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गुरुवार, 25 सितंबर 2014

माता के नौ दिनों में क्या करें, क्या न करें :-

नवरात्रि विशेष → ( 25 सितम्बर से 3 ऑक्टोबर )
सभी को नवरात्रि महोत्सव की बधाईयाँ...
दुर्गा माता के आराधना के नौ दिनों में क्या करें, क्या न करें...
भारतीय शास्त्रों में नौ दिनों तक निर्वहन की जाने वाली परंपराओं का बड़ा महत्व बताया गया है। इन नौ दिनों में कई मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं, जिन्हें हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमें सिखाया है। उनका आज भी हम पालन कर रहे हैं।
हर कोई चाहता है कि देवी की पूजा पूरी श्रद्धा-भक्ति से हो ताकि परिवार में सुख-शांति बनी रहे। आइए जानते हैं, माता के नौ दिनों में क्या करें, क्या न करें :-
हर कोई चाहता है कि देवी की पूजा पूरी श्रद्धा-भक्ति से हो ताकि परिवार में सुख-शांति बनी रहे। आइए जानते हैं, माता के नौ दिनों में क्या करें, क्या न करें :-

क्या करें :-
1. जवारे रखना ।
2. प्रतिदिन मंदिर जाना।
3. देवी को जल अर्पित करना।
4. नौ दिनों तक व्रत रखना।
5. नौ दिनों तक देवी का विशेष श्रृंगार करना।
6. सप्तमी-अष्टमी-नवमीं पर विशेष पूजा करना।
7. कन्या भोजन कराना।
8. माता की अखंड ज्योति जलाना।
क्या न करें :-
1. दाढ़ी, नाखून व बाल काटना नौ दिन बंद रखें।
2. लहसुन-प्याज का भोजन ना बनाएं।
3. ज्यादा से ज्यादा मौन रहे |
4. परनिंदा, कामविकार, असत्य भाषण और व्यसनों से बचे
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते..
सर्व मंगल मागल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते..
इन शब्दों के साथ जब देवी दुर्गा की आराधना शुरू होती है तो तन-मन में एक शुद्धि का अहसास होता है। पावन हो जाता है घर, आंगन। शक्ति के महापर्व नवरात्र को मनाने के लिए आतुर हो जाता है वह मन जो शक्ति-स्वरूपा मां दुर्गा के अस्तित्व को स्वीकारता है। उनकी शक्ति को पहचानता है। पूजा, व्रत, उपवास के साथ सादगी खुद-ब-खुद आ जाती है दिनचर्या में। अपनी मनपसंद चीज को त्याग देने का साम‌र्थ्य न जाने कहां से आ जाता है। मन के शुद्ध भाव और आस्था की भावना का संगम एक अजीब सा सुकून दे जाता है।
कोई विधि-विधान से पूजा कर इस विशेष पर्व को मनाता है तो कोई पाखंड से दूर रहकर चिंतन और मनन को प्राथमिकता देता है। यहां तक कि भारत से दूर रहने वाले भी अपनी जड़ों से जुड़े रहने और अपनी संस्कृति को जीवित रखने की चाह में नवरात्र के नौ दिनों में नवदुर्गा के हर रूप को श्रद्धा के साथ पूजते हैं। सभी के लिए किसी न किसी रूप में महान और महत्वपूर्ण है यह पर्व।
नवरात्र के खास दिनों में बच्चे भी ध्यान, पूजा में भाग लेते हैं। बच्चों को हमारी संस्कृति का पता चलता है। व्रत पूजा की महत्ता का ज्ञान होता है। देवी पूजा के लिए हम समय निकालना चाहें तो आसानी से निकाल सकते हैं। खुद को व्यस्त कहकर बचना नहीं चाहिए।
विदेश में रहने वाले भारतीय अपनी मिट्टी से जुड़े रहने की चाह में नवरात्र को विधि-विधान से मनाते हैं। नवरात्र एक शुभ अवसर है। नौ दिन के व्रत तन मन का विकार निकालने के लिए रामबाण साबित होते हैं और फिर मौसम में आया खुशनुमा बदलाव सोच में भी सकारात्मकता भर देता है।

नवरात्रि पूजा विधि

नवरात्रि पूजा विधि ...


नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप की पूजा की जाती है ... यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातकाल शुरू होता है ... प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए ... सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है ...
कलश / घट स्थापना विधि
सामग्री:
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी
पात्र में बोने के लिए जौ
घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल
मोली (Sacred Thread)
इत्र
साबुत सुपारी
कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के
अशोक या आम के 5 पत्ते
कलश ढकने के लिए ढक्कन
ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल
पानी वाला नारियल
नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा
फूल माला

 
 विधि
सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मोली बाँध दें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी डालें। कलश में थोडा सा इत्र दाल दें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें। नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।
कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।
नवरात्री के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं और रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें "हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।" उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।
नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है। नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। भगवती को इत्र विशेष प्रिय है। नवरात्री के प्रतिदिन कंडे की धूनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज़ का भोग लगाना है ये हम विस्तार में आगे बताएँगे। प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है।
इन दिनों 2 से लेकर 5 वर्ष तक की नन्ही कन्याओं के पूजन का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक इन नन्ही कन्याओं को सुंदर गिफ्ट्स देकर इनका दिल जीता जा सकता है। इनके माध्यम से नवदुर्गा को भी प्रसन्न किया जा सकता है। पुराणों की दृष्टि से नौ दिनों तक कन्याओं को एक विशेष प्रकार की भेंट देना शुभ होता है।
* प्रथम दिन इन्हें फूल की भेंट देना शुभ होता है। साथ में कोई एक श्रृंगार सामग्री अवश्य दें। अगर आप मां सरस्वती को प्रसन्न करना चाहते है तो श्वेत फूल अर्पित करें। अगर आपके दिल में कोई भौतिक कामना है तो लाल पुष्प देकर इन्हें खुश करें। (उदाहरण के लिए : गुलाब, चंपा, मोगरा, गेंदा, गुड़हल)
* दूसरे दिन फल देकर इनका पूजन करें। यह फल भी सांसारिक कामना के लिए लाल अथवा पीला और वैराग्य की प्राप्ति के लिए केला या श्रीफल हो सकता है। याद रखें कि फल खट्टे ना हो।
* तीसरे दिन मिठाई का महत्व होता है। इस दिन अगर हाथ की बनी खीर, हलवा या केशरिया चावल बना कर खिलाए जाएं तो देवी प्रसन्न होती है।
* चौथे दिन इन्हें वस्त्र देने का महत्व है लेकिन सामर्थ्य अनुसार रूमाल या रंगबिरंगे रीबन दिए जा सकते हैं।
* पांचवे दिन देवी से सौभाग्य और संतान प्राप्ति की मनोकामना की जाती है। अत: कन्याओं को पांच प्रकार की श्रृंगार सामग्री देना अत्यंत शुभ होता है। इनमें बिंदिया, चूड़ी, मेहंदी, बालों के लिए क्लिप्स, सुगंधित साबुन, काजल, नेलपॉलिश, टैल्कम पावडर इत्यादि हो सकते हैं।
* छठे दिन बच्चियों को खेल-सामग्री देना चाहिए। आजकल बाजार में खेल सामग्री की अनेक वैरायटी उपलब्ध है। पहले यह रिवाज पांचे, रस्सी और छोटे-मोटे खिलौनों तक सीमित था। अब तो ढेर सारे विकल्प मौजूद है।
* सातवां दिन मां सरस्वती के आह्वान का होता है। अत: इस दिन कन्याओं को शिक्षण सामग्री दी जानी चाहिए। आजकल स्टेशनरी बाजार में विभिन्न प्रकार के पेन, स्केच पेन, पेंसिल, कॉपी, ड्रॉईंग बुक्स, कंपास, वाटर बॉटल, कलर बॉक्स, लंच बॉक्स उपलब्ध है।
* आठवां दिन नवरात्रि का सबसे पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन अगर कन्या का अपने हाथों से श्रृंगार किया जाए तो देवी विशेष आशीर्वाद देती है। इस दिन कन्या के दूध से पैर पूजने चाहिए। पैरों पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। इस दिन कन्या को भोजन कराना चाहिए और यथासामर्थ्य कोई भी भेंट देनी चाहिए। हर दिन कन्या-पूजन में दक्षिणा अवश्य दें।
* नौवें दिन खीर, ग्वारफली और दूध में गूंथी पूरियां कन्या को खिलानी चाहिए। उसके पैरों में महावर और हाथों में मेहंदी लगाने से देवी पूजा संपूर्ण होती है। अगर आपने घर पर हवन का अयोजन किया है तो उसके नन्हे हाथों से उसमें समिधा अवश्य डलवाएं। उसे इलायची और पान का सेवन कराएं।
इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि देवी जब अपने लोक जाती है तो उसे घर की कन्या की तरह ही बिदा किया जाना चाहिए। अगर सामर्थ्य हो तो नौवें दिन लाल चुनर कन्याओं को भेंट में दें। उन्हें दुर्गा चालीसा की छोटी पुस्तकें भेंट करें। गरबा के डांडिए और चणिया-चोली दिए जा सकते हैं।
इन सारी रीतियों के अनुसार पूजन करने से देवी प्रसन्न होकर वर्ष भर के लिए सुख, समृद्धि, यश, वैभव, कीर्ति और सौभाग्य का वरदान देती है।

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