क्या इसीलिए आशा करते है माँ बाप पुत्र की ?
जय श्री कृष्णा,
भारतीय जीवनशैली में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ बताये है जीने के लिए | धर्म का आचरण करते हुए अर्थोपार्जन करना चाहिए
भारतीय मान्यता के अनुसार पुत्र ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है पुत्र द्वारा ही वंश आगे बढ़ता है हिन्दू धर्म की मान्यता यूँ तो सर्वथा उचित है किन्तु आज का विषय
"हिन्दू धर्म की पुत्र प्राप्ति की लालसा और बुढापे का सहारा"
एक वृद्ध महिला करीब ९० साल की आयु में एक वृद्धाश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रही है जिसके एक पुत्र विदेश में है और एक बेटी है जो ससुराल में है पैसे की कोई कमी नहीं थी उसकी दुनिया में फिर भी वृद्धाश्रम में जीवन व्यतीत करते हुए किसी अपने का इंतज़ार करती उसकी आँखें यही पूछती है क्या इसीलिए आशा करते है माँ बाप पुत्र की ? वृद्ध महिला ने पुत्र को पढाया लिखाया विदेश जाने के काबिल बनाया और पति की मृत्यु के बाद उसके पुत्र ने विदेश में ही शादी करली और माँ को जाते जाते ये कहकर गया कि जेसे ही विदेश में जम जाएगा उसे आकर ले जायेगा तब तक उसे वृद्धाश्रम में ही रहना होगा और फिर उसके बाद उसका पुत्र १५ साल बाद आया तो अपनी माँ से ये कह कर गया कि अभी तो किसी कारण से उसे नहीं ले जा सका अगली बार ज़रूर ले जायेगा और बुढापे में उसकी माँ जिस प्रकार का अभिशप्त जीवन व्यतीत कर रही है उसे बयां करना मेरे वश में नहीं है और आज में जीवन के अंतिम क्षणों में भी १० साल बीत गए उसके पुत्र ने माँ कि कोई खोज खबर नहीं ली और माँ आज भी अपने बेटे का इंतज़ार कर रही है ये किसी एक घर कि कहानी नहीं है ये कहानी है उस दौर की जहा हम लोग अपने आपको २१वि सदी के लोग कहते है हम अपने आपको भारतीय कहते है ? अपने माता पिता के प्रति अपने कर्तव्य को भूल कर जीवन में आगे बढ़ने का प्रयत्न करते है
यदि यही व्यवहार उनकी संतान उनके साथ करेगी तब उन्हें अपनी भूल का अहसास होगा |
जीते जी तो माँ बाप की सेवा नहीं कर सकते और मरने के बाद उनके नाम से अनाथ आश्रम में दान करते हैं.
जीते जी तो माँ बाप को ढंग से खाना नहीं खिला सकते और मरने के बाद भूखो को भोजन खिलने का ढोंग करते है
जीते जी तो माँ बाप को रहने के लिए ढंग के कपडे और बिस्तर भी नहीं दे सकते और मरने के बाद कम्बल बाँटते है
क्यों ?
जवाब है क्या ?
क्या इसीलिए आशा करते है माँ बाप पुत्र की ?
जय श्री कृष्णा,
भारतीय जीवनशैली में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ बताये है जीने के लिए | धर्म का आचरण करते हुए अर्थोपार्जन करना चाहिए
भारतीय मान्यता के अनुसार पुत्र ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है पुत्र द्वारा ही वंश आगे बढ़ता है हिन्दू धर्म की मान्यता यूँ तो सर्वथा उचित है किन्तु आज का विषय
"हिन्दू धर्म की पुत्र प्राप्ति की लालसा और बुढापे का सहारा"
एक वृद्ध महिला करीब ९० साल की आयु में एक वृद्धाश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रही है जिसके एक पुत्र विदेश में है और एक बेटी है जो ससुराल में है पैसे की कोई कमी नहीं थी उसकी दुनिया में फिर भी वृद्धाश्रम में जीवन व्यतीत करते हुए किसी अपने का इंतज़ार करती उसकी आँखें यही पूछती है क्या इसीलिए आशा करते है माँ बाप पुत्र की ? वृद्ध महिला ने पुत्र को पढाया लिखाया विदेश जाने के काबिल बनाया और पति की मृत्यु के बाद उसके पुत्र ने विदेश में ही शादी करली और माँ को जाते जाते ये कहकर गया कि जेसे ही विदेश में जम जाएगा उसे आकर ले जायेगा तब तक उसे वृद्धाश्रम में ही रहना होगा और फिर उसके बाद उसका पुत्र १५ साल बाद आया तो अपनी माँ से ये कह कर गया कि अभी तो किसी कारण से उसे नहीं ले जा सका अगली बार ज़रूर ले जायेगा और बुढापे में उसकी माँ जिस प्रकार का अभिशप्त जीवन व्यतीत कर रही है उसे बयां करना मेरे वश में नहीं है और आज में जीवन के अंतिम क्षणों में भी १० साल बीत गए उसके पुत्र ने माँ कि कोई खोज खबर नहीं ली और माँ आज भी अपने बेटे का इंतज़ार कर रही है ये किसी एक घर कि कहानी नहीं है ये कहानी है उस दौर की जहा हम लोग अपने आपको २१वि सदी के लोग कहते है हम अपने आपको भारतीय कहते है ? अपने माता पिता के प्रति अपने कर्तव्य को भूल कर जीवन में आगे बढ़ने का प्रयत्न करते है
यदि यही व्यवहार उनकी संतान उनके साथ करेगी तब उन्हें अपनी भूल का अहसास होगा |
जीते जी तो माँ बाप की सेवा नहीं कर सकते और मरने के बाद उनके नाम से अनाथ आश्रम में दान करते हैं.
जीते जी तो माँ बाप को ढंग से खाना नहीं खिला सकते और मरने के बाद भूखो को भोजन खिलने का ढोंग करते है
जीते जी तो माँ बाप को रहने के लिए ढंग के कपडे और बिस्तर भी नहीं दे सकते और मरने के बाद कम्बल बाँटते है
क्यों ?
जवाब है क्या ?
क्या इसीलिए आशा करते है माँ बाप पुत्र की ?
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