यह जीवन, मृत्यु और प्रकृति की योजना से जुड़ी गहराईयों को स्पर्श
1. “अकाल मृत्यु” – एक मानव निर्मित धारणा:
हम जब किसी को युवा अवस्था में या किसी दुर्घटना, बीमारी, आत्महत्या या अन्य अप्रत्याशित घटना से मरते देखते हैं, तो हम कह उठते हैं — “अरे! इसकी तो अकाल मृत्यु हो गई।”
लेकिन यह सोच हमारी सीमित समझ, भावनात्मक पीड़ा, और समय की संकल्पना पर आधारित है। हम यह मानकर चलते हैं कि एक इंसान को “इतनी उम्र” तक जीना चाहिए — जैसे 70 या 80 वर्ष। जब उससे पहले किसी की मृत्यु होती है, तो हमें लगता है कि उसकी जीवनरेखा अधूरी रह गई।
लेकिन…
2. ब्रह्मांड का नियम — कुछ भी आकस्मिक नहीं होता:
प्रकृति में कोई दुर्घटना नहीं होती।
जो कुछ भी घट रहा है — वह एक सूक्ष्म और गहराई से रचा गया “प्लान” है। यह ठीक वैसे ही है जैसे कोई सुपर कम्प्यूटर पहले से सब कोड कर चुका हो।
- कब कौन पैदा होगा,
- किससे मिलेगा,
- किसे क्या अनुभव होगा,
- और कब मृत्यु होगी — कैसे होगी — किसके हाथों होगी — वो भी किस गाड़ी से या किस परिस्थिति में होगी —
ये सब पहले से तय होता है।
इसे ही कुछ लोग कर्म का सिद्धांत, प्रारब्ध या प्रकृति का डीप एल्गोरिद्म कहते हैं।
3. आत्मा की यात्रा — चेतना और अनुभव:
हम केवल शरीर नहीं हैं। हम एक चेतना (Consciousness) हैं, जो अनुभव के लिए इस भौतिक शरीर को लेती है। चेतना की ये यात्रा कई परतों में होती है:
- निअक्षर से हंस (शुद्ध चेतना)
- फिर सूरत (मन-बुद्धि)
- फिर सूक्ष्म शरीर (अहंकार, वासना, स्मृति आदि)
- और फिर स्थूल शरीर (भौतिक शरीर)
इस अनुभव को पूरा करने के लिए आत्मा जन्म लेती है — और मृत्यु तक की पूरी रूपरेखा पहले से ही तय होती है। जब उसका उद्देश्य पूर्ण होता है, तब शरीर को त्याग देती है। इस त्याग को ही हम मृत्यु कहते हैं।
4. अकाल मृत्यु का भ्रम क्यों?
हमें मृत्यु की वजहें दिखाई देती हैं — जैसे:
- एक्सीडेंट
- बीमारी
- आत्महत्या
- मर्डर
लेकिन हमें नहीं दिखता कि इन सब घटनाओं का बीज कहां, कैसे, और कब बोया गया था।
इसलिए हम सोचते हैं कि ये “अचानक” हो गया।
जबकि, ज्ञानी लोग कहते हैं —
“इस ब्रह्मांड में कुछ भी बिना प्लानिंग के नहीं होता।”
5. शास्त्रों में भी संकेत:
-
भगवद्गीता (2.27) में कहा गया है:
“जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु: ध्रुवं जन्म मृतस्य च।”
जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है।
और जो मरता है, उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है। -
योगवासिष्ठ, उपनिषदों, और शिव सूत्रों में भी कहा गया है कि आत्मा की गति कर्मों के अनुसार होती है।
निष्कर्ष:
“अकाल मृत्यु” जैसी कोई चीज़ वास्तव में नहीं है।
ये एक मानव-निर्मित धारणा है, जो हमारी सीमित समझ, भावनात्मक दृष्टिकोण और भ्रम पर आधारित है।
प्रकृति में सब कुछ नियोजित है, पूर्व निर्धारित है, और गहन योजना के अनुसार ही चलता है।
हमें जो “अचानक” लगता है, वो वास्तव में बहुत पहले से लिखा जा चुका होता है।