यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 26 जुलाई 2021

माहेश्वरियों में श्रावण (सावन) माह का बहुत महत्त्व है


श्रावण मास का महत्व -
परम पुरुष (शिव) और प्रकृति (भवानी) का प्रणय ही श्रावण की आध्यात्मिक आर्द्रता है. भगवान महेश और जगतजननी पार्वती के प्रणय (प्रेम) का महीना है श्रावण. तो जिस श्रावण मास में भगवान महेशजी (शिव) का सर्वत्र पूजन हो, उसमें उनकी शक्ति पार्वती की उपेक्षा कैसे की जा सकती है? इसलिए श्रावण माह सदा से ही महेश-पार्वती की आराधना का पर्वकाल रहा है. श्रावण महेश-पार्वती के प्रणय का माह होने के कारन इस माह में भगवान महेशजी और जगतजननी पार्वती की एकत्रित पूजा-अर्चना का महत्व है. शिव के साकार स्वरुप की आराधना का महत्व है. वस्तुतः शिवलिंग/शिवपिंड भगवान शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है और मूर्ति साकार स्वरुप का प्रतिक है इसलिए श्रावण में महेश-पार्वती की प्रतिमा (मूर्ति) अथवा तसबीर की पूजा का महत्व है.

श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को महेशजी की और प्रत्येक मंगलवार को देवी पार्वती की पूजा का महत्व बताया गया है. इसीलिए श्रावण के प्रत्येक मंगलवार को मंगलागौरी की विशेष पूजा होती है. श्रावण में ही आदिशक्ति पार्वती को समर्पित हरितालिका तीज का पर्व भी मनाया जाता है. सुहागन महिलाएं अपने पति के लम्बी उम्र के लिए और कुमारिकाएं सुयोग्य वर (पति) पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती है. इस माह में महेश-पार्वती के पूजन मात्र से सम्‍पूर्ण महेश परिवार (शिव परिवार) की प्रसन्‍नता-आशीर्वाद प्राप्‍त होता है.

माहेश्वरियों में श्रावण (सावन) माह का बहुत महत्त्व है. जैसे जैनों में चातुर्मास का महत्त्व है, जैसे मुस्लिमों में रमजान के महीने का महत्त्व होता है उसी तरह माहेश्वरियों में श्रावण माह का महत्त्व है. माहेश्वरी अपने आप को भगवान महेश-पार्बती की संतान मानते है ; श्रावण महिना भगवान महेश-पार्बती के आराधना का पर्व है. इस महीने में प्रतिदिन नित्य प्रार्थना, मंगलाचरण, महेश मानस पूजा, ओंकार (ॐ) का जप और अन्नदान किया जाता है. श्रावण माह (महीने) में की गयी आराधना से स्वास्थ्य-धन-धान्य-सम्पदा आदि ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, पति-पत्नी में प्रेम प्रगाढ़ (गहरा) होता है, दाम्पत्य जीवन सुखी होता है, परिवार में आपसी प्यार बढ़ता है. राजस्थानी समाज में खासकर माहेश्वरी समाज में परंपरा के अनुसार श्रावण के महीने में हास्य-व्यंग कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है.

शमीपत्र चढाने का महत्व -
माहेश्वरीयों में महेशजी को 'समीपत्र' चढाने की परंपरा रही है. मान्यता है की महेश-पार्वती को शमीपत्र चढाने से धन-धान्य-समृद्धि की प्राप्ति होती है. पति-पत्नी मिलकर एकसाथ महेश-पार्वती को शमीपत्र चढाने से उनका आपसी प्रेम बढ़ता है. भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र चढ़ाते हैं लेकिन माहेश्वरीयों में महेशजी को समीपत्र (शमीपत्र) चढाने की परंपरा रही है. इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं. ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र (शमीपत्र) का महत्व होता है.

श्रावण के सोमवार की सरल व्रत विधि के अनुसार भगवान महेशजी के साथ माता पार्वती, गणेशजी, और नंदी जी की पूजा होती है। विधि‍विधान एवं पवित्र तन-मन से किए इन श्रावण सोमवार व्रतों से व्रती पुरुष का दुर्भाग्‍य भी सौभाग्‍य में परिवर्तित हो जाता है. यह व्रत मनो:वांछित धन, धान्‍य, स्‍त्री, पुत्र, बंधु-बांधव एवं स्‍थाई संपत्ति प्रदान करने वाला है. श्रावण मास के व्रत से महेश-पार्वती की कृपा व अभीष्‍ट सिद्धि-बुद्धि की प्राप्ति होती है.

क्या आपके पूजा में (पूजाघर में) महेश परिवार (भगवान महेशजी, सर्वकुलमाता आदिशक्ति माँ भवानी एवं सुखकर्ता-दुखहर्ता गणेशजी) बिराजमान है?
.....यदि नही है तो सावन (श्रावण) माह के पावनपर्व पर सोमवार के दिन "महेश परिवार" को विधिपूर्वक अपने पूजा में स्थापित करें. प्रतिदिन (खासकर सोमवार के दिन) सपरिवार भगवान महेशजी की आरती करें. आपकी एवं आपके घर-परिवार की सुख-समृद्धि दिन ब दिन बढ़ती जाएगी. पौराणिक मान्यता है की जिस घर-परिवार में 'महेश परिवार' की फोटो या मूर्ति श्रध्दापूर्वक बिराजमान होती है वहां पूरा परिवार बड़े प्यार से मिल-जुलकर रहता है; साथ ही सुख-समृद्धि-सम्पदा की दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती है.

जय भवानी....... जय महेश !

भले मोदी कुछ जागृति पैदा करने में सफल हुए हों, पर बिना संपूर्ण जागृति समग्र हिंदुओं के दुर्भाग्य का अंत नही होगा।

कभी कभी सोचता हूँ कि 1500 ई. के बाद के कितने साहसी और बुद्धिमानी रहे होंगे ब्रिटेन के लोग, जिन्होंने एक ठण्डे प्रदेश से निकलकर अंजान रास्ते और अंजान जगहों पर जाकर लोगों को गुलाम बनाया। अभी भी देखा जाए तो ब्रिटेन की जनसंख्या और क्षेत्रफल गुजरात के बराबर है लेकिन उन्होंने दशकों नहीं शताब्दियों तक दुनियां को गुलाम रखा। 

भारत की करोड़ों की जनसंख्या को मात्र कुछ लाख या हजार लोगों ने गुलाम बनाकर रखा, और केवल गुलाम ही नहीं बनाया खूब हत्यायें की, लूटपाट की। उनको अपनी कौम पर कितना गर्व होगा कि इत्तू से देश के इत्तू से लोग पूरी दुनिया को नाच नचाते रहे। भारत के एक जिले में शायद ही 50 से ज्यादा अंग्रेज रहे होंगे लेकिन लाखों लोगों के बीच अपनी धरती से हजारों मील दूर आकर अपने से संख्या में कई गुना लोगों को इस तरह गुलाम रखने के लिए अद्भुत साहस रहा होगा।

अगर इतिहास देखता हूँ तो पता चलता है कि उनके पास हम पर अत्याचार करने के लिए लोग भी नहीं थे तो उन्होंने हम में से ही कुछ लोगों को भर्ती किया था हम पर अत्याचार करने के लिए, हमें लूटने के लिए। मुझे सोचकर ही अजीब लगता है कि हम लोग अंग्रेजों के सैनिक बन कर अपने ही लोगों पर अत्याचार करते थे। चंद्रशेखर, बिस्मिल जैसे मात्र कुछ गिनती के लोग थे जिन्हें हमारा ही समाज हेय दृष्टि से देखता था। आज वही नपुंसक समाज उन चंद लोगों के नाम के पीछे अपना कायरतापूर्ण इतिहास छुपाकर झूठा दम्भ भरता है।

अरब के रेगिस्तान से कुछ भूखे, जाहिल, आतातायी लोग आए और उन्होंने भी हमको लूटा, मारा, बलात्कार किया और हम वहाँ भी नाकाम रहे। उन्होंने हमारे मन्दिर तोड़े, हमारी स्त्रियों के बलात्कार किये लेकिन हमने क्या किया कि वो दिन में विवाह में लूटपाट करते हैं तो रात को चुपचाप विवाह करने लगे, जवान लड़कियों को उठा ले जाते हैं तो बचपन में ही शादी करने लगे और अगर उसमें ही असुरक्षा हो तो बेटी पैदा होते ही मारते रहे। बुरा लगता तो ठीक है लेकिन यही हमारी सच्चाई है।  

हमने 1000 सालों की दुर्दशा से कुछ नहीं सीखा। आज एक जनसँख्या उन्हीं अरबी अत्याचारियों को अपना पूर्वज मानने लगी है। कुछ उन ईसाइयों को अपना पूर्वज मानने लगी है.. यानि हम स्वाभिमानहीन लोग हैं, स्वतंत्रता मिलने पर भी हम मानसिक गुलाम ही रहें। दूसरी तरफ हमारी व्यवस्थाएं भी सड़ी हुई हैं जिन्होंने इन  सभी नाकामियों का कभी मंथन ही नहीं किया। हमारे ऊपर जब आक्रमण हो रहे थे और हम जब एक युद्धकाल से गुजर रहे थे, हमारी बहुसंख्यक जनसँख्या इस मानसिकता में थी कि "कोउ हो नृप हमें का हानि" ..मतलब उनको युद्ध से राज्य से राजा से कोई मतलब नहीं था।  ये सब बस क्षत्रिय के काम थे। उनको करना है तो करें, नहीं करना तो नहीं करें। यही कारण था कि मुस्लिम आक्रमण से राजस्थान क्षेत्र छोड़कर समस्त भारत धराशाही हो गया था क्योंकि राजस्थान में क्षत्रिय जनसँख्या अधिक थी तो संघर्ष करने में सफल रहे। ऐसे ही कुछ क्षेत्र और थे जो इसमें सफल हुए।

*आज युद्धकाल में इस्राइल बुरी तरह शत्रुओं से घिरा हुआ है लेकिन सुरक्षित है क्योंकि वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति की देश और धर्म की सुरक्षा की जिम्मेदारी है* लेकिन हमने ये कार्य केवल क्षत्रियों पर छोड़ दिया था.. जबकि फ़ौज में भी युद्ध के समय माली, नाई, पेंटर, रसोइया आदि सभी लड़ाका बनकर तैयार रहते हैं। लेकिन हमने युद्धकाल में भी परिस्थितियों को नहीं समझा और अपनी योजनायें नहीं बनाई अपनी व्यवस्थाएँ नहीं बदली। 

*मुझे अम्बेडकर जी का वह कथन सोचने पर मजबूर का देता है कि "अगर समाज के एक बड़े वर्ग को युद्ध से दूर नहीं किया गया होता तो भारत कभी गुलाम नहीं बनता"। जरा विचार करके देखिए कि मुस्लिम एवं अंग्रेजों से जिस तरह क्षत्रिय लड़े, और पूरी पूरी रियायत मिट गई, अगर पूरा हिन्दू समाज क्षत्रिय बनकर लड़ा होता तो क्या हम कभी गुलाम हो सकते थे? सामान्य परिस्थिति में समाज को चलाने के लिए उसको वर्गीकृत किया ही जाता है लेकिन विपत्तिकाल में नीतियों में परिवर्तन भी किया जाता है, लेकिन हम इसमें पूरी तरह नाकाम लोग हैं। इसलिए 1000 सालों से दुर्भाग्य हमारे पीछे पड़ा है। 2000 साल से हमारा पुरोहित वर्ग, समाज को जगाने, एक करने से ज्यादा, यह सिद्ध करने मे लगा रहा की पानी का कलश दांए रखना चाहिए कि बाँए!!!*

अटल जी का एक भाषण सुन रहा था जिसमें वो कह रहे थे कि एक युद्ध जीतने के बाद जब 1000 अंग्रेजी सैनिक ने जुलूस निकाला था तो सड़क के दोनों तरफ 20000 भारतीय उनको देखने आए थे। अगर ये 20000 लोग पत्थर डण्डे से भी मारते तो 1000 सैनिक को भागते ही बनता लेकिन ये 20 हजार लोग केवल युद्व के मूक दर्शक थे।

आज भी कुछ खास नहीं बदला। मुगलों और अंग्रेजों का स्थान एक खास Dynasty ने ले लिया और वामपंथियों/सेकुलरों के रूप में खतरनाक गद्दारों की फौज भी पैदा हो गई। 
लेकिन सबसे बड़ी विडंबना है कि हम आज भी बंटे हुए हैं। 100 करोड़ होकर भी मूक दर्शक बने हुए हैं। 

1-1 पत्थर भी मारने मे भय लगता है!!!

भले मोदी कुछ जागृति पैदा करने में सफल हुए हों, पर बिना संपूर्ण जागृति समग्र हिंदुओं  के दुर्भाग्य का अंत नही  होगा।
🕉️🇮🇳🕉️

function disabled

Old Post from Sanwariya