"युद्ध तो तुमको करना ही पड़ेगा – एक यथार्थ बोध"
✍️ प्रस्तुतकर्ता: हिन्दू
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महाभारत के काल में भी कृष्ण जानते थे... युद्ध टालना एक भ्रम है।
उन्होंने सिर्फ पाँच गाँव माँग कर पाँडवों को यह दिखा दिया था —
कि अन्याय के विरुद्ध जब तक तुम तलवार नहीं उठाओगे,
तब तक शांति का कोई विकल्प नहीं है।
"कभी-कभी 'संघर्ष से बचना' ही सबसे बड़ा अन्याय होता है..."
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आज का युग - और वह पुराना प्रश्न
आज भी कुछ पिता, अपने “सेक्युलर” सोच वाले बेटों को समझा रहे हैं –
"बेटा, जितना हो सके संघर्ष से बचो। सबको साथ लेकर चलो।"
बेटा पूछता है —
"लेकिन कब तक? जब सब कुछ देकर देख लिया, तब भी माँगें नहीं रुकतीं —
तो क्या तब भी हम झुकते रहें?"
पिता मुस्कुराकर कहते हैं —
"तुम्हारा झुकना, तुम्हारी सहनशीलता नहीं... तुम्हारी कमजोरी मानी जाएगी।
जिसे तुम भाई मानते हो, वह तुम्हें गुलाम समझता है।"
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इतिहास साक्षी है...
1947 — देश के दो टुकड़े हो गए। फिर भी हिन्दू खदेड़ा गया।
कश्मीर — हिन्दू को घर छोड़ना पड़ा, और मुस्लिम को विशेषाधिकार।
370 धारा — अलग कानून, अलग झंडा, फिर भी असंतोष।
बाढ़ में बचाया गया — सेना ने जानें बचाईं, और बदले में पत्थर मिले।
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कृष्ण ने पहले ही कहा था...
"जब तुम्हारे अस्तित्व पर संकट आए,
तो यह तय करने का विकल्प तुम्हारे पास नहीं कि युद्ध होगा या नहीं..."
तुम कितना भी धर्मनिरपेक्ष बनो,
पाँच गाँव भी दे दो — दुर्योधन तो युद्ध करेगा ही...
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तुम्हारे अस्तित्व से है समस्या
उन्हें परेशानी घंटी की आवाज़ से है,
उन्हें कुपोषण गौमांस बिना होता है,
उन्हें ऐतराज़ मंदिर की पूजा से है,
उन्हें चाहिए तुम्हारी बहन-बेटियाँ,
और सवाल करेंगे —
"तुम्हारी बेटी इतनी कीमती है, तो पर्दे में क्यों नहीं रखते?"
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किसी को भी भ्रम नहीं होना चाहिए
हमने कभी हज पर नहीं रोका,
लेकिन हर साल अमरनाथ यात्रा बाधित होती है।
हमने कभी मस्जिदें नहीं तोड़ीं,
लेकिन हमारे मंदिरों पर कब्ज़ा कर उन्हें मस्जिद बना दिया गया।
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अब अर्जुन मत बनो — तैयार हो जाओ
"कृष्ण अब बार-बार उपदेश नहीं देंगे..."
"तुम्हारे बच्चों के भविष्य का प्रश्न है — और अस्तित्व का भी।"
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अंतिम पंक्तियाँ:
"संघर्ष से भागना विकल्प नहीं —
धर्म की रक्षा केवल ज्ञान और विवेक से नहीं,
कभी-कभी शस्त्र से भी करनी होती है