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मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में

*जानिए महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में*


        पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रँथ हैं। उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।

महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः  पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।

*1.* *ब्रह्म पुराण*

ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय  तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

*2.* *पद्म पुराण*

पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है। इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।

*3.* *विष्णु पुराण*

विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था। इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैःउत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

*4.* *शिव पुराण*

शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।

*5.* *भागवत पुराण*

भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।

*6.* *नारद पुराण*

नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।

*7.* *मार्कण्डेय पुराण*

अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।

*8.* *अग्नि पुराण*

अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं। इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

*9.* *भविष्य पुराण*

भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है। इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले  नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है। ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।

*10.* *ब्रह्म वैवर्त पुराण*

ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

*11.* *लिंग पुराण*

लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

*12.* *वराह पुराण*

वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।

*13.* *स्कन्द पुराण*

स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।

*14.* *वामन पुराण*

वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।

*15.* *कुर्मा पुराण*

कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा  विस्तार पूर्वक लिखी गयी है। इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।

*16.* *मतस्य पुराण*

मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है

*17.* *गरुड़ पुराण*

गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है। समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।

*18.* *ब्रह्माण्ड पुराण*

ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।

रसोई के मसाले जो अपने ग्रह अनुकूल कर सकते है

अगर आप के पास रत्न पहनने के पैसे नहीं है तो चिंतित होने की कोई जरुरत नहीं रसोई के  मसाले जो आप प्रतिदिन भोजन बनाने के समय प्रयोग करते है उनसे अपने ग्रह अनुकूल कर सकते है यह  कौन कौन  से है और ये किस प्रकार ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते है व इनके पीछे छिपी वैज्ञानिकता क्या है ?*

1. नमक
     (पिसा हुआ) सूर्य

2. लाल मिर्च....
      (पिसी हुई) मंगल...

3. हल्दी
        (पिसी हुई ) गुरु....

4. जीरा
(साबुत या पिसा हुआ) राहु-केतु...

5. धनिया
      (पिसा हुआ) बुध...

6. काली मिर्च
   (साबुत या पाउडर) शनि...

7. अमचूर
        (पिसा हुआ) केतु....

8. गर्म मसाला
       (पिसा हुआ) राहु....

9. मेथी
        मंगल....

  👉मसाले के सेवन से अपने 
  स्वास्थ्य और ग्रहो को ठीक करे..
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भारतीय रसोई में मिलने वाले मसाले सेहत के लिए तो अच्छे होते ही है ,पर साथ में उन के सेवन से हमारे ग्रह भी अच्छे होते है

सौंफ

सौंफ का जिक्र हम पहले भी कर चुके है की सौंफ खाने से हमारा शुक्र और चंद्र अच्छा होता है , इसे मिश्री के साथ ले या उस के बिना भी ले खाने के बाद , एसिडिटि और जी मिचलाने जैसी समस्या कम होने लगेंगी
सौंफ को गुड के साथ सेवन करें जब आप घर से किसी काम के लिए निकाल रहे हो , इस से आप का मंगल ग्रह आप का  पूरा काम करने में साथ देता है ....

दालचीनी

अगर किसी का मंगल और शुक्र कुपित है ,तो थोड़ी सी दालचीनी को शहद में मिलाकर ताज़े पानी के साथ ले , इस से आप की शरीर में शक्ति बढ़ेगी और सर्दियों में कफ की समस्या कम परेशान करती है .......

काली मिर्च

काली मिर्च के सेवन से हमारा शुक्र और चंद्रमा अच्छा होता है , इस के सेवन से कफ की समस्या कम होती है और हमारी स्मरण शक्ति भी बढ़ती है,
तांबे के किसी बर्तन में काली मिर्च डालकर Dining Table पर रखने से घर को नज़र नहीं लगती है....

जौं

जौ के प्रयोग से सूर्य ग्रह और गुरु ग्रह ठीक होता है जौं के आटे की रोटी खाने से पथरी कभी नहीं होती है.....

हरी इलायची

इस के प्रयोग से बुध ग्रह मजबूत होता है अगर किसी को दूध पचाने में परेशानी होती है....
तो हरी इलायची उस में पका कर फिर दूध का सेवन करें  इस से ऐसी परेशानी नहीं होगी ....
यह उन लोगो के लिए उपकारी है की जिन को दूध अपनी सेहत बनाए रखने या कैल्सियम के लिए दूध तो पीना पड़ता है पर उसको पीकर पचाने में समस्या आती है ...

हल्दी

हल्दी के गुण हम सबसे छुपे नहीं है , हल्दी के सेवन से बृहस्पति ग्रह अच्छा होता है ,
हल्दी की गांठ को पीले धागे में बांधकर गुरुवार को गले में धारण करने से बृहस्पति के अच्छे  फल मिलते है  और यह तो हम सब को पता है की हल्दी का दूध पीने से Arthritis , Bones और Infections में ज़बरदस्त फायदा मिलता है....हल्दी की गाँठ गुरूवार को 1 ग्राम की अपने शरीर में धारण करे।

जीरा

जीरा राहू व केतू का प्रतिनिधित्व करता है.
जीरा का सेवन खाने में करने से आप के दैनिक जीवन में सौहार्द व शांति बने रहते हैं.

हींग

हींग बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है  हींग का नित्य प्रतिदिन सेवन करने से वात व पित्त के रोग नियंत्रित होते हैं हींग आप की पाचन शक्ति भी बढाती है व क्रोध समस्या से भी निजात दिलाती है.

*सौंफ

 शुक्र ग्रह मजबूत होता है
सौंफ हम रोज़ तो इस्तेमाल करते है ,पर क्या आप को पता है
कि  सौंफ के सेवन से आपका शुक्र ग्रह मजबूत होता हैजिनका शुक्र कमजोर हो वह सौफ के 15 या 20 दाने खाने है ।

होलाष्टक क्या है, 23 फरवरी से 1 मार्च 2018 तक नहीं होंगे 16 शुभ कार्य

होलाष्टक क्या है, 23 फरवरी से 1 मार्च 2018 तक नहीं होंगे 16 शुभ कार्य



वर्ष 2018 में होलाष्टक 23 फरवरी को लगेगा और यह 1 मार्च 2018 तक रहेगा। यह 8 दिनों का होता है और इस दौरान किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।

भारतीय मुहूर्त विज्ञान व ज्योतिष शास्त्र प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मुहूर्तों का शोधन कर उसे करने की अनुमति देता है। कोई भी कार्य यदि शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो वह उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है। इस धर्म धुरी से भारतीय भूमि में प्रत्येक कार्य को सुसंस्कृत समय में किया जाता है, अर्थात् ऐसा समय जो उस कार्य की पूर्णता के लिए उपयुक्त हो।

इस प्रकार प्रत्येक कार्य की दृष्टि से उसके शुभ समय का निर्धारण किया गया है।

जैसे गर्भाधान, विवाह, पुंसवन, नामकरण, चूड़ाकरन विद्यारम्भ, गृह प्रवेश व निर्माण, गृह शान्ति, हवन यज्ञ कर्म, स्नान, तेल मर्दन आदि कार्यों का सही और उपयुक्त समय निश्चित किया गया है। इस प्रकार होलाष्टक को ज्योतिष की दृष्टि से एक होलाष्टक दोष माना जाता है जिसमें विवाह, गर्भाधान, गृह प्रवेश, निर्माण, आदि शुभ कार्य वर्जित हैं।

इस वर्ष होलाष्टक 23 फरवरी, शुक्रवार से प्रारंभ हो रहा है, जो 1 मार्च होलिका दहन के साथ ही समाप्त हो जाएगा अर्थात् आठ दिनों का यह होलाष्टक दोष रहेगा। जिसमें सभी शुभ कार्य वर्जित है।

इस समय विशेष रूप से विवाह, नए निर्माण व नए कार्यों को आरंभ नहीं करना चाहिए। ऐसा ज्योतिष शास्त्र का कथन है। अर्थात् इन दिनों में किए गए कार्यों से कष्ट, अनेक पीड़ाओं की आशंका रहती है तथा विवाह आदि संबंध विच्छेद और कलह का शिकार हो जाते हैं या फिर अकाल मृत्यु का खतरा या बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है।

होलाष्टक से तात्पर्य है कि होली के 8 दिन पूर्व से है अर्थात धुलंडी से आठ दिन पहले होलाष्टक की शुरुआत हो जाती है। इन दिनों शुभ कार्य करने की मनाही होती हैं। हिन्दू धर्मो के 16 संस्कारों को न करने की सलाह दी जाती है।

क्या करते हैं होलाष्टक में

माघ पूर्णिमा से होली की तैयारियां शुरु हो जाती है। होलाष्टक आरंभ होते ही दो डंडों को स्थापित किया जाता है,इसमें एक होलिका का प्रतीक है और दूसरा प्रह्लाद से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि होलिका से पूर्व 8 दिन दाह-कर्म की तैयारी की जाती है। यह मृत्यु का सूचक है। इस दुःख के कारण होली के पूर्व 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नही होता है। जब प्रह्लाद बच जाता है,उसी ख़ुशी में होली का त्योहार मनाते हैं।

ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के अपराध में कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन की अष्टमी में भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने उस समय क्षमा याचना की और शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवित करने का आश्वासन दिया। इसी खुशी में लोग रंग खेलते हैं।

लिवर मानव शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है।

लिवर मानव शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है।

 अगर आप कहते हैं कि लिवर पर पूरा मानव शरीर टिका है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जिन लोगों का पाचन तंत्र खराब होता है उसमें करीब 80 फीसद रोल लिवर का होता है। लिवर के मुख्य कार्यों में भोजन चयापचय, ऊर्जा भंडारण, विषाक्त पदार्थों को बाहर निकलना, डिटॉक्सीफिकेशन, प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन और रसायनों का उत्पादन आदि शामिल हैं। आजकल की भागदौड़ भरा लाइफस्टाइल और हेल्दी खानपान से दूरी खराब लिवर की सबसे बड़ी वजह हो गई है। वहीं, हद से ज्यादा सिगरेट, बीड़ी और शराब का सेवन भी लिवर का दुश्मन होता है। इस बात की गांठ बांध लें कि अगर इंसान का लिवर एक बार खराब हो जाए तो उसका जीना भी लगभग नामुमकिन हो जाता है। आज हम आपको अंग्रेजी दवाओं के बजाय लिवर को दुरुस्त रखने के लिए कुछ घरेलू उपाय बता रहे हैं। इनके प्रयोग से आप अपने लिवर को कुछ ही दिनों में हेल्दी बना सकते हैं।

जैतून का तेल
 जैतून का तेल लिवर के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। नाश्ते में या फिर किसी भी तरह से जैतून का सेवन करना चाहिए। अगर आप जैतून के तेल का सेवन नहीं कर पाते हैं तो आपको सिगरेट, शराब और तंबाकू के अलावा बेकार खानपान से दूर रहना होगा। ये आपकी सेहत बिगाडऩे के साथ ही लिवर के भी दुश्मन हैं।

असरदार हल्दी के गुण
हल्दी के नियमित सेवन से लिवर की सभी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। लिवर एंटीसेप्टिक गुण और एंटीऑक्सीडेंट का सबसे अच्छा स्त्रोत है। हल्दी की रोगनिरोधन क्षमता हैपेटाइटिस बी व सी का कारण बनने वाले वायरस को बढऩे से रोकती है। दूध में हल्दी मिलाकर पीने से लिवर दुरुस्त रहता है।

अमृत है आंवला कैप्सुल
विटामिन सी का सबसे अच्छा स्त्रोत अगर कुछ है तो वो आंवला ही है। यह आंखों, बालों और त्वचा के लिए फायदेमंद होने के साथ ही लिवर के लिए भी बहुत अच्छा होता है। कई शोध में भी यह साबित हो चुका है कि आंवले में लिवर को सुरक्षित रखने वाले सभी तत्व मौजूद होते हैं। सुबह शाम खाने के बाद 1-1 कैप्सुल

जीटा टी करेगी जादू
दूध और अदरक वाली चाय के शौकीन ये बात जान लें कि अगर आप अपने लिवर को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो दूध वाली चाय की जगह जीटा टि का सेवन करना शुरू कर दें। जीटा टि में भरपूर मात्रा में एंटी-आक्सीडेंट होते हैं जो सभी विषैले तत्वों को खत्म करते हैं। रोजाना सुबह उठकर 1 कप जीटा टि पीनी चाहिए।

वरदान है करेला
 करेला भले ही टेस्ट में कड़वा होता है लेकिन करेले का स्वाद भले ही कड़वा हो लेकिन यह लिवर के लिहाज से बहुत गुणकारी होता है। रोजाना 1 ग्लास करेले का जूस पीने से लिवर स्वस्थ रहता है। साथ ही यह फैटी लिवर की परेशानी को भी खत्म करती है।

साबुत अनाज के फायदे
साबुत अनाज फाइबर और दूसरे पौष्टिक तत्वों से भरपूर है, यह आसानी से पच भी जाता है। फैटी एसिड की यह औषधि लीवर के नुकसानदायक टॉक्सिन को तोड़ती है। अच्छे परिणाम के लिए आपको प्रोसेस्ड ग्रेन के बजाय होल ग्रेन और इसके उत्पाद का सेवन करना चाहिए। जैसे किनोवा

रसीला टमाटर
अगर आप फैटी लीवर की समस्या से ग्रस्त हैं तो कच्चा टमाटर खाना आपके लिए बहुत फायदेमंद होगा। यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है और अच्छे परिणाम के लिए आपको इसका नियमित सेवन करना चाहिए।

अब इस देश के लिए ये जानना जरूरी है कि

युवाओं के मन मे एक प्रश्न का बना हुआ था "कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ?"
अब इसका उत्तर मिल गया है और सिनेमा चला भी अच्छा है जो चलना ही चाहिऐ था ।

अब इस देश के लिए ये जानना जरूरी है कि
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को क्यूँ और किसने मारा,
श्री लाल बहादुर शास्त्री को किसने और क्यों मारा?
महात्मा गांधी की हत्या के वह कारण क्या थे?
इन दुर्भाग्यशाली घटनाओं से देश की पटरी ही बदल गयी।

युवाओं! ज़रा विचारो कि कहाँ कहाँ गलतियां हुई हैं.. काल्पनिक चरित्र कटप्पा से बाहर निकलो और वोपूछोजोतुमसेजुड़ाहुआहै.....

पता करो कि हम लगभग 1000 साल तक गुलाम क्यों रहे..

पता करो कि जो देश आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, और वैज्ञानिक रूप से सशक्त था.. विश्व गुरु था ...वो सब ज्ञान कहाँ और कैसे खत्म हो गया..

पता करो कि सोने की चिड़िया के पंख कैसे कतर दिए गए...

पता करो कि हमारे बच्चों को आजादी के बाद भी क्या और क्यूँ पढ़ाया जाता है...

पता करो! पाकिस्तान का स्थायी रोग किसने भारत को दिया? तब हुआ क्या-क्या था?

पता करो..! कि कश्मीर को नासूर बनाने का बीज नेहरू ने क्यों और कैसे बोया..?

पता करो..! नेपाल के महाराजा के भारत में विलय के प्रस्ताव को 1952 में नेहरू ने क्यों ठुकरा दिया था?

पता करो..! कि 1953 में UNO में भारत को स्थायी सीट देने के ख़ुद अमेरिका के प्रस्ताव को नेहरू ने क्यों गुमा दिया था? और वह सदस्यता चीन को क्यों दिला दी?

पता करो कि 1954 में नेहरू ने तिब्बत को चीन का हिस्सा भारत की ओर से मान लिया था? बाद में 1962 में उसी रास्ते से चीन ने भारत पर हमला किया, हम हारे, बेइज़्ज़त हुए।

पता करो ..! तिब्बत हारने के बाद नेहरू ने क्यों कहा था कि वो तो बंजर जमीन है, कोई बात नही.. जाने दो

ज़रा मालूम करो कि चीन से भारत की हार का दोषी नेहरू को मन्त्रालय की संयुक्त समिति ने सिद्ध किया था? उसके बाद भी नेहरू को जरा भी लाज नहीं आई थी
यह भी जानो कि जब चीनी सेना अरुणाचल, असम, सिक्किम में घुस आयी थी, तब भी 'हिन्दी चीनी भाई भाई' का राग अलापते हुए भारतीय सेना को ऐक्शन लेने से नेहरू ने क्यों रोका था?

आप ख़ुद बाहुबली बनकर कारण जानो कि हमारा कैलास पर्वत और मानसरोवर तीर्थ चीन के हिस्से में नेहरू की ग़लती से चले गए?
और भी बहुत सारी गलतियां हैं जिनमें कांग्रेस को जरा भी शर्म क्यों नहीं आती है?

हेयुवादेश...! अपनी दिशा और दशा बदलो। यह समय मज़ाक़ों का नहीं है,  वह करो जो करणीय है।
चिन्तन का विषय है-

देश के लोग ये तो जानते है कि चीन ने हमें 1962 में हराया पर ये नहीं जानते कि 1967 में हमने भी चीन को हराया था। 
चीन ने "सिक्किम" पर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी. नाथू ला और चो ला फ्रंट पर ये युद्ध लड़ा गया था. चीन को एसा करारा जवाब मिला था कि चीनी भाग खड़े हुये थे.  इस युद्ध में, 88 भारतीय सैनिक बलिदान हुये थे और 400 चीनी सैनिक मारे गए थे. इस युद्ध के बाद ही सिक्किम, "भारत का हिस्सा" बना था !
इस युद्ध में "पूर्वी कमान" को वही सैम मानेक शॉ संभाल रहे थे जिन्होंने बांग्लादेश बनवाया था।
इस युद्ध के हीरो थे राजपुताना रेजिमेंट के मेजर जोशी, कर्नल राय सिंह , मेजर हरभजन सिंह.
गोरखा रेजिमेंट के कृष्ण बहादुर , देवीप्रसाद ने कमाल कर दिया था !! जब गोलिया ख़तम हो गयी थी तो इन गोरखों ने कई चीनियों को अपनी "खुखरी" से ही काट डाला था ! कई गोलियाँ शरीर में लिए हुए मेजर जोशी ने चार चीनी ऑफिसर को मारा ! वैसे तो कई और हीरो भी है पर ये कुछ वो नाम है जिन्हें वीर चक्र मिला और इनकी वीरगाथा इतिहास बनी !!

मैं किसी पोस्ट को शेयर करने के लिये नहीं कहता पर इसे शेयर करो ताकि अधिक से अधिक लोग जाने,दुःख की बात है कि बहुत कम भारतीयों को इसके बारे में पता है !!

जूते चप्पल 👠👞👟से कैसे आता है दुर्भाग्य

हम जब भी नए जूते चप्पल खरीद कर उनको पहनते हे तो एक नई ऊर्जा का अहसास करते हे लेकिन हमे अमावस्या मंगलवार और शनिवार और ग्रहण के दिन जूते चप्पल नही खरीदने चाहिए।यदि इन दिनों हम जूते चप्पल खरीदते हे तो अचानक नुकसान की सम्भावना बन जाती हे।हमे जूते चप्पल पहन कर तिजोरी और लॉकर नही खोलना चाहिए।इससे लक्ष्मी जी का अपमान होता हे।हमे जूते चप्पल पहन कर रसोई या भण्डार घर में नही जाना चाहिए।इससे माँ अन्नपूर्णा का अपमान होता हे।जूते चप्पल पहन कर खाना बनाने से विश्वास की कमी और परिवार में अशांति का वातावरण बना रहता हे।जो इस बात का ध्यान रखते हे उनके घर में कभी अन्न की कमी नही आती हे।जूते चप्पल पहन कर किसी नदी या सरोवर के पास भी नही जाना चाहिए।चमड़े की वस्तुऍ के साथ और जूते चप्पल पहन कर कभी भी नदी या पवित्र सरोवर में स्नान करने से भाग्य रूठ जाता हे।जूते चप्पल मौजे चमड़े की वस्तुऍ पहन कर कभी मन्दिर या देव प्रतिमा के पास नही जाना चाहिए।ऐसा करने से उम्र कम हो जाती हे ।अगर आपके जूते चप्पल मन्दिर धर्म स्थान या अस्पताल से चोरी हो जाते हे तो यकीनन आपका दुर्भाग्य दूर होगा।जो नुकसान होने वाला था वो नही होता हे।अगर आपके जूते चप्पल बार बार फट् रहे या टूट रहे हे तो अपने पहने हुए जूते चप्पल शनिवार के दिन शनि मन्दिर के बाहर छोड़ कर आ जाये।शनि का कुप्रभाव नही होगा।परेशानियां बार बार कम नही हो रही हे तो आपका जो नक्षत्र हे उसमे अपने पहने हुए जूते चप्पल मन्दिर के बाहर छोड़ कर आ जाये ।आते समय नंगे पैर ही आना हे और पीछे मुड़ कर नही देखना हे।अगर आपके चलने पर जूते चप्पल की आवाज ज्यादा आती हे तो आपसे जुड़े हुए रिश्तों में तनाव बढ़ता हे अतः जूते चप्पल बदल लें।घर में ज्यादा पुरानी जूते चप्पल नही रखेँ।ध्यान रहे अगर आपके जूते चप्पल उलटे पड़े हो तो तुरन्त ही सीधे कर देवे क्योकि यह तनाव कर्ज और झगड़ा करवा देते हे।अगर जूते चप्पल एक दूसरे के ऊपर सीधे पड़े हो तो शुभ संकेत हैऔर यात्रा के अवसर मिलते हे।अगर आपका एक पैर का जूता चप्पल अचानक खो जाता हे तो और तीन दिन तक नही मिलता हे तो दूसरा जूता चप्पल भी घर के बाहर फ़ेक देना चाहिए क्योकि कोई गलत प्रयोग भी कर सकता हे।

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