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मंगलवार, 31 मार्च 2015

लेक्चरर की नौकरी छोड़ मुस्लिम युवक फैज़ सुनाते हैं गौ कथा

लेक्चरर की नौकरी छोड़ मुस्लिम युवक फैज़ सुनाते हैं गौ कथा 
03 सितंबर 2013 वार मंगलवार को मोहम्मद फैज खान जैसे मुस्लिम को मैंने काफी सोच विचारकर राजस्थान के श्री सालासर बालाजी धाम में प्रथम बार "विराट हिन्दू धर्म गर्जना सम्मेलन 2013" में राष्ट्रीय मंच पर गौ रक्षा के लिए भाषण देने हेतू आमंत्रित किया था ?
मित्रों मैंने मोहम्मद फैज खान को मंच दिया तब से मेरे खिलाफ अपने ही भाईयों ने मेरा काफी दिनों तक दुष्प्रचार किया था ! क्या मैंने मोहम्मद फैज खान को राष्ट्र से जोड़कर गलत कार्य किया था ? क्या गौ माता की रक्षा केवल एक धर्म से होगी या सभी पंथ स्वीकार करेंगे तब होगी ?
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काशी के अस्सी घाट पर गौ कथा सुनने वालों की इन दिनों भीड़ उमड़ रही है। यह गौ कथा कोई हिंदू नहीं बल्कि एक मुस्लिम युवक मोहम्मद फैज खान सुना रहे हैं, जो तीन दिनों तक चलेगा।
उन्होंने भास्कर को विशेष बातचीत में बताया कि वे शासकीय महाविद्यालय, रायपुर में लेक्चरर के पद पर कार्यरत थे। इस दौरान उन्होंने एक उपन्यास में गाय की कथा पढ़ी। इससे प्रेरित होकर नौकरी छोड़ दिया और गौ हत्या प्रतिबंध के लिए देशभर में निकल पड़े ! तभी महावीर प्रसाद खिलेरी द्वारा आयोजित राजस्थान में विराट हिन्दू धर्म गर्जना सम्मेलन में मंच अतिथि बने उसके बाद राजस्थान में करीब 5 जगह पर दिव्य गौ कथा सुनाना शुरू किया। अब तक वह भारत में 50 से अधिक जगहों पर गौ कथा सुना चुके हैं। इसी क्रम में सोमवार से अस्सी घाट पर कार्यक्रम शुरू किया है।
राजनीतिशास्त्र और हिंदी में एमए मोहम्मद फैज खान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि तीन साल पहले गिरीश पंकज की उपन्यास (नॉवेल) में एक गाय की कथा पढ़ी थी। इसका हीरो एक मुस्लिम युवक था, जो गौ हत्या बंद कराने को लेकर अभियान चलाया था, उससे काफी प्रेरणा मिली। सालासरकर सम्मेलन के बाद उन्होंने लोगों को गौ कथा सुनाना शुरू कर दी। उन्होंने कहा, ‘मैं ढाई सालों से घर छोड़कर लोगों को चाहे वो हिन्दू हों या मुसलमान, सबको गाय के बारे में जानकारियां देता हूं।’
गाय विश्व की माता है : फैज खान
फैज ने बताया कि वेदों में गाय को विश्व की माता कहा गया है। गाय किसी धर्म विशेष की नहीं बल्कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी की मां हैं। गाय की सेवा यदि घर में किया जाए और मां के गर्दन में बंधी घंटी बज जाए, तो 33 करोड़ देवी-देवता प्रसन्न हो जाते हैं। किसी भी धर्म के मंदिर में चमड़े का सामान पहनकर जाने से पूजा और इबादत कबूल नहीं होती।
गौ हत्या पूरे भारत में बंद होनी चाहिए उन्होंने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी ने अस्सी घाट से स्वच्छता अभियान चलाया था, जो पूरे देश ने स्वीकार किया। उसी अस्सी घाट पर गौ को लेकर कथा कर रहा हूं ताकि आवाज पूरे भारत में जाए। महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह पूरे भारत में गौ हत्या बंद होना चाहिए। इतना ही नहीं, इसको लेकर सरकार केंद्रीय कानून लाना चाहिए।

दो तथाकथित महात्मा और भक्त रामशरण दास पिलखवावाले !

दो तथाकथित महात्मा और भक्त रामशरण दास पिलखवावाले !

पोस्ट साभार : विनिता डंगवाल (स्वर्णिम दिल्ली व सावरकर टाइमश, दो अखबार में 2014 में प्रकाशित लेख)
गांधीजी के लाड़ले सरकारी संत बिनोवा भावे वैदिक/हिन्दूत्व सिद्धांतों के बचपन से ही विरोधी थे। मां के निधन के समय भी विनोबा का अपने पिता और भाइयों से मतभेद हुआ। विनोबा वैदिक विधि से दाह-संस्कार का विरोध कर रहे थे। लेकिन परिवार वालों की जिद के आगे उनकी एक न चली. विनोबा भी अपने सिद्धांतों पर अडिग थे। नतीजा यह कि जिस मां को वे सबसे अधिक चाहते थे, जो उनकी आध्यात्मिक गुरु थीं, उनके अंतिम संस्कार से वे दूर ही रहे. मां को उन्होंने भीगी आंखों से मौन विदाई दी.

आगे चलकर 29 अक्टूबर 1947 को विनोबा के पिता का निधन हुआ तो उन्होंने कुरान के आदेशों का पालन करते हुए उनकी देह को अग्नि-समर्पित करने के बजाय, मिट्टी में दबाने जोर दिया. तब तक विनोबा संत विनोबा हो चुके थे। गांधी जी का उन्हें आशीर्वाद था। इसलिए इस बार उन्हीं की चली. और वेदो के आगे कुरान जीत गई।
मां की गीता में आस्था थी। वे विनोबा को गीता का मराठी में अनुवाद करने का दायित्व सौंपकर गई थीं। विनोबा उस कार्य में मनोयोग से लगे थे। आखिर अनुवाद कर्म पूरा हुआ। पुस्तक का नाम रखा गया- गीताई. गीता+आई = गीताई. महाराष्ट्र में ‘आई’ का अभिप्राय ‘मां के प्रति’ से है; यानी मां की स्मृति उसके नेह से जुड़ी-रची गीता. पुत्र की कृति को देखने के लिए तो रुक्मिणी बाई जीवित नहीं थीं। मगर उनकी याद और अभिलाषा से जुड़ी गीताई, महाराष्ट्र के घर-घर में माताओं और बहनों के कंठ-स्वर में ढलने लगी. उनकी अध्यात्म चेतना का आभूषण बन गई। गांधी जी ने सुना तो अनुवाद कर्म की भूरि-भूरि प्रशंसा की. क्योंकि इस किताब में गोमांस खाने का समर्थन किया गया था।
जब यह किताब उस समय के महान विद्वान भक्त रामशरण दास जो पिलखुआ के थे और शिवकुमार गोयल के पिता थे उन्होंने पढी तो उनका खून खोल गया और विनोबा को किताब में संशोधन के लिए कई खत लिखे, लेकिन किताब में जब संशोधन नहीं हुआ तो भक्त जी वहीं पहुंच गए और भावे से कहा, ‘‘भारतीय गाय को माता मानते हैं और तुम गीता भाष्य में ही गोमांस खाने की बात लिखे हो ? वहां सही भाष्य यही है कि कृष्ण जी अपने को गौ मानते हैं, न कि गो मांस खाते थे।’’
‘‘ तुम्हें क्या आपत्ति है?’’
‘‘ यह गलत बात है!’’

‘‘ देखो तुम बाजार से संतरे खरीदते हो और यदि एक फांक खराब है तो उसे छोड़कर बाकी संतरा खालो, यानी वह प्रसंग मत पढ़ो।’’ विनोबा जी का तर्क था। पास में गांधी जी बैठे थे, उन्होंने कहा, ‘‘विनोबा जी ठीक ही तो कहते हैं, तुम्हे जो बुरा लगे, उस पर ध्यान न दो।’’
‘‘लेकिन’’ भक्त जी ने कहा, ‘‘जब बाजार में अच्छे संतरे हों तो सडी फांक वाला खाने की जरूरत ही क्या है?’’
गांधी जी और विनोबा की बोलती बंद हो गई थी।
इतिहास की सच्ची कहानियां का एक अंश...
नोट: कोई आपत्ति न करे, क्योंकि यह घटना करीब 15 पुस्तकों में छपी हुई है, जो आज से 60 साल पहले ही भारत और पाकिस्तान दोनों में प्रकाशित हुई थी।

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