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शनिवार, 25 सितंबर 2021

जब तक हम रामचरितमानस, भगवद्गीता को समझेगे नहीं तब तक हम भ्रमित ही रहेंगे।


*शत्रु कौन है?* 
*ठन्डे दिमाग से विचार करें*

19 साल की अमृता (एमी) जिसका अभी अभी कॉलेज में एडमिशन हुआ है, उसने टीवी पर चल रहे वाद विवाद को देखते हुए अपने पापा से पूछा "व्हाट्स रॉन्ग विद दिस ऐड पापा? व्हाय ऑल द हिंदूस आर अगेंस्ट दिस ऐड? आलिया इज़ राइट, डॉटर्स आर नॉट वन्स पर्सनल ऐसेट्स, एनी वन कैन डोनेट देम। डॉटर्स आर लव सो कन्यादान इस रॉन्ग एंड कन्यामान इस राइट।

अपनी जिंदगी के लगभग पैंतालीस बसंत देख चुके बसंतराम जी ने गहरी सांस छोड़ी। टीवी का रिमोट उठाकर उसकी आवाज़ को म्यूट किया और अपनी बेटी की तरफ मुड़े। थोड़ी देर तक उसे अपने मोबाइल फोन में फेसबुक की पोस्ट्स पर आलिया को सपोर्ट करते हुए पोस्ट करते हुए देखते रहे फिर मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ फेरा। एमी ने उनकी तरफ देखा और कहा व्हाट हैपेंड डैड?

बसंतराम जी ने कहा "पिछले हफ्ते जब तेरी मां ने तेरे लिए साड़ी ली थी तो लगा तू कितनी बड़ी हो गई लेकिन आज तेरी बातें सुनकर पता चला तू तो अभी भी वैसी ही छोटी सी है जैसी बचपन में हुआ करती थी। तुझे पता है, तुझे मेले में जाना इतना पसंद था कि कोई अगर झूठ भी ये कह दे कि मैं मेला जा रहा हूं तो तू उसके साथ चल पड़ती थी चाहे तू उसे जानती हो या ना हो। रात में जलते रंग बिरंगे नाइटबल्ब को देखकर भी तू यही कहती थी कि मेला शुरु हो गया है।

एमी ने मुंह बनाते हुए कहा "व्हाट डैड!" बसंतराम जी ने मुस्कुराते हुए कहा "तू अब भी झूठी चकाचौंध देखकर आकर्षित हो जाती है।" एमी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से अपने पिता की ओर देखा तो उन्होंने कहा "तुझे पता है 'अमृता', 'मान' किसे कहते हैं?" एमी ने तुरंत अपने फोन में गूगल खोलते हुए कहा "होल्ड ऑन डैड, आई विल टेल यू।

उसके पिताजी ने फोन की स्क्रीन पर हाथ रखते हुए कहा गूगल पर मतलब ढूंढेगी तो बताएंगे किसी वस्तु का नाप लेकिन इसका एक अर्थ और होता है। मान, मतलब आदर, इज्ज़त, सम्मान। कन्यामान, इस शब्द को तुम आज के बच्चे हैशटैग लगाकर जो प्रसिद्ध कर रहे हो, ये तुम्हारे लिए नया होगा। इसके पीछे के जिस भाव को तुम दर्शाना चाह रहे हो वो तुम लोगों के लिए नए हैं। हम और हमारी पहले की असंख्य पीढियां कन्या के मान और सम्मान के लिए हमेशा से प्रतिबद्ध रही हैं।

उन्होंने बोलना जारी रखा ,इतिहास के पन्ने पलटकर देखो जरा अमृता, कन्या का जो स्थान हमारे सनातन धर्म में है वो शायद ही किसी अन्य धर्म में होगा। हम कन्याओं को पूजते हैं, हमने उन्हें देवी का पद दिया है तो तुम्हें क्या लगता है कि हम उनका मान नहीं करेंगे? हम तो खुद उन्हीं के जने हुए हैं, हमारी क्या औकात की हम उन्हें कुछ दें, हमारा जीवन तो खुद हमें उन्हीं की दी हुई भेंट है और तुम्हें लगता है उन्हीं के दिए हुए जीवन में हम उन्हें मान दिए बिना ही जीवित हैं। 

अमृता ने कहा "बट डैड..." बसंतराम जी ने उसकी बात काटते हुए कहा "ये जो तुम आज मेरे सामने जींस पहनकर बैठी हो, हाथ में महंगा फोन और अनलिमिटेड इंटरनेट का लुत्फ उठा रही हो, अपनी मर्ज़ी के हिसाब से खा पी रही हो, पहन ओढ़ रही हो, घूमने जा रही हो, दोस्त बना रही हो, अपने विचार मेरे सामने, समाज के सामने रख रही हो, अच्छे खासे अमृता नाम को भूलकर एमी नाम रखकर घूम रही हो, ये सब मान ही है जो हम तुम्हें देते हैं क्योंकि तुम हमारी बेटी ही नहीं, एक कन्या भी हो। बचपन में नवरात्रि के दिनों में हमने तुम्हारी पूजा की है, तुम्हें साक्षात देवी मानकर, तुम्हारे पैर छुए हैं, पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ, और आज तुम और तुम्हारे जैसी नई पीढ़ी के बच्चे हमें सिखा रहे हैं कि हमें कन्या का मान करना चाहिए।

अब उनकी आवाज थोड़ी ऊंची हो गई "एक बार उन मजहब वालों के समाज में, उनके देशों में जाकर देखो, वहां कन्याओं की क्या स्थिति है? वहां अपनी मर्जी से घूमना फिरना, पहनना छोड़ो अपनी मर्जी से खा भी नहीं सकती वो कन्याएं जिन्हें वहां के लोग खा तून कहते हैं। इस शब्द का मतलब समझती हो, क्यों उन्हें वहां खा तून कहते हैं? खा तून मतलब खाओ और तुनक जाओ। वहां स्त्रियों को सिर्फ और सिर्फ भोगा जाता है और यहां स्त्रियों को भजा जाता है। और अगर तुम्हें ये सब आज के भारत में दिख रहा है तो ये जहर भी उन्हीं मजहबी लोगों का फैलाया हुआ है। एक बार तुम अगर अपनी आंखों से वो सब देख लोगी ना तो तुम्हें कन्यामान का सही अर्थ पता लग जायेगा और मैं तो हैरान हूं कि अफगानिस्तान की स्थिति देखने के बाद भी तुम कैसे ये कह सकती हो।

बसंतराम जी चुप हो गए। अमृता ने भी कुछ नहीं कहा। थोड़ी देर बाद वो बोले "बेटा कन्यादान का अर्थ ये नहीं कि हम अपनी बेटी किसी और को दे रहे हैं क्योंकि अब हम उसकी परवरिश नहीं कर सकते या उसके खर्चे नहीं उठा सकते। अरे जिस मां बाप ने कन्या को जन्म दिया वो जीवनभर उसका पालन पोषण कर सकते हैं लेकिन कन्यादान करने के पीछे समाज का एक बहुत बड़ा हित छुपा होता है। कन्यादान, अग्नि को साक्षी मानकर, सभी देवी देवताओं का आह्वान कर के, अपनी कन्या को एक योग्य वर के हाथों में सौंपने का प्रण होता है ताकि वो कन्या एक नए परिवार में जाकर एक नई पीढ़ी के निर्माण की सृजना बन सके। एक ऐसे समाज का निर्माण कर सके जहां प्रेम, वात्सल्य और सम्मान हो और वर भी उसका वरण पूरे मनोयोग से करता है और वचन देता है कि जो स्त्री अपनी जननी और जन्मभूमि को त्याग कर, बिना किसी स्वार्थ के, परमार्थ की इच्छा से केवल समाज के हित के लिए उसके पास आ रही है वो उसका आजीवन भरण, पोषण और रक्षा करेगा।

कन्यादान की ये व्याख्या सुनकर अमृता तो हैरान ही हो गई। उसने कहा "सॉरी डैड, मुझे तो ये सब पता ही नहीं था। अच्छा आप ये सब दुबारा एक्सप्लेन करोगे क्या, वो मेरा फ्रेंड है ना आरिफ़, उसे बताना है कि कन्यादान की ये वैल्यू होती है। वो अक्सर कहता है कि तुम हिंदुओं के रीति रिवाज बहुत...

 अरे वो होता कौन है हमारे रीति रिवाजों पर उंगली उठाने वाला???" अमृता की बात पूरी सुने बिना ही बसंतराम जी गरज पड़े "किसने हक दिया उसे कि वो हमसे प्रश्न करे हमारे रीति रिवाजों को लेकर वो भी तब जब वो उत्तर सुनने के लायक भी नहीं!!! किसने अधिकार दिया उसे कि वो हमारे धर्म, हमारे धार्मिक स्थान, हमारे संस्कार, हमारे रीति रिवाजों के बारे में टिप्पणी करे? आखिर किसने??

अमृता के मुंह से टूटे फूटे से बोल निकले "वो मैं... बस....

"अमृता" बसंतराम जी बोले "जब वो आरिफ तुमसे तुम्हारे सनातन धर्म के बारे में सवाल करता है तो तुम चुप हो जाती हो, जब वो हमारे धार्मिक स्थानों के बारे में उल्टा सीधा कहता है तो तुम उसे जवाब नहीं देती, जब वो हमारे रीति रिवाजों पर उंगली उठाता है तुम उसी का साथ देती हो। कभी तुमने उस से पलटकर उसके मजहब के बारे में सवाल किया है? कभी उस से पूछा है कि हलाला क्यों किया जाता है? कभी जानने की कोशिश की है कि वो तीन तलाक के फैसले का इतना विरोध क्यों कर रहे थे? अरे ये ऐसे लोग हैं अमृता कि अगर इनका अपना स्वार्थ ना हो ना तो ये स्त्रियों को पानी तक न पीने दें। ऐसे लोगों को क्या हक है कि हमारे धर्म, हमारे रीति रिवाजों, हमारे कन्यादान जैसे तप पर सवाल उठाएं।

"अमृता, मैंने तुम्हें बचपन से सिखाया है कि जब तक कोई काम तुम खुद अच्छे से करना ना सीख लो तब तक दूसरों को उसके बारे में ज्ञान न दो। जिस नैतिकता का पाठ ये लोग हमें पढ़ाने की कोशिश करते हैं, इनका खुद उस से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं इसलिए ऐसे लोगों के फालतू सवालों का या तो मुंह तोड़ जवाब दो या इनका मुंह ही तोड़ दो लेकिन अपने सनातन पर कभी किसी को उंगली मत उठाने दो। यही हमारा सच्चा धर्म है।

अमृता पिताजी की बातों से काफी प्रभावित हुई। उसने उन्हें वचन दिया कि आज के बाद वो खुद भी अपने धर्म के बारे में जानेगी और दूसरों को भी उसके बारे में बताएगी। तभी मां ने आवाज लगाई "आ जाओ, खाना खा लो सब।" बसंतराम जी ने कहा "चलें एमी?" अमृता ने मुस्कुराते हुए कहा एमी नहीं, अमृता।

...यूट्यूब पे शत्रु बोध का ज्ञान पेलने वालों विचार करो शत्रु कौन है? बाहरी शत्रु से हम लड़ सकते है पर जो अंदर से सनातन को खोख्ला कर रहे है उनसे कौन लड़ेगा ?

*कड़वा  सच।*

_शत्रु बोध नहीं हमारा ज्ञान बोध ही हमारी सनातन संस्कृति की रक्षा करेगा।_

*_और जब तक हम रामचरितमानस, भगवद्गीता को समझेगे नहीं तब तक हम भ्रमित ही रहेंगे।_*

इतनी गरीबी आ गयी कि अब बच्चों का हैप्पी बड्डे मकडोनल में मनाना पड़ रहा है ?


पिछले दिनों Gurgoan जाना हुआ । 
वहां एक मित्र  Navi Singh के घर रुका । उनकी छोटी बहन अमरीका में रहती हैं । छुट्टियों में घर आई हुई थीं ।
 बातों बातों में बताने लगी कि 
*अमरीका में बहुत गरीब मजदूर वर्ग McDonald , KFC और Pizza Hut का burger पिज़्ज़ा ,खाता है ।*
 

अमरीका और Europe के रईस धनाढ्य करोड़पति लोग *ताज़ी सब्जियों उबाल के खाते हैं ,*
ताज़े गुंधे आटे की गर्मा गर्म bread/रोटी खाना बहुत बड़ी luxury है ।
 
ताज़े फलों और सब्जियों का Salad वहां नसीब वालों को नसीब होता है ........ 
ताजी हरी पत्तेदार सब्जियां अमीर लोग ही Afford कर पाते हैं । 

गरीब लोग Packaged food खाते हैं । 
हफ़्ते / महीने भर का Ration अपने तहखानों में रखे Freezer में रख लेते हैं और उसी को Micro Wave Oven में गर्म कर कर के खाते रहते हैं ।

आजकल भारतीय शहरों के नव धनाढ्य लोग 
*अपने बच्चों का हैप्पी बड्डे मकडोनल में मनाते हैं ।*
 उधर अमरीका में कोई ठीक ठाक सा मिडल किलास आदमी McDonalds में अपने बच्चे का हैप्पी बड्डे मनाने की सोच भी नही सकता ......... 
लोग क्या सोचेंगे ?
 इतने बुरे दिन आ गए ? *इतनी गरीबी आ गयी कि अब बच्चों का हैप्पी बड्डे मकडोनल में मनाना पड़ रहा है ?*

भारत का गरीब से गरीब आदमी भी ताजी सब्जी , ताजी उबली हुई दाल भात खाता है ......... 
ताजा खीरा ककड़ी खाता है।
 अब यहां गुलामी की मानसिकता हमारे दिल दिमाग़ पे किस कदर तारी है ये इस से समझ लीजिये कि
 *Europe अमरीका हमारी तरह ताज़ा भोजन खाने को तरस रहा है और हम हैं कि Fridge में रखा बासी packaged food खाने को तरस रहे हैं ।*

 अमरीकियों की Luxury जो हमें सहज उपलब्ध है हम उसे भूल *उनकी दरिद्रता अपनाने के लिए मरे जाते हैं ।*

ताज़े फल सब्जी खाने हो तो फसल चक्र के हिसाब से दाम घटते बढ़ते रहते है ।

इसके विपरीत डिब्बाबंद Packaged Food के दाम साल भर स्थिर रहते है बल्कि समय के साथ सस्ते होते जाते हैं । 
जस जस Expiry date नज़दीक आती जाती है , डिब्बाबंद भोजन सस्ता होता जाता है और एक दिन वो भी आ जाता है कि Store के बाहर रख दिया जाता है , 
*लो भाई ले जाओ , मुफ्त में।*
 हर रात 11 बजे Stores के बाहर सैकड़ों लोग इंतज़ार करते हैं ....... 
*Expiry date वाले भोजन का।*

125 करोड़ लोगों की विशाल जनसंख्या का हमारा देश आज तक किसी तरह ताज़ी फल सब्जी भोजन ही खाता आया है ।
*ताज़े भोजन की एक तमीज़ तहज़ीब होती है । ताज़े भोजन की उपलब्धता का एक चक्र होता है । ताज़ा भोजन समय के साथ महंगा सस्ता होता रहता है।*

 आजकल समाचार माध्यमों में टमाटर और हरी सब्जियों के बढ़ते दामों के लेकर जो चिहाड़ मची है 
*वो एक गुलाम कौम का विलाप है ........* 
जो अपनी ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत को भूल अपनी गुलामी का विलाप कर रही है ।

*भारत बहुत तेज़ी से ताजे भोजन की समृद्धि को त्याग डिब्बेबन्द भोजन की दरिद्रता की ओर अग्रसर है।*

मित्रों इस पोस्ट को हर हिंदुस्तानी के 
*मोबाइल और मन मष्तिष्क* में पहुँचा दो। जिससे हम अपने लोगों को अच्छी जानकारी देकर स्वस्थ रख पाए।।

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