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रविवार, 9 अक्टूबर 2022

शरद पूर्णिमा के उपाय, Sharad purnima 2022,

शरद पूर्णिमा के उपाय, Sharad purnima 2022,


हिन्दु धर्म शास्त्रो मे शरद पूर्णिमा Sharad Purnima को बहुत ही पुण्यदायक पर्व माना गया है। शरद पूर्णिमा के उपाय, Sharad purnima ke upay, बहुत ही सिद्ध और शीघ्र फलदायी कहे गए है।


हम सभी जीवन भर धन लक्ष्मी Dhan Lakshmi की पीछे भागते है सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की चाह रखते है, इसके लिए अपने परिश्रम के साथ नित्य पूजा अर्चना, दान-पुण्य, ब्रत इत्यादि भी करते है कि माँ लक्ष्मी की कृपा अवश्य ही बनी रहे।


और शरद पूर्णिमा तो वह तिथि है जिस दिन माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ था अतः इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा Maa Laxmi Ki Puja आराधना, उनको प्रसन्न करने के लिये किये गए उपायों का अत्यंत श्रेष्ठ फल मिलता है ।


शास्त्रो में कई ऐसे शरद पूर्णिमा के उपाय, Sharad purnima ke upay, बताये गए है जिन्हें करने से घोर से घोर आर्थिक संकट भी दूर हो जाते है जीवन में सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की वर्षा होने लगती है,


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शरद पूर्णिमा के उपाय, Sharad purnima ke upay,

* वर्ष 2022 में शरद पूर्णिमा 9 अक्तूबर दिन शनिवार को है । शरद पूर्णिमा के उपाय sharad purnima ke upay से सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की कोई भी कमी नहीं रहती है।* 

शरद पूर्णिमा sharad purnima के दिन माता अष्ट लक्ष्मी की तस्वीर लेकर उसपर केसर का तिलक करके, 8 कमल चढ़ाकर महालक्ष्मी अष्टकम पढे । इस उपाय से कुंडली में चाहे जैसा भी योग हो माँ लक्ष्मी अपने भक्त को जीवन में अतुल ऐश्वर्य प्रदान करती है।

शरद पूर्णिमा के दिन Sharad Purnima ke din आँवले को रात में चन्द्रमा की चाँदनी में रखे। मान्यता है की इस दिन चन्द्रमा की किरणों में रखे आंवले में औषधीय शक्ति आ जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक है ।

शरद पूर्णिमा के दिन Sharad Purnima ke din माँ लक्ष्मी Maa Lakshmi अवतरित हुई थी। इस दिन लक्ष्मी सहस्त्रनाम, सिद्धिलक्ष्मी कवच, श्रीसूक्त, लक्ष्मी सूक्त, महालक्ष्मी कवच, कनकधारा के पाठ में जो भी कर सके उसे अधिक से अधिक अवश्य ही करें । इससे आने वाली पीढ़ियों पर भी माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

* इस दिन तांबे के बरतन में देशी घी भरकर किसी ब्राह्मण को दान करने और साथ में दक्षिणा भी देने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है और धन लाभ की प्रबल सम्भावना बनती है। इस दिन ब्राह्मण को खीर, कपड़े आदि का दान भी करना बहुत शुभ रहता है ।

* इस दिन संध्या के समय 11 या इससे अधिक घी के दीपक जलाकर घर के पूजा स्थान, छत, गार्डन, तुलसी के पौधे, चारदिवारी आदि के पास रखने से, अर्थात इन दीपमालाओं से घर को सजाने से भी माँ लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है।

* माँ लक्ष्मी को खीर अत्यंत प्रिय है । शास्त्रो में गाय के दूध में महालक्ष्मी का वास Maa Lakshmi ka Vaas माना गया है, अत: इस दिन यथा संभव गाय के दूध में खीर बनाये और खीर में केसर, छुआड़े और मेवे भी अपनी सामर्थ्यानुसार अवश्य ही डालें ।

* मान्यता है कि खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है इसलिए इससे विषाणु दूर रहते हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन Sharad Purnima ke Din प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक चंद्रमा की रौशनी का स्नान अवश्य ही करना चाहिए।
इसके लिए रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय सबसे उपयुक्त रहता है।

* दमा रोगियों के लिए शरद पूर्णिमा Sharad Purnima की रात वरदान बनकर आती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि Sharad Purnima ki Ratri खीर को चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे माँ लक्ष्मी को उसका भोग लगाकर उसका सेवन रोगी को कराएं है।

दमे का मरीज चंद्रमा की चाँदनी में रात्रि जागरण करें और इस रात्रि में 2-3 किमी पैदल भी अवश्य ही चले, इससे दमे में अत्यधिक सुधार होता है।

* शोध से पता चला है कि शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता बहुत अधिक होती है। लंकापति रावण शरद पूर्णिमा की रात Sharad Purnima ki Raat चन्द्रमा की किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था इससे उसे यौवन शक्ति की प्राप्त होती थी।

माना जाता है कि शरद पूर्णिमा Sharad Purnima की चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में चन्द्रमा की चाँदनी में स्नान करने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है, उसका यौवन बढ़ता है। अत: प्रत्येक व्यक्ति को इस इन 10 से 12 बजे घर के अंदर नहीं वरन चन्द्रमा की रौशनी में ही रहना चाहिए ।

* मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन Sharad Purnima ke Din चन्द्रमा अपनी पूर्ण सोलह कलाओं के साथ अवतरित होता है, इस दिन चन्द्रमा की किरणों में अमृत का वास माना गया है, चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा खीर में समाहित हो जाती हैं जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां आदि दूर हो जाती हैं।

आयुर्वेद में भी चाँदनी के औषधीय महत्व का वर्णन मिलता है, खीर को रात्रि में चांदनी में रखकर अगले दिन इसका सेवन करने से असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है, यौवन बना रहता है।

* शरद पूर्णिमा Sharad Purnima के दिन सत्यनारायण भगवान को आँवले, सिंघाड़े, नारियल, पीले पुष्प, लौंग, इलाइची, केसर और मिष्ठान अर्पित करते हुए उनकी कथा कहे।

इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा कहने से माँ लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती है जातक को जीवन भर भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है।
जातक के घर कारोबार में धन, सुख-समृद्धि की कोई भी कमी नहीं रहती है।

भगवान विष्णु को आँवला अत्यंत प्रिय है । शरद पूर्णिमा Sharad Purnima को भगवान श्री विष्णु जी को आंवला चढ़ाने, आंवला की पूजा करने से माँ लक्ष्मी घर में अवश्य ही आती है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान देवी माँ लक्ष्मी प्रकट हुई। उनके रूप, सौन्दर्य को देखकर उन्हे पाने के लिए देव-दानव आपस में संघर्ष करने लगे। इस संघर्ष के दौरान देवी लक्ष्मी ने बिल्व वृक्ष के नीचे आराम किया था।

अतः नवरात्र के दौरान महाष्टमी व महानवमी, शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए बिल्वपत्र के पेड़ की पूजा की जाती है और जल चढ़ाया जाता है।

मान्यता है कि इस दिन बिल्व पत्र ( बेल पत्र ) का पौधा लगाने, उसकी सेवा करने, सांय काल वहां पर दीपक जलाने से माता लक्ष्मी उस जातक का साथ कभी भी नहीं छोड़ती है, उस पर कभी कोई कर्ज नहीं रहता है, उसे अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

शरद पूर्णिमा के दिन Sharad Purnima ke Din मंदिर में जाकर माँ लक्ष्मी को इत्र और सुगन्धित अगरबत्ती अर्पण करनी चाहिए । इत्र की शीशी खोलकर माता के वस्त्र पर वह इत्र छिड़क दें , उस अगरबत्ती के पैकेट से भी कुछ अगरबत्ती निकल कर जला दें फिर धन, सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी माँ लक्ष्मी से अपने घर में स्थाई रूप से निवास करने की प्रार्थना करें।

इससे माँ अपने भक्त के सभी संकट दूर करती है।

🌝 *शरद पूर्णिमा* 🌝

 *19,20 अक्टूबर, 2021- कुछ विशेष करने योग्य बातें*


*आँखों के लिए टॉनिक*

त्रिफला, शहद और देसी गाय के घी का 02:02:01 के अनुपात में मिश्रण तैयार करके उसे शरद पूनम की पूरी रात (19,20 अक्तूबर 2021) को चांदनी में रखो । फिर उस मिश्रण को काँच की बाटल में रख लें । फिर अगले 40 दिनों तक इस मिश्रण को 11 ग्राम सुबह - शाम लें । आंखें टनाटन, न मोतिया न मोतियाबिंद न लेंस ।


*बल, सौंदर्य व आयुवर्धक प्रयोग*

शरद पूर्णिमा की चाँदनी में रखे हुए आँवलों के रस 4 चम्मच, शुद्ध शहद 2 चम्मच् व गाय का घी 1 चम्मच मिलाकर नियमित सेवन करें। इससे बल, वर्ण, ओज, कांति व दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है।


*नेत्र सुरक्षा के लिए शरद पूर्णिमा का प्रयोग*

वर्षभर आंखें स्वस्थ रहे, इसके लिए शरद पूनम की रात को चन्द्रमा की चांदनी में एक सुई में धागा पिरोने का प्रयास करें । कोई अन्य प्रकाश नहीं होना चाहिए । दशहरा से शरद पूर्णिमा तक 15-20 मिनट चन्द्रमा की ओर देखते हुए त्राटक करने से भी आखों की रौशनी बढती है l


*शरद पूर्णिमा पर अध्यात्मिक उन्नति*

शरद पूनम रात आध्यात्मिक उत्थान के लिए बहुत फायदेमंद है । इसलिए सबको इस रात को जागरण करना चाहिए अर्थात जहाँ तक संभव हो सोना नही चाहिए और इस पवित्र रात्रि में जप, ध्यान, कीर्तन करना चाहिए ।


*शरद पूर्णिमा विशेष*

चावल, दूध और मिश्री की खीर बनायें । खीर बनाते समय उसमें कुछ समय के लिए थोड़ा चाँदी मिला दें । खीर को कम से कम 2 घंटे के लिए चन्द्रमा के प्रकाश में रख दें । उस दिन के लिए कोई अन्य भोजन नहीं पकाएं, केवल खीर खाएं । 


हमें देर रात को भारी आहार नहीं लेना चाहिए इसलिए तदनुसार खीर खाएं । शरद पूनम की रात में रखी गयी खीर को भगवान को भोग लगाने के बाद अगले दिन प्रसाद रूप में नाश्ते में भी ले सकते है ।

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शरद पूर्णिमा की रात - नाभि दर्शना अप्सरा साधना

 

नाभि दर्शना अप्सरा साधना बेहद आसान है. इसलिए इसे करने के लिए अधिकतर लोग लालायित रहते हैं. आपने कई ऐसी नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र सिद्धि के बारे सुना होगा जो आसानी से सिद्ध हो जाती है और साधक की हर इच्छा को पूरा करती है.

मुख्य रूप से इस तरह की साधना का उदेश्य समृद्धि और यश पाना होता है.

नाभि दर्शना अप्सरा साधना पूर्ण विधि काफी आसान भी होती है और लम्बे समय तक चलने वाली साधना भी ये आप पर निर्भर है की आप कौनसी साधना करना चाहते है. अप्सरा सिद्धि के बाद कभी भी प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देती है. ये आपको अपने होने का अहसास करवाती है.

आप नाभि दर्शना अप्सरा की साधना के पूर्ण होने के बाद अप्सरा का अहसास अपने आसपास कर सकते है क्यों की ये जहाँ भी होती है वहां का माहौल सुगंधमय हो जाता है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना के दौरान सबसे बड़ी मुश्किल होती है नाभि दर्शना अप्सरा यंत्र की स्थापना की अगर नाभि दर्शना अप्सरा यंत्र आपके पास ना हो तो आप अष्टदल पद्म के ऊपर चावल की ढेरी बनाकर उसके ऊपर सुपारी रखकर उस शक्ति का आवाहन कर सकते हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र

नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र में 21 माला का विधान है. एक दिवसीय साधना होने की वजह से ये साधना जितनी आसान लगती है उससे कही ज्यादा खतरनाक इसके दुष्प्रभाव है. अप्सरा साधना के बाद साधक को जो अलौकिक रहस्यों की समझ होती है वो उसके Third eye activation की वजह से होती है.

पारलौकिक जगत के रहस्य को देखने के बाद साधक मानसिक संतुलन रख पाता है या नहीं ये उसके मस्तिष्क की स्थिरता पर निर्भर करता है. अगर आप इस तरह की साधना कर रहे है तो सावधान रहे क्यों की आसान दिखने वाली साधनाओ के अपने खतरे होते है.

एक शब्द में कहे तो ये एक दिवसीय साधना है और जो साधक ये साधना कर लेता है उसे सुख, यौवन की प्राप्ति हो जाती है. जब कोई साधक शुरुआती स्तर पर होता है और उसे अप्सरा सिद्धि हो जाती है तो वो अपना जीवन खुशियों से भर सकता है.

अप्सरा साधना सिद्धि बेहद आसान है लेकिन, ये साधक के स्थिर चित पर निर्भर करती है की उसे अप्सरा की प्राप्ति होती है या नहीं.

ऐसा माना जाता है की अप्सरा साधना करने के बाद साधक का जीवन वासना से परे हो जाता है और वो भोग से ऊपर उठकर साधना में आगे बढ़ना शुरू कर देता है. यहाँ शेयर किया गया नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र एक दिवसीय साधना का भाग है.

अगर आप अप्सरा साधना विधि विधान के साथ पूरा करना चाहते है तो इस साधना से शरूआत करे. आपको अलौकिक रहस्यों के अनुभव भी होंगे और साधना मार्ग में आगे बढ़ने का मौका भी मिलेगा.

कौन हैं अप्सरा?

अप्सराओं की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यह निश्चित तथ्य है कि समुद्र-मंथन में पहले रम्भा अप्सरा की उत्पत्ति हुई, और उसके पश्चात् अमृत घट और तत्काल पश्चात् भगवती लक्ष्मी प्रकट हुईं, इसलिए अप्सराओं का महत्व अन्य रत्नों की अपेक्षा अत्यधिक है.

रूप, रस और जल तत्व प्रधान होने के कारण ही इनका नाम अप्सरा पड़ा और इनके गुण देवताओं के गुणों के समान ही पूर्ण रूप से प्रभावशाली हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना को पूरा करने वाले साधक में अलौकिक रहस्यों को समझने की समझ जाती है.

 

ये भी कहा जाता है कि इन्द्र ने 108 ॠचाओं की रचना करके इन अप्सराओं को प्रकट किया. रम्भा के अलावा जिन अन्य अप्सराओं का वेदों और पुराणों में जिक्र आता है, उनके नाम हैं उर्वशी, मेनका, और तिलोत्तमा. नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की उत्पति भी इसी समय हुई थी.

साधना-पथ में साधक अपने मन पर नियंत्रण चाहता है जिससे कि वह अपने अंतर्मन में उतर कर मनन कर सके, पर मन में तो कामनाएं बसती हैं और वे मूलतः प्रेम-जनित होती हैं. अब हृदय अर्थात् उर में जो बस जाती है, उसे उर्वशी कहते हैं और उर्वशी तो हम सबके मन में है.

उर्वशी-जनित भाव के कारण ही तो प्रेम की तरंगें मन में उठती हैं और प्रीत में किसी प्रकार की बंदिश नहीं होती.

शरद पूर्णिमा की रात जब आसमान से चांदनी की शीतल किरणें भी प्रेम में संतप्त युगलों को दग्ध कर देती हैं, उस रात्रि में नाभि दर्शना अप्सरा साधकों के आह्वान पर सुरपुर से धरती पर आती है.

ब्रह्म साधना से भी आवश्यक और उसे करने से पूर्व अप्सरा साधना साधक को करनी चाहिए.

नाभि दर्शना अप्सरा की साधना

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र को सिद्ध करने के पीछे कई रहस्य है. सौन्दर्य की साक्षात् प्रतिमूर्ति, वय में षोडशी और कोमलता से लबालब कमनीय शरीर जो अपने यौवन से इतराया और प्रेम से सिंचित है. प्रतिपल भीनी खुशबू में नहाया तन नाभि-दर्शना के आने की सूचना देता है.

इस अप्सरा की काली और लम्बी आंखें, लहराते हुए झरने की तरह केश और चन्द्रमा की तरह मुस्कुराता हुआ चेहरा, कमल नाल की तरह लम्बी बांहें और सुन्दरता से लिपटा हुआ पूरा शरीर एक अजीब सी मादकता बिखेर देता है.

इन्हें इन्द्र का वरदान प्राप्त है कि जो इसके सम्पर्क में आता है, वह पुरुष पूर्ण रूप से रोगों से मुक्त होकर चिर यौवनमय बन जाता है, उनके शरीर का कायाकल्प हो जाता है, और पौरुष की दृष्टि से वह अत्यन्त प्रभावशाली बन जाता है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना विधान

इस साधना को आप शरद पूर्णिमा, रमा एकादशी, रूप चतुर्दशी अथवा किसी भी शुक्रवार को सम्पन्न करें.

यह रात्रिकालीन साधना है, इस साधना को रात्रि में 10 बजे के पश्चात् सम्पन्न करना चाहिये.

नाभिअप्सरा साधना साधक अपने घर में या किसी भी अन्य स्थान पर एकांत में सम्पन्न कर सकता है.

इस साधना में बैठने से पूर्व साधक स्नान कर सुन्दर, सुसज्जित वस्त्र पहनें एवं अपने वस्त्रों पर सुगन्धित इत्र का छिड़काव करें.

साधक उत्तर दिशा की ओर मुंह कर आसन पर बैठें.

इस साधना में सुगन्धित पुष्पों का प्रयोग करना चाहिये. साधक साधना से पहले ही दो सुगन्धित पुष्पों की माला की व्यवस्था कर लें.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की शुरुआत में सर्वप्रथम अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गुरुचित्र स्थापित कर, पंचोपचार गुरु पूजन सम्पन्न करें. गुरुदेव से साधना में सफलता का आशीर्वाद प्राप्त कर, मूल साधना सम्पन्न करें

बाजोट पर एक ताम्र पात्र में अद्वितीयनाभि दर्शना महायंत्रको स्थापित करें. केशर से यंत्र पर तिलक कर यंत्र का सुगन्धित पुष्पों, इत्र, कुंकुम इत्यादि से पूजन करें. यंत्र के सामने सुगन्धित अगरबत्ती एवं शुद्ध घृत का दीपक लगावें.

इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि मैं अमुक नाम, अमुक पिता का पुत्र, अमुक गौत्र का साधक नाभि दर्शना अप्सरा को प्रेमिका रूप में सिद्ध करना चाहता हूं, जिससे कि वह जीवन भर मेरे वश में रहे, और मुझे प्रेमिका की तरह सुख आनन्द एवं ऐश्वर्य प्रदान करे.

इसके बादनाभि दर्शना अप्सरा मालासे नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र जप सम्पन्न करें, इसमें 21 माला नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र जप उसी रात्रि को सम्पन्न हो जाना चाहिए.

ऐं श्रीं नाभिदर्शना अप्सरा प्रत्यक्षं श्रीं ऐं फट्॥

अगर बीच में घुंघरूओं की आवाज आवे या किसी का स्पर्श हो, तो साधक विचलित हों और अपना ध्यान हटावें, अपितु 21 माला मंत्र जप एकाग्रचित्त होकर सम्पन्न करें, इस साधना में जितनी ही ज्यादा एकाग्रता होगी, उतनी ही ज्यादा सफलता मिलेगी.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र के 21 माला मंत्र जप पूरी एकाग्रता के साथ सम्पन्न करने के पश्चात् अप्सरा माला को साधक स्वयं के गले में डाल दें. तथा सुगन्धित पुष्पों की एक माला को यंत्र पर चढ़ा दे तथा दूसरी माला भी स्वयं के गले में डाल दें.

साधना में सिद्धि के संकेत

मंत्र जप की पूर्णता पर साधक को यह आभास या प्रत्य होने लगता है कि अप्सरा घुटने से घुटना सटाकर बैठी है. जब साधक को यह आभास या प्रत्य हो जाएं तो साधक नाभि दर्शना अप्सरा से वचन ले लें कि मैं जब भी अप्सरा माला से एक मंत्र जप करूं, तब तुम्हें मेरे सामने उपस्थित होना है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र के दौरान मैं जो चाहूं वह मुझे प्राप्त होना चाहिए, पूरे जीवन भर मेरी आज्ञा का उल्लंघन हो.

तब नाभि दर्शना अप्सरा साधक के हाथ पर अपना हाथ रखकर वचन देती है, कि मैं जीवन भर आपकी इच्छानुसार कार्य करती रहूंगी. तब इस साधना को पूर्ण समझें, और साधक अप्सरा के जाने के बाद अपने साधना स्थल से उठ खड़ा हो.

साधक को चाहिए कि वह इस घटना को केवल अपने गुरु के अलावा और किसी के सामने स्पष्ट करें, क्योंकि साधना ग्रन्थों में ऐसा ही स्पष्ट उल्लेख आया है.

साधना सम्पन्न होने पर नाभि दर्शना अप्सरा महायंत्र को अपने घर में किसी गोपनीय स्थान पर रख दें, जो गले में अप्सरा माला पहनी हुई है, वह भी अपने घर में गुप्त स्थान पर रख दें, जिससे कि कोई दूसरा उसका उपयोग कर सके.

apsara sadhna ke nuksan

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र में सफलता के बाद जब भी नाभिदर्शना अप्सरा को बुलाने की इच्छा हो, तब इस महायंत्र के सामने अप्सरा माला से उपरोक्त मंत्र की एक माला जप कर लें. अभ्यास होने के बाद तो यंत्र या माला की आवश्यकता भी नहीं होती, केवल मात्र सौ बार मंत्र उच्चारण करने पर ही प्रत्य प्रकट हो जाती हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा साधना मंत्र को स्त्रियां भी सिद्ध कर सकती हैं, नाभि दर्शना अप्सरा के रूप में उन्हें अभिन्न सखी प्राप्त हो जाती है, और उस सखी के साहचर्य से साधिका के शरीर का भी कायाकल्प हो जाता है, और ऐसी साधिका अत्यन्त सुन्दर, यौवनमय और सम्मोहक बन जाती हैं.

वास्तव में ही यह साधना बालक या वृद्ध किसी भी वर्ण या जाति का व्यक्ति या स्त्री सम्पन्न कर सकते हैं, और यदि विश्वास एवं श्रद्धा के साथ इस साधना को सम्पन्न करें, तो अवश्य ही पूर्ण सफलता मिलती है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना सिद्धि विधान अंतिम शब्द

अगर आप अप्सरा साधना में रूचि रखते है तो आपको सबसे आसान और एक दिवसीय नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना के विधान को जरुर पूरा करना चाहिए. कलयुग में जहाँ सात्विक साधना को सिद्ध करना बेहद मुश्किल है वही अप्सरा और यक्षिणी साधना को सिद्ध करना बेहद आसान है.

ये दोनों ही शक्तियां पृथ्वी के वायुमंडल में सबसे करीब है. अगर आप नाभि दर्शना अप्सरा साधना पूर्ण विधि को फॉलो करे तो आपको अप्सरा सिद्धि हो सकती है. ध्यान रहे की गुरु के बगैर ये साधना कर रहे है तो अपने विवेक और चित को स्थिर रखे.

कई बार हम जोश जोश में साधना की शुरुआत तो कर लेते है लेकिन, आगे बढ़ने पर जैसे ही हमें अलौकिक रहस्यों के दर्शन होने लगते है हम अपना विवेक खो देते है. ऐसे में ये साधना खतरनाक हो सकती है.

 

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