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सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

भारतीय संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कार

 हिन्दू धर्म के अनुसार मानव के जन्म से लेकर मृत्यु तक कुल सोलह संस्कारों का निर्वाह किया जाता है
आज के लोगो को तो इनके नाम भी याद नहीं होंगे
फिर भी भारतीय संस्कृति की विदेशों में पूजा होती है तो कम से कम भारत के लोगो को तो ये जानना ही चाहिए

 भारतीय संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कार
1. गर्भाधान संस्कार
2. पुंसवन संस्कार ( गोद भराई )
3. सिमंतोनयन संस्कार
4. जात कर्म संस्कार (नावण )
5. नामकरण संस्कार
6. निष्क्रमण संस्कार
7. अन्नप्राशन संस्कार
8. चूडाकर्म संस्कार
9. उपनयन संस्कार (यज्ञोपवित या जनेऊ संस्कार )
10. वेदारम्भ संस्कार (विद्या आरम्भ )
11. समावर्तन संस्कार
12. विवाह संस्कार
13. अग्न्याधान संस्कार
14. दीक्षा संस्कार
15. महाव्रत संस्कार
16. अंतिम संस्कार (दाह संस्कार )


 

अगर नोकरी करनी है तो अफसर को परमेश्वर मानो

अफसर को परमेश्वर मानो



इस कलियुग की सकल नीति का सार सिर्फ इतना ही जानो
अगर नोकरी करनी है तो अफसर को परमेश्वर मानो
 
१. स्वाभिमान को गोली मारो लाज शर्म चूल्हे में डालो,
उनके एक इशारे पर ही नाच कूद की आदत डालो
बन्दर की सी खीस निपोरो कुत्ते की सी दूम हिलाओ,
गिरगिट का सा रंग बदल कर रोज गधे सा बोझ उठाओअ
फिर चाहो तो निज ड्यूटी पर खूब चैन से लम्बी तानो,
अगर नोकरी करनी है तो अफसर को परमेश्वर मानो  इस कलियुग की सकल .............................


2. अफसर मुंह से कभी न कहता सिर्फ इशारे से समझाता,
अफसर गलती कभी न करता दोष दूसरों के दिखलाता
इसीलिए मौके बेमोके उनके कोशल के गुण गो
"यस सर" का अभ्यास बधालो व्यस्त रहो तिनका न हिलाओ
यही तथ्य हृदयगम करलो आँख मूँद कर कहना मानो
 
अगर नोकरी करनी है तो अफसर को परमेश्वर मानो  इस कलियुग की सकल .............................

3. अफसर को खुश रखो प्यारे अपना काम बनाते जाओ]
इधर उधर की बात भिडाकर विमुख दुसरो से करवाओ
अगर खुशामद ईश्वर को भी खुश करने की ताकत रखती
तो अफसर का दिल पिगलाकर मोम बनाकर तुरत बताती
अतः खुशामद से मत चुको रोज रोज बेवर की तानो
अगर नोकरी करनी है तो अफसर को परमेश्वर मानो  इस कलियुग की सकल .............................

4. उनके कच्चो बच्चो को नित घर पर जाकर मुफ्त पढाओ
और परीक्षा में फिर उनको सबसे ज्यादा अंक लुटाओ
काकीजी मामीजी कहकर चूल्हे में जड़ अपनी रक्खो
अटके काम बनाकर अपने खूब खुशामद के फल चक्खो
अफसर की बीवी का दर्ज़ा अफसर से बढ़कर ही मानो
अगर नोकरी करनी है तो अफसर को परमेश्वर मानो  इस कलियुग की सकल .............................


मेने भारत में किसी भारतीय को नहीं देखा ?

मेने भारत में किसी भारतीय को नहीं देखा ?

क्यों?

पढ़कर बड़ा आश्चर्य हो रहा होगा ?

भारत में ही अगर भारतीय को नहीं देखा तो फिर अँधा है क्या ?

एक बार एक प्रवासी भारतीय ने अमेरिका में अपने मित्र को भारत भेजा घुमने के लिए और वो हमेशा भारतियों की तारीफ़ करता था कि हम इसे भारतीय है जिसकी संस्कृति की विदेशों में पूजा होती है, मेरा भारत महान, और बहुत सी तारीफ़ की उसने भारतीयों की | अमेरिकन भारत घूम के वापस अमेरिका गया और अपने मित्र से मिला तो बोला तुम तो कह रहे थे की वह बहुत सारे भारतीय रहते है मुझे तो एक भी नहीं मिला | उसने कहा एसा नहीं हो सकता तुम किसी गलत देश में चले गए होंगे वो बोला नहीं मैं गया तो भारत में ही था पर वह भारतीय के अलावा तो बहुत सारे लोग रहते हैं पर भारतीय नहीं था,

तो प्रवासी भारतीय ने पूछा तो तुम कहाँ कहाँ गए थे तो

अमेरिकन बोला जब में हरियाणा गया तो वहां के लोगो ने कहा मैं हरयान्वी हूँ,

जब पंजाब गया तो वहा के लोगो ने कहा मैं पंजाबी हूँ,

राजस्थान में गया तो सभी लोग राजस्थानी थे,

बिहार में गया तो सभी लोग बिहारी थे,

गुजरात में गया तो वहां के सभी लोग गुजराती थे.

फिर मेने और सभी तरह से परिचय पूछा तो कोई कहता है में ब्राह्मण हूँ , किसी ने कहा में सिन्धी हूँ, किसी ने कहा में सिक्ख हूँ, कोई कहता में इसाई हूँ, किसी ने कहा मैं फलाना, मैं ढीकड़ा, पर किसी ने भी नहीं कहा कि मैं भारतीय हूँ
वहा तो दुसरे लोग रहते है कोई भारतीय नहीं था

अब आप ही बताइए क्या विदेशों में यही छवि बनाना चाहते है भारत की ?

क्या वो अमेरिकन गलत कह रहा था ?
हम चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, चाहे सिक्ख हो या इसाई, चाहे राजस्थानी हो या गुजराती, चाहे ब्राह्मण हो या शुद्र, क्षत्रिय हो या वेश्य, पर सबसे पहले हम भारतीय है


I am a proud of INDIAN , गर्व से कहो हम भारतीय है

Vande matram!!!

"विकासशील भारत- उसके विकास में बाधक तत्व "

जय श्री कृष्णा

"विकासशील भारत- उसके विकास में बाधक तत्व "

"आरक्षण या असमानता "

भारत को हमारे बुजुर्गो ने आजाद तो करा लिया पर क्या वास्तव में हम क्या इक्कीसवी सदी में भी रुढिवादिता, जातिवाद, समाजवाद, भेदभाव से आज़ाद हो गए है, श्री भीमराव अम्बेडकर ने जो "आरक्षण " नाम का विधेयक शुरू करवाया था उसका उद्देश्य तो था कि भारत में जाति और धर्म के नाम पर जो भेदभाव किया जा रहा था और दलितों के साथ जो अछूतों की तरह व्यवहार किया जाता है उसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए, किन्तु आज वर्तमान में क्या हो रहा है इससे तो आप सभी लोग अच्छी तरह से वाकिफ है | लोगो ने आरक्षण को बहुत ही गलत तरीके से उपयोग में लेना शुरू कर दिया है | आज आरक्षण भारत के विकास में बाधक तत्व के रूप में उभर कर सामने आ रहा है |
आप ही सोचिये की सभी विद्यार्थी अपने अपने तरीके से पढ़ाई करते है उनमे से ही को भविष्य में वैज्ञानिक, राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, डाक्टर, पुलिस, सेना में जाकर नाम रोशन करना चाहता है एक सामान्य आदमी चाहे कितनी ही मेहनत करता ही किन्तु आरक्षण की वजह से उसको अपनी योग्यता को प्रदर्शित करने का मोका ही नहीं मिल पाता है और जो जिन लोगो को आरक्षण मिला हुआ है उन में से भी कुछ लोग जानबूझ कर पढ़ाई में ध्यान नहीं देते क्योंकि उन्हें आरक्षण मिला हुआ है न तो वेसे ही उनका चयन हो जायेगा इस प्रकार देश की कई महत्वपूर्ण पदों पर जो लोग बहुत मेहनत से पढ़कर पास हुए है उन्हें तो आरक्षण के कारण निम्न पदों पर नियुक्ति मिलती है और जो लोग निम्न पदों के लायक भी नहीं है उन्हें आरक्षण के कारण बड़े बड़े अफसर की नौकरी मिल जाती है जिस से सभी परियोजनाओ का वांछित लाभ नहीं मिल पाता है और विकास की गति बहुत ही धीमी है और यदि यही नियुक्तियां योग्यता के आधार पर की जाती तो देश के कई बड़े बड़े पदों पर योग्य एवं कुशल व्यक्ति देश के विकास में वास्तविक योगदान दे रहे होते |
जरा सोचिये आपकी नज़र में आरक्षण कहाँ तक उचित है ?

आरक्षण का उद्देश्य दलित वर्ग का उत्थान है ताकि लोग उनसे अछूतों की तरह व्यवहार ना करे और आज वेसे भी कानून की वजह से कोई दलितों से एसा व्यवहार नहीं करता है तो फिर ये आरक्षण कहाँ तक उचित है ?
क्या इस आरक्षण को ख़त्म नहीं किया जाना चाहिए ?

क्या आरक्षण के नाम पर जो भेदभाव किया जा रहा है वो सही है ?
आरक्षण से अप्रत्यक्ष रूप से भारत में असमानता व्याप्त है इस पर ध्यान देकर समानता लाने के लिए आरक्षण को समाप्त कर देना चाहिए तभी देश का चहुंमुखी विकास संभव है
उठो जागो, देश के उत्थान के लिए कार्य करो, स्वार्थी मत बनो, आगे आपकी मर्ज़ी .. !!!

जय श्री कृष्णा

क्या श्री हनुमान जी ने शादी की थी ? अगर हनुमान जी ने शादी की थी तो वे ब्रह्मचारी क्यों कहे जाते है

पाराशर संहिता में कहा गया है कि
एक दिन सूर्य भगवान हनुमान जी को शिक्षा पूरी होने के पश्चात उन्हें विदा कर रहे थे तब
सूर्य भगवान ने हनुमान जी से कहा: "हे हनुमान, तुम भगवान शिव के अवतार हो जिन्होंने समुद्र मंथन के समय ब्रह्मांड बचाने के लिए जहरीला हलाहल पी लिया था आप अग्नि के भी पुत्र हैं, अग्नि देवता मेरे प्रकाशपुंज का एक अलग हिस्सा है और दुनिया इसे सहन करने में असमर्थ है. केवल आप एक ही है जो इसे सहन कर सकते हैं, इसलिए में तुम्हे अपनी पुत्री "सुवर्चला" प्रदान करता हूँ जो मेरे ही प्रकाशपुंज से बनी है जिसे भी सिर्फ तुम ही सहन कर सकते हो, और तुम सुवर्चला से शादी करने बाद मेरे तेज को भी सहन कर सकोगे और तुम्हारी सुवर्चला से शादी ही मेरी गुरुदक्षिणा है | हनुमान जी ने अपने गुरुदेव की बात सुनी और विनम्रता से कहा: "हे भगवान! मैंने अपने जीवन में आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने का फैसला किया है. मैं उससे केसे शादी कर सकता हूँ |
सूर्य भगवान ने कहा: "हे हनुमान, यह एक दिव्य सुवर्चला है जो एक अयोनिजा है. वह एक समर्पित पत्नी होगी. मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि आप अभी भी एक ब्रह्मचारी है और शादी के बाद भी आप एक प्रजापत्य ब्रह्मचारी रहेंगे | तुम्हारी शादी ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही है और इससे तुम्हारा ब्रह्मचर्य प्रभावित नहीं होगा
तुम्हारा (यज्ञोपवित पवित्र धागे के साथ पैदा हुए ब्रह्मचारी) ब्रह्मचर्य अनन्त तक रहेगा | और इसके बाद से आप भविष्य में एक ब्रह्मा होने जा रहे हैं, सुवर्चला वाणी में निवास करेगी. और इस तरह हनुमान अपने गुरू की सलाह मानी.

हनुमान को सूर्य ने सुवर्चला प्रदान की. यह पाराशर संहिता में कहा गया है कि सूर्य ने ज्येष्ठा सूद दशमी पर अपनी बेटी सुवर्चला की शादी की पेशकश की. यह नक्षत्र उत्तरा में बुधवार की थी. ज्येष्ठा सूद दसमी दिन हनुमान विवाह के बारे में "हनुमत कल्याणं " में भी लिखा है

क्या इसीलिए आशा करते है माँ बाप पुत्र की ?

क्या इसीलिए आशा करते है माँ बाप पुत्र की ?

जय श्री कृष्णा,

भारतीय जीवनशैली में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ बताये है जीने के लिए | धर्म का आचरण करते हुए अर्थोपार्जन करना चाहिए
भारतीय मान्यता के अनुसार पुत्र ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है पुत्र द्वारा ही वंश आगे बढ़ता है हिन्दू धर्म की मान्यता यूँ तो सर्वथा उचित है किन्तु आज का विषय

"हिन्दू धर्म की पुत्र प्राप्ति की लालसा और बुढापे का सहारा"

एक वृद्ध महिला करीब ९० साल की आयु में एक वृद्धाश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रही है जिसके एक पुत्र विदेश में है और एक बेटी है जो ससुराल में है पैसे की कोई कमी नहीं थी उसकी दुनिया में फिर भी वृद्धाश्रम में जीवन व्यतीत करते हुए किसी अपने का इंतज़ार करती उसकी आँखें यही पूछती है क्या इसीलिए आशा करते है माँ बाप पुत्र की ? वृद्ध महिला ने पुत्र को पढाया लिखाया विदेश जाने के काबिल बनाया और पति की मृत्यु के बाद उसके पुत्र ने विदेश में ही शादी करली और माँ को जाते जाते ये कहकर गया कि जेसे ही विदेश में जम जाएगा उसे आकर ले जायेगा तब तक उसे वृद्धाश्रम में ही रहना होगा और फिर उसके बाद उसका पुत्र १५ साल बाद आया तो अपनी माँ से ये कह कर गया कि अभी तो किसी कारण से उसे नहीं ले जा सका अगली बार ज़रूर ले जायेगा और बुढापे में उसकी माँ जिस प्रकार का अभिशप्त जीवन व्यतीत कर रही है उसे बयां करना मेरे वश में नहीं है और आज में जीवन के अंतिम क्षणों में भी १० साल बीत गए उसके पुत्र ने माँ कि कोई खोज खबर नहीं ली और माँ आज भी अपने बेटे का इंतज़ार कर रही है ये किसी एक घर कि कहानी नहीं है ये कहानी है उस दौर की जहा हम लोग अपने आपको २१वि सदी के लोग कहते है हम अपने आपको भारतीय कहते है ? अपने माता पिता के प्रति अपने कर्तव्य को भूल कर जीवन में आगे बढ़ने का प्रयत्न करते है

यदि यही व्यवहार उनकी संतान उनके साथ करेगी तब उन्हें अपनी भूल का अहसास होगा |

जीते जी तो माँ बाप की सेवा नहीं कर सकते और मरने के बाद उनके नाम से अनाथ आश्रम में दान करते हैं.

जीते जी तो माँ बाप को ढंग से खाना नहीं खिला सकते और मरने के बाद भूखो को भोजन खिलने का ढोंग करते है

जीते जी तो माँ बाप को रहने के लिए ढंग के कपडे और बिस्तर भी नहीं दे सकते और मरने के बाद कम्बल बाँटते है
क्यों ?

जवाब है क्या ?

क्या इसीलिए आशा करते है माँ बाप पुत्र की ?

क्या आप दुनिया को बदलने की ताकत रखते हैं ?

जय श्री कृष्णा

क्या आप दुनिया को बदलने की ताकत रखते हैं ?

 
"Do you have the power to change the world ?"

दुनिया बहुत बड़ी है इसमें रहने वाले सभी प्राणी अलग अलग प्रकार की मानसिकता रखने वाले होते है .
जैसे की कुछ लोग अपने को बिलकुल आम आदमी समझते हैं
कुछ लोग अपने आप को माध्यम वर्ग का समझते हैं
कुछ लोग कुछ नहीं सोचते जो हो रहा है एसा ही होता होगा
कुछ लोग चाहते तो बहुत कुछ है लेकिन आलसी प्रवर्ति के कारन कुछ नहीं कर पते
कुछ लोग जिद कर के success को पाना चाहते हैं पर सफलता नहीं मिलती
कुछ लोग अपने को सबसे होंशियार समझते हैं पर होते नहीं है
पर कुछ लोग एसे भी हैं जो अपने आपको पूरी दुनिया से अलग समझते हैं और तब तक प्रयास करते है जब तक की सफल नहीं हो जाते और एक दिन सफल होकर दुनिया के लिए आदर्श बन जाते हैं
कहने का तात्पर्य ये है की मनुष्य की जेसी सोच होती है वेसा ही वो कर पता है . और सफलता अर्जित कर के भी बैठता नहीं है
क्योंकि 



"सपने उन्ही के पुरे होते हैं
जिनके सपनो में जान होती है
पंख होने से भी कुछ नहीं होता
होंसलों से भी उड़ान होती है"

अब कुछ लोग चाहते तो बहुत है पर किस्मत का नाम लेकर अपने आलस्य को ढकने का प्रयास करते हैं लेकिन
ज़िन्दगी तो एक ख्वाब है
वो ज़िन्दगी ही क्या जिसमे ख्वाब नहीं होते ,
हाथों की लकीरों को किस्मत न समझना
किस्मत तो उनकी भी होते है जिनके हाथ नहीं होते .
अब कुछ लोग बहुत कुछ चाहते हैं उनका बस चले तो वो दुनिया को अपने हिसाब से change कर दे और इसके लिए वे कुछ एसा कार्य करने लगते हैं जिसे देखकर समाज वाले उसे बेवकूफ और पागल की संज्ञा देने लगते है जबकि
मर्द मुछो से नहीं,उसके काम से कहलाता है
जब जब दुनिया पागल कहती है तब तब आदमी सफल होता है
कुछ लोग ये कहते है की मुझे करना तो बहुत कुछ है पर मेरे पास टाइम नहीं है
उनके लिए ---



"एक बार एक व्यक्ति 3600 company में financial adviser था . वो एक एक पल का भी सही तरीके से उपयोग करता था . उसके पास एक पल का भी समय नहीं था . बहुत व्यस्त रहता था. एक दिन उसे अपने परिवार की चिंता हुई कि जब तक मैं जिंदा हूँ तब तक मेरे हुनर से पुरे परिवार को कुछ भी करने कि ज़रूरत नहीं है पर एक न एक दिन तो मैं मरूँगा ही न . तब मेरे परिवार का गुजरा केसे चलेगा यही सोच कर उसने परिवार के लिए एक किताब लिखकर जाने की सोची . पर उसके पास तो वक़्त ही कहाँ था सोचते सोचते उसने 3 महीने निकाल दिए कि किताब लिखने के लिए वक़्त किस तरह निकालू | पर उसे समय मिल ही नहीं सकता था फिर भी उसे किताब लिखने के लिए रोजाना कम से कम आधा घंटा तो चाहिए ही था | तो उसने अपनी दिनचर्या को फिर से गोर किया उसमे से समय कहाँ से निकाल सकता है | इस तरह फिर उसने एक सप्ताह निकाल दिया पर उसे समझ मैं नहीं आ रहा की वो क्या करे | फिर भी उसने अपनी दिनचर्या को फिर से देखा तो उसे पता चला की पुरे 24 घंटे में वो दो बार कॉफी पीता है जो भी खुद बना कर पीता है उसमे 40 minit सुबह और 40 minit शाम को खर्च हो जाते है तो उसने सोचा की अगर मेरा ये टाइम कुछ कम हो जाये तो शायद वो अपने परिवार के लिए कुछ कर सकता है . उसने तुरंत 100 जनों को कॉफी बनाने के interview के लिए बुलाया और उसमे से भी 2 जनों को चुना और उनसे कहा कि तुम दोनों 1 महीने तक मेरे साथ रहो और देखो कि मैं कॉफी केसे बनता हूँ तुम्हे और कुछ काम नहीं करना है पर जिस दिन से तुम लोग कॉफी बनाओगे मुझे कभी भी ये नहीं लगना चाहिए कि ये कॉफी मेने नहीं बनायीं है वरना कॉफी ख़राब होने पर मेरा दिमाग ख़राब हो जायेगा और मेरा काम ख़राब हो जायेगा तो उन दोनों ने पूछा कि एक कॉफी के लिए दो जनों कि क्या जरुरत है तो वो बोला कि दोनों मेरे साथ रहकर मेरी कॉफी बनाना सीख जाओगे और जब एक गलती करेगा तो दूसरा उसको सही करेगा इससे गलती नहीं होगी और मेरा time बच जायेगा .
तो इस प्रकार जब 3600 कम्पनियों का financial adviser भी अपना टाइम निकाल सकता है तो आप और हम तो साधारण इंसान है ????

अब मैं आपसे सिर्फ ये ही पूछना चाहता हूँ कि क्या आप दुनिया को बदलने कि सोच रखते हैं ?



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