Movie Review of Film: आदिपुरुष
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फिल्म के लेखक समेत सोशल मीडिया पर कुछेक लोगों ने ये समझाने की कोशिश की कि...
फिल्म के ऐसे छपरी डायलॉग्स और सीन्स देश के युवाओं (15-25 आयुवर्ग) को रामायण से कनेक्ट करने के लिए डाला गया है....
और, चूंकि हमलोग रामानंद सागर वाले रामायण को देखने के कारण पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं इसीलिए इस तथाकथित लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का विरोध कर रहे हैं...
तो, मुझे भी एकबारगी ऐसा लगा कि शायद मैं ही गलत हूँ.
और , कल चूँकि रविवार अर्थात छुट्टी का दिन था ,
तो मैंने अपने घर के लोगों और अपने दो मित्रों को परिवार सहित घर बुलाया लिया और उन्हें बताया कि मेरे पास एक लेटेस्ट फिल्म है जो रामायण पर आधारित है.
इस तरह हम कुल... 15-16 लोग फिल्म देखने बैठे जिसमें 5 से 8 साल के 4 बच्चे, 10 से 19 साल के 3 बच्चे, 25-40 साल के 6 लोग एवं 70-90 साल आयुवर्ग के 2 लोग थे.
फिल्म देखने से पहले ही मैंने उन्हें थोड़ी सी भूमिका दे दी कि इस रामायण बेस्ड फिल्म में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है...
इसीलिए, देख के मजा आ जायेगा.
इसके बाद मैंने.... अपने मोबाइल को स्मार्ट व्यू के माध्यम से टीवी से कनेक्ट कर फिल्म को चला दिया.
कास्टिंग के शुरुआती... जय श्री राम वाले भजन से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया.
लेकिन, जैसे ही फिल्म शुरू हुई और रावण को वरदान वाला एपिसोड शुरू हुआ तो... मित्र के 15 वर्षीय बेटे ने कहा कि... ये कौन है ?.
इस पर मैंने बताया कि... ये ब्रम्हा जी है.
इस पर वो हँसने लगा और कहा कि... लेकिन, ये तो बिल्कुल किसी पादरी जैसा लग रहा है.
फिर मैंने उसे चुप करवाते हुए आगे देखने को बोला.
जैसे ही रावण को जमीन या आसमान में, घर या बाहर में न मरने वाला वरदान दिया गया तो मेरे मित्र ने कहा : अबे, ये वरदान को हिरणकश्यपु को मिला था न ???
तो, साला इसको रावण से काहे जोड़ रहे हैं ?
क्रिएटिविटी का हवाला देकर उसको भी जैसे तैसे चुप करवाया और फिल्म आगे बढ़ी.
आगे बढ़ने पर...
लक्ष्मण को लक्ष्मण रेखा खींचने वाला सीन आ गया जिसपर भाभी जी ने मुझे देखते हुए कहा कि.... लक्ष्मण रेखा तो एक बार ही खींची गई थी न ?
तो, ये अभी कैसे ???
खैर, उनको भी चुप करवाया और फिल्म आगे बढ़ी.
आगे बढ़ते ही भगवान राम के राक्षसों से लड़ने वाला सीन आ गया और मेरी 12 वर्षीय भतीजी हंसते हुए बोली....
अरे, इसमें तो भगवान राम तो राक्षसों को लात-घूंसे से मार रहे हैं ??
खैर, माता सीता के अपहरण के समय जब वो चमगादड़ आया तो पापा पूछ बैठे कि ये क्या है ?
मनोजवा की तरफ से मैंने सफाई देते हुए कहा कि... इसको आप पुष्पक विमान मान लो.
इस पर वे मुझे आंख तरेर कर देखते हुए बोले : तुम ही ये सब फालतू चीज देखा करो.
हम चले.
और, मम्मी पापा हॉल से उठ कर चले गए.
खैर, उनके जाने पर भी फिल्म जारी रही और माता सीता को रावण द्वारा ले जाते समय जब भगवान राम उस चमगादड़ का दौड़ते हुए पीछा करने लगते हैं तो...
भतीजी ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि... अरे, जब इनको रावण दिख रहा है तो ये उसे तीर क्यों नहीं मार रहे हैं ?
दौड़ क्यों रहे हैं इसके पीछे ?
उसकी बात सुनकर सब मुझे देखने लगे और मैं दूसरी तरफ.
कुल-मिलाकर फिल्म के एक घंटा पूरा होते होते...
मैं सबसे पापी, कमीना और न जाने क्या क्या सुना.
और, अंततः फिल्म को एक घंटे के बाद ही बंद कर देना पड़ा.
फिल्म को बंद करने के बाद भी मैं सबसे उपाधियाँ ही सुनता रहा कि...
मैंने गंगा बोलकर उन्हें छोटे नाले में कैसे कूदवा दिया.
खैर, उसके बाद रेस्टोरेंट से खाना पार्सल मंगवा कर सबको ख़िलाया और जैसे तैसे घर से विदा किया.
और हाँ... मुझे गरियाने वालों में सिर्फ मेरे मित्र ही नहीं थे बल्कि मम्मी पापा भी थे..
लेकिन, गनीमत रही कि बच्चे मेरे बदले फिल्म मेकर्स को गाली दे रहे थे...
और, मिल जाने पर उन्हीं का कान-कपार फोड़ने की बात कर रहे थे.
इस तरह... मेरा घरेलू फिल्मी कार्यक्रम समाप्त हो गया.
फिर भी.... उस समय के बाद से मैं इसी सोच में डूबा हुआ हूँ कि फिल्म वाले और कुछेक विद्वान जन बता रहे हैं कि फिल्म बच्चों और युवाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है..
लेकिन, मेरे यहाँ के युवा तो फिल्म मेकर्स को गालियाँ दे रहे हैं और उनका कान-कपार फोड़ने की बात रहे हैं.
तो, आखिर ये फिल्म किन युवाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है ???
अगर... ऐसे तथाकथित ऐसे युवा कहीं धरती पर मौजूद भी हैं तो..
भाई, जरूरत ऐसे युवाओं को कान के नीचे बजा कर सही ज्ञान देने की है.
न कि.... उन्हीं के पसंद के हिसाब से कंटेंट परोस देने की.
क्योंकि, युवा तो युवा है.
और, क्या पता कि.. पश्चिमी सभ्यता से इंस्पायर कोई गे युवा उस मनोजवा