्रशासन पर गंभीर सवाल उठाए।*

*🚩गौरतलब है कि इसी तरह की घटना 2019 में त्रिपुरा में हुई थी जब ईसाई धर्म में जबरन धर्मांतरण का विरोध करने के लिए एक हॉस्टल वार्डन द्वारा बेरहमी से प्रताड़ित किए जाने के बाद एक 15 वर्षीय छात्र की मौत हो गई थी। इसके अलावा तमिलनाडु में, मुस्लिम संगठनों द्वारा हिंदुओं के जबरन धर्मांतरण को रोकने के प्रयास में एक कार्यकर्ता की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।*

*🚩भारत में आजकल बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने का प्रचलन बहुत चल रहा है; सभी का कहना है कि बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में भेजो, लेकिन वास्तव में उनके माता-पिता कॉन्वेंट स्कूल का सच नहीं जानते है इसलिए अपने बच्चों को भेजते हैं। कान्वेंट स्कूलों के मामले में एक बात तो साफ तौर पर कही जा सकती है कि "दूर के ढोल सुहावने"।*

*सभी हिन्दू अभिभावकों से नम्र निवेदन है कि कॉन्वेंट स्कूल में छात्रों पर पड़ने वाले गलत संस्कारों तथा उनके साथ हो रही प्रताड़ना को देखते हुए अपने बच्चों को वहां नहीं भेजना चाहिए। इसके वनिस्पत वैदिक गुरुकुलों में अपने बच्चों को भेजना चाहिए।*

🚩Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

🔺 facebook.com/ojaswihindustan

🔺 youtube.com/AzaadBharatOrg

🔺 twitter.com/AzaadBharatOrg

🔺.instagram.com/AzaadBharatOrg

🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

तैमूरलंग_का_सामना


#तैमूरलंग_का_सामना 

हिन्दू समाज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे जातिवाद से ऊपर उठ कर सोच ही नहीं सकते। यही पिछले 1200 वर्षों से हो रही उनकी हार का मुख्य कारण है। इतिहास में कुछ प्रेरणादायक घटनाएं मिलती है। जब जातिवाद से ऊपर उठकर #हिन्दू_समाज ने एकजुट होकर अक्रान्तायों का न केवल सामना किया अपितु अपने प्राणों की बाजी लगाकर उन्हें यमलोक भेज दिया। तैमूर लंग के नाम से सभी भारतीय परिचित है। तैमूर के अत्याचारों से हमारे देश की भूमि रक्तरंजित हो गई। उसके अत्याचारों की कोई सीमा नहीं थी।
#तैमूरलंग ने मार्च सन् 1398 ई० में भारत पर 92000 घुड़सवारों की सेना से तूफानी आक्रमण कर दिया। तैमूर के सार्वजनिक कत्लेआम, लूट खसोट और सर्वनाशी अत्याचारों की सूचना मिलने पर संवत् 1455 (सन् 1398 ई०) कार्तिक बदी 5 को देवपाल राजा (जिसका जन्म निरपड़ा गांव जि० मेरठ में एक जाट घराने में हुआ था) की अध्यक्षता में हरयाणा सर्वखाप पंचायत का अधिवेशन जि० मेरठ के गाँव टीकरी, निरपड़ा, दोगट और दाहा के मध्य जंगलों में हुआ।
सर्वसम्मति से निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किये गये - (1) सब गांवों को खाली कर दो। (2) बूढे पुरुष-स्त्रियों तथा बालकों को सुरक्षित स्थान पर रखो। (3) प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति सर्वखाप पंचायत की सेना में भर्ती हो जाये। (4) युवतियाँ भी पुरुषों की भांति शस्त्र उठायें। (5) दिल्ली से हरद्वार की ओर बढ़ती हुई तैमूर की सेना का छापामार युद्ध शैली से मुकाबला किया जाये तथा उनके पानी में विष मिला दो। (6) 500 घुड़सवार युवक तैमूर की सेना की गतिविधियों को देखें और पता लगाकर पंचायती सेना को सूचना देते रहें।
पंचायती सेना - पंचायती झण्डे के नीचे 80,000 मल्ल योद्धा सैनिक और 40,000 युवा महिलायें शस्त्र लेकर एकत्र हो गये। इन वीरांगनाओं ने युद्ध के अतिरिक्त खाद्य सामग्री का प्रबन्ध भी सम्भाला। दिल्ली के सौ-सौ कोस चारों ओर के क्षेत्र के वीर योद्धा देश रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने रणभूमि में आ गये। सारे क्षेत्र में युवा तथा युवतियां सशस्त्र हो गये। इस सेना को एकत्र करने में धर्मपालदेव जाट योद्धा जिसकी आयु 95 वर्ष की थी, ने बड़ा सहयोग दिया था। उसने घोड़े पर चढ़कर दिन रात दूर-दूर तक जाकर नर-नारियों को उत्साहित करके इस सेना को एकत्र किया। उसने तथा उसके भाई करणपाल ने इस सेना के लिए अन्न, धन तथा वस्त्र आदि का प्रबन्ध किया।
प्रधान सेनापति, उप-प्रधान सेनापति तथा सेनापतियों की नियुक्ति
सर्वखाप पंचायत के इस अधिवेशन में सर्वसम्मति से वीर योद्धा जोगराजसिंह गुर्जर को प्रधान सेनापति बनाया गया। यह खूबड़ परमार वंश का योद्धा था जो हरद्वार के पास एक गाँव कुंजा सुन्हटी का निवासी था। बाद में यह गाँव मुगलों ने उजाड़ दिया था। वीर जोगराजसिंह के वंशज उस गांव से भागकर लंढोरा (जिला सहारनपुर) में आकर आबाद हो गये जिन्होंने लंढोरा गुर्जर राज्य की स्थापना की। जोगराजसिंह बालब्रह्मचारी एवं विख्यात पहलवान था। उसका कद 7 फुट 9 इंच और वजन 8 मन था। उसकी दैनिक खुराक चार सेर अन्न, 5 सेर सब्जी-फल, एक सेर गऊ का घी और 20 सेर गऊ का दूध।
महिलाएं वीरांगनाओं की सेनापति चुनी गईं उनके नाम इस प्रकार हैं - (1) रामप्यारी गुर्जर युवति (2) हरदेई जाट युवति (3) देवीकौर राजपूत युवति (4) चन्द्रो ब्राह्मण युवति (5) रामदेई त्यागी युवति। इन सब ने देशरक्षा के लिए शत्रु से लड़कर प्राण देने की प्रतिज्ञा की।
उपप्रधान सेनापति - (1) धूला भंगी (बालमीकी) (2) हरबीर गुलिया जाट चुने गये। धूला भंगी जि० हिसार के हांसी गांव (हिसार के निकट) का निवासी था। यह महाबलवान्, निर्भय योद्धा, गोरीला (छापामार) युद्ध का महान् विजयी धाड़ी (बड़ा महान् डाकू) था जिसका वजन 53 धड़ी था। उपप्रधान सेनापति चुना जाने पर इसने भाषण दिया कि - “मैंने अपनी सारी आयु में अनेक धाड़े मारे हैं। आपके सम्मान देने से मेरा खूब उबल उठा है। मैं वीरों के सम्मुख प्रण करता हूं कि देश की रक्षा के लिए अपना खून बहा दूंगा तथा सर्वखाप के पवित्र झण्डे को नीचे नहीं होने दूंगा। मैंने अनेक युद्धों में भाग लिया है तथा इस युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दूंगा।” यह कहकर उसने अपनी जांघ से खून निकालकर प्रधान सेनापति के चरणों में उसने खून के छींटे दिये। उसने म्यान से बाहर अपनी तलवार निकालकर कहा “यह शत्रु का खून पीयेगी और म्यान में नहीं जायेगी।” इस वीर योद्धा धूला के भाषण से पंचायती सेना दल में जोश एवं साहस की लहर दौड़ गई और सबने जोर-जोर से मातृभूमि के नारे लगाये।
दूसरा उपप्रधान सेनापति हरबीरसिंह जाट था जिसका गोत्र गुलिया था। यह हरयाणा के जि० रोहतक गांव बादली का रहने वाला था। इसकी आयु 22 वर्ष की थी और इसका वजन 56 धड़ी (7 मन) था। यह निडर एवं शक्तिशाली वीर योद्धा था।
सेनापतियों का निर्वाचन - उनके नाम इस प्रकार हैं - (1) गजेसिंह जाट गठवाला (2) तुहीराम राजपूत (3) मेदा रवा (4) सरजू ब्राह्मण (5) उमरा तगा (त्यागी) (6) दुर्जनपाल अहीर।
जो उपसेनापति चुने गये - (1) कुन्दन जाट (2) धारी गडरिया जो धाड़ी था (3) भौन्दू सैनी (4) हुल्ला नाई (5) भाना जुलाहा (हरिजन) (6) अमनसिंह पुंडीर राजपुत्र (7) नत्थू पार्डर राजपुत्र (😎 दुल्ला (धाड़ी) जाट जो हिसार, दादरी से मुलतान तक धाड़े मारता था। (9) मामचन्द गुर्जर (10) फलवा कहार।
सहायक सेनापति - भिन्न-भिन्न जातियों के 20 सहायक सेनापति चुने गये।
वीर कवि - प्रचण्ड विद्वान् चन्द्रदत्त भट्ट (भाट) को वीर कवि नियुक्त किया गया जिसने तैमूर के साथ युद्धों की घटनाओं का आंखों देखा इतिहास लिखा था।
प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर के ओजस्वी भाषण के कुछ अंश -
“वीरो! भगवान् कृष्ण ने गीता में अर्जुन को जो उपदेश दिया था उस पर अमल करो। हमारे लिए स्वर्ग (मोक्ष) का द्वार खुला है। ऋषि मुनि योग साधना से जो मोक्ष पद प्राप्त करते हैं, उसी पद को वीर योद्धा रणभूमि में बलिदान देकर प्राप्त कर लेता है। भारत माता की रक्षा हेतु तैयार हो जाओ। देश को बचाओ अथवा बलिदान हो जाओ, संसार तुम्हारा यशोगान करेगा। आपने मुझे नेता चुना है, प्राण रहते-रहते पग पीछे नहीं हटाऊंगा। पंचायत को प्रणाम करता हूँ तथा प्रतिज्ञा करता हूँ कि अन्तिम श्वास तक भारत भूमि की रक्षा करूंगा। हमारा देश तैमूर के आक्रमणों तथा अत्याचारों से तिलमिला उठा है। वीरो! उठो, अब देर मत करो। शत्रु सेना से युद्ध करके देश से बाहर निकाल दो।”
यह भाषण सुनकर वीरता की लहर दौड़ गई। 80,000 वीरों तथा 40,000 वीरांगनाओं ने अपनी तलवारों को चूमकर प्रण किया कि हे सेनापति! हम प्राण रहते-रहते आपकी आज्ञाओं का पालन करके देश रक्षा हेतु बलिदान हो जायेंगे।
मेरठ युद्ध - तैमूर ने अपनी बड़ी संख्यक एवं शक्तिशाली सेना, जिसके पास आधुनिक शस्त्र थे, के साथ दिल्ली से मेरठ की ओर कूच किया। इस क्षेत्र में तैमूरी सेना को पंचायती सेना ने दम नहीं लेने दिया। दिन भर युद्ध होते रहते थे। रात्रि को जहां तैमूरी सेना ठहरती थी वहीं पर पंचायती सेना धावा बोलकर उनको उखाड़ देती थी। वीर देवियां अपने सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री बड़े उत्साह से स्थान-स्थान पर पहुंचाती थीं। शत्रु की रसद को ये वीरांगनाएं छापा मारकर लूटतीं थीं। आपसी मिलाप रखवाने तथा सूचना पहुंचाने के लिए 500 घुड़सवार अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे। रसद न पहुंचने से तैमूरी सेना भूखी मरने लगी। उसके मार्ग में जो गांव आता उसी को नष्ट करती जाती थी। तंग आकर तैमूर हरद्वार की ओर बढ़ा।
हरद्वार युद्ध - मेरठ से आगे मुजफ्फरनगर तथा सहारनपुर तक पंचायती सेनाओं ने तैमूरी सेना से भयंकर युद्ध किए तथा इस क्षेत्र में तैमूरी सेना के पांव न जमने दिये। प्रधान एवं उपप्रधान और प्रत्येक सेनापति अपनी सेना का सुचारू रूप से संचालन करते रहे। हरद्वार से 5 कोस दक्षिण में तुगलुकपुर-पथरीगढ़ में तैमूरी सेना पहुंच गई। इस क्षेत्र में पंचायती सेना ने तैमूरी सेना के साथ तीन घमासान युद्ध किए।
उप-प्रधानसेनापति हरबीरसिंह गुलिया ने अपने पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों* तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ। इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था। हरबीरसिंह गुलिया ने आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार खिज़र ने उसे सम्भालकर घोड़े से अलग कर लिया। (तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकन्द में पहुंचकर मर गया)। वीर योद्धा हरबीरसिंह गुलिया पर शत्रु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम टूट पड़ीं जिनकी मार से यह योद्धा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा।
(1) उसी समय प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर ने अपने 22000 मल्ल योद्धाओं के साथ शत्रु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को काट डाला। जोगराजसिंह ने स्वयं अपने हाथों से अचेत हरबीरसिंह को उठाकर यथास्थान पहुंचाया। परन्तु कुछ घण्टे बाद यह वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गया। जोगराजसिंह को इस योद्धा की वीरगति से बड़ा धक्का लगा।
(2) हरद्वार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्षादल पर भंगी कुल के उपप्रधान सेनापति धूला धाड़ी वीर योद्धा ने अपने 190 सैनिकों के साथ धावा बोल दिया। शत्रु के काफी सैनिकों को मारकर ये सभी 190 सैनिक एवं धूला धाड़ी अपने देश की रक्षा हेतु वीरगती को प्राप्त हो गये।
(3) तीसरे युद्ध में प्रधान सेनापति जोगराजसिंह ने अपने वीर योद्धाओं के साथ तैमूरी सेना पर भयंकर धावा करके उसे अम्बाला की ओर भागने पर मजबूर कर दिया। इस युद्ध में वीर योद्धा जोगराजसिंह को 45 घाव आये परन्तु वह वीर होश में रहा। पंचायती सेना के वीर सैनिकों ने तैमूर एवं उसके सैनिकों को हरद्वार के पवित्र गंगा घाट (हर की पौड़ी) तक नहीं जाने दिया। तैमूर हरद्वार से पहाड़ी क्षेत्र के रास्ते अम्बाला की ओर भागा। उस भागती हुई तैमूरी सेना का पंचायती वीर सैनिकों ने अम्बाला तक पीछा करके उसे अपने देश हरयाणा से बाहर खदेड़ दिया।
वीर सेनापति दुर्जनपाल अहीर मेरठ युद्ध में अपने 200 वीर सैनिकों के साथ दिल्ली दरवाज़े के निकट स्वर्ग लोक को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में बीच-बीच में घायल होने एवं मरने वाले सेनापति बदलते रहे थे। कच्छवाहे गोत्र के एक वीर राजपूत ने उपप्रधान सेनापति का पद सम्भाला था। तंवर गोत्र के एक जाट योद्धा ने प्रधान सेनापति के पद को सम्भाला था। एक रवा तथा सैनी वीर ने सेनापति पद सम्भाले थे। इस युद्ध में केवल 5 सेनापति बचे थे तथा अन्य सब देशरक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में तैमूर के ढ़ाई लाख सैनिकों में से हमारे वीर योद्धाओं ने 1,60,000 को मौत के घाट उतार दिया था और तैमूर की आशाओं पर पानी फेर दिया।
हमारी पंचायती सेना के वीर एवं वीरांगनाएं 35,000, देश के लिये वीरगति को प्राप्त हुए थे।
प्रधान सेनापति की वीरगति - वीर योद्धा प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर युद्ध के पश्चात् ऋषिकेश के जंगल में स्वर्गवासी हुये थे।
(सन्दर्भ-जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-३७९-३८३ )
ध्यान दीजिये। एक सवर्ण सेना का उपसेनापति वाल्मीकि था। अहीर, गुर्जर से लेकर 36 बिरादरी उसके महत्वपूर्ण अंग थे। तैमूर को हराने वाली सेना को हराने वाली कौन थे? क्या वो जाट थे? क्या वो राजपूत थे? क्या वो अहीर थे? क्या वो गुर्जर थे? क्या वो बनिए थे? क्या वो भंगी या वाल्मीकि थे? क्या वो जातिवादी थे?
नहीं वो सबसे पहले देशभक्त थे। धर्मरक्षक थे। श्री राम और श्री कृष्ण की संतान थे? गौ, वेद , जनेऊ और यज्ञ के रक्षक थे।
आज भी हमारा देश उसी संकट में आ खड़ा हुआ है। आज भी विधर्मी हमारी जड़ों को काट रहे है। आज भी हमें फिर से जातिवाद से ऊपर उठ कर एकजुट होकर अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपनी मातृभूमि की रक्षा का व्रत लेना हैं। यह तभी सम्भव है जब हम अपनी संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर सोचना आरम्भ करेंगे। आप में से कौन कौन मेरे साथ है?

श्रेय - अम्बरीष गुप्ता
दिनांक - २१.०१.२०२२
---#राज_सिंह---

#अंगदान_धर्म_की_नजर_से इस्लाम मे अंगदान और रक्तदान हराम हो गया ।

-------- #अंगदान_धर्म_की_नजर_से ----
देवबंद की वेबसाइट पर हलाल और हराम संबंधी फतवों की श्रेणी के सवाल क्रमांक 27466 में पूछा गया है कि रक्तदान शिविरों में रक्तदान करना इस्लाम के हिसाब से सही है या गलत ?
 इसके उत्तर में देवबंद ने कहा है कि अपने शरीर के अंगों के हम मालिक नहीं हैं जो अंगों का मनमाना उपयोग कर सकें इसलिए रक्तदान या अंगदान करना अवैध है  इस तरह इस्लाम मे अंगदान और रक्तदान हराम हो गया ।

AIIMS की 1 रिपोर्ट के अनुसार पिछले 3 सालों में दिल्ली में 39 मुस्लिमो को अंगदान किए गए
लेकिन अंग देने वाले 231 डोनर में एक भी मुस्लिम नहीं। बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ भारत मे ही नही पूरे विश्व मे इस्लामिक डोनर मिलना बहुत कठिन हैं।
आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल लगभग 95 लाख लोगों की मौत होती है और इनमें से लगभग एक लाख लोग ऐसे होते हैं जो अंगदान के लिए सक्षम होते हैं। इसके बावजूद भारत में रोजाना 300 लोग अलग-अलग अंगों के खराब होने की वजह से दम तोड़ देते हैं। इसका मतलब है एक साल में एक लाख से ज्यादा मौतें। डॉक्टरों के मुताबिक मौत के बाद अंगदान करके एक व्यक्ति 50 जिंदगियां तक बचा सकता है। 
विज्ञान की नजर में अंगदान सबसे बड़ा कर्म है जबकि इस्लाम , ईसाई समुदाय में इसे हराम माना गया है जबकि अभी हाल में मेरा कोई मित्र इन धर्मो में परोपकार शांति और सहयोग का धर्म है का ज्ञान दे रहा था । मेरे मित्रो ने काफी दिनों से लिखने को कहा कि सनातन धर्म क्या कहता है अंगदान के विषय मे तो आइए देखते है सनातन धर्म क्या मत रखता है अंगदान के विषय मे ---
1 -- #श्रीमद्भागवत_गीता_के_अनुसार --
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देही॥
अर्थात --
 जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है। इसका मतलब यह है कि शरीर का आत्मा से कोई मतलब नही है वो नए शरीर को जब धारण करती है तो न तो उसे उसके पुराने शरीर से मतलब होता है ना उसका प्रभाव । अर्थात अंग दान करने से नए शरीर पर (अगले जन्म ) पुराने शरीर का कोई प्रभाव नही पड़ेगा ।।

2-- #वैदिक शास्त्रों में एक कथानुसार  महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने अस्थियों का दान दिया। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने इनकी हड्डियों से इंद्र के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया और दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र शस्त्र बनाए। यानी कि परोपकार के लिए अंगदान को गलत नही अपितु श्रेष्ठ कर्म बताया गया है ।।

3 -- #कर्ण ने अपनी त्वचा का , शिवि ने अपने मांस का, जीमूतवाहन ने अपने जीवन का तथा दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान कर दिया था।ययाति पुत्र पुरु की दानशीलता जगविख्यात है ही। यानी शास्‍त्रों और पुराणों में कई ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जो बताते हैं क‌ि अंग दान महादान है। अंग दान से दोष नहीं महापुण्य म‌िलता और परलोक में उत्तम स्‍थान और अगले जन्म में उत्तम कुल प्राप्त होता है।
ये तो बात हुई पौराणिक अब कुछ प्राचीन वैदिक भारत के उदाहरण देखते है जो निश्चित ही धर्म के विषय मे आज के धर्माचार्यो से अधिक ज्ञानी थे तो क्या उस काल मे अंगप्रत्यारोपण होते थे आइये देखते है --

#ऋग्वेद_के_अनुसार --
रोगों के समवायिकारण (दोष) तथा निमित्त कारण (क्रिमि) औरी दोष प्रयत्नपूर्वक चिकित्सा का स्पष्ट संकेत है और अंग प्रत्यारोपण का भी -
साकं यक्ष्म प्रपत चाषेण किकिदीविना ।।
साकं वातस्य साकं नश्य निहाकया॥ -(ऋ० १०- १७)
इसके अतिरिक्त अथर्ववेद में कई जगह इसका उल्लेख मिलता है ।।

#वेदों में रुद्र, अग्नि, वरुण, इन्द्र, मरुत् आदि दैव भीषण कहे गये हैं, किन्तु इनमें सर्वाधिक प्रसिद्धि अश्विनी कुमारों की है जो ''देवानां भिषजौ'' के रूप में स्वीकृत हैं ।।
ऋग्वेद में इनके जो चमत्कार वर्णित हैं उनसे अनुमान किया जा सकता है कि उस काल में अंगप्रत्यारोपण की स्थिति उन्नत थी ।।अश्विनीकुमार आरोग्य, दीर्घायु शक्ति प्रजा वनस्पति तथा समृद्धि शक्ति के प्रदाता कहे गये हैं उनके चिकित्सा चमत्कारों का वर्णन ऋग्वेद में विस्तार से किया गया है ।।
अश्विनौ द्वारा अंग प्रत्यारोपण का सपष्ट उल्लेख मिलना यह सिद्ध करता है कि अंग दान कही से भी गलत नही है ना तो इसका कोई दुष्प्रभाव पड़ता है ।।

#Surgical Procedures के बारे में जब दुनिया कुछ नहीं जानती थी, तब भी भारत में सुश्रुत शल्य चिकित्सा किया करते थे. 1200BC में ही उन्होंने 184 अध्यायों का Medical Encyclopaedia लिख दिया था. आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों से Anesthesia भी बनाया जाता था, और इसमे शालक्य शास्त्र में अंग प्रत्यारोपण इस बात की पुष्टि करता है कि उस समय भी अंग प्रत्यारोपण को एक अच्छा कर्म माना जाता था जिसके लिए कोई मनाही नही थी।।

#चरक संहिता तथा सुश्रुत संहिता में वर्णित इतिहास एवं आयुर्वेद के अवतरण के क्रम में अंग प्रत्यारोपण सर्जरी करके अंगों को ठीक करने का बार बार उल्लेख इस बात पर मुहर लगा देता है कि सनातन धर्म में परोपकार से बड़ा कोई पुण्य नही है और इसके लिए ईश्वर भी अनुमति देते है , और अंग दान करके किसी के जीवन मे खुसी भर देने से बड़ा परोपकार क्या हो सकता है ।।

#निष्कर्ष -- सनातन संस्कृति में कही भी अंगदान के लिए मना नही किया गया है एक भी उदाहरण ऐसा नही मिलता जो अंगदान के लिए मना करता हो अपितु मनुस्मृति में धन गौ भूमि के  अलावा शरीर दान करने के लिए भी बताया गया है , वेदों में परोपकार के लिए शरीर दान (अंगदान) की अनुमति दी गयी है इसके अतिरिक्त सभी धार्मिक शास्त्रों में अनुमति है ।। 
हम अंग दान कर सकते है हमारे धर्म शास्त्र इसकी अनुमति देते है कोई मनाही नही है ।।

#विशेष -- दो तरह के अंगदान होते है एक होता है अंगदान और दूसरा होता है टिशू का दान। अंगदान के तहत आता है किडनी, लंग्स, लिवर, हार्ट, इंटेस्टाइन, पैनक्रियाज आदि तमाम अंदरूनी अंगों का दान। टिशू दान के तहत मुख्यत: आंखों, हड्डी और स्किन का दान आता है।ज्यादातर अंगदान तब होते हैं, जब इंसान की मौत हो जाती है लेकिन कुछ अंग और टिशू इंसान के जिंदा रहते भी दान किए जा सकते हैं।
मरने के बाद हमे जला दिया जाना है। कितना अच्छा हो कि मरने के बाद ये अंग किसी को जीवनदान दे सकें। अगर धार्मिक अंधविश्वास आपको ऐसा करने से रोकते हैं तो महान ऋषि दधीचि को याद कीजिए, जिन्होंने समाज की भलाई के लिए अपनी हड्ड़ियां तक दान कर दी थीं। उन जैसा धर्मज्ञ अगर ऐसा कर चुका है तो आम लोगों को तो डरने की जरूरत ही नहीं है। सामने आइए और खुलकर अंगदान कीजिए, इससे किसी को नई जिंदगी मिल सकती है।

#चित्र -- सुश्रुतसंहिता में वर्णित मानव अंग जिनका इलाज और अधिकांश का प्रत्यारोपण किया जा सकता था ।

function disabled

Old Post from Sanwariya