यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

जौ के औषधीय गुण है :

जौ के औषधीय गुण है :
हमारे ऋषियों-मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था। वेदों द्वारा यज्ञ की आहुति के रूप में जौ को स्वीकारा गया है। जौ को भूनकर, पीसकर, उस आटे में थोड़ा-सा नमक और पानी मिलाने पर सत्तू बनता है। कुछ लोग सत्तू में नमक के स्थान पर गुड़ डालते हैं व सत्तू में घी और शक्कर मिलाकर भी खाया जाता है। गेंहू , जौ और चने को बराबर मात्रा में पीसकर आटा बनाने से मोटापा कम होता है और ये बहुत पौष्टिक भी होता है .राजस्थान में भीषण गर्मी से निजात पाने के लिए सुबह सुबह जौ की राबड़ी का सेवन किया जाता है .

अगर आपको ब्लड प्रेशर की शिकायत है और आपका पारा तुरंत चढ़ता है तो फिर जौ को दवा की तरह खाएँ। हाल ही में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि जौ से ब्लड प्रेशर कंट्रोल होता है।कच्चा या पकाया हुआ जौ नहीं बल्कि पके हुए जौ का छिलका ब्लड प्रेशर से बहुत ही कारगर तरीके से लड़ता है।

यह नाइट्रिक ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे रसायनिक पदार्थे के निर्माण को बढ़ा देता है और उनसे खून की नसें तनाव मुक्त हो जाती हैं।

उत्तर प्रदेश के फैजाबाद स्थित नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने इस नयी किस्म नरेंद्र जौ अथवा उपासना को विकसित किया है और हाल ही में उत्तर भारत के किसानों के लिए जारी किया गया है। नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉक्टर सियाराम विश्वकर्मा ने बताया कि इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह छिलका रहित है। उपासना में बीटाग्लूकोन ग्लूटेन की कम मात्रा सुपाच्य रेशो एसिटिल कोलाइन (कार्बोहाइड्रेट पदार्थ) पाया जाता है।

इसमें फोलिक विटामिन भी पाया जाता है। यही कारण है कि इसके सेवन से रक्तचाप मधुमेह पेट एवं मूष संबंधी बीमारी गुर्दे की पथरी याद्दाश्त की समस्या आदि से निजात दिलाता है।

इसमें एंटी कोलेस्ट्रॉल तत्व भी पाया जाता है।

यह उत्तर भारत के मैदानी इलाकों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और गुजरात की एक महत्वपूर्ण रबी फसल है।

इसका उपयोग औषधि के रूप मे किया जा सकता है । जौ के निम्न औषधीय गुण है :

- कंठ माला- जौ के आटे में धनिये की हरी पत्तियों का रस मिलाकर रोगी स्थान पर लगाने से कंठ माला ठीक हो जाती है।
- मधुमेह (डायबटीज)- छिलका रहित जौ को भून पीसकर शहद व जल के साथ सत्तू बनाकर खायें अथवा दूध व घी के साथ दलिया का सेवन पथ्यपूर्वक कुछ दिनों तक लगातार करते करते रहने से मधूमेह की व्याधि से छूटकारा पाया जा सकता है।
- जलन- गर्मी के कारण शरीर में जलन हो रही हो, आग सी निकलती हो तो जौ का सत्तू खाने चाहिये। यह गर्मी को शान्त करके ठंडक पहूचाता है और शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
- मूत्रावरोध- जौ का दलिया दूध के साथ सेवन करने से मूत्राशय सम्बन्धि अनेक विकार समाप्त हो जाते है।
- गले की सूजन- थोड़ा सा जौ कूट कर पानी में भिगो दें। कुछ समय के बाद पानी निथर जाने पर उसे गरम करके उसके कूल्ले करे। इससे शीघ्र ही गले की सूजन दूर हो जायेगी।
- ज्वर- अधपके या कच्चे जौ (खेत में पूर्णतः न पके ) को कूटकर दूध में पकाकर उसमें जौ का सत्तू मिश्री, घी शहद तथा थोड़ा सा दूघ और मिलाकर पीने से ज्वर की गर्मी शांत हो जाती है।
- मस्तिष्क का प्रहार- जौ का आटा पानी में घोलकर मस्तक पर लेप करने से मस्तिष्क की पित्त के कारण हूई पीड़ा शांत हो जाती है।
- अतिसार- जौ तथा मूग का सूप लेते रहने से आंतों की गर्मी शांत हो जाती है। यह सूप लघू, पाचक एंव संग्राही होने से उरःक्षत में होने वाले अतिसार (पतले दस्त) या राजयक्ष्मा (टी. बी.) में हितकर होता है।
- मोटापा बढ़ाने के लिये- जौ को पानी भीगोकर, कूटकर, छिलका रहित करके उसे दूध में खीर की भांति पकाकर सेवन करने से शरीर पर्यात हूष्ट पुष्ट और मोटा हो जाता है।
- धातु-पुष्टिकर योग- छिलके रहित जौ, गेहू और उड़द समान मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण में चार गुना गाय का दूध लेकर उसमे इस लुगदी को डालकर धीमी अग्नि पर पकायें। गाढ़ा हो जाने पर देशी घी डालकर भून लें। तत्पश्चात् चीनी मिलाकर लड्डू या चीनी की चाशनी मिलाकर पाक जमा लें। मात्रा 10 से 50 ग्राम। यह पाक चीनी व पीतल-चूर्ण मिलाकर गरम गाय के दूध के साथ प्रातःकाल कुछ दिनों तक नियमित लेने से धातु सम्बन्धी अनेक दोष समाप्त हो जाते हैं ।
- पथरी- जौ का पानी पीने से पथरी निकल जायेगी। पथरी के रोगी जौ से बने पदार्थ लें।
- गर्भपात- जौ का छना आटा, तिल तथा चीनी-तीनों सममात्रा में लेकर महीन पीस लें। उसमें शहद मिलाकर चाटें।
- कर्ण शोध व पित्त- पित्त की सूजन अथवा कान की सूजन होने पर जौ के आटे में ईसबगोल की भूसी व सिरका मिलाकर लेप करना लाभप्रद रहता है।
- आग से जलना- तिल के तेल में जौ के दानों को भूनकर जला लें। तत्पश्चात् पीसकर जलने से उत्पन्न हुए घाव या छालों पर इसे लगायें, आराम हो जायेगा। अथवा जौ के दाने अग्नि में जलाकर पीस लें। वह भस्म तिल के तेल में मिलाकर रोगी स्थान पर लगानी चाहियें।
- जौ की राख को शहद के साथ चाताने से खांसी ठीक हो जाती है |
- जौ की राख को पानी में खूब उबालने से यवक्षार बनता है जो किडनी को ठीक कर देता है

गीली हल्दी के सेवन के लाभ

गीली हल्दी ---
इन दिनों बाज़ार में गीली हल्दी उपलब्ध होती है जो दिखने में अदरक की तरह होती है . इसके सेवन के कई लाभ है ----
- इसमें करक्यूमिन होता है जो केंसर से लड़ता है . इसलिए केंसर के रोगी इसका रस सुबह खाली पेट अवश्य ले .
- यह बुढापे से दूर रखता है . अंदरूनी चोटों को भी ठीक करता है .
- इसका एक टुकडा मुंह में रखने से गले की खराश , खांसी , ज़ुकाम , दमा आदि दूर होता है .
- दिन गीली हल्दी मिले , खाना बनाने में इसी को कद्दूकस कर प्रयोग करे .
- सुबह गर्म पानी पीते समय इसे भी पानी में डाल दे .
- साबुत हल्दी के टुकड़ों को तवे पर भूनकर पीसकर शहद मिलाकर लेने से सर्दी, जुकाम, मौसमी संक्रमण में लाभ होता है।
- इसके टुकड़े अचार में डाले . एक अनोखे स्वाद वाला अचार तैयार हो जाएगा .छिली हुई कद्दूकस की हल्दी और कटी हुई हरी मिर्च को ,हल्दी नमक,राई की दाल ,नीबू का रस ,काला नमक ,जीरा पावडर,मिलाकर कांच की बरनी में १२ घंटे के लिए बंद कर धूप मैं रख दें.दुसरे दिन तेल मैं हिंग और मेथी दाने से तडका देकर ,ठंडा कर के अचार मैं मिक्स कर दें .अचार तैयार है तुरत या दो घंटे बाद आलू.मेथी या पालक के परांठों के साथ खाइए.इसे फ्रिज मैं रखे न तो ज्यादा दिनों तक चलेगा.
- इसकी सब्जी खाने से भयंकर सर्दी में भी कोई परेशानी नहीं होती .हल्दी की सब्जी में प्रयुक्त होने वाली सामग्री -
1-कच्ची (गीली) हल्दी की गांठे 500 gm
2-अदरक 200 gm
3-प्याज 250 gm
4-लहसुन 30 gm
5-टमाटर 500 gm
6-हरी मिर्च
7-दही 750 gm
8-देशी घी 500 gm
मिर्ची पाउडर,नमक,धनिया,जीरा,सौंफ,साबुत गर्म मसाला

हल्दी की सब्जी बनाने के लिए तैयारी-
1-सबसे पहले कच्ची हल्दी की गांठों को छीलकर कस लें (जैसे गाजर का हलवा बनाने के लिए गाजर को कस्तें है) |
2-अदरक को भी छीलकर कस लें और एक बर्तन में रख दें |
3-प्याज को छीलकर गोल कटिंग करें जैसे सलाद के लिए करते है |
4-लहसुन को छीलकर बारीक पीस कर एक कटोरी में रखलें |
5-टमाटर काटें (एक टमाटर के दो या तीन टुकडें ही करें) टमाटर ताजे होने चाहिए पिचके हुए नहीं |
6-हरी मिर्च को चीरा लगाकर उसके अन्दर से बीज निकाल दें व उसके चार टुकड़े कर लें |

उपरोक्त तैयारी करने के बाद अब सब्जी बनाना शुरू करतें है -
1-कड़ाही में घी गर्म करें व उसमे कसी हुई हल्दी को तब तक तलें जब तक हल्दी का रंग में हल्का भूरापन आ जाए | आंच को मंदा रखें | तलने के बाद तली हल्दी को घी से बाहर निकालकर एक बर्तन में रख दें |
2-अब उसी घी में प्याज भुनें तब तक जब तक प्याज का रंग गुलाबीपन पर आ जाएँ | भूनने के बाद प्याज को निकालकर एक अलग बर्तन में निकाल लें |
3-अब 3/4 किलो दही को एक बर्तन में लें व उसमे अपने स्वाद के हिसाब से मिर्ची पाउडर,धनिया,नमक आदि मसाले डालकर अच्छी तरह फैंट कर मिला लें |(बर्तन सिल्वर या कांसे का प्रयोग करें )|
4-अब एक दुसरे बर्तन (कड़ाही)में जो कांसे या सिल्वर का हो में उपरोक्त तलने के बाद बचे घी को छानकर गर्म करें और गर्म होते ही उसमे सौंफ,अदरक ,गर्म मसाला ,थोडा जीरा ,पीसा हुआ लहसुन,मिर्ची के कटे टुकड़े डालकर फ्राई करें | हल्का फ्राई होने के बाद दही में तैयार किया हुआ मसाला डाले दें | और इसमें उबाल आने के बाद आंच धीमी करके उसे तब तक पकाएं जब तक दही का पानी पूरी तरह से सुख ना जाएँ | पानी सुखते ही इसमें हिलाए जाने वाले चम्मच पर घी की मात्रा दिखाई देने लग जाएगी व दही की जाली बन जाएगी |
5-अब इस मसाले में उपरोक्त तली हुई सामग्री (हल्दी व प्याज) डाल दें व एक उबाल आने दें |
6-पहले उबाल के बाद कटे हुए टमाटर व हरा धनिया डालकर एक बार हिला दें व बर्तन का ढक्कन बंद कर चूल्हे से उतार लें , उतारने के बाद लगभग बीस मिनट तक ढक्कन ना हटायें |
अब आपकी स्वास्थ्यवर्धक स्वादिष्ट हल्दी की सब्जी तैयार है |

हल्दी की सब्जी खाने का देशी नुस्खा -आमतौर पर हमारे घरों में पतली रोटी बनती है पर हल्दी की सब्जी के साथ खाने के लिए रोटी मोटी बनवाएँ , एक या दो रोटी को थाली में रखकर उसके ऊपर सब्जी डालें व दूसरी रोटी से सब्जी खाएं , थाली में सब्जी के नीचे रखी रोटियां अंत में खाएं |

उम्रदराज लोग सर्दियों में कच्ची हल्दी की सब्जी का सेवन जरुर करें

चेतावनी - हल्दी की सब्जी में घी की मात्रा अधिक होती है साथ ही ये सर्दियों में बनती है इसलिए सब्जी खाने के तुरंत बाद पानी ना पीयें, वरना गला ख़राब हो सकता है |बहुत ज्यादा प्यास लगने पर गुनगुना पानी पीयें और पानी पीने से पहले एक पापड़ जरुर खाएं |

function disabled

Old Post from Sanwariya