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मंगलवार, 9 नवंबर 2021

कर्म-योग क्या है ?

*कर्म-योग क्या है ?*
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एक बार एक सात वर्ष का बालक रमन  महर्षि के पास आया! उन्हे प्रणाम कर उसने अपनी जिज्ञासा उनके समक्ष रखी! वह बोला- *'क्या आप मुझे बता सकते है कि कर्म-योग क्या है.? क्योंकि जब कभी भी मै यह प्रश्न अपने माता-पिता से पूछता हूँ, तो वे कहते है कि अभी तुम्हे इस विषय मे सोचने की आवश्यकता नही है! जब तुम बडे हो जाओगे, तो तुम्हे अपना आप समझ आ जाएगी!'*

बालक की बात सुनकर रमन-ऋषि बोले-*' मै तुम्हे इस प्रश्न का उतर दूँगा! पर अभी तुम यहाँ मेरे पास शांतिपूर्वक बैठ जाओ!'* बालक उनकी आज्ञा का पालन कर उनके पास जाकर बैठ गया! 

कुछ समय बाद, वहाँ एक व्यक्ति डोसे लेकर आया! उसने सभी डोसे रमन महर्षि के समक्ष रख दिए! किंतु महर्षि किसी भी वस्तु को अकेले ग्रहण नही करते थे! इसलिए महात्मा रमन ने डोसे का एक छोटा सा टुकडा अपने आगे रखा! फिर साथ बैठे उस बालक के पतल मे एक पूरा डोसा परोस दिया! उसके बाद वहाँ उपस्थित अन्य अनुयायियो मे शेष डोसे बाँटने का आदेश दिया! फिर उन्होने पास बैठे बालक से कहा- *'अब जब तक मै अँगुली उठाकर इशारा नही करता, तब तक तुम यह डोसा खाते रहोगे! हाँ..ध्यान रहे कि...मेरे इस सँकेत से पहले तुम्हारा डोसा खत्म नही होना चाहिए! पर जैसे ही मै अँगुली उठाकर सँकेत दूँ, तो पतल पर डोसे का एक भाग भी शेष नही रहना चाहिए! उसी क्षण डोसा खत्म हो जाना चाहिए!'*

*महर्षि के इन वचनो को सुनते ही बालक ने पूरी एकाग्रता से रमन-ऋषि पर दृष्टि टिका दी! उसका मुख बेशक ही डोसे के निवाले चबा रहा था, किंतु उसकी नजरे एकटक महात्मा रमन पर केन्द्रित थी! बालक ने शुरूआत मे बडे-बडे निवाले खाए! पर बाद मे, अधिक डोसा न बचने पर, उसने छोटे-छोटे निवाले खाने शुरू कर दिए! तभी अचानक उसे अपेक्षित संकेत मिला! इशारा मिलते ही बालक ने बचा हुआ डोसा एक ही निवाले मे मुख मे डाल दिया और निर्देशानुसार पतल पर कुछ शेष न रहा!*

बच्चे की इस प्रतिक्रिया को देखकर रमन-ऋषि बोले- *'अभी-अभी जो तुमने किया, वही वास्तविक मे कर्म-योग है!'* 

मह-ऋषि ने आगे समझाते हुए कहा- *'देखो! जब तुम डोसा खा रहे थे, तब तुम्हारा ध्यान केवल मुझ पर था! डोसे के निवाले मुख मे डालते हुए भी तुम हर क्षण मुझे ही देख रहे थे! ठीक इसी प्रकार संसार के सभी कार्य-व्यवहार करते हुए भी अपने मन-मस्तिष्क को ईश्वर (पूर्ण गुरू) पर केन्द्रित रखना! मतलब कि ईश्वर की याद में रह कर अपने सभी कर्तव्यो को पूर्ण करना! यही वास्तविक कर्म-योग है ।।*
             *।। जय सियाराम जी।।*
               *।। ॐ नमह शिवाय।।*

मुफ्त में मिलने वाला ओर हर कहीं पाये जाने वाले इस रसभरी के पोधे के फायदे...

यह साधारण सा दिखने वाला पौधा औषधीय गुणों से भरा है!यह एक प्रकार का छोटा सा पौधा होता है! जो वारिस के मौसम में कही भी आसानी से देखने को मिल जाता है! इस का वानस्पतिक नाम : Physalis peruviana है! इस के फलों के ऊपर एक पतला सा आवरण होता है। इस आवरण के अंदर गोल नारंगी रंग के या काले हरे रंग के फल निकलते हैं! फल आवरण के अंदर मौजूद होने के कारण इस को केप गुसबेरी भी कहा जाता है! कहीं - कहीं इसे 'मकोय' भी कहा जाता है। जब कि 'मकोय' का पौधा इस पौधे से काफी भिन्न है! छत्तीसगढ़ में इसे 'चिरपोटी'व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पटपोटनी भी कहते हैं। * इसके फलों को खाया जाता है।इस के फल उत्तर प्रदेश के मथुरा वृंदावन में फलों की दुकानों पर आसानी से मिल जाते हैं! वहां के लोग इस के फलों को खूब पसंद करते हैं! इस के पौधे की मुख्य रूप से दो प्रजाति पाई जाती है! एक काले हरे रंग के फल वाली और दूसरी नारंगी रंग के फल वाली, किन्तु वर्तमान में इस की कई बड़े फल वाली हाइब्रिड किस्में भी तैयार कर ली गई हैं! जिस की अब व्यावसायिक स्तर पर खेती भी होने लगी है! इस के फल स्वाद में खट्टे मीठे होते हैं! एवं बहुत ही पौष्टिक होते हैं! इस के 100 ग्राम फलों में 53 केलोरी ऊर्जा होती है! इस के फल खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है! पांचन तंत्र ठीक रहता है!हड्डियां मजबूत होती है! *** शुगर के मरीजों को यह फल सेहत में सुधार करने वाले होते हैं! इस के फलों में मौजूद तत्व हाई ब्लडप्रेशर को भी नियंत्रित करता है! इस के फलों में पर्याप्त मात्रा में विटामिन A पाया जाता है! जो आँखों के लिए विशेष फायदेमंद होता है! इस के फलों का सेवन काफी हद तक कोलेस्ट्रोल के लेवल को भी नियंत्रित करता है! इस के फल रस से भरे होने के कारण इस को ''रसभरी'' कहते हैं!

इस का पौधा किसानो के लिये सिरदर्द माना जाता है। जब यह खर पतवार की तरह उगता है तो फसलों के लिये मुश्किल पैदा कर देता है।

#औषधीय_गुण:

रसभरी का फल और पंचांग (फल, फूल, पत्ती, तना, मूल) उदर रोगों (और मुख्यतः यकृत) के लिए लाभकारी है। इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से पाचन अच्छा होता है साथ ही भूख भी बढ़ती है। यह लीवर को उत्तेजित कर पित्त निकालता है। इसकी पत्तियों का काढ़ा शरीर के भीतर की सूजन को दूर करता है। सूजन के ऊपर इसका पेस्ट लगाने से सूजन दूर होती है। रसभरी की पत्तियों में कैल्सियम, फास्फोरस, लोहा, विटामिन-ए, विटामिन-सी पाये जाते हैं। इसके अलावा कैटोरिन नामक तत्त्व भी पाया जाता है जो ऐण्टी-आक्सीडैंट का काम करता है। बाबासीर में इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से लाभ होता है। संधिवात में पत्तियों का लेप तथा पत्तियों के रस का काढ़ा पीने से लाभ होता है। खांसी, हिचकी, श्वांस रोग में इसके फल का चूर्ण लाभकारी है। बाजार में अर्क-रसभरी मिलता है जो पेट के लिए उपयोगी है। सफेद दाग में पत्तियों का लेप लाभकारी है।* * यदि आप के पास भी इस पौधे के बारे में किसी भी प्रकार की कोई जानकारी हो तो हमे अवश्य बताएं!

रसभरी के फायदों और नुकसान..

रसभरी जिसे आमतौर पर लोग बहुत पसंद करते है और यह फल हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है रसभरी दक्षिड़ अमरीका और  यूरोप सहित  दुनिया के कई देशो से उत्पत्र  होता है  यह छोटे टमाटर जैसे दिखाई देते है क्या आप सभी को इसके फायदे और नुकसान के बारे में जानकारी नहीं होगी आइये जानते हैं इसके कुछ फायदे और नुक़सान

रसभरी के फ़ायदे:

 यह गठिया के लिए बहुत लाभदायक हैं.

रसभरी मधुमेह  के लिए तो बहुत अच्छा फल हैं इसके सेवन से मधुमेह  नियंत्रित रखता है रोज सुबह खली पेट उबालकर  पिए. यह फायदेमंद हैं. 

रसभरी में पॉलीफिनॉल केरिटिनॉयड्स पाया जाता हैं जो कैंसर से लड़ने में मदद करता हैं.

यह कॉलेस्ट्रॉल  को  नियंत्रित रखता  हैं.

यह आँखों सम्बन्धी सब बीमारियों को ठीक करता हैं रसभाई में काफी मात्रा में विटामिन ए पाया जाता हैं जो हमारे शरीर के साथ-साथ आँखों को भी ठीक रखता हैं.

इसका सेवन हाईब्लड प्रेशर को काम करता हैं.

इसमें फाईटोकैमिक्ले पाया जाता हैं जो हार्ट के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ हैं और वह हार्ट सम्बन्धी सभी बीमारियों से भी लड़ता हैं. 

रसभरी के नुक़सान:

बिना पकी रसभरी को ना खए क्युकी यह जहरीला भी हो सकता हैं.

जंगली रसभरी को खाना भी हानिकारक हो सकता हैं.

अगर आपको बेरीज खाने से ऐलर्जी होती हैं तो आपको रसभरी खाने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह  कर ले .

स्तनपान करने वाली और गर्भवती को यह खाने से पहले अपने डॉक्टर  से सलाह कार ले  यह खतरनाक भी हो सकता हैं.







#रसभरी

सौंफ की चाय Fennel Tea के फायदे, नुकसान और बनाने की विधि

सौंफ की चाय  Fennel Tea के फायदे, नुकसान और बनाने की विधि 


क्‍या आप सौंफ की चाय पीने के फायदे जानते हैं। सौंफ के औषधीय गुणों को प्राप्‍त करने के लिए सौंफ के पानी की तरह सौंफ की चाय का भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है। माउथफ्रेशनर के रूप में उपयोग की जाने वाली सौंफ का उपयोग चाय के रूप में भी किया जा सकता है। सौंफ की चाय पीने के फायदे पाचन संबंधी समस्‍याओं को रोकने में सहायक होते हैं। सौंफ की चाय के औषधीय गुण मांसपेशियों की ऐंठन को रोकने, दस्‍त, अपच, पेट फूलना जैसी समस्‍याओं का इलाज करने में मदद करते हैं। सौंफ की चाय का इस्‍तेमाल उच्‍च रक्‍तचाप को कम करने, वजन घटाने, श्वसन प्रणाली की रक्षा करने और शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को हटाने के लिए किया जा सकता है।



सौंफ की चाय क्‍या है


सौंफ की चाय एक आयुर्वेदिक पेय है जिसे सौंफ के बीजों से तैयार किया जाता है। सौंफ की चाय बनाने के लिए उबलते पानी में सौंफ के कुचले हुए बीजों को मिलाया जाता है। इस विशिष्‍ट स्‍वाद वाली सौंफ की चाय के फायदे हमें कई संभावित बीमारियों से बचा सकते हैं। अधिकांश आयुर्वेद चिकित्‍सक सौंफ के पानी पीने और सौंफ के बीज खाने की सलाह देते हैं। लेकिन सौंफ की चाय पीने के लाभ भी होते हैं जो आपकी पाचन समस्‍याओं को दूर कर सकते हैं। अपनी ठंडी तासीर होने के कारण सौंफ की चाय शरीर को शीतलता दिलाने और पेट की जलन को शांत करने में प्रभावी मानी जाती है।


सौंफ की चाय के पोषक तत्‍व –

सौंफ के बीजों से बनने वाली चाय में विटामिन ए, विटामिन बी-कॉम्‍प्‍लेक्‍स, विटामिन सी और विटामिन डी की अच्‍छी मात्रा होती है। भोजन के बाद सौंफ का सेवन करना भारतीय घरों में एक आम प्रथा है। आपको देखने में लगता होगा कि सौंफ का उपयोग मुंह को साफ करने के लिए किया जाता है। हां यह सच है, लेकिन इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्‍व (Nutrients) जैसे कि कॉपर, पोटेशियम, कैल्शियम, जिंक, मैंगनीज, आयरन, सेलेनियम और मैग्‍नीशियम जैसे खनिजों की अच्‍छी मात्रा होती है। जो कि मुंह को साफ रखने से कहीं अधिक आपके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छे होते हैं। इनके अलावा भी सौंफ में फाइबर, फॉस्‍फोरस, फोलेट, पेंटोथेनिक एसिड (pantothenic acid), आयरन और नियासिन आदि भी मौजूद रहते हैं। आइए जाने इतने पोषक तत्‍वों की उपस्थिति के कारण सौंफ की चाय के फायदे हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए किस प्रकार हैं।

सौंफ की चाय पीने के फायदे –

आयुर्वेदिक सौंफ की चाय स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी समस्‍याओं को दूर करने का सबसे अच्‍छा विकल्‍प है। इसमें विभिन्‍न प्रकार के एंटीऑक्‍सीडेंट और अन्‍य यौगिक होते हैं। जिनकी मौजूदगी हमारे शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर बनाने में सहायक होती है। वास्तव में सौंफ के बीज औषधीय गुणों के कारण इतने लोकप्रिय हैं कि इनका उपयोग कई दवाओं के निर्माण में किया जाता है। नियमित रूप से सौंफ की चाय पीने के फायदे प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और सहनशक्ति को बढ़ाने में मदद करते हैं।

- सौंफ और सौंफ की चाय दोनों पेट के लिए रामबाण इलाज है। इसकी चाय पीने से गैस और सूजन को खत्म करने में मदद मिलेगी। पाचन तंत्र ठीक होगा।
- एसिडिटी, गैस, डायरिया, पेट दर्द में बहुत आराम मिलता है।
- पीरियड्स के दौरान सौंफ की चाय पीने से पेट दर्द में आराम मिलता है।
- बॉडी का ब्लड प्यूरीफाई करने में भी मदद करता है।
- लिवर और किडनी को प्‍यूरी फाई करने में मदद करता है।
- बॉडी पर जमा एक्‍स्‍ट्रा वसा को कम करने में मदद करता है। इससे आपका वजन तेजी से कम होगा।
आइए विस्‍तार से जाने सौंफ की चाय पीना हमें किस प्रकार से लाभ पहुंचाता है।

सौंफ की चाय के फायदे वजन कम करे

सौंफ की चाय के फायदे वजन कम करे

जो लोग अपने मोटापे से परेशान हैं उनके लिए सौंफ की चाय पीना एक एक अच्‍छा घरेलू उपचार है। नियमित रूप से सौंफ के बीज खाना और इन बीजों को उबालकर इसके पानी को पीना फैट घटाने में मदद कर सकता है। सौंफ की चाय में मूत्र वर्धक गुण होते हैं जिसके कारण यह पेशाब को बढ़ावा दे सकती है। जिससे आपके शरीर में मौजूद विषाक्‍तता को आसानी से बाहर निकालने में मदद मिलती है। इसके अलावा सौंफ की चाय के गुण चयापचय को बढ़ावा देते हैं जिससे अतिरिक्‍त फैट और कैलोरी को जलाने में मदद मिलती है। इसमें मौजूद पोषक तत्व आपकी भूख और भूख बढ़ाने वाले हार्मोन को भी नियंत्रित करते हैं। जिससे आपको अपना वजन कम करने में मदद मिल सकती है। 

सौंफ की चाय पीने के फायदे हार्टबर्न के लिए

फेनिल टी में फाइटोएस्‍ट्रोजन की अच्‍छी मात्रा होती है। जिसके कारण सौंफ की चाय पीना आपको हार्टबर्न जैसी समस्‍याओं से बचा सकता है। इस औषधीय पेय का सेवन करने से मांसपेशियों की ऐंठन को कम करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा जब भी आपको पाचन संबंधी समस्‍याओं या एसिड रिफ्लेस (acid reflux) का अनुभव हो तब भी आप सौंफ की चाय का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इस दौरान सौंफ की चाय का प्रयोग करना आपको पेट के दर्द और जलन से राहत दिला सकता है।


सौंफ की चाय के लाभ हृदय स्‍वास्‍थ्‍य के लिए

सौंफ की चाय के लाभ हृदय स्‍वास्‍थ्‍य के लिए

हार्ट से संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए सौंफ की चाय एक अच्‍छा उपाय है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि फेनिल टी में बहुत से पोषक तत्‍व और खनिज पदार्थ होते हैं। जो हृदय की कार्य प्रणाली को बेहतर बनाए रखने में सहायक होते हैं। सौंफ की चाय में पोटेशियम की अच्‍छी मात्रा होती है जो वासोडिलेटर के रूप में कार्य करता है। इसका मतलब यह है कि सौंफ की चाय का सेवन करने से रक्‍त वाहिकाओं और धमनियों को स्‍वस्‍थ रखने में मदद मिलती है। जिससे स्‍वस्‍थ रक्‍त परिंसचरण को बढ़ावा मिलता है। सौंफ की चाय का प्रयोग करके आप एथेरोस्‍क्लेरोसिस (atherosclerosis) संबंधी समस्‍याओं से भी बच सकते हैं। जिससे दिल का दौरा, स्‍ट्रोक और हार्ट अटैक आदि की संभावना कम हो जाती है। आप भी अपने हृदय को स्‍वस्‍थ रखने के लिए दैनिक आधार पर सौंफ की चाय का उपयोग कर सकते हैं।

सौंफ की चाय पीने के लाभ उच्‍च रक्‍तचाप के लिए

सौंफ की चाय पीने के लाभ उच्‍च रक्‍तचाप के लिए

उच्‍च रक्‍तचाप से ग्रसित रोगी को सौंफ की चाय पीने की सलाह दी जाती है। क्‍योंकि सौंफ की चाय पीने के फायदे उच्‍च रक्‍तचाप को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। सौंफ के बीजों में मौजूद पोटेशियम रक्‍त प्रवाह को नियंत्रित करने में अहम योगदान देते हैं। पोटेशियम संकुचित रक्‍त वाहिकाओं को फैलने में और उन्‍हें नरम रखने में मदद करता है। जिससे पूरे शरीर में उचित रक्‍त प्रवाह बना रहता है। यदि आप भी उच्‍च रक्‍तचाप संबंधी लक्षणों को कम करना चाहते हैं सौंफ की चाय आपके लिए एक प्राकृतिक उपाय साबित हो सकती है।


सौंफ की चाय के गुण कामेच्‍छा बढ़ाये

सौंफ की चाय के गुण कामेच्‍छा बढ़ाये

नियमित रूप से सौंफ की चाय पीना पुरुषों और महिलाओं में कामेच्‍छा को उत्‍तेजित करने में सहायक हो सकती है। सौंफ में मौजूद पोषक तत्‍व और खनिज पदार्थ शरीर की मांसपेशियों को आराम दिलाने, जननांगों में रक्‍त प्रवाह को बढ़ाने में सहायक होते हैं। जिससे यौन इच्‍छाओं को उत्‍तेजित करने में मदद मिलती है। नियमित रूप से सौंफ की चाय का सेवन पुरुषों के सेक्‍स टाइम को बढ़ाने का एक प्रभावी घरेलू नुस्‍खा हो सकता है।

सौंफ की चाय के औषधीय गुण नींद को बेहतर बनाएं

सौंफ की चाय के औषधीय गुण नींद को बेहतर बनाएं

रात में सोने से पहले सौंफ की चाय पीना आपकी नींद को बेहतर बना सकता है। यदि आप अनिद्रा या अन्‍य नींद से संबंधित परेशानियों का सामना कर रहे हैं तो सौंफ की चाय का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। सौंफ की चाय में मौजूद मेलाटोनिन आपकी नींद की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में सहायक हो सकता है। रात के भोजन करने के तुरंत बाद सौंफ की चाय पीना सबसे अच्‍छा है। क्‍योंकि यह पाचन में सहायक होता है और शरीर को आराम दिलाने में मदद करता है। इसके अलावा यह शरीर में तनाव हार्मोन को भी नियंत्रित करता है जिससे आपको अच्‍छी नींद लेने में आसानी होती है।

सौंफ की चाय का उपयोग श्वसन तंत्र के लिए

अस्‍थमा और अन्‍य श्वसन समस्याओं के लिए सौंफ की चाय पीने का फायदा हो सकता है। नियमित रूप से सौंफ के बीजों को उबाल कर पीने से ब्रोंकाइटिस (bronchitis), खांसी और वायरस के संक्रमण आदि से छुटकारा पाया जा सकता है। श्वसन तंत्र में मौजूद कफ को दूर करने के लिए सौंफ की चाय सबसे अच्‍छे विकल्‍पों में से एक है। बलगम या कफ में संक्रामक रोगजनकों का विकास हो सकता है। इसके अलावा सौंफ की चाय में मौजूद एंटी-इंफ्लामेटरी गुण गले की खराश और साइनस दबाव (sinus pressure) को रा‍हत देने में भी सहायक होते हैं। इस तरह से आप अपनी श्वसन संबंधी समस्याओं का घरेलू उपचार करने के लिए सौंफ की चाय का प्रयोग कर सकते हैं।

सौंफ की चाय का इस्‍तेमाल मुंह की बदबू दूर करे

सौंफ की चाय का इस्‍तेमाल मुंह की बदबू दूर करे

सौंफ के बीज पाचन समस्‍याओं को दूर करने में मदद करते हैं। इसके अलावा सौंफ की चाय मुंह की बदबू का उपचार करने में भी फायदेमंद होती है। सौंफ की चाय में एंटीफंगल और जीवाणुरोधी गुण होते हैं। जो मुंह में मौजूद बैक्‍टीरिया और अन्‍य रोग जनकों को नष्‍ट करने में सहायक होते हैं। सौंफ की चाय का नियमित सेवन करने से मसूड़ों और दांतों को स्‍वस्‍थ रखने के साथ ही मुंह की बदबू से भी छुटकारा मिल सकता है।

सौंफ की चाय का प्रयोग स्‍वस्‍थ आंखों के लिए

सौंफ की चाय का प्रयोग स्‍वस्‍थ आंखों के लिए

दिन भर कम्‍प्‍यूटर पर काम करने के दौरान अक्‍सर आंखों में सूजन और अन्‍य प्रकार की समस्‍याएं हो सकती है। इस प्रकार की समस्‍यओं को दूर करने के लिए सौंफ की चाय का इस्‍तेमाल किया जा सकता है। सौंफ की चाय में एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं जो आंखों की सूजन, जलन और सूखापन आदि स्थितियों का घरेलू इलाज करने में मदद करते हैं। आप सौंफ की चाय को पहले फ्रिज में ठंडा कर लें। फिर इस चाय में रूई को भिगोएं और अपनी आंखों की बंद पलकों में इसे रखें। सौंफ की चाय के जीवाणुरोधी और एंटीऑक्‍सीडेंट आंखों संबंधी अन्‍य समस्‍यओं को प्रभावी रूप से दूर करने में मदद कर सकते हैं।

सौंफ की चाय का लाभ सूजन के लिए

सौंफ की चाय में आयुर्वेदिक और औषधीय गुण होते हैं। जिसके कारण सौंफ की हर्बल चाय का सेवन गठिया, गाउट और अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं संबंधी दर्द और सूजन को कम कर सकती है। सौंफ की चाय के औषधीय गुण शरीर को डिटॉक्‍स करने और मांसपेशीय ऊतकों को स्‍वस्‍थ रखने में सहायक होते हैं। यदि आप भी गठिया के दर्द और सूजन का घरेलू उपचार ढूंढ रहे हैं तो सौंफ की चाय सबसे अच्‍छा उपाय है। नियमित रूप से सौंफ की चाय का सेवन आपको दर्द और सूजन से छुटकारा दिला सकता है।

सौंफ की चाय का सेवन हार्मोन संतुलित रखे

सौंफ की चाय का सेवन हार्मोन संतुलित रखे

हार्मोन असंतुलन संबंधी समस्‍याएं विशेष रूप से गर्भावस्‍था के दौरान महिलाओं को होती है। इस प्रकार की परेशानियों को दूर करने के लिए कुछ विशेष जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है जिनमें सौंफ भी शामिल है। सौंफ की चाय पीने के फायदे इसलिए होते हैं क्‍योंकि इसके यौगिकों में एस्‍ट्रोजेन (Estrogen) जैसे गुण होते हैं। जिससे महिलाओं को मासिक धर्म संबंधी समस्‍याओं को कम करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा सौंफ की चाय के लाभ शरीर में अन्‍य हार्मोन के स्‍तर को संतुलित करने में भी सहायक होते हैं। जिससे कामेच्‍छा में वृद्धि और स्‍तनपान कराने वाली महिलाओं में दूध उत्‍पादन को उत्‍तेजित करना शामिल है। नियमित रूप से औषधीय सौंफ की चाय पीना महिलाओं को रजोनिवृत्ति के लक्षणों को कम करने में भी मदद कर सकता है।

फेनल टी के लाभ प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाये

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के सबसे अच्‍छे घरेलू उपाय में सौंफ की चाय को शामिल किया जा सकता है। सौंफ की चाय में शक्तिशाली जीवाणुरोधी, एंटीसेप्टिक और एंटीफंगल गुण होते हैं। जिसके कारण दैनिक आधार पर सौंफ की चाय पीना आपकी प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ा सकता है। सौंफ की चाय का सेवन करने से सर्दी, खांसी और बुखार जैसी वायरल बीमारियों के लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है। आप इन सामान्‍य बीमारियों का घरेलू इलाज करने और इम्‍यूनिटी पावर को बढ़ाने के लिए सौंफ की चाय का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

फेनल टी फायदे शिशुओं के लिए

सौंफ की चाय पारंपरिक रूप से शिशुओं को दी जाती है जिससे उन्‍हें शांत किया जा सके और उन्‍हें पेट दर्द से आराम मिल सके। यह छोटे बच्‍चों में पेट की ऐंठन और पेट फूलना जैसी समस्याओं को रोकने में भी प्रभावी माना जाता है।

छोटे बच्‍चों को सौंफ की चाय पिलाने से पहले इस बात का विशेष ध्‍यान रखें कि 4 माह से कम आयु वाले शिशुओं को सौंफ की चाय का सेवन नहीं कराना चाहिए। छोटे बच्‍चों को किसी भी प्रकार के हर्बल उत्‍पादों का सेवन कराने से पहले अपने चिकित्‍सक से सलाह लेना आवश्‍यक है।


फेनल टी बेनिफिट्स फॉर स्किन

फेनल टी बेनिफिट्स फॉर स्किन

सौंफ के बीजों में कुछ आवश्‍यक तेल जैसे कि एनेथोल, माईकैन और लिमोनेन आदि होते हैं। ये सभी घटक त्‍वचा को स्‍वस्‍थ रखने और मुंहासों का उपचार करने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा सौंफ की चाय में एंटी-इंफ्लामेटरी गुण भी होते हैं जो मुंहासों और त्‍वचा की सूजन को कम करने में प्रभावी योगदान देते हैं। अध्‍ययनों से पता चलता है कि सौंफ की चाय पीना त्‍वचा में मौजूद अतिरिक्‍त तेल को बाहर निकालने में मदद कर सकता है। जिससे मुंहासे होने की संभावना कम हो सकती है।


सौंफ की चाय का सेवन दिलाए पाचन समस्या से छुटकारा

सौंफ की चाय का सेवन दिलाए पाचन समस्या से छुटकारा

आज अधिकांस लोग पाचन की समस्या से परेशान है, आपकी पाचन की समस्या से छुटकारा दिलाने में सौंफ की चाय मदद कर सकती हैं। नियमित रूप से सौंफ की चाय का सेवन कर आप कब्‍ज, अपच, एसिडिटी, पेट की ऐंठन और अन्‍य समस्‍याओं से छुटकारा पा सकते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर सौंफ हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए फायदेमंद होती है। सौंप की चाय पीने के फायदे में सबसे प्रमुख पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करना है। सौंफ में एस्‍ट्रागोल (Estragole), फेनेकोन और एनेथोल (Fenchone and Anethole) आदि शामिल होते हैं। इन घटकों की मौजूदगी गैस्ट्रिक एंजाइम के उत्‍पादन को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं। जिससे आपके पाचन तंत्र को तेज करने और स्‍वस्‍थ रखने में मदद मिलती है।


सौंफ चाय का सेवन दिलाए गठिया के दर्द से राहत

गठिया रोग को ठीक करने और उसके दर्द से राहत पाने के लिए सौंफ की चाय बहुत ही लाभदायक होती है। एक अध्ययन के अनुसार सौंफ में एंटी इंफ्लेमेटरी (Inflammatory) गुण होते है जो कि गठिया रोग से होने वाले दर्द को ठीक करने में मदद करता है। सौंफ की चाय में सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेस (superoxide dismutase) नामक एक एंटीऑक्सिडेंट होता है जो सूजन के कम करता है। सौंफ़ एक ऐसी जड़ी-बूटियों में से एक है जिसका उपयोग गठिया के लक्षणों के इलाज के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है।


सौंफ की चाय के लाभ मासिक धर्म के लिए

कुछ अध्ययन के अनुसार मासिक धर्म के दौरान होने वाली ऐंठन और दर्द को कम करने के लिए सौंफ की चाय फायदेमंद होता है। सौंफ की चाय आपके थायरॉयड को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकती है जिससे आप पीरियड के समय एक स्वस्थ प्रवाह रख सकें। सौंफ की चाय का सेवन कर महिलाएं अपने मासिक धर्म चक्र की लंबाई को कम कर सकती हैं। इसके अलावा यह महिलाओं में मतली और चक्‍कर आना जैसी समस्‍याओं को भी कम कर सकती है। सौंफ की चाय का सेवन करने से शरीर में एस्‍ट्रोजेन (estrogen) की उ‍पस्थिति को बढ़ाया जा सकता है। महिलाएं सौंफ की चाय का सेवन कर मासिक धर्म के दर्द, ऐंठन और रजोनिवृत्ति के लक्षणों को दूर कर सकती हैं।

सौंफ टी का उपयोग मसूड़ों की सूजन के लिए

मसूड़ों की सूजन और उनसे होने वाली बिमारियों को ठीक करने के लिए भी सौंफ की चाय लाभदायक होती है। सौंफ़ एक बहुत ही अच्छा एंटीबैक्टीरियल एजेंट होने के कारण, गम (मसूड़ों) की सूजन के उपचार में सहायता करता है।


फेनल टी के लाभ करें आंत के कीड़े को नष्ट

सौंफ की चाय का सेवन आपके पेट की आंतों में होने वाले कीड़ों को भी नष्ट करने में सहायक होती है। सौंफ़ को एक वनस्पति ओसोमर (Dewormer) माना जाता है जो कि आंतों में होने वाले परजीवियों को खत्म करने का कार्य भी करता है। सौंफ एक प्राकृतिक लैक्सेटिव है जो आंतों की गति को बढ़ावा देते हैं और आपके सिस्टम से कीड़े को बाहर निकालने में मदद करता है।


सौंफ की चाय के गुण मां का दूध बढ़ाये

सौंफ की चाय के गुण मां का दूध बढ़ाये

फेनल टी उन महिलाओं के लिए अच्छी होटी है जो महिलाएं स्‍तनपान करा रहीं हैं। क्‍योंकि सौंफ की चाय में मौजूद एस्‍ट्रोजेन महिलाओं में प्रोलैक्टिन के स्‍तर को बढ़ाता है। जिससे महिलाओं में दूध उत्‍पादन की क्षमता में वृद्धि हो सकती है। इस तरह से महिलाएं अपने और अपने बच्‍चे के बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए सौंफ की चाय का सेवन कर सकती हैं।

सौंफ की चाय के फायदे मुँहासे का इलाज करे

सौंफ की चाय के फायदे मुँहासे का इलाज करे

सौंफ़ में कुछ आवश्यक तेल जैसे एनेथोल, माईकैन और लिमोनेन होते है इन सभी तेलों में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते है जो कि मुंहासे जैसे त्वचा की स्थिति का इलाज करने में सहायता करते हैं। आप अपने मुँहासे का इलाज सौंफ की चाय से भी कर सकते हैं, सौंफ़ की चाय का सेवन त्वचा से अतिरिक्त तरल पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद करता है, जो मुँहासे में योगदान कर सकते हैं।


सौंफ की चाय के फायदे पुरुषों के लिए

सौंफ की चाय के फायदे पुरुषों के लिए

सौंफ़ को कामेच्छा बढ़ाने वाली जड़ी-बूटी के रूप में जाना जाता है। सौंफ के बीज की चाय का सेवन विशेष रूप से पुरुषों में यौन इच्छाओं में सुधार कर सकता है। यह मूत्राशय और प्रोस्टेट से संबंधित समस्याओं के साथ-साथ सेक्स से संबधित समस्याओं से भी छुटकारा दिला सकता है।


सौंफ की चाय कब पीना चाहिए –

सौंफ की चाय पीने का सबसे अच्‍छा समय भोजन करने के बाद का होता है। क्‍योंकि इसमें अद्भुद पाचन क्षमता होती है जो आपके पाचन तंत्र को उत्‍तेजित करने में सहायक होता है। अच्‍छे परिणाम प्राप्‍त करने के लिए आप दिन में 2 से 3 कप सौंफ की चाय का सेवन कर सकते हैं। लेकिन इससे अधिक मात्रा में सौंफ की चाय पीना आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है।


सौंफ की चाय कितनी पीना चाहिए

सौंफ की चाय पीना सेहत के लिए एक अच्‍छा विकल्‍प है। सामान्‍य रूप से 1 कप सौंफ की चाय बनाने के लिए 5 से 7 ग्राम सौंफ के बीजों का उपयोग करना चाहिए। यदि आप सौंफ के बीजों और पानी को 1:2 के अनुपात में उपयोग करते हैं तो यह आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है।


सौंफ की चाय कैसे बनाएं

घर पर सौंफ की चाय बनाना बहुत ही आसान है। हालांकि आप बाजार से भी फेनल टी को खरीद सकते हैं। लेकिन घर में बनी सौंफ की चाय अधिक फायदेमंद होती है।

सौंफ की चाय बनाने की विधि बहुत ही आसान है इसके लिए आपको चाहिए

  • ताजा सौंफ बीज का 1 टी वैग या 1 चम्‍मच सौंफ
  • 1 कप पानी
  • 1 चम्‍मच शहद


सौंफ की चाय बनाने का तरीका

आप 1 चम्‍मच सौंफ के बीजों को लें और इसे अच्‍छी तरह से कुचल लें। जिससे कि सौंफ के बीज भुरभुरे पाउडर के रूप में बन जाए। सौंफ के पाउडर को एक बर्तन में रखें और इसमें उबलता हुआ 1 कप पानी मिलाएं। इसके बाद इस मिश्रण को कुछ देर के लिए ढ़क कर रख दें। ध्‍यान रखें कि इस मिश्रण को उबालना नहीं है। क्‍योंकि उबालने से इसके अधिकांश पोषक तत्व नष्‍ट हो सकते हैं। कुछ ठंडा होने के बाद इस मिश्रण को कप में छान लें। अधिक पौष्टिक और स्‍वादिष्‍ट बनाने के लिए आप इस औषधीय और हर्बल चाय में शहद भी मिला सकते हैं।

आप सौंफ के बीजों के स्‍थान पर सौंफ की पत्तियों का भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इनका उपयोग करने से पहले इन्‍हें अच्‍छी तरह से धो लें और छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। फिर चाय बनाने की ऊपर बताई गई विधि का पालन करें।

सौंफ की चाय पीने के नुकसान –

सामान्‍य मात्रा में सौंफ की चाय का सेवन करना सुरक्षित होता है, लेकिन अधिक मात्रा में इसका सेवन करने के नुकसान भी हो सकते हैं। आइए जाने सौंफ की चाय पीने के साइड इफैक्‍ट्स क्‍या हैं।

  • जिन लोगों को गाजर या अजवाईन आदि से एलर्जी होती है उन्हें सौंफ की चाय का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से उन्‍हें चक्‍कर आना या चाय पीने के बाद कुछ भी निगलने में परेशानी हो सकती है।
  • जो लोग रक्‍तचाप संबंधी दवाओं का सेवन कर रहे हैं उन्‍हें अधिक मात्रा में सौंफ की चाय नहीं पीना चाहिए।
  • जिन लोगों को स्‍तन या डिम्‍बग्रंथि के कैंसर की संभावना होती है उन्‍हें भी इस चाय का सेवन नहीं करना चाहिए। क्‍योंकि इसमें एस्‍ट्रोजेन जैसे प्रभाव होते हैं जो समस्‍या को और अधिक बढ़ा सकते हैं।

यदि आप किसी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या के उपचार के लिए सौंफ की चाय का सेवन करना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में पहले अपने चिकित्‍सक से सलाह लेना चाहिए।


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बेहद गुणकारी है पातालगरुड़ी - जलजमनी के औषधीय गुण व लाभ

 पातालगरुड़ी नाम सुनकर अजीब लग रहा होगा न! हिन्दी में यह जलजमनी, छिरहटा ऐसे अनेक नामों से जाना जाता है। असल में घरों के आस-पास, नम छायादार जगहों में इस तरह के बेल नजर में आते हैं। इन बेलों के कारण जल जम जाते हैं वहां इसलिए इन्हें जलजमनी भी कहा जाता है। आयुर्वेद में लेकिन इस बेल के अनेक औषधीय गुण का परिचय भी मिलता है।

जलजमनी / पातालगरुड़ी क्या है?

पातालगरुड़ी बेल बरसात के दिनों में सब जगह उत्पन्न होती है, इसके पत्तों को पीसकर पानी में डालने से पानी जम जाता है, इसलिए इसको जलजमनी कहते हैं। इसकी जड़ के अन्त में जो कन्द या बल्ब होता है, उसे जल में घिसकर पिलाने से उल्टी करवाकर सांप का विष निकालने में मदद मिलती है, अत: इसे पातालगरूड़ी कहते हैं। पाठा मूल के स्थान पर इसकी जड़ों को बेचा जाता है या पाठा मूल के साथ इसकी जड़ों की मिलावट की जाती है।

पाठा के जैसी किन्तु अधिक मोटी तथा दृढ़ लता होती है। नई बेल धागा जैसी पतली तथा पुरानी बेल अधिक मोटी होती है। इसके फल छोटे, गोल, चने के बराबर, चिकने, झुर्रीदार, बैंगनी काले रंग के, मटर आकार के, कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर काले या बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी जड़ टेढ़ी, स्निग्ध, हलकी भूरी अथवा पीले रंग की, जमीन में गहराई तक गई हुई, सख्त तथा अन्त में कन्द से युक्त व स्वाद में कड़वी होती है।

अन्य भाषाओं में जलजमनी / पातालगरुड़ी के नाम

पातालगरुड़ी का वानास्पतिक नाम Cocculus hirsutus (Linn.) W.Theob.(कोकुलस हिर्सुटस) Syn-Cocculus villosus DC. Menispermum hirsutum Linn. होता है। इसका कुल  Menispermaceae(मेनिस्पर्मेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Broom creeper (ब्रूम क्रीपर) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि पातालगरुड़ी और किन-किन नामों से जाना जाता है।

Sanskrit-छिलिहिण्ट, महामूल, पातालगरुड़, वत्सादनी, दीर्घवल्ली;

Hindi-पातालगरुड़ी, छिरेटा, फरीदबूटी, चिरिहिंटा, छिरहटा, जलजमनी;

Urdu-फरीदबूट्टी (Faridbutti);

Odia-मूसाकानी (Musakani);

Konkaniवानाटिक्टीका (Vanatiktika);

Kannadaदागड़ी (Dagadi), दागाड़ीवल्ली (Dagadiballi);

Gujrati-पातालग्लोरी (Patalglori), वेवड़ी (Vevadi);

Telugu-दूसरतिगे (Dusartige), चीप्रुतिगे (Chieeprutige);

Tamil-कातुककोदी (Kattukkodi);

Bengali-हुएर (Huyer);

Nepaliकासे लहरो (Kaselahro);

Punjabi-फरीद बूटी (Farid buti);

Marathi-वासनवेल (Vasanvela), भूर्यपाडल (Bhuryapadal);

Malayalam-पाथाअलमूली (Paathaalamuuli)।

English-इन्क बेरी (Ink berry);

Persian-फरीद बूटी (Farid Butti)।

बरसात के दिनों में यहाँ-वहाँ खेत-खलिहानों उग आने वाली जड़ी-बूटी जल-जमनी (Ink berry) को स्थानीय भाषा मे छिरहटा या पातालगरुड़ी भी कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम है कोक्युलस हिरसुटस (Cocculus hirsutus) और यह फेमिली मेनिस्परमेसी (Menispermaceae) के अंतर्गत आती है।

जलजमनी के नये पौधों की बेल पतली होती है, लेकिन पुरानी होने पर यह मोटी हो जाती है। फल मटर के दाने जितने छोटे और गोल होते हैं, जो शुरू में हरे तथा पकनेपर बैंगनी या काले रंग के हो जाते हैं। इसके पत्तों को पीसकर पानी में डालने से पानी जम जाता है, इसीलिए इसका नाम जलजमनी पड़ा।

जलजमनी / पातालगरुड़ी  का औषधीय गुण

जलजमनी के पत्ते व जड़ औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यह एक जानीमानी शक्तिवर्धक जड़ी है, जिसे शतावर, मूसली व अश्वगंधा के साथ शारिरिक कमज़ोरी को दूर करने के लिए लिए ली जाती हैं। महिलाओं में श्वेत-प्रदर माहवारी की गड़बड़ी तथा पुरुषों में स्‍वप्‍न-दोषशीघ्र-पतन की बीमारियों में यह असरकारी होती है। इसके अतिरिक्त जलजमनी को त्वचा रोगों, आर्थराइटिस, डायबिटीज, तथा सर्पदंश के इलाज में भी प्रयुक्त किया जाता है।

जलजमनी से बनी विभिन्न दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं।

पातालगरुड़ी के फायदों के बारे में जानने के पहले औषधीय गुणों के बारे में जानना जरूरी होता है।

सिरदर्द से दिलाये आराम पातालगरुड़ी

Headache

हर दिन तनाव से सर फटने लगता है तो पातालगरुड़ी का इस्तेमाल इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिल सकता है। इसके लिए पातालगरुड़ी जड़ तथा पत्ते को पीसकर सिर पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलने में मदद मिलती है।

रतौंधी के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी

पातालगरुड़ी का औषधीय गुण पातालगरुड़ी के पत्तों को पकाकर सेवन करने से रात्र्यान्धता (रतौंधी) में लाभ होता है।

आँखों के रोगों से दिलाये राहत पातालगरुड़ी (Uses of Patalgarudi to Treat Eye Diseases in Hindi)

पातालगरुड़ी पत्ते के रस का अंजन करने से अभिष्यंद (आँखों का आना) तथा आँखों में दर्द में लाभ होता है।

दांतों के दर्द को कम करने में फायदेमंद पातालगरुड़ी

दांत दर्द से परेशान रहते हैं तो पातालगरुड़ी के औषधीय गुणों का इस्तेमाल इस तरह से करने से जल्दी आराम मिलता है। पातालगरुड़ी पत्ते के पेस्ट को दाँतों पर मलने से दांत दर्द से आराम मिलता है।

अजीर्ण या बदहजमी के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी

खाने-पीने में गड़बड़ी होने के वजह से बदहजमी की समस्या से परेशान रहते हैं तो 1-2 ग्राम पातालगरुड़ी जड़ चूर्ण में समान भाग में अदरक तथा शर्करा मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण से आराम मिलता है।

अतिसार या दस्त को रोकने में फायदेमंद पातालगरुड़ी

dysentry

खान-पान में असंतुलन होने से अक्सर दस्त जैसी समस्या होती है। 5 मिली पातालगरुड़ी जड़ के रस का सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।

श्वेतप्रदर या ल्यूकोरिया के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी

पातालगरुड़ी के नये पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली काढ़े में शर्करा मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।

पूयमेह या गोनोरिया से राहत दिलाने में फायदेमंद पातालगरुड़ी

5 मिली पातालगरुड़ी पत्ते के रस को जल में जैली की तरह जमाकर और दही के साथ सेवन करने से पूयमेह या शुक्रमेह (गोनोरिया) में लाभ होता है। इसके अलावा 5 मिली पातालगरुड़ी पत्ते के रस को पिलाने से सूजाक में लाभ होता है।

स्वप्नदोष के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी

10 ग्राम छाया में सुखाया हुआ जलजमनी पत्ते के चूर्ण में घी में भुनी हुई हरड़ का चूर्ण मिलाकर, इसके समान मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें। प्रतिदिन सुबह शाम 2 ग्राम की मात्रा में गाय दूध के साथ सेवन करने से स्वप्नदोष में लाभ होता है। औषध सेवन काल में पथ्य पालन आवश्यक है।

आमवात या गठिया के दर्द से दिलाये राहत पातालगरुड़ी

गठिया के दर्द से परेशान रहते हैं तो पिप्पली तथा बकरी के दूध से सिद्ध जलजमनी के 10-20 मिली काढ़े का सेवन करने से जीर्ण आमवात (गठिया) अथवा रतिज रोगों के कारण उत्पन्न दर्द में लाभ होता है। इसके अलावा 5 ग्राम जलजमनी की जड़ को 50 मिली बकरी के दूध में उबालकर छानकर, उसमें 500 मिग्रा पिप्पली, 500 मिग्रा सोंठ तथा 500 मिग्रा मरिच डालकर पिलाने से आमवात, त्वचा संबंधी बीमारियों तथा उपदंश (Syphilis) की वजह से होने वाले संधिवात में लाभ होता है। जलजमनी पत्ते को पीसकर लगाने से संधिवात या अर्थराइटिस में लाभ होता है।

त्वचा संबंधी समस्याओं में फायदेमंद पातालगरुड़ी (Patalgarudi Beneficial in Skin Diseases in Hindi)

scabies symptoms

जलजमनी पत्ते के रस का लेप करने से छाजन, खुजली, घाव तथा जलन से राहत मिलने में आसानी होती है।

राजयक्ष्मा या तपेदिक के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी

5 मिली जलजमनी पत्ते के रस को 50 मिली तिल तेल में मिलाकर, पकाकर, छानकर तेल प्रयोग करने से क्षय रोग में लाभ होता है।

शराब व भांग की लत छुड़ाने में लाभकारी पातालगरुड़ी

जलजमनी के 2-4 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन 1 माह तक सेवन करने से शराब तथा भांग की आदत छूट जाती है। इसका प्रयोग करते समय यदि उल्टी हो तो इसकी मात्रा कम कर देनी चाहिए।

पेटदर्द से दिलाये आराम पातालगरुड़ी

लता करंज के बीजचूर्ण तथा जलजमनी जड़ के चूर्ण को मिलाकर 1-2 ग्राम मात्रा में सेवन कराने से बच्चों के पेट के दर्द से आराम मिलता है।

सांप के विष के असर को कम करने में फायदेमंद पातालगरुड़ी

Ayurvedic Medicine Indian birthwort is Beneficial in Snake Bite

पातालगरुड़ी जड़ को पीसकर पानी में घिसकर 1-2 बूँद नाक लेने से तथा इसके 5 मिली पत्ते के रस में 5 मिली नीम पत्ते के रस में मिलाकर पीने से सांप के काटने से जो विष का असर होता है उसको कम करने में मदद मिलता है।

पातालगरुड़ी का उपयोगी भाग (Useful Parts of Patalgarudi)

आयुर्वेद के अनुसार पातालगरुड़ी का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-

-पत्ता और

-जड़

पातालगरुड़ी का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए (How to Use Patalgarudi in Hindi)

यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए पातालगरुड़ी का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 2-4 ग्राम चूर्ण ले सकते हैं।

पातालगरुड़ी कहां पाया या उगाया जाता है (Where is Patalgarudi Found or Grown in Hindi)

भारत में यह उष्णकटिबंधीय एवं उप-उष्णकटिबंधीय साधारण प्रान्तों में मुख्यत: हिमालय के निचले क्षेत्रों, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं पंजाब में पाया जाता है।

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